विश्व की प्राचीनतम नदी सभ्यताओं में नर्मदा घाटी सभ्यता का विशेष स्थान है। पुराविदों के लिए तो जैसे यह सोने की खान है। एकेडेमी ऑफ इंडियन न्यूमिस्मेटिक्स एंड सिगिलोग्राफी, इंदौर ने हाल ही में नर्मदा घाटी की संस्कृति व सभ्यता पर केंद्रित एक विशेषांक निकाला है, जो इस प्राचीन सभ्यता की खोज और उससे जुड़ी चुनौतियों को रेखांकित करता है।
देश-विदेश के विद्वानों के 70 शोध पत्रों को समेटे यह विशेषांक एक अनूठा प्रयास है।
नर्मदा अपने में ज्ञान का विशाल भंडार समाए हुए है। नदियों में श्रद्धालुओं द्वारा पैसे डालने की प्राचीन परंपरा ने नर्मदा के तट पर विकसित कई नगर-राज्यों के अस्तित्व के प्रमाण छोड़े हैं, जिनका अध्ययन दिलचस्प है।
इसी की बदौलत महिष्मती, हतोदक, त्रिपुरी, नंदीनगर आदि 2200 वर्ष पुराने अनेक नगर-राज्यों का अस्तित्व ज्ञात हुआ है। अतीत की परतें खोलने के लिए कई विश्वविख्यात पुराविदों ने नर्मदा किनारे प्राचीन स्थलों पर उत्खनन कर यहाँ की सभ्यता व संस्कृति के ज्ञानकोष को समृद्ध किया है।
नर्मदा किनारे मानव खोपड़ी का पाँच से छः लाख वर्ष पुराना जीवाश्म मिला है, जो इंगित करता है कि यहाँ सभ्यता का सिलसिला कितना पुराना रहा है। जबलपुर से लेकर सीहोर, होशंगाबाद, बड़वानी, धार, खंडवा, खरगोन, हरसूद आदि तक किए गए और लगातार जारी उत्खनन कार्यों ने ऐसे अनेक पुराकालीन रहस्यों को उजागर किया है।
यहाँ डायनासोर के अंडों के जीवाश्म पाए गए, तो दक्षिण एशिया में सबसे विशाल भैंस के जीवाश्म भी मिले हैं। इस विशेषांक का प्रथम खंड मुद्राशास्त्र व मुद्रिकाशास्त्र पर केंद्रित है। इसमें 16 शोध लेख हैं, जो इस क्षेत्र में पाई गईं मुद्राओं एवं मुद्रिकाओं का विवेचन करते हैं।
द्वितीय खंड में पुरातत्वीय सर्वेक्षण व उत्खनन संबंधी 42 शोध लेख हैं। तृतीय खंड में जहाँ शैलचित्रों तथा अभिलेख शास्त्र संबंधी लेख हैं , वहीं चतुर्थ खंड में जीवाश्म विज्ञान से जुड़े शोध लेख हैं। पुस्तक संग्रहणीय हैं।
पुस्तक : नर्मदा वैली : कल्चर एंड सिविलाइजेशन,
संपादक एवं प्रकाशक : डॉ. शशिकांत भट्ट,
मूल्य : रु. 1000
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