न्यायपालिका की चौखट पर गंगा-भक्त

गंगा में खनन को रोकने के लिए पिछले तीन-चार सालों के अंदर ही लंबे अनशन के कारण मातृसदन के संत निगमानंद अंतबेला में पहुंच चुके हैं। वैसे तो संत का अंत नहीं होता, संत देह मुक्त होकर अनंत हो जाता है। हरिद्वार की भूमि पर हजारों संतों, मठों, आश्रमों, शक्तिपीठों के वैभव का प्रदर्शन तो हम आये दिन देखते रहते हैं। पर हरिद्वार के मातृसदन के संत निगमानंद के आत्मोत्सर्ग की सादगी का वैभव हम पहली बार देख रहे हैं।

देश की स्वाभिमानी पीढ़ी तक शायद यह खबर भी नहीं है कि गंगा के लिए एक संत 2008 में 73 दिन का आमरण अनशन करता है जिसकी वजह से न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर का शिकार होता है। और अब 19 फरवरी से शुरू हुआ उनका आमरण अनशन 27 अप्रैल को पुलिस हिरासत से पूरा होता है। संत निगमानंद ने घोषणा की थी कि अगर उनकी मांगे न मान करके सरकार अगर जबर्दस्ती खिलाने की कोशिश करती है, तो वो आजीवन मुंह से अन्न नहीं ग्रहण नहीं करेंगे।

संत निगमानंद: नैनीताल उच्च न्यायालय की भ्रष्टाचार के खिलाफ 68 दिन से अनशन पर बैठे संत निगमानंद अब कोमा में पहुंचेसंत निगमानंद: नैनीताल उच्च न्यायालय की भ्रष्टाचार के खिलाफ 68 दिन से अनशन पर बैठे संत निगमानंद अब कोमा में पहुंचेऐसी धारणा बनती जा रही है कि बेलगाम सरकारों और आपराधिक राजनैतिक तंत्र पर लगाम न्यायपालिका ही लगा पा रही है। पर आम लोगों का बड़ा तबका न्यायपालिका से शायद ही कोई उम्मीद करता है। गरीब आदमी तो वकीलों की बड़ी-बड़ी फीसें नहीं दे सकता, वह न्याय से वंचित रह जाता है। जो लोग न्यायिक प्रक्रिया से जुडे हैं वे अच्छी तरह जानते हैं कि न्यायपालिका में भी उतना ही भ्रष्टाचार है जितना कि राज्य की अन्य संस्थाओं में। देश अब एक नए तरह के नेक्सस नेता-माफिया-अधिकारी-न्यायपालिका का शिकार हो रहा है।

मातृसदन, कनखल, जगजीतपुर, हरिद्वार; यह पता है उन लोगों का जिन्होंने हरिद्वार में बह रही गंगा और उसके सुन्दर तटों और द्वीपों के विनाश को रोकने के लिए पिछले 12 सालों से अपनी जान की बाजी लगा रखी है। मातृसदन के कुलगुरु संत शिवानंद हैं। संत शिवानंद को गंगा से बेहद प्यार है। वे सच्चे अर्थों में गंगा भक्त हैं, और सच्चे अर्थों में पर्यावरणविद् योद्धा संत हैं। मातृसदन और उनके संतों का खरेपन का ही परिणाम था कि प्रो. जीडी अग्रवाल ने भागीरथी-गंगा में अविरल प्रवाह के लिए अनशन के लिए मातृसदन को चुना।

संत शिवानंद के शिष्य स्वामी यजनानंद 28 जनवरी से अनशन पर बैठे। उनकी तबीयत बिगड़ने के बाद स्वामी निगमानंद 19 फरवरी 2011 को उत्तराखंड के नैनीताल उच्चन्यायालय के खिलाफ अनशन पर बैठे। उनके अनशन के 68 दिनों के बाद 27 अप्रैल 2011 को पुलिस ने उनको उठा लिया। इतने लम्बे अनशन की वजह से अब उनको आंखों से दिखना बंद हो गया है, अब सुनाई कम पड़ता है और वे बोल नहीं पाते। स्वामी निगमानंद के गिरफ्तारी के बाद फिर से स्वामी यजनानंद ने अनशन जारी रखा है। नैनीताल उच्चन्यायालय के दो जज तरुण अग्रवाल और बी.एस वर्मा को संत शिवानंद और उनके गुरुकुल के लोग खननमाफिया का सहयोगी मानते हैं। संत शिवानंद का कहना है कि गंगा में अनियंत्रित खनन को रोकने के लिए दिए गए उत्तराखंड सरकार के आदेश पर इन जजों ने ‘स्टे आर्डर’ दिया है। नैनीताल उच्चन्यायालय के जज तरुण अग्रवाल का नाम 23 करोड़ रुपये के गाजियाबाद भविष्यनिधि घोटाले में भी आया है। मातृसदन से जुड़े विजय वर्मा कहते हैं कि यह सब किया गया है खननमाफिया ज्ञानेश अग्रवाल के वजह से। ज्ञानेश अग्रवाल को ‘नेता-माफिया-अधिकारी’ नेक्सस से आगे का नेक्सस ‘नेता-माफिया-अधिकारी-न्यायपालिका नेक्सस’ का फायदा मिल रहा है।

गंगा के लिए मातृसदन के संतों के 12 साल के संघर्ष और उपलब्धियों का नैनीताल उच्चन्यायालय ने अपने एक स्टे आर्डर से गला घोंट दिया है।

पुलिस हिरासत में संत निगमानंदपुलिस हिरासत में संत निगमानंदमातृसदन के संघर्षों का ही परिणाम है कि हरिद्वार के कुंभ क्षेत्र और उसके आस-पास के गंगा क्षेत्र में खननमाफियाओं की गतिविधियों में कमी आयी है। कुंभ मेला क्षेत्र घोषित करते समय खननमाफिया को लाभ पहुंचाने के नीयत से जब सरकार ने मेला नक्शे में छेड़-छाड़ करने की कोशिश की तब मातृसदन ने ही सरकार को मेला-नक्शे को ठीक करने को विवश किया। खननमाफिया के खिलाफ मुहिम के वजह से मातृसदन के संतों पर कई बार प्राणघातक हमले किये गए। माफिया के अलावा सरकार ने भी मातृसदन पर तरह-तरह से प्रताड़ित किया है। खननमाफियाओं से मातृसदन को सुरक्षा देने के नाम पर पुलिस लगाई गयी और बाद में पुलिस का खर्चा देने के लिए लाखों के बकाया के कुर्की आदेश निकाल दिया।

 

 

गंगा में खनन से विनाशलीला


काका कालेलकर की दृष्टि में तो भारत-जाति के लिए अत्यंत आकर्षक स्थान हरिद्वार ही है। हरिद्वार में भी पांच तीर्थ प्रसिद्ध हैं। पुराणकारों ने हरेक के माहात्म्य का वर्णन श्रद्धा और रस से किया है। किन्तु यह महत्त्व कुछ भी न जानते हुए भी मनुष्य कह सकता है कि ‘हर की पैड़ी’’ में ही गंगा का माहात्म्य और काव्य कहें तो काव्य अधिक दिखाई देता है। अनंतकाल से एक-दूसरे के साथ टकरा-टकरा कर गोल बने हुए सफेद पत्थर ही सर्वत्र देख लीजिये।

पर अब अनंतकाल से एक-दूसरे के साथ टकरा-टकरा कर गोल बने हुए सफेद पत्थर काल के गाल में समा रहे हैं। गंगा के किनारों पर अब मंदिर, आश्रमों के साथ ही स्टोन क्रेशरों की भरमार है।

बेलगाम खनन का एक दृश्यबेलगाम खनन का एक दृश्यमातृसदन की स्थापना के साल वर्ष 1997 में सन्यास मार्ग, हरिद्वार के चारों तरफ स्टोन क्रेशरों की भरमार थी। दिन रात गंगा की छाती को खोदकर निकाले गए पत्थरों को चूरा बनाने का व्यापार काफी लाभकारी था। स्टोन क्रेशर के मालिकों के कमरे नोटों की गडिडयों से भर हुए थे और सारा आकाश पत्थरों की धूल (सिलिका) से भरा होता था।

पूरा वातावरण ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण एवं जल प्रदूषण से भयंकर रूप से त्रस्त था। वृक्षों ने फल देने बन्द कर दिए थे। आम्र कुंज पर बौर नहीं लगती थी। हरे रंग की प्रकृति सफेद और काले रंग में बदल गयी थी। जब फल ही नहीं थे तो कोयल की कूक, टिटहरी का संगीत, भौरों की गुनगुन, मयूरों का नृत्य चकोरों का नाद, साईबेरिया के क्रेन, सुन्दर जलमुर्गियाँ, हरियाली तोते, और रामचन्द्र जी की गिलहरियाँ कहाँ से आतीं? सैकड़ों डीजल वाहन गंगा को चीरते हुए आश्रम के सामने खैर पेड़ के द्वीपों को खोदते थे। गंगा के किनारे स्टोन क्रेशरों की बाढ़ थी। कंकड़-कंकड़ में शंकर का सम्मान पाने वाले पत्थर स्टोन क्रेशरों की भेंट चढ़ गये। गंगा के बीच पड़े पत्थरों की ओट खतम होने से मछलियों का अण्डे देने का स्थान समाप्त हो गया। अब शायद ही किसी को याद हो, हरिद्वार की गंगा में कभी बड़ी-बड़ी असंख्य मछलियाँ अठखेलियाँ करती थीं, तीर्थ यात्री आँटे की छोटी-छोटी गोलियाँ खरीदकर मछलियों को खिलाने का आनन्द लेते थे।

लालच के साथ स्टोन क्रेशरों की भूख भी बढ़ने लगी तो गंगा में जेसीबी मशीन भी उतर गयीं। बीस-बीस फुट गहरे गड्ढे खोद दिए। जब आश्रम को संतों ने स्टोन क्रेशर मालिकों से बात करने की कोशिश की तो वे संतों को डराने और आतंकित करने पर ऊतारू हो गये। तभी संतों ने तय किया कि गंगा के लिए कुछ करना है।

 

 

 

 

न्यायमूर्ति सबूत नहीं देखना चाहते


पर पिछले सत्याग्रह ने उत्तराखंड सरकार को मजबूर कर दिया था। कुंभ क्षेत्र की रक्षा के लिए मातृसदन ने जो आंदोलन चलाया, वह लगभग ‘एकला चलो’ की तर्ज पर था। चंद ग्रामीणों को छोड़ मातृसदन के संतों के साथ कोई नहीं था, जबकि विरोध व्यापक था। खुद प्रशासन भी मातृसदन के खिलाफ कठोर रुख अपनाये हुए था। ऐसे में मातृसदन के संत स्वामी यजनानंद और दयानंद को झूठे मुकदमों में जेल भी जाना पड़ा। पुलिस जबरन उन्हें आश्रम से उठाकर ले गई और मुकदमे लाद दिये। फिर भी सरकार झुकी। 26 मार्च 2010 सरकार के स्पष्ट आदेश के बाद कि खनन पूरी तरह बंद किया जाएगा अनशन टूटा था। पर नैनीताल उच्च न्यायालय के 27 दिसम्बर 2010 के ‘स्टे आर्डर’ ने सारे प्रयास पर पानी फेर दिया।

गंगा बचाओ आंदोलनगंगा बचाओ आंदोलनन्यायालय गढ़े हुए तथ्यों के आधार पर स्टे दे रही है। ज्ञानेश अग्रवाल की कंपनी हिमालय स्टोन क्रेशर को खनन का कोई लाईसेंस नहीं है। आरटीआई से मांगी गयी सूचना में सरकार के लोग कहते हैं कि हिमालय स्टोन क्रेशर के पास राष्ट्रीय नदी गंगा में खनन हेतु कोई पट्टा नहीं है।

12 सालों में ग्यारह बार के आमरण अनशन, उत्तराखंड सरकार के तीन बार के खनन बंद करने के आदेश के बावजूद नैनीताल उच्च न्यायालय बार-बार स्टे आर्डर दे रहा है। नैनीताल उच्च न्यायालय को शायद यह पता नहीं है कि सत्य के प्रति आग्रह और प्राणाहूति मातृसदन के संतों को आता है, वे हरिद्वार की गंगा में खनन रोकने के यज्ञ की पूर्णाहूति करके ही मानेंगे।

 

 

 

 

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