नवीकरण

यह
एक लहर थी
जो ले गयी
मेरा फूल
पत्तों के दोने में जलता दिया
एक प्रार्थना

यह लहर थी
जो मुझे ले गयी
जल के अन्तरंग प्रकोष्ठ में

ओर तब -
तब एक मध्यांतर था -
अगम्य निगम्य क्षण
जल की पारदर्शिनी पवित्र सुषुप्ति में !

सब जल जागे थे -
- उनके परिवर्ती काँच में
मैंने अपना बिम्ब देखा था
बदले थे
अपने वस्त्र
और अपने धुले केशों को
नदी की चमकीली
डोरियो से गूंथा था !

- अब हम साथ-साथ
बाहर आ सकते थे -
आकाश के अगाध
नीले जल में डूब कर
नहायी
सुबह-
और मैं !

संकलन/ टायपिंग/ प्रूफ- नीलम श्रीवास्तव, महोबा

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Post By: pankajbagwan
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