नवीकरणीय एवं स्वच्छ ऊर्जा (Renewable and clean energy)

नवीकरणीय एवं स्वच्छ ऊर्जा
नवीकरणीय एवं स्वच्छ ऊर्जा

भारत सरकार के आर्थिक पैकेज सब्सिडी उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना आदि जैसे निर्णयों को क्रियान्वित करने के कारण देश के नवीन, नवीकरणीय एवं स्वच्छ ऊर्जा विनिर्माण क्षेत्र में अभूतपूर्व तेजी आई है। साथ ही, जीवाश्म ईंधन के उपभोग में कटौती और नवीकरणीय ऊर्जा के बढ़ते उपयोग से भारत द्वारा कार्बन उत्सर्जन में भारी कमी आएगी। इस प्रकार हम प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, जैव-विविधता हास, प्राकृतिक आपदाएं आदि पर्यावरण की स्थानीय एवं वैश्विक चुनौतियों को कम करने में अतुलनीय योगदान दे सकेंगे।

किसी देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में विनिर्माण क्षेत्र का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान होता है। भारत में विनिर्माण को गति प्रदान करने तथा देश को वैश्विक विनिर्माण केंद्र के  रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने सितम्बर  2014 में 'मेक इन इंडिया' पहल की शुरुआत की। इस पहल ने देश के नवीकरणीय एवं स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र पर भी व्यापक प्रभाव डाला भारत सरकार द्वारा नवीकरणीय एवं स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र को आर्थिक पैकेज एवं सब्सिडी, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, उत्पादन संबंधी प्रोत्साहन  आदि से इस क्षेत्र में विनिर्माण को बढ़ावा देना, ऊर्जा संबंधी उपकरणों के आयात पर कटौती और पाबंदी लगाना इत्यादि अनेक कदम उठाए गए। साथ ही, यह योजना देश के नवीन, नवीकरणीय और स्वच्छ ऊर्जा सेक्टर में बड़ी संख्या में रोजगार के  अवसर भी सृजित कर रही है।

मेक इन इंडिया

वर्ष 2014 में अस्तित्व में आई इस पहल का उद्देश्य भारत में सर्वोत्तम श्रेणी के विनिर्माण ढांचे को स्थापित और सुदृढ़ करने के साथ-साथ देश के विनिर्माण क्षेत्र में आर्थिक निवेश, अनुसंधान एवं विकास, नवाचार, कौशल विकास तथा बौद्धिक सम्पदा को समृद्ध करना भी था यह योजना 'जीरो डिफेक्ट जीरो इफेक्ट लक्ष्य के साथ शुरू की गई जिसका अर्थ है- देश में निर्मित उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय मानकों एवं गुणवत्ता पर खरे उतरे (जीरो डिफेक्ट) और उनके उत्पादन के दौरान या बाद में पर्यावरण पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े (जीरो इफेक्ट)। मेक इन इंडिया योजना चार स्तंभों पर टिकी है- नवीन प्रक्रिया (व्यापार प्रक्रिया को सरल एवं सुगम करना), नवीन दुनियादी ढांचा (अत्याधुनिक सुविधाओं एवं तकनीक से लैस बुनियादी ढांचा), नवीन क्षेत्र (नए उद्यमों एवं उपक्रमों को बढ़ावा देना) और नई सोच (सरकार उद्योग उद्यमों की नियंत्रक नहीं बल्कि सहायक) विभिन्न नवीन नवीकरणीय एवं स्वच्छ ऊर्जा संसाधनों के स्वदेशी विकास और विनिर्माण में मेक इन इंडिया द्वारा कातिकारी कदम उठाए गए है।

सौर ऊर्जा में मेक इन इंडिया का योगदान

क्रिस्टल सौर पैनल चार चरणों में बनता है- पालीसिलिकॉन (उच्च शुद्धता वाला सिलिका बनाना पालीसिलिकॉन  से ,सिलिकॉन वेफर बनाना,सिलिकॉन वेफर  को  सोलर सेल  में  बदलना तथा अनेक सोलर सेल को जोड़ कर सोलर मॉड्यूल  बनाना। वर्तमान में, इनमें से अंतिम दो चरणों का विनिर्माण ही भारत में होता है, जिसकी वर्तमान क्षमता इस प्रकार है।

  • सौर सेल उत्पादन 3 गीगावॉट प्रति वर्ष
  • सौर मोड्यूल उत्पादन 10 गीगावॉट प्रति वर्ष

अप्रैल 2021 में उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल पर राष्ट्रीय कार्यक्रम (नेशनल प्रोग्राम ऑन हाई एफिशिएसी सोलर पीवी मोड्यूल के अंतर्गत 4,500 करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता के साथ केंद्र सरकार ने उच्च दक्षता वाले सौर सेल, मॉड्यूल  और पैनल के स्वदेशी विनिर्माण एवं निर्यात को बढ़ावा देने के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेटिव पीएलआई) को क्रियान्वित किया। इससे देश में लगभग 8737 मेगावॉट की पूर्णतः एकीकृत सौर पीवी मॉड्यूल  विनिर्माण क्षमता स्थापित होगी और 19,221 करोड़ रुपये का अनुमानित निवेश भी मिलेगा।

हाल ही में केंद्र सरकार ने इस योजना के द्वितीय चरण के खर्च के लिए 19,500 करोड़ रुपये आवंटन की स्वीकृति दी। इस योजना से बड़ी संख्या में प्रत्यक्ष (26000) एवं अप्रत्यक्ष 12.05000 रोजगार सृजित होने की उम्मीद है और इसी की तैयारी के लिए सूर्यमित्र  और वायुमित्र जैसी कौशल विकास योजनाएं भी कियान्वित की जा रही है। साथ ही, स्वदेश में निर्मित सौर सेल और पैनल के विनिर्माण और उपयोग को बढ़ावा देने के लिए अप्रैल 2022 से आयात किए जाने वाले सौर सेल (25%) और पैनल (40%) पर कस्टम ड्यूटी भी लगा दी गई।

नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, भारत सरकार ने केंद्र सरकार द्वारा चलायी जा रही अनेक महत्वपूर्ण योजनाओं एवं कार्यक्रमों (जिनमें सरकार की तरफ से सब्सिडी मिलती है। जैसे प्रधानमंत्री किसान कर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम- केयूएसयूएम्). सोलर रूफटॉप कार्यक्रम तथा ग्रिड सम्बद्ध सौर फोटोवोल्टेक (पीवी) परियोजनाओं के लिए केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (सीपीएसयू) के लिए स्वदेश निर्मित सोलर सेल एवं पैनल के प्रयोग की ही अनुमति दी है। मंत्रालय ने सौर सेल पैनल / मॉड्यूल बनाने वाले स्वदेशी उत्पादको एवं निर्माताओं की सूची भी अपनी वेबसाइट पर साझा की है।

अनुसंधान एवं विकास के माध्यम से सौर सेल और पैनल की संरचना, दक्षता  एवं गुणवत्ता को सुधारने, स्वदेशी विनिर्माण ढांचागत व्यवस्था को मजबूत करने तथा विनिर्माण लागत को कम करने के लिए देश के प्रतिष्ठित सरकारी एवं निजी तकनीकी संस्थानों और विश्वविद्यालयों से शोध प्रस्ताव आमंत्रित एवं प्रायोजित किए जा रहे हैं। साथ ही, नए उपक्रमों और उद्यमों को स्थापित करने के लिए भी सरकार 50 प्रतिशत तक की आर्थिक सहायता दे रही है।

नवीकरणीय ऊर्जा सम्बंधित रोचक तथ्य

  • मोढेरा (गुजरात) देश का पहला सौर ऊर्जा और बैटरी भंडारण से युक्त 'सूर्यग्राम' बन गया है। साथ ही, मोढेरा स्थित प्रसिद्ध सूर्य मंदिर में भी केवल सौर ऊर्जा का ही प्रयोग हो रहा है।
  • सौर पार्कों और अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा परियोजनाओं का 'विकास' योजना के अंतर्गत मार्च 2024 तक 40 गीगावॉट सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।
  • एनटीपीसी लिमिटेड द्वारा देश का सबसे बड़ा तैरता सौर पार्क (100 मेगावॉट क्षमता) रामागुंडम, तेलंगाना में स्थापित किया गया।
  • गुवाहाटी रेलवे स्टेशन देश का पहला पूर्णतः सौर ऊर्जा संचालित स्टेशन है। साथ ही, कोचीन एयरपोर्ट देश का पहला सौर ऊर्जा संचालित एयरपोर्ट है।
  • एनटीपीसी लिमिटेड द्वारा लेह में पहली बार हाइड्रोजन ऊर्जा आधारित बसों का संचालन एवं हाइड्रोजन स्टेशन की स्थापना ।

इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) की रिन्यूएबल 2022 नामक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022 2027 के बीच सौर पीवी विनिर्माण क्षेत्र के अन्दर भारत में 25 बिलियन यूएस डॉलर तक का निवेश होगा, जो पिछले पांच वर्षों की तुलना में सात गुना अधिक होगा। सीईईडब्ल्यू सेंटर फॉर एनर्जी फाइनेंस की रिपोर्ट के अनुसार भारत की योजना के अनुरूप भविष्य में लगने वाली सौर विनिर्माण फैक्ट्रियां 7.2 बिलियन यूएस डॉलर का वित्तीय निवेश एवं 41,000 से अधिक संख्या में रोजगार सुनिश्चित करेगी। रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया है कि 10  गीगावॉट क्षमता वाली पूर्णता एकीकृत सौर विनिर्माण परियोजना से ही 10,500 नौकरियों के अवसर मिलेंगे जबकि अन्य प्रभाग और भी अधिक संख्या में रोजगार सृजित करेंगे।

मेक इन इंडिया और हाइड्रोजन ईधन 

15 अगस्त, 2021 को राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन (नेशनल हाइड्रोजन मिशन) की घोषणा हुई जिसमें मेक इन इंडिया योजना और आत्मनिर्भर भारत अभियान को बढ़ावा देते हुए भारत को हरित हाइड्रोजन (ग्रीन डाइड्रोजन) विनिर्माण का वैश्विक केंद्र बनाने और उसके निर्यात को बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया। नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन रिपोर्ट (2023) के अनुसार देश वर्ष 2030 तक कम से कम 5 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष हरित हाइड्रोजन उत्पादन की क्षमता विकसित करेगा जोकि भविष्य में निर्यात बाजार के अनुरूप 10 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष तक बढ़ाई जा सकेगी। इस परियोजना से जहाँ एक ओर लगभग 6 लाख नौकरियों एवं आठ लाख करोड़ रुपये निवेश के अवसर मिलेंगे, वहीं दूसरी ओर, एक लाख करोड़ रुपये के आयात एवं प्रति वर्ष हरित गृह गैस उत्सर्जन में 50 मिलियन मीट्रिक टन की भारी कटौती भी होगी।

हरित हाइड्रोजन को जल के विद्युत अपघटन (एलेक्ट्रोलिसिस) प्रक्रिया से बनाते हैं देश में हाइड्रोजन ईंधन तथा हाइड्रोजन ईंधन सेल विकसित करने के लिए पर्याप्त संसाधन, तंत्र और तकनीक उपलब्ध है। इस परियोजना से देश के शीर्ष विज्ञान एवं तकनीकी संस्थान इस दिशा में तीव्र प्रगति कर रहे है भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरू में बायोमास गैसीकरण द्वारा जैविक अपशिष्ट को हरित हाइड्रोजन में परिवर्तित करने के लिए उच्च शुद्धता वाला संयंत्र स्थापित किया गया है। इसी तरह, एआरसीआई सेंटर फॉर फ्यूल सेल टेक्नोलॉजी, चैन्नई 20 किलोवाट क्षमता वाली पॉलीमर इलेक्ट्रोलाइट मेम्ब्रेन) (पीएम) ईंधन सेल स्टेक के उत्पादन के एक स्वचालित निर्माण लाइन स्थापित कर रहा लाक्षणिक संस्थान में पानी के फोटोइलेक्ट्रोकेमिकल विभक्तीकरण के माध्यम से हाइड्रोजन उत्पादन के लिए नवीन सामग्री विकसित की है और इन सामग्रियों को वर्ष 2021 में दो पेटेंट दिए गए है राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान, गुरुग्राम में हाइड्रोजन ऊर्जा को बढ़ाने के लिए उत्कृष्टता केन्द्र स्थापित किया गया तथा ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता एवं विभिन्न अनु प्रदर्शित करने के लिए इलेक्ट्रोलाइजर और अन्य उपकरण खरीदें गए हैं। 

हाल ही में, केपीआईटी- सीएसआईआर द्वारा विकसित भारत की पहली और पूर्णतः स्वदेशी रूप से निर्मित हाइड्रोजन संचालित बस का अनावरण पुणे (महाराष्ट्र) में किया गया जिस प्रति किलोमीटर संचालन कीमत पारंपरिक डीजल आधारित बस से कम होगी। निकट भविष्य में हाइड्रोजन ईंधन आधारित ट्रकों के विनिर्माण और प्रयोग से माल ढुलाई क्षेत्र में डीजल ट्रकों से होने वाले कार्बन उत्सर्जन में भारी कमी आएगी। कार्बन न्यूट्रल देश बनने की दिशा में यह एक क्रांतिकारी बदलाव होगा।

पवन और जलविद्युत ऊर्जा क्षेत्र में मेक इन इंडिया का प्रभाव

भारत के दक्षिण और तटीय क्षेत्रों में पवन ऊर्जा की अच्छी सभावनाएं है। पवन ऊर्जा के क्षेत्र में भारत ने हाल ही में उल्लेखनीय विकास किया है। परिणामस्वरूप लगभग 70-80 प्रतिशत तक तकनीक एवं यंत्रों का स्वदेशीकरण हो चुका है। पवन ऊर्जा में विशेषज्ञता रखने वाली विश्वस्तरीय कम्पनियाँ, भारत में इस दिशा में तीन व्यावसायिक मॉडल के द्वारा काम कर रही (i) लाइसेंस प्राप्त उत्पादन के तहत संयुक्त उपक्रम के माध्यम (ii) विदेशी कंपनियों की सहायक कंपनियों के माध्यम से और (iii) भारतीय कंपनियाँ अपनी स्वदेशी प्रणाली और तकनीक के माध्यम से।    

वर्तमान में इन कम्पनियों द्वारा 37 से अधिक पवन टरबाइन मॉडल बनाये जा चुके है भारत में विनिर्मित पवन चक्कियों की इकाई क्षमता 3.6 मेगावॉट तक पहुँच गई है और घरेलू पवन चक्की टरबाइन की वार्षिक उत्पादन क्षमता 12000 मेगावॉट हो गई है।  भारत में पवन टरबाइन जेनरेटर (डब्ल्यूटीजी) के विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए, सरकार डब्ल्यूटीजी के विनिर्माण के लिए आयात किए जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण घटकों पर रियायती सीमा शुल्क छूट प्रोत्साहन प्रमाणपत्र के रूप में प्रदान कर रही है। साथ ही, 31 मार्च 2017 को या उससे पहले से चल रही पवन ऊर्जा परियोजनाओं को उत्पादन आधारित प्रोत्साहन दिया जा रहा है राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान, चेन्नई देश में पवन ऊर्जा के लिए उपयुक्त स्थलों का मूल्यांकन एवं आवश्यक तकनीकी सहायता प्रदान कर रहा है।

भारत की 7600 किलोमीटर से अधिक लम्बी तटीय रेखा का प्रयोग पवन ऊर्जा उत्पादन में किया जा सकता है। इसी को ध्यान में रखकर देश में पहली बार तमिलनाडु एवं गुजरात में देश की समुद्री सीमा के भीतर अपतटीय (ऑफशोर) पवन परियोजनाएं लगाई जा रही है उपलब्ध पवन और सौर ऊर्जा, पारेषण अवसंरचना उपलब्ध भूमि के अधिकतम प्रयोग तथा बेहतर ग्रिड स्थिरता प्राप्त करने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए पवन सौर हाइब्रिड ऊर्जा पर देश में स्वदेशी तकनीक का सहारा लेते हुए परियोजनाएं स्थापित की जा रही है।

मेक इन इंडिया और नवीकरणीय ऊर्जाः महत्वपूर्ण बिंदु

  • मेक इन इंडिया का शुभारम्भ 25 सितम्बर, 2014 में भारतीय विनिर्माण क्षेत्र को मजबूत बनाने के लिए किया गया। कोविड़ 19 सम्बन्धी विपरीत आर्थिक परिस्थितियों से निपटने के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान की शुरुआत वर्ष 2020 की गई।
  • मेक इन इंडिया के अंतर्गत नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में विभिन्न उपकरण और तकनीक, जैसे- सौर सेल, मोड्यूल, पवन ऊर्जा टरबाइन, हाइड्रोजन ऊर्जा संबंधी तकनीक आदि पर बल दिया गया।  
  • नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन क्षेत्र में विनिर्माण को मजबूती देने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण कदम उत्पादन संबंधी प्रोत्साहन (पीएलआई), सब्सिडी, सम्बंधित उपकरणों के आयात पर कटौती एवं सीमा शुल्क लगाना, कौशल विकास, अनुसंधान, नवाचार को बढ़ावा आदि।
  • नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में विनिर्माण से बड़े निवेश एवं भारी संख्या में रोजगार का सृजन

बड़े बांधों के निर्माण एवं संचालन में अनेक प्रकार की पर्यावरणीय एवं सामाजिक आर्थिक कठिनाइयां आती है। इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार अब छोटे और मझोले आकार तथा क्षमता वाली जलविद्युत परियोजनाओं पर बल दे रही है ऐसी परियोजनाओं को सुदूर क्षेत्रों में स्थापित करना आसान होगा और ये अविकसित क्षेत्रों तक बिजली पहुँचाने में सहायक होगी। प्रतिष्ठित सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स (बीएचईएल) लिमिटेड प्रारम्भ से ही जल विद्युत परियोजनाओं के लिए टरबाइन बनाता रहा है। छोटे और मझोली जलविद्युत परियोजनाओं के लिए भी टरबाइन का निर्माण बीएचईएल द्वारा ही किया जा रहा है।

अन्य नवीन नवीकरणीय एवं स्वच्छ उर्जा संसाधन

अपशिष्ट से ऊर्जा परियोजना (वेस्ट टू एनर्जी) स्थापित करने के लिए कुछ मशीनों एवं उपकरणों का विनिर्माण देश में होता है जबकि बायोगैस इंजन, डबल मेम्ब्रेन बायोगैस होल्डर आदि बड़े और महत्वपूर्ण उपकरणों का आयात किया जा रहा है। हालांकि, निकट भविष्य में हम इसका विनिर्माण कर सकेंगे। कृषि और कृषि आधारित उद्योगों (जैसे चीनी मिल) से उत्पन्न अपशिष्ट से बिजली पैदा करने के लिए बायोमास  आधारित परियोजनाओं का मूल्यांकन किया जा रहा है। देश में 10175 मेगावॉट की कुल क्षमता के साथ अनेक राज्यों (महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, आय प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और पंजाब) में दिसंबर, 2021 तक बायोमास आधारित परियोजनाएं स्थापित की गई है। सरकार ने अपशिष्ट से ऊर्जा और बायो सीएनजी परियोजनाओं की प्रारम्भिक स्थापना हेतु आवश्यक उपकरणों के लिए रियायती सीमा शुल्क छूट प्रमाणपत्र प्रदान किया है। साथ ही एथेनाल उत्पादन पर सरकार विशेष रूप से कार्य कर रही है जिससे एथेनॉल मिश्रित ईंधन को व्यावसायिक स्तर पर प्रयोग में लाया जा सके।

भारत में भू-तापीय और समुद्री ऊर्जा को व्यावहारिक और व्यावसायिक स्तर पर प्रयोग में लाने के लिए अनुसंधान एवं विकास कार्य चल रहे हैं। कुछ स्थानों पर पॉयलट प्रोजेक्ट शुरू हो गए हैं। निश्चित ही जल्दी हमें सकारात्मक परिणाम मिलेंगे।

ऊर्जा क्षेत्र में भारत के लक्ष्य एवं उपलब्धियों

ऊर्जा क्षेत्र में भारत के समक्ष दो बड़ी चुनौतियाँ है- लगातार बढ़ती ऊर्जा की मांग को पूरा करना और ऊर्जा उत्पादन में होने वाले कार्बन उत्सर्जन को न्यूनतम स्तर तक लाना। भारत ने वर्ष 2030 तक सतत विकास लक्ष्य (सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स) अर्जित करने देश के सकल ऊर्जा उत्पादन में जीवाश्म ईंधनों का योगदान 50 प्रतिशत से कम करने एवं गैर जीवाश्म ईंधन से 500 गीगावॉट ऊर्जा उत्पादित करने का लक्ष्य रखा है।  वर्ष 2047 में अपनी स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे होने पर भारत में ऊर्जा क्षेत्र  में आत्मनिर्भर बनने का संकल्प लिया साथ ही 2023 तक कार्बन न्यूट्रल बनने के लिए हमारा देश प्रतिबद्ध है।

विद्युत मंत्रालय, भारत सरकार के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार देश में चार लाख मेगावॉट से अधिक सकल ऊर्जा का उत्पादन हो रहा है जिसमें जीवाश्म ईंधन और गैर-जीवाश्म ईंधनों का योगदान क्रमश: 56.4 एवं 43.6 प्रतिशत है स्थापित ऊर्जा क्षमता का लगभग 43 फीसदी विद्युत उत्पादन नवीकरणीय एवं स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों द्वारा करके भारत विश्व के शीर्ष चार देशों की कतार में आ गया है। आगामी वर्षों और दशकों में देश के सकल ऊर्जा उत्पादन में नवीन नवीकरणीय एवं स्वच्छ ऊर्जा का योगदान निश्चित ही बढ़ेगा।  

रिन्यूएबल 2023 ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट के अनुसार भारत, अमेरिका और चीन सहित विश्व के शीर्ष तीन देशों मे आ गया है जहाँ सौर और पवन ऊर्जा की क्षमता में सर्वाधिक वृद्धि हुई है। नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए आयातित कच्चे माल, उपकरण और घटकों के स्थान पर स्थानीय आपूर्ति शृंखला को सुदृढ़ करना होगा।

स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों के बढ़ते प्रयोग से न केवल भारतीय समाज के जीवन स्तर में अभूतपूर्व बदलाव आए है बल्कि इससे भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। पेरिस समझौते के दौरान अस्तित्व में आया अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन और इंटरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी एजसी (आईआरएएनए) के साथ निरंतर बढ़ता सहयोग इसके जीवत उदाहरण है। ऐसे में नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन शहरी ग्रामीण और सुदूर अंचलों की दिशा दशा को बदलते हुए भारत सरकार के विभिन्न कार्यक्रमों एवं योजनाओं (जैसे प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना- सौभाग्य, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना आदि) को पूरा करने में महती भूमिका निभा रहे है

अपशिष्ट से ऊर्जा परियोजनाओं की उत्पादन एवं संचयी क्षमता
उत्पाद- संचयी क्षमता
बायोगैस 7.71,008 घन मीटर प्रतिदिन
बायो सीएनजी/सीबीजी-1.39.319 किलोग्राम प्रतिदिन
विद्युत (ग्रिड एवं ऑफ-ग्रिड) 340.92 मेगावॉट समतुल्य

(साभार वार्षिक रिपोर्ट 2021-22, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, भारत सरकार)

निष्कर्ष

भारत सरकार के आर्थिक पैकेज सब्सिडी, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना आदि जैसे निर्णयों को क्रियान्वित करने के कारण देश के नवीन नवीकरणीय एवं स्वच्छ ऊर्जा विनिर्माण क्षेत्र में अभूतपूर्व तेजी आई है। साथ ही, जीवाश्म ईंधन के उपभोग में कटौती और नवीकरणीय ऊर्जा के बढ़ते उपयोग से भारत द्वारा कार्बन उत्सर्जन में भारी कमी आएगी। इस प्रकार हम प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता हास, प्राकृतिक आपदाएं आदि पर्यावरण की स्थानीय एवं वैश्विक चुनौतियों को कम करने में अतुलनीय योगदान दे सकेंगे।

लेखक पी.जी.डी.ए.वी. महाविद्यालय (सांच्य), दिल्ली विश्वविद्यालय में पर्यावरण अध्ययन विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं।
ई-मेल: mayankacademics@gmail.com

स्रोत:- कुरुक्षेत्र, सितम्बर 2023

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