नर्मदा के जल के अतिदोहन और उसके कछार प्रदेश में अबाध रूप से जारी रेत के खनन ने पूरे इलाके के बाँधों में जल भण्डारण व जलचक्र पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। इसकी झलक आपको मध्य प्रदेश के जल संसाधन विभाग की बेवसाइट पर उपलब्ध जानकारी से मिल जाएगी।
विभाग की वेबसाइट पर 164 मुख्य बाँधों की सूची उपलब्ध है। विभाग इन बाँधों में उपलब्ध पानी की मानीटरिंग करता है। एस.एम.एस आधारित इस व्यवस्था की मानीटरिंग प्रतिदिन की जाती है लेकिन 4 मई 2018 की स्थिति में 164 में से केवल 37 बाँधों की अद्यतन जानकारी, सर्वसाधारण के लिये उपलब्ध है। बाकी 127 बाँधों के जल भण्डारण की स्थिति अपडेट नहीं है।
विभाग की बेवसाइट के अनुसार 4 मई 2018 की स्थिति में 77 बाँधों में दस प्रतिशत से कम पानी बचा है। 36 बाँधों में दस से पच्चीस प्रतिशत, 21 बाँधों में पच्चीस से पचास प्रतिशत, 12 बाँधों में पचास से पचहत्तर प्रतिशत, नौ बाँधों में पचहत्तर से नब्बे प्रतिशत और नौ बाँधों में नब्बे प्रतिशत से अधिक पानी शेष है। मानसून के आने तक कितने बाँध सूखेंगे कहा नहीं जा सकता पर संकट की गम्भीरता का अनुमान लगाया जा सकता है।
नर्मदा नदी मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी नदी है। उस पर बने प्रमुख बाँध हैं बरगी, नर्मदासागर, ओंकारेश्वर और महेश्वर। चार मई 2018 की स्थिति में उनमें उपलब्ध पानी की अद्यतन स्थिति अनुपलब्ध है। ओंकारेश्वर बाँध में पानी न्यूनतम स्तर के नीचे उतर चुका है वहीं महेश्वर बाँध के आँकड़े अनुपलब्ध हैं। मध्य प्रदेश द्वारा गुजरात को निर्धारित कोटे के अनुसार पूरा पानी दिये जाने के बावजूद सरदार सरोवर बाँध की हालत पतली है।
नर्मदा की सहायक नदियों पर बने बाँधों में भी पानी की उपलब्धता बहुत अच्छी नहीं है। मंडला जिले के मटयारी और मझगाँव बाँध में क्रमशः बीस प्रतिशत और आठ प्रतिशत पानी बचा है। रायसेन जिले के बारना बाँध में सात प्रतिशत और होशंगाबाद जिले के तवा और डोकरीखेड़ा बाँध में क्रमशः तीन प्रतिशत और दो प्रतिशत, खंडवा जिले के सुक्ता बाँध में सोलह प्रतिशत, झाबुआ जिले के माही बाँध में तेरह प्रतिशत, पानी बचा है। अन्य नदी कछारों के प्रमुख बाँधों की भी हालत अच्छी नहीं है।
भोपाल जिले का गरेठिया, कालापीपल और केरवा बाँध गुना जिले का मकरोदा, संजय सागर और बन्धिया नाला बाँध, राजगढ़ जिले का कुँअर चैन सागर बाँध, छतरपुर का बैनीगंज टैंक, गोरा, सिंहपुर बैराज और उर्मिल, सागर जिले का बीला टैंक, देवास जिले का चंद्रशेखर टैंक, इंदौर का देपालपुर टैंक, शाजापुर का लखुन्दर और पीलियाखाल बाँध, धार का मंदावती टैंक, रतलाम का रूपनियाखाल बाँध, शिवपुरी का परोच बाँध और ग्वालियर का तिघरा बाँध सूख चुके हैं। गाँधी सागर में केवल 18 प्रतिशत और बाणसागर में मात्र 42 प्रतिशत पानी बचा है। यह स्थिति केवल बरसात की कमी के कारण नहीं है। इसके और भी कारण हो सकते हैं। उन्हें समझा जाना चाहिए। सबसे पहले बात सन 1972 के नर्मदा ट्रिब्यूनल के आवंटन की।
दिनांक 8 अक्टूबर 1974 को नर्मदा ट्रिब्यूनल ने सरदार सरोवर बाँध साइट पर 75 प्रतिशत निर्भरता पर उपलब्ध एवं उपयोग में आने लायक 28 मिलियन एकड़ फीट पानी का मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के बीच बँटवारा किया था। इस बँटवारे में मध्य प्रदेश को 18.25 मिलियन एकड़ फीट (एम.ए.एफ), गुजरात को नौ एम.ए.एफ. राजस्थान को 0.5 एम.ए.एफ. और महाराष्ट्र को 0.25 एम.ए.एफ. पानी दिया था। उस बँटवारे पर पानी का हर साल आवंटन होता है। उक्त आवंटन की अगली समीक्षा 2024 में होगी।
बाँधों में पानी की कमी और नदियों का सूखना और प्रवाह में कमी आना परस्पर सम्बद्ध घटना है। नदियों के सूखने या उनके प्रवाह में कमी का बाँधों में जमा होने वाले पानी पर असर पड़ता है। विदित है कि बाँधों में केवल बाढ़ का ही पानी नहीं जमा होता। उनमें बरसात के बाद का गैर-मानसूनी प्रवाह अर्थात भूजल भी जमा होता है। यदि उसमें कमी आती है तो पहले नदी सूखती है। बाँधों का भरना संदिग्ध हो जाता है।
बाँधों का बरसात में भरना केवल बरसात की मात्रा पर निर्भर नहीं होता। वह पानी बरसने की गति और अवधि पर बहुत अधिक निर्भर होता है। इस कारण कम समय में अधिक बरसे पानी से बाँध जल्दी भर जाते हैं वहीं यदि धीरे-धीरे पानी बरसता है तो बाँध खाली रह जाते हैं। दूसरे शब्दों में केवल बरसात की मात्रा पर आधारित सोच में पानी के बरसने की गति के असर को सम्मिलित करना चाहिए।
गौरतलब है कि पानी के बरसने की गति कम रहती है और औसत मात्रा बरस जाती है तो भूजल रीचार्ज बेहतर होता है। बेहतर भूजल रीचार्ज के कारण नदियों के प्रवाह में वृद्धि के साथ गैर-मानसूनी प्रवाह में भी इजाफा होना चाहिए। बाँधों का भरना जारी रहना चाहिए। यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो उन कारणों को खोजा जाना चाहिए जो समस्या की जड़ में हैं। भूजल दोहन के असर को समझना चाहिए।
नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर अनेक बाँध बने। अनेक बाँध बनने की प्रक्रिया पाइप लाइन में हैं। बरगी बाँध का निर्माण नर्मदा की मुख्य धारा पर है। उसने नर्मदा द्वारा उद्गम से लेकर अमरकंटक बरगी बाँध की साइट तक अर्जित प्रवाह को बरगी जलाशय को सौंप दिया है। बरगी बाँध के बाद नर्मदा नदी के प्रवाह का पुनर्जन्म होता है।
प्रवाह का एक बार पुनः बनना प्रारम्भ होता है। बरगी और नर्मदा सागर बाँध के बीच के 417 किलोमीटर लम्बे मार्ग में एक बार फिर प्रवाह बढ़ता है। नर्मदा अपनी सहायक नदियों से योगदान लेती है पर तवा और बारना नदियों पर बने बाँध से योगदान में कमी आई है। छोटी नदियों पर बने स्टापडैमों ने भी योगदान को कम किया है। इसका सीधा असर बाँधों में जमा होने वाले पानी की मात्रा पर पड़ा है।
पिछले कुछ सालों से नर्मदा के पानी का उपयोग इन्दौर, देवास, पीथमपुर, भोपाल, जबलपुर जैसे महानगरों के साथ ही घाटी के अनेक कस्बों के लिये होने लगा है। गौरतलब है कि नर्मदा नदी अपनी यात्रा के दौरान कछार से जितना पानी जुटाती है उसका अच्छा-खासा हिस्सा उपरोक्त योजनाओं द्वारा उठा लिया जाता है। इस कारण नर्मदा नदी के प्रवाह में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो पाती और बाँधों तक पानी नहीं पहुँच पाता।
नर्मदा नदी के कछार में बड़े पैमाने पर रेत का खनन होता है। कहीं-कहीं यह खनन पोकलेन मशीनों द्वारा भी किया जाता है। इन मशीनों द्वारा होने वाला गहरा खनन रेत के कुदरती जमाव को नष्ट कर देता है। रेत के गहरे खनन के कारण प्रवाह की लय बिगड़ती है। वह अनियमित होती है। यही अनियमितता अन्ततः गैर-मानसूनी प्रवाह को कम करती है। इस कारण बाँधों तक पानी नहीं पहुँच पाता।
नर्मदा की मुख्य धारा पर दूसरा बाँध (नर्मदा सागर) बनाया गया। इस बाँध ने बरगी से नर्मदा सागर के बीच उपजे प्रवाह को अपने जलाशय में कैद कर लिया है। नर्मदा सागर के बाद क्रमशः ओंकारेश्वर, महेश्वर और सरदार सरोवर बाँध बने हैं। इन बाँधों में पानी तभी पहुँच सकता है जब पिछले बाँध पानी छोड़ें। यदि वही पानी की कमी से जूझ रहे हों तो कौन किसे जिलाए। लगता है, इसी कारण इंदिरा सागर बाँध में 39 प्रतिशत पानी बचा है। ओंकारेश्वर बाँध में पानी न्यूनतम स्तर के नीचे उतर चुका है। सरदार सरोवर बाँध की हालत पतली है।
अब कुछ बात नर्मदा ट्रिब्यूनल के फैसले की। नर्मदा ट्रिब्यूनल के फैसले को 44 साल बीत गए हैं। पिछले 44 सालों में नर्मदा कछार में अनेक बदलाव हुए हैं। कछार के जंगल कम हुए हैं। भूमि उपयोग में बदलाव हुआ है। आबादी बढ़ी है। पानी का उपयोग बढ़ा है। बरसात के तौर-तरीके बदले हैं। भूजल दोहन में अकल्पनीय बढ़ोत्तरी हुई है। कछार का भूजल स्तर गिरा है। जलवायु बदलाव का असर दिखने लगा है।
निश्चय ही उपरोक्त बदलावों के कारण नर्मदा का सालाना प्रवाह प्रभावित हुआ है। सम्भव है इसी कारण मध्य प्रदेश के बाँधों की झोली खाली हुई है। अन्य राज्यों को पानी देने के कारण नर्मदा के बाँधों को पानी के लिये तरसना पड़ रहा है। यह असामान्य स्थिति है। इससे निपटने के लिये नवाचारी एवं समग्र अध्ययन के साथ ही पुरानी जल सन्धियों पर विचार की भी आवश्यकता है।
TAGS |
groundwater table in gujarat, groundwater level in ahmedabad, sand extraction from river, sand mining rules, sand mining pdf, river sand mining management guideline, environmental effects of river sand mining, disadvantages of sand mining, sand mining rules in india, river sand mining process, over expolitaion of Water in Narmada basin , excavation of sand from catchment area. |
/articles/naramadaa-kachaara-kae-baandha-badhataa-jala-sankata