नर्मदा का प्रदूषण टोटकों से नहीं रुकेगा

नर्मदा नदी
नर्मदा नदी

‘नमामि देवी नर्मदे’ नामक नर्मदा सेवा यात्रा का मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 11 दिसम्बर, 2016 को अमरकंटक स्थित नर्मदा नदी के उद्गम स्थल से प्रारम्भ की थी। यात्रा 114 दिनों में नदी के दक्षिणी तट पर 1831 किलोमीटर और उत्तरी तट पर 1573 किलोमीटर का मार्ग तय कर 11 मई, 2017 को वापस अमरकंटक में सम्पन्न होगी।

मुख्यमंत्री के घोषित उद्देश्य तथा नर्मदा नदी में बढ़ रहे प्रदूषण के खतरे के प्रति उनकी चिन्ता का हर वर्ग द्वारा स्वागत किया गया है। यदि मुख्यमंत्री वास्तव में नर्मदा नदी को प्रदूषण मुक्त करना चाहते हैं तो निम्न बिन्दुओं पर गौर कर त्वरित कारगर कदम उठाने होंगे।

1. भारतीय दण्ड संहिता (1860) की धारा 277 में जलस्रोत या जलाशय के जल को भ्रष्ट या प्रदूषित करने पर मात्र 500 रुपए अर्थदण्ड का प्रावधान है। इसे बढ़ाकर 5 करोड़ रुपए या 10 वर्ष के कारावास की सजा का प्रावधान करने का विधयेक विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर संसद में इसे स्वीकृत कराने की पहल करें।

2. नर्मदा नदी के तट पर चल रही तमाम ऐसी व्यावसायिक गतिविधियों पर रोक लगाई जाये जिनसे नदी का जल प्रदूषित हो रहा है।

3. रेत के खनन पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगाया जाय जैसा कि राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) का निर्देश है तथा अवैध खननकर्ताओं को कठोर दण्ड दिलाने हेतु प्रभावी कदम उठाए जाएँ। भारतीय जनता पार्टी के अनेक नेताओं के संरक्षण में भी अवैध उत्खनन चल रहा है।

4. नर्मदा नदी पर बने बाँधों से निर्मित जलाशयों का पानी जलविद्युत सिंचाई तथा पेयजल हेतु घोषित उद्देश्य के अलावा ताप विद्युत गृहों को देने की नीति का तत्काल परित्याग किया जाये।

5. विश्व में सभी देश परमाणु बिजलीघरों से होने वाले अनवरत प्रदूषण और रेडियोधर्मी विकिरण के कारण उनका परित्याग कर रहे हैं किन्तु भारत सरकार ने नर्मदा नदी पर बने रानी अवंतीबाई जलाशय (बरगी बाँध) के जलग्रहण क्षेत्र में भूकम्प संवेदी भू-भाग पर चुटका परमाणु परियोजना को हरी झंडी दी है। इसे आगे बढ़ाने के लिये शिवराज सिंह चौहान सरकार हर सम्भव मदद कर रही है। इस परियोजना से नर्मदा जल में रेडियोधर्मी विकिरण का प्रदूषण फैलेगा जो नीचे भड़ूच तक नर्मदा किनारे बसे सभी गाँव और शहरों के करोड़ों निवासियों के लिये जानलेवा साबित हो सकता है। अतएव इस परियोजना पर तत्काल रोक लगाई जाये।

6. नर्मदा नदी के इर्द-गिर्द प्राकृतिक वन सम्पदा, जैवविविधता एवं आदिवासी संस्कृति ने नदी को करोड़ों साल में संरक्षित रखा है। मध्य प्रदेश सरकार नदी के दोनों ओर स्थित वन सम्पदा की वैध-अवैध कटाई को नहीं रोक रही है, इससे पर्यावरण को अपूरणीय क्षति हो रही है तथा क्षेत्र की पारिस्थितिकी भी नष्ट हो रही है।

7. नदी के दोनों तटों का पर्यटन के माध्यम से व्यावसायिकरण द्वारा मध्य प्रदेश सरकार आदिवासी संस्कृति का विनाश करने पर आमादा है।

8. परिक्रमावासियों के लिये पगडण्डियों की बजाय नदी किनारे पाँच सितारा संस्कृति को विकसित करने हजारों करोड़ रुपए की लागत से 21 फुट चौड़ी सड़क बनाई जा रही है। अम्बानी जैसे धनकुबेर के लिये पर्यटन व्यवसाय के दरवाजे खोले जा रहे हैं और लाल कालीन बिछाकर उनका इन्तजार किया जा रहा है। ऐसे कदमों से नर्मदा नदी में प्रदूषण बढ़ेगा तथा पौराणिक संस्कृति नष्ट हो जाएगी।

9. नर्मदा नदी को रोककर बनाए जा रहे लगभग 30 बड़े बाँध और 135 मझौले बाँधों से हजारों वर्ष पुराने पुरातात्विक महत्त्व के पौराणिक स्थल डूबाए जा रहे हैं। जैवविविधता और बड़े पैमाने पर घने जंगल डुबाए और नष्ट किये जा रहे हैं। इसके साथ-साथ नदी के किनारे निवास करने वाले लाखों परिवारों को विस्थापित कर दर-दर भटकने को विवश करके उनके मानवाधिकारों का हनन किया जा रहा है। तथाकथित विकास के ये प्रकल्प समाज में गैर-बराबरी बढ़ा रहे हैं तथा आर्थिक और सामाजिक तनाव को जन्म दे रहे हैं। इन पर तत्काल रोक लगाई जाये।

10. नर्मदा किनारे बसे 50 नगरों का दूषित पानी नर्मदा नदी में मिलता है। अमरकंटक, बरमानघाट, ओंकारेश्वर, मण्डलेश्वर, नरसिंहपुर, भेड़ाघाट, डिंडौरी, बरगी, शाहगंज, करेली, पिपरिया, बड़वानी, नसरूल्लाहगंज, महेश्वर, धरमपुरी, होशंगाबाद, जबलपुर, गोटेगाँव, बुधनी, नेमावर, मण्डला, अंजड़, सेंधवा, सनावद आदि शहरों का निस्तारी दूषित जल सीधा नर्मदा नदी में छोड़ा जा रहा है। नर्मदा को प्रदूषित करने में यह सबसे बड़ा कारक है। इसे रोकने की सरकार की कोई मंशा नहीं दिखती। इस दिशा में कोई कदम न उठाया जाना पदयात्रा कार्यक्रम पर प्रश्न चिन्ह लगाता है। पदयात्रा से नर्मदा नदी प्रदूषण मुक्त नहीं होगी।

श्री जयन्त वर्मा वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता है। भोपाल से प्रकाशित पाक्षिक पत्रिका नीति मार्ग के प्रधान सम्पादक हैे।

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