नरेगा के जमीनी समीकरण- सामाजिक अंकेक्षण और सरपंच

सुख अकेले टहलते हैं,दुःख झुंड बनाकर रहते हैं।सुख चेहरे से छलकता है,दुःख चेहरे पर जमा रहता है।सुखों के लिए चौराहे होते हैं और दुःखों के लिए वह कोना जहां किसी की गुजर ही नहीं। गुलाबी नगरी जयपुर में गुजरे 15 दिसंबर को स्टेशन से लगते जीपीओ के पास बने शहीद स्मारक के घेरे में आलम कुछ ऐसा ही था।

कुल 1 हजार की तादाद में पगड़ियां थीं और उनका रंग मटमैलेपन के बीच पूरी शान से झांक रहा था।कुल 600-700 की तादाद में साडियां थीं और उनके आँचल के बीच छिपे चेहरे से झांकती कई जोड़ी आंखों में जितनी निराशा थी उतना ही आक्रोश।गुलाबी नगरी के व्यस्त चाराहे के पास अपनी सफेदी से एक विरोधाभास पैदा करते शहीद स्मारक के घेरे में जमा सारे लोगों के चेहरे पर दुःख ठहरा हुआ था मगर एक लौ भी जाग रही थी पुरजोर उम्मीद से भरी अरुणा रॉय की आवाज के बीच।

गुजरे 15 दिसंबर को राजस्थान में कार्यरत सूचना के अधिकार अभियान मंच के आह्वान पर जयपुर से बहुत दूर के रुपनगढ़ से लेकर पास के दौसा और अलवर तक से हजारों की तादाद में बुजुर्ग और जवान, स्त्री-पुरुष चले आये थे।मकसद सबका एक था-अगर नरेगा का पैसा अवाम का है तो अवाम को उसकी एक-एक पाई का हिसाब चाहिए. यह हिसाब हर हाल में चाहिए और अभी चाहिए।

कुल डेढ़ हजार की तादाद में शहीद स्मारक(जयपुर) के घेरे में जमा लोग अपने-अपने बैनर लेकर पूरे तनकर खड़े थे, नारे गूंज रहे थे। इनका एक अलिखित एलान आस-पास फटकते खाकी वर्दीधारी जवानों के ऑन मोबाइल सेटों से कुछ किलोमीटर आगे बसे सिविल लाइन्स के मुख्यमंत्री आवास तक पहुंच रहा था - हम कातर भले हों, कायर नहीं हैं, हम कानून की भाषा भले ना समझते हों, कानून की भाषा के पीछे छुपी अपने हकों की बात हरचंद समझते हैं।आप गवाही मांगते हों मगर हम अपनी आँख से रोजाना देखते हैं कि कैसे पंचायत के सरपंच और इंजीनियर मिलकर नरेगा का पैसा हर जिले और हर पंचायत में जेसीबी मशीनों से लेकर सीमेंट या फिर ऐसी ही सामग्री के नाम पर अपनी-अपनी जेबों में भरते हैं।

इस फरियादी झुंड की बातों में दम है। सूचना के अधिकार अभियान(राजस्थान) के एक कार्यकर्ता अंकिता पांडे ने बताया- जब से भीलवाड़ा में सोशल ऑडिट हुआ है,तभी से सरपंच चोट खाये नाग की तरह फन उठाकर खड़े हैं। सरपंचों ने अपनी जमात बना ली है और सामाजिक अंकेक्षण की विधि-सम्मत कार्रवाई में बाधा डाल रहे हैं,कहीं धमकी देकर तो कहीं कानून का सहारा लेकर।

सरपंचों और इंजीनियरों की आपसी मिलीभगत के बीच नरेगा के पैसे की बंदरबांट और सामाजिक अंकेक्षण की राह में रोड़े अटकाने की एक बानगी सूचना के अधिकार के राष्ट्रीय मंच के एक कार्यकर्ता सिराज की बातों से मिली।40 वर्षीय सिराज कभी एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के लिए कश्मीर में मुलाजिम थे। अपनी मिट्टी और अपने लोग की मोहब्बत ने दिल को ऐसा खींचा कि नौकरी को ना कहकर राजस्थान के अपने गांव खेती-बाड़ी संभालने चले आये। उन्होंने बताया-चित्तौरगढ़ के सोणियाना ग्रामपंचायत (ग्राम समिति गंगरान) में गुजरे नवंबर महीने के आखिरी हफ्ते में सामाजिक अंकेक्षण करने गई हमारी टोली को सरपंचों ने पूरी जमात बनाकर धमकाया।सवाल यह उठाया गया कि सामाजिक अंकेक्षण सरकारी लोग करेंगे, एनजीओए के लोग नहीं। हमने सामाजिक अंकेक्षण के लिए सरकार द्वारा जारी फरमान दिखाया लेकिन बात नहीं बनी।सरपंचों अपनी जिद पर तने और अड़े हुए थे।

दरअसल सरपंचों को मालूम था कि सोशल ऑडिट करने के लिए आई टोली में उनके हिमायती मौजूद हैं। इसका खुलासा करते हुए सिराज ने बताया-सामाजिक अंकेक्षण करने गई हमारी टोली में सरकार की तरफ से नीयत किए गए इजीनियर और एकाउंटेंट के साथ-साथ ब्लॉक प्रतिनिधि भी थे।सरपंचों को मनाने की जिम्मेदारी पहले पंचायत समिति के कार्यक्रम अधिकारी रंजना तिवारी ने संभाली। बात नहीं बनी तो अधिशासी इजीनियर साहब ने यह बीड़ा उठाया। सिराज के अनुसार सामाजिक अंकेक्षण ना होने देने की जिद पर कायम सरपंचों से बातचीत के बाद अधिशासी अभियंता साहब ने अंकेक्षण पर गई टोली के सामने सरगोशी की- चले जाना ही ठीक है। स्थितियां अनुकूल नहीं हैं।

दरअसल आंध्रप्रदेश की तर्ज पर राजस्थान सरकार ने नागरिक संगठनों की भागीदारी के साथ सोशल ऑडिट की राह हमवार की है।एक निदेशालय की स्थापना साथ भीलवाड़ा में अक्तूबर महीने में आयोजित सोशल ऑडिट के साथ सूबे की सरकार ने 16 जिलों की चुनी हुई पंचायतों में नरेगा के काम का जायजा लेने की गरज से सामाजिक अंकेक्षण की प्रक्रिया शुरू की। इस प्रक्रिया के शुरु होने के साथ-साथ सरपंचों का सिरदर्द जाग पडा। कारण, सरपंच नरेगा के प्रावधानों के उलट मजदूरी पर नरेगा की रकम कम और निर्माण-समाग्री या फिर मशीनों के इस्तेमाल पर ज्यादा खर्च कर रहे हैं और इस खरीदारी में भारी घोटाला अधिशासी अभियंता की मिलीभगत से हो रहा है।

सिराज ने आईएमफॉरचेंज को बताया कि सोणियाना(चित्तौरगढ़) में नरेगा के काम में कुल पौने तीन करोड़ रुपये साल 2008-09 में कुल 38 किस्म के कामों में खर्च हुए हैं।इसमें डेढ़ करोड़ का खर्च सरपंचों ने सिर्फ सामग्री के मद में दिखाया है यानी सामग्री और मजदूरी पर हुए खर्च का अनुपात नरेगा के प्रावधानों के विपरीत है। प्रावधानों में कहा गया है कि नरेगा की रकम का 60 फीसदी हिस्सा मजदूरी पर खर्च किया जाय।

सिराज के बातों की पुष्टि खुद सरकारी आंकड़ों से होती है।इस साल नरेगा के कामों पर हुए जमा खर्च के बारे में सूबे में परियोजना अधिकारी रामनिवास मेहता ने एक रिपोर्ट में कहा गया है कि किसी किसी पंचायत में नरेगा की रकम का 90 फीसदी हिस्सा सिर्फ निर्माण सामग्री की खरीद या मशीनों के भाड़े पर खर्च किया गया है। इस रिपोर्ट में तथ्यों के विश्लेषण के बाद निष्कर्ष निकाला गया कि कुल 1752886 रुपये की अनियमितता हुई है और इसकी वसूली अभी बाकी है।

शहीद स्मारक के घरे में जमा लोगों ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय की अगुवाई में अपना ज्ञापन सौंप दिया है। चलन के हिसाब से मुख्यमंत्री ने सामाजिक अंकेक्षण के कार्य को आगे बढ़ाने का वादा भी किया है। मगर, इस वादे के बीच एक तथ्य यह भी है कि सरपंचों ने कुछ कानूनी नुक्ते उठाकर अदालत से यह फैसला(तारीख 27-11-09) करवा लिया है कि 28 नवंबर तक होने वाला सामाजिक अंकेक्षण का कार्य अगले आदेश तक स्थगित रहेगा।

इस विषय पर विस्तार से जानकारी के लिए निम्नलिखित पते या फोन नंबर पर संपर्क किया जा सकता है-

सिराज- जिला समन्वयक(सामाजिक अंकेक्षण)- 09413161664 निखिल डे-सामाजिक कार्यकर्ता-सूचना का अधिकार अभियान- 09414004180

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