नर्मदा भारत में पाँचवीं सबसे बड़ी नदी है। यह 1312 कि.मी. की कुल लम्बाई के साथ, प्रायद्वीपीय भारत की अधिकांश नदियों की दिशा के विपरीत पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है। नर्मदा-कछार एक संकरा तथा लम्बा कछार है, जिसका कारण नर्मदा-घाटी का भौमिकी विज्ञान की दृष्टि से एक भ्रंश घाटी होना है। नर्मदा-कछार का विस्तार नर्मदा के उत्तर की तुलना में दक्षिण में अधिक है।
प्रस्तावना
नर्मदा मध्य-भारत के मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र राज्यों में बहने वाली एक प्रमुख बारहमासी नदी है। अमृतमयी पुण्य सलिला नर्मदा की गणना देश की प्रमुख नदियों में की जाती है। नर्मदा नदी का उद्गम अनुपपुर जिले के अमरकंटक (22040’ उत्तरी अक्षांश, 80045’ पूर्वी देशान्तर) नामक स्थान से 1057 मीटर की ऊँचाई से होता है। कुल 1312 कि.मी. की लम्बी दूरी तय करके ये गुजरात के भरूच (21043’ उत्तरी अक्षांश, 72057’ पूर्वी देशान्तर) के निकट खम्भात की खाड़ी में गिरती है। अपनी कुल लम्बाई का 80 प्रतिशत, लगभग 1077 कि.मी. तक, का सफर ये मध्य प्रदेश के शहडोल, मण्डला, जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, खण्डवा तथा खरगोन जिलों में तय करती है। इसके बाद 74 कि.मी. तक महाराष्ट्र को स्पर्श करती हुई बहती है, जिसमें 34 कि.मी. तक मध्य प्रदेश के साथ और 40 कि.मी. तक गुजरात के साथ महाराष्ट्र की सीमाएँ बनाती है। खम्भात की खाड़ी में गिरने के पहले लगभग 161 कि.मी. गुजरात में बहती है।
इस प्रकार, इसके प्रवाह-पथ में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात तीन राज्य पड़ते हैं। नर्मदा का कुल जल-संग्रहण क्षेत्र 98,796 वर्ग कि.मी. है, जिसमें से 88.02 प्रतिशत क्षेत्र मध्य प्रदेश में, 3.31 प्रतिशत क्षेत्र महाराष्ट्र में और 8.67 प्रतिशत क्षेत्र गुजरात में है। नदी के कछार में 160 लाख एकड़ भूमि खेती के लायक है, जिसमें 144 लाख एकड़ अकेले मध्य प्रदेश में है एवं शेष महाराष्ट्र और गुजरात में है। नर्मदा भारत की सबसे निर्मल नदियों में से एक है। सतपुड़ा और विंध्यांचल की पर्वत श्रेणियों के सन्धि स्थल पर एक छोटे से कुंड के रूप में अवतरित इस नदी का स्वरूप, यात्रा के अन्त में समुद्र से मिलन के समय अत्यन्त विशाल हो जाता है, परन्तु यह भी सत्य है कि हमारे देश में नदियों को केवल बहते हुए जल के रूप में ही नहीं देखा जाता है।
नर्मदा का परिचय
नर्मदा भारत में पाँचवीं सबसे बड़ी नदी है। यह 1312 कि.मी. की कुल लम्बाई के साथ, प्रायद्वीपीय भारत की अधिकांश नदियों की दिशा के विपरीत पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है। नर्मदा-कछार एक संकरा तथा लम्बा कछार है, जिसका कारण नर्मदा-घाटी का भौमिकी विज्ञान की दृष्टि से एक भ्रंश घाटी होना है। नर्मदा-कछार का विस्तार नर्मदा के उत्तर की तुलना में दक्षिण में अधिक है।
यह उत्तर में विंध्य से, दक्षिण में सतपुड़ा, पूर्व में मैकल और पश्चिम में अरब सागर द्वारा घिरी है। बेसिन के ऊपरी हिस्से में पहाड़ी क्षेत्र हैं और मध्यम और निचले हिस्से विस्तृत और उपजाऊ क्षेत्र हैं जो खेती के लिये अत्यन्त अनुकूल हैं।
वैसे तो छोटी-बड़ी इक्तालीस सहायक नदियाँ नर्मदा से मिलकर सागर तक जाती हैं, लेकिन, नर्मदा-जलग्रहण क्षेत्र में सम्मिलित होने वाली सहायक नदियों में उन्नीस प्रमुख हैं, जिनका विवरण तालिका में दर्शाया गया है।
सतपुड़ा प्रदेश में विन्ध्यांचल की तुलना में वर्षा की मात्रा अधिक होने के कारण नर्मदा की वामतटीय सहायक नदियों की संख्या तथा इनमें जल की मात्रा दोनों ही अधिक हैं। नर्मदा अपने उद्गम से 83 कि.मी. तक पश्चिम तथा उत्तर-पश्चिम दिशा में बहती है। इसी भाग में उद्गम स्थल से लगभग 6 कि.मी. दूरी पर कपिलधारा जल प्रपात है, जहाँ नदी अपने तल से करीब 35 मीटर नीचे गिरती है। यहीं पास में दूध धारा भी है। डिंडोरी के पास नदी का मार्ग सर्पाकार हो जाता है तथा नदी का तल जमीन की ऊपरी सतह से सामान्यतः 2 से 3 मीटर नीचे है। कुछ भागों में प्रवाह-तल की गहराई 12 मीटर तक है।
अपने उद्गम स्थल से 140 कि.मी. के पश्चात नर्मदा अचानक दक्षिण की ओर मुड़ जाती है। इसी भाग में एक महत्त्वपूर्ण सहायक नदी बरनर का नर्मदा के साथ संगम होता है। मण्डला नगर के चारों ओर नर्मदा एक कुण्डली (मेखला) बनाती है और यहाँ से जलोढ़ घाटी में प्रवेश तक नदी की सामान्य दिशा उत्तर की ओर है। मण्डला नगर के निकट नर्मदा में बेहर पठार से प्रवाहित होकर आने वाली एक महत्त्वपूर्ण सहायक नदी बंजर आकर मिलती है। यहीं थोड़ी दूर पर सहस्त्र धारा है। जलोढ़ घाटी में प्रवेश के पूर्व जबलपुर नगर के निकट स्थित धुआँधार जल प्रपात पर नदी लगभग 15 मीटर नीचे गिरती है। धुआँधार प्रपात से जलोढ़ घाटी में प्रवेश तक नर्मदा का मार्ग संगमरमर की चट्टानों के मध्य एक संकरी घाटी से होकर है, जो पर्यटकों के लिये एक अत्यन्त आकर्षण का केन्द्र-स्थल है, भेडाघाट।
संगमरमर की संकरी घाटी पार कर उपजाऊ जलोढ़ घाटी में प्रवेश करते ही नदी पुनः पश्चिम की ओर मुड़ जाती है। इस भाग में नदी की धारा अपेक्षाकृत चौड़ी है तथा घाटी की गहराई 15 मीटर है। जबलपुर और होशंगाबाद नगरों के मध्य नदी के स्तर का अन्तर 104 मीटर है, जबकि इस भाग में नदी के मार्ग में केवल एक ही 3 मीटर ऊँचा जल प्रपात (नरसिंहपुर के निकट) स्थित है। यहाँ से लेकर तवा नदी के संगम तक नर्मदा एक सर्पाकार मार्ग में विंध्यांचल कगार के सहारे बहती है।
जलोढ़ घाटी में नर्मदा में अनेक महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ आकर मिलती हैं। नरसिंहपुर जिले की वामतटीय सहायक नदियों में शेर, शक्कर और दुधी महत्त्वपूर्ण हैं। होशंगाबाद जिले की वामतटीय सहायक नदियों में तवा सबसे बड़ी है तथा उसका जलग्रहण क्षेत्र नर्मदा की सभी सहायक नदियों में अधिक है। तवा अपने साथ बड़ी मात्रा में जलोढ़ बहाकर लाती है, परन्तु मैदान में प्रवेश करते ही ढाल के अचानक कम हो जाने के कारण यह एक चौड़ी रेतीली घाटी में फैल जाती है। तवा के पश्चिम में बहने वाली गंजल भी नर्मदा की एक प्रमुख सहायक नदी है जो छिपानेर गाँव के पास नर्मदा में मिलती है।
जलोढ़ घाटी में नर्मदा की वामतटीय सहायक नदियों की तुलना में दक्षिण तटीय सहायक नदियाँ संख्या में कम हैं तथा इनमें जल की मात्रा भी कम है। विंध्यांचल पर्वत श्रेणी के दक्षिणी भाग अर्थात भाण्डेर श्रेणी में तथा नर्मदा के दक्षिणी तट में बहने वाली हिरण नदी जलोढ़ घाटी में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। जलोढ़ घाटी की अन्य दक्षिण तटीय सहायक नदियों में तन्दोनी, बारना तथा कोलार उल्लेखनीय हैं।
हण्डिया से बडवाहा तक नर्मदा नदी एक पथरीले महाखड्ड से होकर बहती है। इस भाग में मनाधार तथा धरदी, दो स्थानों पर नर्मदा मार्ग में चार-चार मीटर ऊँचे जल प्रपात हैं। माखड्ड से निकलकर बड़वानी नगर तक नदी का मार्ग एक सपाट मैदान से होकर है, परन्तु उसके उपरान्त यह पुनः 116 कि.मी. लम्बे महाखड्ड में होकर बहती है।
धार के उच्च प्रदेश तथा निमाड़ के मैदान में छोटा तवा, कुंदी तथा गोई प्रमुख वामतटीय सहायक नदियाँ हैं। धार के उच्च प्रदेश तथा निमाड़ के मैदान की दक्षिण तटीय सहायक नदियों में मान उरी तथा हथनी उल्लेखनीय हैं।
बड़वानी नगर के पश्चिम से प्रारम्भ होने वाले 116 कि.मी. लम्बे महाखड्ड से निकलकर भड़ौच के मैदान में नर्मदा का मार्ग सर्पाकार रहता है तथा इसकी घाटी एक से डेढ़ कि.मी. चौड़ी है। भड़ौच नगर के पश्चिम में नर्मदा नदी खम्भात की खाड़ी में सागर से मिल जाती है। भड़ौच-बड़ौदा के मैदान की करजन प्रमुख वामतटीय सहायक नदी है तथा ओरसांग प्रमुख दक्षिण तटीय सहायक नदी है। ओरसांग नदी झाबुआ जिले से निकलती है तथा एक विस्तृत रेतीली घाटी में होकर बहती है।
समुद्र में मिलने के पूर्व नर्मदा अपनी सारी गति खोकर, स्वयं समुद्र जैसा आकार ग्रहण कर लेती है, वेग और उद्वेलन से रहित, उसके शान्त-विस्तीर्ण पाट को देखकर यह कल्पना करना सहज नहीं है कि यह वही रेवा है जो मेकल-विन्ध्य की गर्वीली चट्टानों को तोड़कर जल प्रपातों पर धुआँ उड़ाती, गुंजन करती आगे बढ़ती जाती है।
प्रमुख जल संसाधन विकास परियोजनाएँ
जीवनदायिनी नर्मदा नदी पर अनेक जल संसाधन विकास परियोजनाएँ विकसित की गई हैं और अनेक नई परियोजनाएँ प्रस्तावित हैं। नर्मदा की सरदार सरोवर परियोजना सबसे महत्त्वाकांक्षी, लेकिन विवादास्पद परियोजनाओं में से एक है। सरदार सरोवर परियोजना 4 राज्यों (मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान) की एक बहुउद्देशीय अन्तरराज्यीय परियोजना है जिसका क्रियान्वयन गुजरात सरकार द्वारा किया जा रहा है। यह एक महत्त्वाकांक्षी और तकनीकी रूप से जटिल सिंचाई योजना है जिसका मुख्य उद्देश्य गुजरात राज्य के बड़े भागों की पानी की जरूरत को पूरा करने के लिये नर्मदा नदी के प्रवाह को नहरों के माध्यम से जोड़ना है। भारत की सबसे बड़ी जल संसाधन परियोजनाओं में से एक, इस परियोजना में एक बाँध, एक नदी-तल बिजलीघर, एक मुख्य सिंचाई नहर, एक नहर बिजलीघर और एक सिंचाई तंत्र (Network) भी शामिल है। नर्मदा के बेसिन के बाहर स्थित राजस्थान के जालोड़ और बाड़मेर जिलों में भी नर्मदा जल की आपूर्ति, इस परियोजना की अद्वितीय विलक्षणता है। इस परियोजना का अनुमानित प्रभाव एक बड़े क्षेत्रफल में फैला हुआ है और सम्भवतः 250-400 लाख लोगों का जीवन प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से इससे प्रभावित होगा।
सरदार सरोवर के ऊपर की (Up Stream) और नर्मदा नदी में इंदिरा सागर परियोजना भी एक अन्य प्रमुख परियोजना है। इंदिरा सागर परियोजना (पुनसा, खंडवा जिला) को नर्मदा सागर के रूप में भी जाना जाता है। यह भी एक बहुउद्देशीय परियोजना है और इसका महत्त्व इसलिये भी बढ़ जाता है क्योकि इंदिरा सागर परियोजना से ही नर्मदा का प्रवाह नियन्त्रित करके नीचे वाली (Down Stream) परियोजनाओं यानी, ओंकारेश्वर, महेश्वर और सरदार सरोवर को दिया जाएगा।
इन दोनों के अलावा मुख्य नर्मदा नदी पर स्थापित ओंकारेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना, महेश्वर जल विद्युत परियोजना, और बरगी बहुउद्देश्यीय परियोजना (बाद में रानी अवंती बाई सागर परियोजना) विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इसके अलावा तवा परियोजना, बारना बाँध और कोलार बाँध नर्मदा की सहायक नदियों की प्रमुख परियोजनाएँ हैं। 1974 में होशंगाबाद जिले के रानीपुर गाँव के पास तवा नदी पर नर्मदा बेसिन में तवा परियोजना के रूप में सर्वप्रथम कोई प्रमुख काम किया गया था। इनके अलावा अभी नर्मदा पर करीब 16 परियोजनाएँ प्रस्तावित हैं जिनकी कुल अनुमानित लागत 10700 करोड़ रुपए से अधिक है। इन परियोजनाओं से 2,63,000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई और 300 मेगावााट बिजली के उत्पादन की सम्भावना है।
नर्मदा का धार्मिक परिचय
भारत में नदियों को जीवनदायिनी माँ के रूप में पूजा जाता है। नर्मदा सबसे महत्त्वपूर्ण पवित्र नदियों में से एक है और नर्मदा में भी अपार आस्था समाई हुई है। पवित्रता में इसका स्थान गंगा के तुरन्त बाद है। कहा तो यह जाता है कि गंगा में स्नान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है वह नर्मदा के दर्शन मात्र से ही प्राप्त हो जाता है। इसे ‘मइया’ और ‘देवी’ होने का गौरव प्राप्त है। पुरातन काल से ऋषि-मुनियों की तपस्या स्थली रही नर्मदा आज भी धार्मिक अनुष्ठानों का गढ़ है। पूरे देश में यही एक मात्र ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है। मन में अपार श्रद्धा लिये हुए सैकड़ों साधु और तीर्थयात्री पैरों के छालों की परवाह किये बगैर 2600 कि.मी. की यात्रा में 3 वर्ष 3 महीने और 13 दिन में पूरी करके अपने जीवन को धन्य मानते हैं। सामान्यतः नर्मदा-परिक्रमा गुजरात के भरूच के अरब सागर से प्रारम्भ होती है और मध्य प्रदेश के मैकल पर्वत स्थित नर्मदा उद्गम अमरकंटक से होकर वापस नदी के विपरीत किनारे से पुनः भरूच पर सम्पन्न होती है।
नर्मदा के किनारे सैकड़ों तीर्थस्थल और मन्दिर तो हैं ही साथ ही अनेक स्थानों पर इसका सौन्दर्य देखते ही बनता है। असंख्य जड़ी-बूटियों और वृक्षों के बीच से बहती हुई नर्मदा को मध्य प्रदेश की जीवनरेखा भी कहा जाता है। सैकड़ों छोटी-मोटी नदियों को अपने में समेटती हुई यह नदी कभी इठलाती हुई चलती है, कभी शान्त बहती है तो कभी सहस्त्र धाराओं में विभाजित हो जाती है। मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर के पास संगमरमरी दूधिया चट्टानों को चीरकर इसको बहता देख दर्शक को अलौकिक सुख की प्राप्ति होती है। नर्मदा के निर्मल जल में स्नान से जो सुख प्राप्त होता है वह अवर्णनीय है। यह अपने तट पर आये आगन्तुकों को आराम देती है इसी से इसका नाम ‘नर्मदा’ पड़ा है और चुलबुली-शरारती भी है और इसी कारण इसे ‘रेवा’ भी कहा गया है। स्कंद पुराण में इस नदी का वर्णन रेवा खण्ड के अन्तर्गत किया गया है। कालिदास के ‘मेघदूतम’ में नर्मदा को रेवा का सम्बोधन मिला है, जिसका अर्थ है पहाड़ी चट्टानों से कूदने वाली।
पवित्र नदी नर्मदा के तट पर अनेक तीर्थ हैं, जहाँ श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है। इनमें कपिलधारा, शुक्लतीर्थ, मांधाता, भेड़ाघाट, बरमान, शूलपाणि, महेश्वर, भड़ौंच उल्लेखनीय हैं। विशेष रूप से ओंमकारेश्वर शहर जो बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है नर्मदा नदी के मार्ग में आने वाले महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है। नर्मदा नाम भगवान शिव के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। पुराणों में नर्मदा को शंकर जी की पुत्री कहा गया है, इसका प्रत्येक कंकर को शंकर माना जाता है। नर्मदा में पाये जाने वाले स्वाभाविक रूप से गठित चिकने पत्थर, जिन्हें बनास कहा जाता है तथा जो एक तरह का क्वार्ट्ज होता है, उन्हें शिवलिंगों के रूप में जाना जाता है। दुर्लभ और अद्वितीय चिह्नों से युक्त शिवलिंगों को बहुत ही शुभ माना जाता है। राजराजा चोल द्वारा तंजावुर, तमिलनाडु में निर्मित बृहदीश्वर मन्दिर में स्थित शिवलिंग सबसे बड़े बाना शिवलिंगों में से एक है। ऐसा भी माना जाता है कि आदि-शंकराचार्य ने नर्मदा नदी के तट पर ही अपने गुरू गोविन्द भागवतपद से मुलाकात की थी।
सारांश
इसमें कोई दो मत नहीं है कि मध्य भारत की जीवन रेखा नर्मदा की अविरल धारा न केवल मध्य प्रदेश अपितु गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान के भी करोड़ों प्यासों की प्यास बुझाती है। जन-मानस ने इसे ‘मइया’ का गौरव दिया है। ‘देवी’ मानकर पूजा है। अपनी हजारों मन्नतें पूरी की हैं। नर्मदा ने भी अनादि काल से अनगिनत खेतों को सींचा है। अनेक परियोजनाओं के माध्यम से हमें बिजली की आपूर्ति भी करती है। आस्था के समुद्र में गोते लगाकर जिसने जो माँगा है उसे निराश नहीं किया है। पर आइए हम भी जरा सोचें कि हमनें अपनी ‘माँ’ के लिये क्या किया है क्या हमारा कोई कर्तव्य नहीं है अपनी नर्मदा ‘मइया’ के प्रति मात्र पवित्रता करने से या स्तुतिगान से काम नहीं चलता। सेवा भाव से इसकी परिक्रमा को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिये हम सबको जागरूक रहकर इसके संरक्षण और संवर्धन के लिये निरन्तर प्रयास करना होगा ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी लाभान्वित हो सकें।
संपर्क करेंमनीष कुमार नेमा, वैज्ञा. ‘बी’ रा.ज.सं., रुड़की
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