नर्मदा नदी का कछार, सतपुड़ा और विन्ध्याचल पर्वत माला के बीच स्थित है। उसका विस्तार अमरकण्टक से लेकर भड़ौंच तक है। उसकी मुख्य सहायक नदियाँ बंजर, हिरन, तेंदुनी, शेर, शक्कर, दुधी, आंजन, मछवासा, पलकमती, तवा, कोलार, बेदा, मान, जोबट और गोई है। ये नदियाँ नर्मदा कछार पर बरसे पानी की मदद से अपने-अपने कछार की गन्दगी को नर्मदा को सौंप देती है। नर्मदा, पूरे कछार की गन्दगी को अरब सागर को सौंप देती है।
नदी कछार में पनपने वाली प्राकृतिक गन्दगी को, हर साल, हटाने का काम बरसात करती है। इस व्यवस्था के कारण नर्मदा कछार की प्रत्येक नदी अपने कैचमेण्ट पर बरसे बरसाती पानी की मदद से धरती की गन्दगी साफ करती है। बरसाती पानी, सहायक नदियों की मदद से धूल, मिट्टी, कचरा और गन्दगी को ले जाकर नर्मदा को सौंप देता है। नर्मदा हर साल, उसे अरब सागर को सौंप देती है। नर्मदा यह काम, लाखों करोड़ों साल से बिना रुके कर रही है।
यह निरन्तर चलने वाली प्राकृतिक व्यवस्था है। नर्मदा और उसकी सहायक नदियों में बहने वाला पानी हमें दिखता है पर नदियों का कुछ पानी रेत की परत में से होकर भी बहता है। बाढ़ के समय पानी आसपास की जमीन पर फैलता है। वह कहीं मिट्टी का कटाव करता हैं तो कहीं गाद जमा करता है। कछार की उथली परतों का पानी दो काम करता है।
पहला काम - उथली परतों के हानिकारक रसायनों को हटाता है और मिट्टी तथा उसमें पैदा होने वाली वनस्पतियों और फसलों को प्रदूषित होने से बचाता है।
दूसरा काम - उथली परतों के प्रदूषित पानी को नदियों को सौंपना है। इस काम में नदी की रेत मदद करती है। नर्मदा कछार में यह व्यवस्था अनादि काल से चल रही है। इस प्राकृतिक व्यवस्था ने नर्मदा की सहायक नदियों और नर्मदा नदी में बहने वाले पानी को निर्मल, प्रदूषण और कीटाणु मुक्त बनाया है। नदियाँ बारहमासी थीं। इसी व्यवस्था के कारण कछार की मिट्टी, उस मिट्टी में पैदा होने वाली फसलें, पशुचारा और वनस्पतियाँ निरापद हैं।
नर्मदा कछार की पहली मुख्य समस्या
पिछले 50-60 सालों से कीटनाशकों, खरपतवार नाशकों और रासायनिक उर्वरकों के उत्तरोत्तर बढ़ते उपयोग के कारण नर्मदा कछार के 98796 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के बहुत बड़े हिस्से के प्राकृतिक संसाधनों पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। उस क्षेत्र की मिट्टी में कीटनाशकों, खरपतवार नाशकों और रसायनिक उर्वरकों के जहरीले घटकों की मात्रा लक्ष्मण रेखा लाँघ रही है। उसका प्रभाव फसलों, पशु-चारे, फल-फूल इत्यादि पर दिखने लगा है।
उसके बढ़ते असर से गम्भीर बीमारियों का खतरा भी समानुपातिक रुप से बढ़ रहा है। प्राकृतिक संसाधनों और फसलों पर पड़ने वाला यह खतरा, सीमित स्थानों पर होने वाले खतरे की तुलना में बहुत अधिक गम्भीर है। इसे ठीक करना बेहद कठिन है। उसको ठीक करने की समय सीमा भी तय नहीं की जा सकती।
यह अदृश्य खतरा है। इसे नंगी आँखों से नहीं देखा जा सकता। इसे परखने के लिये अत्यन्त सूक्ष्म परीक्षण करना होता है। सूक्ष्म परीक्षण की सुविधा महँगी तथा बहुत कम जगह उपलब्ध होती है। इस श्रेणी का खतरा पंजाब के मालवा क्षेत्र तथा गंगा-यमुना के दोआब में उजागर हो चुका है।
नर्मदा कछार की दूसरी मुख्य समस्या
नर्मदा सहित उसकी सभी मुख्य सहायक नदियों में सीवर और कल-कारखानों का गन्दा पानी मिल रहा है। भूजल स्तर के नीचे उतरने के कारण सूखती सहायक नदियों को मिलने वाली गन्दा पानी धरती में रिस रहा है। इस कारण भूजल भी प्रदूषित हो रहा है।
सहायक नदियों का गैर-मानसूनी प्रदूषित प्रवाह और प्रदूषित भूजल, सम्मिलित रूप से नर्मदा के पानी को प्रदूषित कर रहे हैं। इस प्रदूषित पानी में कुछ अदृश्य प्रदूषक और हानिकारक रसायन मौजूद हैं। इन अदृश्य प्रदूषकों और हानिकारक रसायनों को पृथक करना बेहद कठिन है। उल्लेखनीय है, नर्मदा नदी का यही पानी इन्दौर, देवास, पीथमपुर, भोपाल, जबलपुर और अनेक शहरों को सप्लाई किया जा रहा है। इसके अलावा, मण्डला के चुटका क्षेत्र में प्रस्तावित परमाणु संयन्त्र, दूसरे प्रकार के खतरे की सम्भावना जता रहा है। उपर्युक्त गम्भीर मामले के कारण जलचरों पर पडने वाला खतरा पीछे छूट गया लगता है।
नर्मदा कछार की तीसरी मुख्य समस्या
नर्मदा सहित उसकी सभी मुख्य सहायक नदियों में गैर-मानसूनी प्रवाह कम हो रहा है। प्रवाह कम होने या नदियों के सूखने के कारण वे अपना प्राकृतिक दायित्व पूरा नहीं कर पा रही है। इस कारण नर्मदा कछार की उथली परत में पहुँचने वाले घातक रसायनों के हटाने के काम में कमी आ रही है। अनेक जगह वे मिट्टी में जमा हो रहे हैं। प्रवाह के कम होने के कारण नदी की जल शुद्धि की प्राकृतिक व्यवस्था कई स्थानों पर बेअसर हो रही है।
नर्मदा कछार की समस्याओं के निदान का रोडमेप
1. नर्मदा कछार की प्रदूषित होती मिट्टी की समस्या का निदान
नर्मदा कछार के सिंचित क्षेत्र की मिट्टी हानिकारक रसायनों के उत्तरोत्तर उपयोग के कारण खराब तथा जहरीली हो रही है। इस कारण, कछार के सिंचित रकबे में हानिकारक रसायनों का कुछ अंश मिट्टी की ऊपरी परत में तथा कुछ अंश विभिन्न गहराई पर पाया जाता है। इसे प्रदूषण मुक्त करने के लिये दो काम करने होंगे-
पहला काम- ऊपरी परत में मौजूद हानिकारक रसायन, बरसात के मौसम में बहकर नदियों के मार्फत नर्मदा में तथा अन्ततः अरब सागर में पहुँच जाते हैं। उसका कुछ हिस्सा रिसकर भूजल भण्डार में मिल जाता है। भूजल भण्डारों का कुछ हिस्सा नदियों को मिलता है तथा अन्ततः नर्मदा को मिल जाता है पर सहायक नदियों के सूखने के कारण हानिकारक रसायनों का कछार से बाहर जाना बन्द हो गया है।
इस कारण गहराई पर मिलने वाले भूजल में हानिकारक रसायनों की मात्रा बढ़ रही है। इन रसायनों को कछार से बाहर करने के लिये पूरे कछार की सहायक नदियों को बारहमासी बनाना होगा। वर्षा ऋतु में सतह का और प्रवाह की मदद से नीचे के प्रदूषण को समाप्त कर कछार को निरापद बनाया जा सकता है।
दूसरा काम- सिंचित रकबे में रासायनिक खेती के स्थान पर आर्गेनिक खेती करना होगा। मध्य प्रदेश में जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। उसे मुख्य धारा में लाना होगा। आर्गेनिक खेती की मदद से नर्मदा कछार की प्रदूषित होती मिट्टी को समस्यामुक्त करना सम्भव है।
2. नर्मदा कछार के प्रदूषित होते नदी जल की समस्या का निदान
नर्मदा कछार की नदियों के प्रदूषण को हटाने के दो उपाय हैं।
पहला उपाय - नर्मदा और उसकी सहायक नदियों के प्रदूषण का मुख्य कारण सीवर और कल-कारखानों का अनुपचारित पानी है। इसे समाप्त करने के लिये इच्छाशक्ति, सुशासन और पूर्ण उपचार की व्यवस्था चाहिए। कदम उठाने के लिये संस्थाओं और समाज का आग्रह प्रेरक का काम कर सकता है।
दूसरा उपाय - नर्मदा और उसकी सहायक नदियों के पानी के प्रदूषण का दूसरा कारण उनको मिलने वाला प्रदूषित भूजल है। प्रदूषित भूजल का सबसे बड़ा स्रोत रासायनिक खेती है। इसे समाप्त करने के लिये किसानों का सहयोग, उनके द्वारा देशी खाद और देशी कीटनाशकों का अधिकाधिक उपयोग आवश्यक है। सरकार द्वारा आर्गेनिक उत्पादों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये लाभप्रद समर्थन मूल्य निर्धारित करना आवश्यक होगा। भारतीय बाजार भी आर्गेनिक खाद तथा कीटनाशक उपल्ब्ध कराकर सहयोग दे सकता है। यह दूसरा उपाय है।
3. नर्मदा तन्त्र में कम होते जल प्रवाह की समस्या का निदान
नर्मदा एवं उसकी सहायक नदियों पर बाँध बने हैं। बाँधों के कारण, प्रवाह घट जाता है। डाउन-स्ट्रीम में कुछ किलोमीटर बाद, पर्याप्त जल प्रवाह बनने की कहानी शुरू होती है। नदियों से सीधे पानी उठाने के कारण भी उसका जल प्रवाह घटता है। यह नदियों में जल प्रवाह के संकट का पहला कारण है।
बरसात बाद नर्मदा तन्त्र की अधिकांश नदियों के कैचमेण्ट तथा जंगलों से मिलने वाले पानी के योगदान की मात्रा तथा अवधि में कमी आ रही है। इसका मुख्य कारण कैचमेण्ट में भूजल का संचय घटना है। इस कारण पानी देने वाले एक्वीफर, बरसात बाद जल्दी खाली हो जाते है। यह नदियों में जल प्रवाह घटने या उनके सूखने का दूसरा मुख्य कारण है।
नर्मदा नदी के कछार में भूजल का दोहन बढ़ रहा है। हवेली पद्धति समाप्त होने तथा भूजल दोहन बढ़ने के कारण उसका स्तर, नीचे उतर रहा है। बरसात बाद, वह नदियों के तल के नीचे पहुँच जाता है। उसके नदी तल के नीचे पहुँचते ही नदी का प्रवाह रुक जाता है। यह नदियों में जल प्रवाह घटने या उनके सूखने का तीसरा कारण है।
समस्या का निदान
घटते जल प्रवाह को बढ़ाने के लिये नर्मदा के 6 कैचमेण्ट, 18 उप-कैचमेण्ट और 129 वाटरशेड में समानुपातिक भूजल रीचार्ज, कटाव रोकने तथा मिट्टी की परतों की मोटाई के उन्नयन के लिये अविलम्ब काम करना होगा। यही नर्मदा कछार की आवश्यकता है। यही उपाय है।
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