1880 के भू-स्खलन की त्रासदी में मल्लीताल के वर्तमान बोट हाउस क्लब के पास स्थित मोतीराम शाह द्वारा निर्मित माँ नयना देवी का मन्दिर भी लुप्त हो गया था। मोतीराम शाह 1870 के दशक में स्वर्गवासी हो चुके थे। उनके चार पुत्र थे- अमरनाथ शाह, कृष्णा शाह, दुर्गा शाह और चेतराम शाह। ये सभी प्रतिष्ठित व्यवसायी थे। अमरनाथ शाह बैंकर और सरकारी ट्रेजरर थे। साथ ही वे धर्मपरायण भी थे। अमरनाथ शाह को रायबहादुर की पद्वी से सम्मानित किया गया था। उन्होंने नयना देवी मन्दिर के पुनःनिर्माण का बीड़ा उठाया, पर ब्रिटिश सरकार मन्दिर के पुनःनिर्माण के लिए पुरानी जगह देने को राजी नहीं थी। सरकार ने तालाब के इस छोर में बोट क्लब और गवर्नर बोट क्लब बनाने का मन बना लिया था, पर अमरनाथ शाह नयना देवी मन्दिर के पुनःनिर्माण के लिए कृत संकल्प थे।
इस दिशा में उनके अथक प्रयासों के फलस्वरूप 20 अक्टूबर, 1882 को कुमाऊँ के सहायक आयुक्त और नगर पालिका कमेटी के सचिव ने अमरनाथ शाह को पुरानी जगह के एवज में मन्दिर निर्माण के लिए मौजूदा स्थान इस शर्त के साथ दिया कि वे मई 1883 से पूर्व मन्दिर का निर्माण कार्य पूरा करा लेंगे। अमरनाथ शाह ने अपने संसाधनों से 1883 में वर्तमान नयना देवी मन्दिर का निर्माण कार्य सम्पन्न करा लिया था। अमरनाथ शाह के प्रयासों से ही नैनीताल में रामलीला मंचन की परम्परा की शुरुआत हुई।
अमरनाथ शाह की पहल पर 1890 के दशक में रामलीला मंचन का शुभारम्भ ब्रेबरी क्षेत्र से हुआ था। नैनीताल में नंदा देवी मेला प्रारम्भ करने का श्रेय भी अमरनाथ शाह को ही जाता है। उनकी पहल और प्रयासों से 1903 में यहाँ नंदादेवी मेले का शुभारम्भ हुआ था। नवम्बर, 1914 में अमरनाथ शाह की मृत्यु के बाद नैनीताल में धार्मिक एवं सांस्कृतिक चेतना को आगे बढ़ाने का दायित्व उनके ज्येष्ठ पुत्र उदयनाथ शाह ने निभाया। उन्होंने जीवनपर्यन्त नयना देवी मन्दिर की सेवा और पूजा-अर्चना की। अमरनाथ शाह ने अमरपुर (गुफा महादेव) बसाया। मोतीराम शाह के दूसरे पुत्र कृष्णा शाह ने कृष्णापुर और तीसरे पुत्र दुर्गा शाह ने दुर्गापुर बसाया। मोतीराम शाह का परिवार नैनीताल के एक दर्जन से अधिक स्टेट्स का स्वामी था।
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