मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आजकल नर्मदा सेवा यात्रा के जरिये नदी संरक्षण के मुहिम में जुटे हैं। विभिन्न पड़ावों पर वे खुद भी जानी-मानी हस्तियों के साथ यात्रा में शामिल होते हैं। नर्मदा संरक्षण के इस अभियान को एक तरफ व्यापक जन समर्थन मिल रहा है तो कई मुद्दों को लेकर आलोचना भी हो रही हैं। खासतौर पर नर्मदा जल के अत्यधिक दोहन, वनों की कटाई, अंधाधुंध खनन रोकने में सरकार की नाकामी पर सवाल उठाए जा रहे हैं। नर्मदा बेसिन में प्रस्तावित थर्मल व न्यूक्लियर प्लांट को लेकर भी चिंताएँ जताई जा रही हैं। नर्मदा संरक्षण की इस पहल पर शिवराज सिंह चौहान से ‘डाउन टू अर्थ’ की बातचीत :
ऐसा कहा जाता है कि नर्मदा देश की प्रमुख नदियों में सबसे साफ है, किन्तु आप इसे बचाने के लिये एक बड़ा अभियान चला रहे हैं। क्या यह अभियान प्रदूषण से रोकने के लिये है या फिर वास्तविकता यह है कि नदी के ऊपर साफ होने का एक लेबल लगा दिया गया है, जो कि सत्य नहीं है।
यह तथ्य बिल्कुल सत्य है कि हमारी नर्मदा नदी देश की प्रमुख नदियों में सबसे शुद्ध, पवित्र और निर्मल है। हमने “नमामि देवि नर्मदे-नर्मदा सेवा यात्रा” अभियान इसलिये चलाया है कि हम माँ की तरह पवित्र नर्मदा नदी को इसी तरह स्वच्छ बनाये रखना चाहते हैं। हमारा यह कदम सही समय पर उठाया गया कदम है। जल गुणवत्ता की दृष्टि से प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार नर्मदा नदी का जल ए-श्रेणी में आता है, यह इस बात का प्रमाण है कि अन्य नदियों की तुलना में नर्मदा नदी के जल की गुणवत्ता बहुत अच्छी है। हम इस बात में विश्वास करते हैं कि बीमारी से पहले ही लोगों को जागरूक और शिक्षित कर दें ताकि लोग बीमार ही न हों। इस अभियान के माध्यम से हम समय से पूर्व लोगों को यह बता रहे हैं कि नर्मदा हमारी जीवनदायिनी है, इसे स्वच्छ रखकर ही हम विकास कर सकते हैं। इसके अलावा हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिये भी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन माँ नर्मदा को स्वच्छ रखकर ही किया जा सकता है।
नर्मदा के लिये आपका क्या एजेंडा है?
मेरा यह मानना है कि पर्यावरण या नदी संरक्षण जैसे कार्य सामुदायिक जागरूकता और सहभागिता के बिना सम्भव नहीं हैं। जब आमजन स्वप्रेरणा से किसी सामाजिक जिम्मेदारी को पूरा करने के लिये आगे आते हैं, तो उस अभियान में पूर्ण सफलता प्राप्त होती है। इस तरह के अभियान में लोगों के मन में जिम्मेदारी का भाव, उनकी सोच और मानसिकता में सकारात्मकता तथा उस दिशा में व्यवहार में बदलाव बहुत आवश्यक है।
हम इस अभियान के माध्यम से यही करने का प्रयास कर रहे हैं। हम यह भी मानते हैं कि जनसहयोग के बिना सरकार अकेले कुछ नहीं कर सकती है। हमें इस बात की प्रसन्नता है कि हमें अपार जनसहयोग एवं समर्थन इस अभियान में मिल रहा है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस अभियान में मिले समर्थन से हमारा उत्साह बढ़ा है। आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघ चालक पूजनीय मोहन भागवत, सह कार्यवाह पूजनीय भैयाजी जोशी, अवधेशानंद महाराज, देश के प्रसिद्ध अभिनेता अमिताभ बच्चन, स्वर कोकिला लता मंगेशकर के समर्थन ने इस अभियान को अपने लक्ष्य की तरफ तेजी से बढ़ाया है। इस अभियान को लेकर हमारा सिर्फ यही एजेंडा है।
गाँवों, कस्बों और शहरों से निकलने वाले नालों का गंदा पानी प्रदूषण फैलाने वाले एक बड़े कारक के रूप में सामने आया है। इन सभी का सम्बन्ध शहरों की योजनाओं के निर्माण से है। आप इसे किस तरह व्यवस्थित करने वाले हैं?
नर्मदा नदी को स्वच्छ रखने के लिये हमने निर्णय लिया है कि नदी के तटों पर स्थित 14 शहरों के प्रदूषित जल को नर्मदा नदी में नहीं मिलने दिया जायेगा। इसके लिये 1500 करोड़ रुपये की राशि से सीवेज ट्रीटमेंट प्लान्ट लगाये जायेंगे। नर्मदा नदी के दोनों किनारों पर बहने वाले 766 नालों के पानी को नर्मदा में जाने से रोकने के सुनियोजित प्रयास किये जायेंगे। नर्मदा नदी के तट के सभी गाँवों और शहरों को खुले में शौच मुक्त किया जायेगा। नदी के दोनों ओर हम सघन वृक्षारोपण करेंगे ताकि नर्मदा में जल की मात्रा बढ़ सके। नर्मदा के सभी घाटों पर शवदाह-गृह, स्नानागार और पूजन सामग्री विसर्जन कुण्ड बनाये जायेंगे, जिससे माँ नर्मदा को पूर्णतः प्रदूषणमुक्त रखा जा सके। नर्मदा तट के सभी गाँवों और शहरों में पाँच किलोमीटर की दूरी तक कोई भी शराब की दुकान नहीं होंगी।
नर्मदा नदी औद्योगिक प्रदूषण से बहुत अधिक प्रभावित नहीं है, किन्तु मध्य प्रदेश में तेजी से औद्योगीकरण हो रहा है। इस दृष्टि से आपकी सरकार ने नर्मदा संरक्षण के कौन से उपाय किए हैं?
आपने यह एक बहुत अच्छा प्रश्न किया है। हमारी सरकार के सुरक्षा प्रयासों का ही परिणाम है कि मध्य प्रदेश में तेजी से औद्योगीकरण होने के बाद भी नर्मदा नदी को हमने औद्योगिक प्रदूषण से मुक्त रखा है। हमने पर्यावरण के अनुकूल उद्योग नीति बनाई है, जिसमें हमने समन्वित एवं संतुलित विकास पर जोर दिया है। हमारा प्रयास है कि औद्योगिक विकास के लिये प्राकृतिक संसाधनों का दोहन तो हो, किन्तु शोषण न हो। हम पर्यावरण संरक्षण के कानूनों का बहुत ही कड़ाई से पालन कर रहे हैं। नर्मदा नदी के आस-पास जितने भी उद्योग हैं, उन सभी ने दूषित जल उपचार संयंत्र लगाया है। उन उद्योगों को हमारे सख्त निर्देश हैं कि दूषित जल उनके परिसर से बाहर नहीं जाना चाहिए। सभी इसका कड़ाई से पालन कर रहे हैं। हमारी नियंत्रण एजेंसियाँ इस पर लगातार निगरानी रखती हैं। यही वजह है कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में प्रदेश में हमें अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं।
सामान्य तौर पर ऐसा नहीं होता है कि एक मुख्यमंत्री किसी नदी को बचाने का अभियान चलाये, वह भी जब कि गंगा ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा हो। इस अभियान में आपकी व्यक्तिगत और राजनीतिक प्रतिबद्धता को कौन प्रेरणा देता है?
निश्चित रूप से पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद से मिले संस्कार, अपनी आने वाली पीढ़ी के प्रति दायित्वभाव और मध्य प्रदेश में जन-जन से मिला प्रेम, सहयोग और समर्थन मुझे लगातार प्रेरित करते रहे हैं। मेरा मानना है कि कोई भी मुख्यमंत्री जब तक सामाजिक दायित्वों को समझते हुए विभिन्न विकास कार्यों में जन जागरुकता और जन सहभागिता को सुनिश्चित नहीं करेगा, तब तक वह अपने प्रदेश का विकास नहीं कर सकता है। नर्मदा नदी की प्रदेश में बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। नर्मदा नदी से प्रदेश की चार करोड़ की आबादी को पेयजल प्राप्त होता है, 17 लाख हेक्टेयर में सिंचाई होती है, 2400 मेगावाट बिजली उत्पन्न होती है, फिर ऐसे में उसे संरक्षित रखने का पहले मैं अपना दायित्व समझता हूँ, उसके बाद यह जन-जन की जिम्मेदारी होती है।
मेरी चिंता पूरी दुनिया में नदियों को बचाने के प्रति है। नदियों की भूमिका हमारी सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों में बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। नदियाँ सुरक्षित हैं, तो यह सभी सुरक्षित रह सकते हैं, और तभी आने वाली पीढ़ी भी सुरक्षित रह सकेगी। अपनी इसी चिंता के कारण मैंने संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एन्टोनियो गुटेरिस को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि वह पूरी दुनिया में नदियों को संरक्षित करने के लिये अभियान चलाने का प्रयास करें।
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