लखनऊ- राज्य सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) को भ्रष्टाचार व स्वैच्छिक संस्थाओं के मकड़जाल से मुक्त कराने के लिए इसके सोशल ऑडिट की जिम्मेदारी ग्रामीणों को ही सौंपने का फैसला किया है। इसके लिए प्रत्येक ग्रामपंचायत में दस-दस ग्रामीणों के पैनल गठित करने का प्रस्ताव है, जिनमें 50 फीसदी दलित व 25 फीसदी महिलाएं होंगी। पैनल के सदस्यों को उनके काम के बदले बाकायदा पारिश्रमिक दिया जायेगा।
ग्राम्यविकास विभाग के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार राज्य सरकार इस प्रस्ताव पर सैद्धांतिक रूप से सहमत है। इस बारे में औपचारिक प्रस्ताव मंत्रिपरिषद की सहमति के लिए शीघ्र ही प्रस्तुत किया जायेगा। पैनल गठित करने में उन ग्रामीणों को वरीयता दी जायेगी, जो अपेक्षाकृत शिक्षित होने के कारण गांव में मजदूरी से संकोच करते हैं। सूत्रों ने बताया कि यह प्रस्ताव आंध्र प्रदेश के मॉडल से प्रेरित है, जहां ग्रामीणों के जरिये नरेगा के सोशल ऑडिट का प्रयोग खासा सफल रहा है। फर्क बस इतना होगा कि आंध्र प्रदेश में जहां एक गांव के लोगों से दूसरे गांव के कार्यो का ऑडिट कराया जाता है, वहीं यूपी में उसी गांव के लोग अपने गांव के कार्यो का ऑडिट करेंगे। ऑडिट पैनल के सदस्यों को 200 रुपये दैनिक पारिश्रमिक देने का प्रस्ताव है, यद्यपि इस बारे में अंतिम फैसला मंत्रिपरिषद ही करेगी।
नरेगा में जून तक 1.17 करोड़ परिवारों को जॉब कार्ड वितरित किये जा चुके हैं। पिछले साल करीब 43 लाख परिवारों को 54 दिन के औसत से कार्य मुहैया कराया गया। ग्राम्यविकास विभाग ने इस साल करीब 54 लाख परिवारों में औसतन 75 दिन कार्य मुहैया कराने का लक्ष्य निर्धारित किया है। योजना के तहत करीब एक लाख परियोजनाएं हर वक्त चालू रहती हैं, जिनकी गुणवत्ता व पारदर्शिता नियंत्रित करना सरकारी तंत्र के लिए कठिन है। राज्य सरकार योजना के सोशल ऑडिट के लिए फिलहाल स्वैच्छिक संस्थाओं का सहयोग ले रही है लेकिन इनमें तमाम संस्थाओं का रवैया संदिग्ध व नकारात्मक है। इसके अलावा सरकार को मजदूरों के पारिश्रमिक भुगतान में विलम्ब व भ्रष्टाचार की शिकायतें मिल रही हैं, लिहाजा योजना के सोशल ऑडिट का दायित्व उसी ग्रामपंचायत के व्यक्तियों को सौंपने का निश्चय किया गया है।
सूत्रों ने बताया कि प्रस्ताव को इसी महीने मंत्रिपरिषद की ‘हरी झंडी’ मिल जाने की उम्मीद है। इसके बाद सभी ग्रामपंचायतों में सर्वसम्मति से दस- दस शिक्षित व्यक्तियों के पैनल गठित किये जायेंगे। पैनल में शामिल ग्रामीणों को परियोजनाएं ऑडिट करने का प्रशिक्षण दिलाया जायेगा। सामान्य तौर पर किसी एक परियोजना के ऑडिट की जिम्मेदारी दो व्यक्तियों को सौंपी जायेगी। ऑडिट में जितना समय लगेगा, उस हिसाब से इन व्यक्तियों को मंत्रिपरिषद द्वारा अनुमोदित दर से पारिश्रमिक भुगतान किया जायेगा। सूत्रों का कहना है कि इस व्यवस्था से न सिर्फ नरेगा के कार्यो में तेजी व पारदर्शिता आयेगी बल्कि उन ग्रामीणों, खासकर युवाओं का पलायन रोकने में भी मदद मिलेगी, जो थोड़े बहुत शिक्षित होने के नाते गांव में मजदूरी या कृषि कार्य से संकोच करते हैं।
ग्राम्यविकास विभाग के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार राज्य सरकार इस प्रस्ताव पर सैद्धांतिक रूप से सहमत है। इस बारे में औपचारिक प्रस्ताव मंत्रिपरिषद की सहमति के लिए शीघ्र ही प्रस्तुत किया जायेगा। पैनल गठित करने में उन ग्रामीणों को वरीयता दी जायेगी, जो अपेक्षाकृत शिक्षित होने के कारण गांव में मजदूरी से संकोच करते हैं। सूत्रों ने बताया कि यह प्रस्ताव आंध्र प्रदेश के मॉडल से प्रेरित है, जहां ग्रामीणों के जरिये नरेगा के सोशल ऑडिट का प्रयोग खासा सफल रहा है। फर्क बस इतना होगा कि आंध्र प्रदेश में जहां एक गांव के लोगों से दूसरे गांव के कार्यो का ऑडिट कराया जाता है, वहीं यूपी में उसी गांव के लोग अपने गांव के कार्यो का ऑडिट करेंगे। ऑडिट पैनल के सदस्यों को 200 रुपये दैनिक पारिश्रमिक देने का प्रस्ताव है, यद्यपि इस बारे में अंतिम फैसला मंत्रिपरिषद ही करेगी।
नरेगा में जून तक 1.17 करोड़ परिवारों को जॉब कार्ड वितरित किये जा चुके हैं। पिछले साल करीब 43 लाख परिवारों को 54 दिन के औसत से कार्य मुहैया कराया गया। ग्राम्यविकास विभाग ने इस साल करीब 54 लाख परिवारों में औसतन 75 दिन कार्य मुहैया कराने का लक्ष्य निर्धारित किया है। योजना के तहत करीब एक लाख परियोजनाएं हर वक्त चालू रहती हैं, जिनकी गुणवत्ता व पारदर्शिता नियंत्रित करना सरकारी तंत्र के लिए कठिन है। राज्य सरकार योजना के सोशल ऑडिट के लिए फिलहाल स्वैच्छिक संस्थाओं का सहयोग ले रही है लेकिन इनमें तमाम संस्थाओं का रवैया संदिग्ध व नकारात्मक है। इसके अलावा सरकार को मजदूरों के पारिश्रमिक भुगतान में विलम्ब व भ्रष्टाचार की शिकायतें मिल रही हैं, लिहाजा योजना के सोशल ऑडिट का दायित्व उसी ग्रामपंचायत के व्यक्तियों को सौंपने का निश्चय किया गया है।
सूत्रों ने बताया कि प्रस्ताव को इसी महीने मंत्रिपरिषद की ‘हरी झंडी’ मिल जाने की उम्मीद है। इसके बाद सभी ग्रामपंचायतों में सर्वसम्मति से दस- दस शिक्षित व्यक्तियों के पैनल गठित किये जायेंगे। पैनल में शामिल ग्रामीणों को परियोजनाएं ऑडिट करने का प्रशिक्षण दिलाया जायेगा। सामान्य तौर पर किसी एक परियोजना के ऑडिट की जिम्मेदारी दो व्यक्तियों को सौंपी जायेगी। ऑडिट में जितना समय लगेगा, उस हिसाब से इन व्यक्तियों को मंत्रिपरिषद द्वारा अनुमोदित दर से पारिश्रमिक भुगतान किया जायेगा। सूत्रों का कहना है कि इस व्यवस्था से न सिर्फ नरेगा के कार्यो में तेजी व पारदर्शिता आयेगी बल्कि उन ग्रामीणों, खासकर युवाओं का पलायन रोकने में भी मदद मिलेगी, जो थोड़े बहुत शिक्षित होने के नाते गांव में मजदूरी या कृषि कार्य से संकोच करते हैं।
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