नॉटिलस  एक अनोखा जीवित जीवाश्म

Nautilus Fish
Nautilus Fish

सारांश
नॉटिलस ऑक्टोपस के जैसा ही एक बहुत अनोखा प्राणी है। नॉटिलस का यह नाम यूनानी शब्द ‘Sailor’ से पड़ा है। आज की यह प्रजाति शीर्षपाद (सिफेलोपोड) का परिवार नौटीलीडी है। लाखों साल अपरिवर्तित अवस्था में जीवित रहते हुए नॉटिलस उपवर्ग नौटीलोंइड्स का एकमात्र जीवित सदस्य है। इसलिये उसे 'जीवित जीवाश्म' कहते हैं। नॉटिलस प्राकृतिक इतिहासकारों के नाम से जाना गया है (लैन्डमैन, 1982, डेविस, 1987) के काम के बाद से ओवेन (1832) के रूप में पहचाना गया है कि यह अंतिम उत्तरजीवी वर्ग तथा बाहर से बहुत सी कॉइल शैल के कवच प्राणी सिफेलोपोड -नौटीली ओडा है। आज, इस समूह का प्रतिनिधित्व वर्तमान में कवेल दो वंश नॉटिलस और एलोनॉटिलस में किया गया है।

इस अद्वितीय नौटीलीपॉड्स सिफेलोपोड के एक बाहरी कवच है जो कक्षों में विभाजित है और यह प्राणी कक्ष के अंदर पिछले भाग में रहते हैं। एक नलिका सफीनकल के साथ जोड़ता है वह अन्य कक्षों में गैस (ज्यादातर नाइट्रोजन) और कुछ कक्षों में द्रव होता है। गैस और द्रव की सामग्री से परिवर्तित करके यह प्राणी विनियमित अपने उछाल कर सकते हैं। भिन्न रिपोर्टों के अनुसार नॉटिलस का आकार 170 से 220 मिली तक और आयु अवधि 15 से 20 वर्ष तक होती है। (सॉन्डर्स , 1987)

नौटीलॉयड्स की उत्पत्ति
सौन्डस, 1987 के अनुसार नॉटिलस या शीर्षपाद (सिफेलोपोड) की उत्पत्ति केम्ब्रियन की अवधि (570 से 500 करोड़ वर्ष पहले) और नौटीलियाड्स का जन्म ओर्डोविशियन में हुआ था। नौटीलियस बहुत सफल रहे थे और औडौविशन तथा सिमुरीयन काल में इन प्रजातियों की संख्या तेजी से बढ़ी फिर डेवोनियन विविधता में कमी आई और यहीं पर पहला बड़ा विलोपन हुआ अवधि के अंत में जब औडौविशन में हिम युग था। यह अनुमान लगाया जाता है कि कैम्ब्रियन -औडौविशन संक्रमण के हिसाब में 25 प्रतिशत से सभी जीव प्रजातियों सहित उस समय अस्तित्व में पहली ऑर्डर नॉटीलियॉड एलीसयेरोसेरातिना खत्म हो गई। इस एन्डो सेरातिडा, जिसमें एन्डोसेरास के दिग्गजों और कैमोसेरास के सिलुरीयन को जीवित रखने में असफल रहा है। अन्य नौटीलियॉड्स ऑर्डर (टारपायसेराटीडा, डिस्कोसोरीडा, वन्कोसेराटीडा और औथोसेराटीडा) डेवोनियमन में बचे थे यद्यपि नौटीलियॉड समूह की प्रजातियाँ धीरे-धीरे आकार में कमी और संख्या में कम होना शुरू हो गई।

इसका कारण यह है कि बोनी मछलियों के विकास के साथ परस्पर जुड़ा है और डेवोनियन में बड़ी शार्क मछलियों का विस्तार हुआ था। नौटीलियोड औडौविशन में आलसी प्राणी था फिर भी शिकार पकड़ने में उन्हें ज्यादा तकलीफ नहीं होती था क्यों की यह तलीय रींगी क्रॉलींग, मकोड़ों पर गुजारा करता था। लेकिन उसी वक्त बड़े जबड़े वाली बोनी मछलियों का उदय हुआ। औडौविशन के अंत में और सिलुरीयन से पहले आथौडायर जैसे डन्कलेयोस्टेअस में डेवोनियम और आदिमहंग मछली और लैम्प्र कार्बनीपोरस पर नौटिलियॉड्स संसाधन की प्रतियोगिता एवं पर्यावरण पर दबाव के कारण अंत हो गया। यह स्पष्ट होता है कि नौटीलियॉड की संख्या और विविधता में गिरावट हुई सिलुरीयन के बाद अंतिम आर्चियाक आर्थोकोनिक नौटीलियाड्स ट्रायसिक के अंत में लुप्त हो गये। यह करीब 208 करोड़ साल पहले की बात है।

दूसरी परिकल्पना यह है कि एम्मोनॉइडस की वृद्धि डेवोनियन के अंत में हो रही थी जो डेवोनियन की शुरुआत में नॉडीलियॉडस की विकसित शाखा बैक्टिरीटीडा के नाम से प्रख्यात है। एम्नोनॉइडस गोनिया टाईट बहुत सफल रहे थे। सिफेलोपोड के कार्बनी फेरस और पर्मियन में तथा बहुत जटिल सफल सेराटाईट के टॉयसिक में थे। यह सिफेलोपोड का अन्य समूह होगा और नौटीलियॉड पर दबाव बढ़ा होगा। पैलोजोइक युग (65 करोड़ वर्ष पूर्व) में बहुतायत की सीमा पर नॉटिलस की 3000 प्रजाति समुद्र की जिनमें ट्रिलोबाट्स साथ ही साथ एम्मोनॉइसडस प्रमुख थी। इन कवची अकेशरूकीय ने समुद्र में प्रभुत्व जमा लिया। फिर भी क्रीटेशियस युग के अंत में एम्मोनॉइड्स एवं ट्रिलोबाइट्स मर गए और नॉटिलस जीवित रहे। आज नॉटिलस की छ: प्रजातियाँ, जिनमें से एक के कवच के तले में फर होती है, पश्चिम प्रशांत एवं हिंद महासागर में कहीं-कहीं जीवित हैं।

प्राचीन काल में अधिकतर नौटिलॉयड्स के एक लंबा सा कवच होता था जिसका आकार छह मीटर तक लंबा होता था। और यह लंबाई घुमावदार सीधे कॉईल की तरह उनसे लिपटी रहती थी। डेवोनियन के बाद नौटिलॉयड्स लुप्त हो गये। वर्तमान में नॉटिलस की जो प्रजाति पाई जाती हैं, उनके कॉइल के आकार के कवच का व्यास मात्र 22 सें.मी तक होता है।

नॉटिलस कैसे जीवित रहा जब इसके सभी रिश्तेदार उस दौरान लुप्त हो गए?
इस बारे में यह सुझाव दिया जाता है, चूँकि नॉटिलस की अंडजोत्पत्ति का आकार बड़ा होता है, अत: उनके नवजात शिशु गहन समुद्र में जहाँ माता पिता का चारागाह होता है, जल्दी पहुँच जाते हैं। इनकी तुलना में अमोनीटिडा के नवजात शिशु छोटे होते हैं और प्लवकीय पारितंत्र पर निर्भर होते हैं। जब यह पारितंत्र ध्वस्त हो गया तो उनका खाद्य स्रोत ही समाप्त हो गया। दूसरी ओर नॉटिलस सर्वभक्षी और सक्रिय परजीवी होने के कारण प्रवाल भित्तियों से पर्याप्त भोजन ग्रहण कर लेता है बशर्ते प्रवाल तंत्र सक्रिय बना रहे। क्रिटेसियस के अंत में जब कितने ही समुद्री जीव मर रहे थे तो शायद सर्वभक्षी नॉटिलस के लिये यह वरदान ही सिद्ध हुआ होगा।

आवास और जीवविज्ञान
नॉटिलस की भौगोलिक वितरण स्थिति अभी तक अनिश्चित है। लेकिन यह हिंद और प्रशांत महासागर में 30° उ. – 30° द. एवं 90° पू.- 185° पू. के बीच में पाया जाता है।

भ्रमणशील नॉटिलस तलीय निवासी हैं तथा प्रवाल भित्तियों से जुड़े रहते हैं। प्राय: ये द्वीपों एवं समुद्री भित्तियों के पास पाये जाते हैं और ऊर्ध्वाधर अग्र -भितियों में वास करने के अभ्यस्त होते हैं (सौंडर्स, 1987)। जल स्तंभ में उनकी गति की ऊर्ध्वाधर रेंज 90 से 650 मीटर रिपोर्ट की गई है लेकिन प्राय: यह 150 से 300 मीटर पाई जाती है (सौंडर्स एवं वार्ड, 1987)। इसका कवच इतना कड़ा होता है कि जिस गहराई पर यह रहता है वहाँ के दबाव को झेल लेता है। अपनी गहराई की सीमा तापमान पर निर्भर करती है। नॉटिलस प्रतिदिन ऊर्ध्वाधर गति करता है- सूर्यास्त के आस-पास गहन जल से लगभग 100-150 मीटर उठता है और सुबह 250-350 मीटर नीचे जाता है (सौंडर्स एवं वार्ड, 1987)

सौंडर्स (1987) के अनुसार नॉटिलस असामान्य रूप से दीर्घ जीवन के सिफेलोपॉड हैं। यह प्राणी तटीय केकड़े, मछली एवं मृतक अवशेष एवं मरणासन्न शिकार की समुद्री धाराओं में गंध द्वारा ये अपने खाद्य का पता करते हैं।

कभी बहुतायत से मिलने वाले इस उपवर्ग की छह: प्रजातियाँ इस समय हैं- एन. बेलानेंनसिस, एन. मैक्रोम्फेलस, एन, पॉम्पिलियस, एन. स्टेनोम्फेलस, एन. रेपटरटस तथा एल्लोनॉटिलिस स्क्रोबिकुलेटस। इनमें एन. पॉम्पिलियस अन्य सभी की अपेक्षा अधिक एवं विस्तृत क्षेत्र में फैली है तथा बड़े आकार के कारण इसे सम्राट नॉटिलस कहते हैं एन. पॉसम्पिलियस का विस्तार अंडमान सागर (पूर्व) से फिजी तथा दक्षिणी जापान से ग्रेट बैरियर रीफ तक है। इसके अत्यंत बृहद नमूने जिनके खोल का आकार 268 मि.मी. तक होता है, इंडोनेशिया एवं उत्तरी ऑस्ट्रेलिया से रिकॉर्ड किए गए (जेरब, 2000)।

नॉटिलस का प्रजनन जीव विज्ञान में बहुत ही रहस्यमय बना रहा है। यौन परिपक्वता के बाद ये प्रति वर्ष पुनरूत्पादन करते हैं। नर में चार टैंटकिल्स रूपान्तरति होकर एवं जुड़कर यौनांग, स्पैडिक्स बनाते हैं। रति क्रिया के दौरान स्पैडिक्स द्वारा शुक्राणु मादा में पहुँचा दिये जाते हैं। रति क्रिया 24 घंटे तक चल सकती है। मादा लगभग एक दर्जन अंडे देती हैं और वर्ष भर उन्हें एक छोटे समूह में रखती है। अंडे एक बार में एक दिये जाते हैं जो मेम्ब्रेन की कई परतों से ढंके होते हैं। मेम्ब्रेन की परतें एक चर्मयुक्त सुरक्षात्मक कैप्सूल प्रदान करती हैं। मादा अपनी बॉहों द्वारा इन कैप्सूलों को सख्त सतहों पर चिपका देती है। कड़े एवं पार्चमेंट जैसे कैप्सूल का ऊपरी भाग फनेल की तरह खुला होता है जो पानी का संचरण बनाये रखता है। अंडों की लम्बाई एक इंच से ज्यादा होती है जो कि उन्हें वृहद अकशेरूकीय जीवों के अंडों की श्रेणी में रखती है। अंडों के सेने का समय नौ महिने से एक साल का होता है जो कि काफी अधिक है। अभी तक किसी ने नॉटिलस के अंडों को प्राकृतिक वातावरण में नहीं देखा है अत: जिस पर्यावरण में ये अंडे देते हैं उसकी जानकारी कम है।

नॉटिलस का भ्रूणनॉटिलस का भ्रूण शोधकर्ताओं ने पानी का तापमान थोड़ा सा बढ़ा कर देखा कि बन्दी नॉटिलस में रति क्रिया एवं अंडे जनन में उद्दीपन होता है। इस प्रयोग से यह सूचित होता है कि नौटिहलस पुनरूत्पादन के लिये उथले और अपेक्षतया गर्म जल की ओर प्रवास करते हैं।

नॉटिलस का दैनिक प्रवास
नॉटिलस का दैनिक प्रवास शताब्दियों से वैज्ञानिकों के लिये एक रहस्यपूर्ण रहा है। यह प्रजातियाँ 1800 फुट की गहराई में रहकर हर रात में 300 फुट के उथले जल में आती है। दबाव में यह तीव्र परिवर्तन अन्य जलीय जीवों में गहरे पानी में द्रव- स्थैतिक दबाव से उनका अन्त: स्फोटन हो जाएगा अथवा उथले जल में आन्तरिक दबाव से शरीर में विस्फोट हो जाएगा। ये नॉटिलस उच्च तापमान के प्रति अत्यंत संवेदनशील हैं और 25 डिग्री सें.ग्रे. से ज्यादा तापामान पर जीवित नहीं रह सकते। उष्णता से बचने के लिये नॉटिलस दिन में गहरे पानी की ठंडक में पहुँच जाते हैं। इससे इन्हें परभक्षियों से छिपने में भी मदद मिलती है। परन्तु उस गहरे जल में कुछ ही उचित खाद्य स्रोत होते हैं अतएव जीवित रहने हेतु खाद्य की तलाश में ये सर्वभक्षी पानी ठंडा होने पर सतह की ओर चल देते हैं।

एक वायुमंडलीय दबाव रखते हुए देखा गया कि ज्यादा गहराइयों पर नॉटिलस के चैम्बर्स में गैस दबाव उसके खोल की अखंडता बनाये रखने में काफी नहीं है। फिर दबाव के भारी परिवर्तन से ये अपने शरीर को कैसे बचा पाता है? यद्यपि पहले के वैज्ञानिकों ने इस संभावना को रद्द कर दिया था परन्तु वास्तविकता यह है कि इनके खोल की संरचना इतनी मजबूत है कि बिना आंतरिक गैस दबाव की सहायता के 2000 फीट की गहराई को सह लेती है।

निष्क्रिय उत्प्लावकता बनाये रखने में जैसे मछली अपने वाताशय का उपयोग करती है वैसे ही नॉटिलस अपने आंतरिक चेम्बर्स का उपयोग करते हैं। जब नॉटिलस बढ़ता है तो निष्क्रिय उत्प्लावकता बनाये रखने एवं खोल की वृद्धि के लिये अतिरिक्त द्रव्य की प्रतिपूर्ति हेतु पूर्व -निर्मित चैम्बर्स से धीरे-धीरे द्रव बहता रहता है। पूर्ण वृद्धि को प्राप्त नॉटिलस कभी-कभी खोल में बड़ा खाद्य या चिप्स के लिये अपनी चैम्बर्स में द्रव की मात्रा का समायोजन करता रहता है।

नॉटिलस में औसत गहराई के लिये निष्क्रिय उत्प्लावकता बनाये रखने की प्रवृत्ति होती है जो कि लगभग 100 फीट होती है, नॉटिलस शायद ही इस गहराई पर ज्यादा समय बिताता है लेकिन इस औसत स्तर को बनाये रखने से गहराई परिवर्तन में सुविधा रहती है यदि नॉटिलस अपनी उत्प्लावकता इस प्रकार संयोजित करता जिससे ये समुद्रतल पर बिना बालू से चिपटे रह सकता तो खाद्य स्थलों पर तैर कर जाने में इसे बहुत ही मुश्किल होती।

मनुष्य के साथ अन्त:क्रिया और खतरे
सीपी इकट्ठा करने वाले मोती जैसी चमक वाली सीपी ज्यादा चाहते हैं क्योंकि उनके रंग अत्यन्त सुंदर होते हैं। सीपी में जो चटकीली लालिमापूर्ण भूरे रंग की पट्टियों के साथ गहरा क्रीम रंग है। यदि इसे बीच में काटे तो एक विशिष्ट चैम्बर्स युक्त संरचना दिखाई देती है जो प्रकृति में अन्यत्र नहीं मिलती। नॉटिलस की लुभावनी सीपी वाणिज्यिक सीपी व्यापार के लिये आकर्षक वस्तु बन गई है तथा एन पॉम्पिलियस अधिकांश रूप से बेची जाने वाली प्रजाति में सीपी के व्यापार तथा मानव उपभोग के लिये उनकी पैदावार बांस के ट्रैप्स पर चारा लगा कर की जाती है। कुछ सीपी के व्यापारी पूरी सीपी को मोती जैसी चमक लाने के लिये इसके ब्राह्य पैटर्न की परत पर अम्ल का प्रयोग करते हैं। इसका पुनरोत्पादन धीमा होने कारण संरक्षण की चिन्ता जाहिर की गई है। इंडोनेशिया में नौटिलसों का निर्यात अवैध माना जाता है।

नॉटिलस शैल का हस्तशिल्प में उपयोगनॉटिलस शैल का हस्तशिल्प में उपयोग सिपियां विश्व के कितने ही शहरों में बेची जाती हैं हालाँकि इसका वितरण सिमित है। नॉटिलस मात्स्यिकी इसकी रेंज के अधिकतर भाग में पाई जाती है और चूँकि स्थानीय लोग इन्हें खाते हैं अत: शताब्दियों से इसकी मात्स्यिकी चली आ रही है। चूँकि यह गहरे पानी को प्राथमिकता देती है अत: पारम्परिक मात्स्यिकी ज्यादा प्रभावी नहीं थी। सीपी सीधी उत्प्लावक होने के कारण मृत्यु के बाद रेतीले किनारे पर आ लगती हैं और उन्हें किनारा छनक्कडों द्वारा इकट्ठा कर लिया जाता है। नि:संदेह संग्रहालयों के बहुत से पुराने नमूने इसी तरह मिले होंगे।

विश्व भर के सीपी के विशाल बाजार की मांग किनारे आ लगे नमूनों से पूरी नहीं हो सकती और यही समस्या उत्पन्न होती है। नॉटिलस विश्व के उन भागों के जल में निवास करती है जहाँ जनसंख्या वृद्धि अधिक है जैसे फिलिपाइन। पहले इसकी पकड़ कभी कभी अतिरिक्त तौर पर होती थी परन्तु अब विशेष तौर से इसका शिकार होता है। इसके शिकार में नायलॉन की रस्सी आदि के उपयोग से गहन जल में इनके आवास से पकड़ना अब आसान है। एक सम्मानीय नॉटिलस विशेषज्ञ के वक्तव्य के अनुसार बीसवीं शताब्दी के सातवें दशक के मध्य से आखिर तक टैनॉन स्ट्रेटस में नॉटिलस मात्स्यिकी भरपूर थी परन्तु अब उनकी जनसंख्या इतनी घट गई है कि कुछ नॉटिलस ही पकड़ी जाती हैं। फ्रांस सरकार के वैज्ञानिकों के अनुसार न्यू कैलेडोनिया से दस माह में दस हजार नॉटिलस पकड़ी गई और निर्यात की गईं।

अन्य जगहों में नॉटिलस-मात्स्यिकी बहुत कम है तथा कम ध्यान दिया जाता है तथा यह जीव अब भी सामान्य है। इंडोनेशिया में इसका निर्यात गैर-कानूनी है।

नॉटिलस मात्स्यिकी की समस्या दो प्रकार की है। प्रथम, विश्व में नॉटिलस मात्स्यिकी कितनी है इसके लिखित आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, ऐसा प्रतीत होता है। अधिकतर लोगों ने बिक्री हेतु काफी संख्या में इनके सीपी देखे होंगे और वह भी अधिकतर सस्ते। नॉटिलस जनसंख्या किस हाल में है और वे मात्रा के अनुसार या अधिक पकड़ी जा रही है, इसका वैज्ञानिक चित्र बनाना दंतकथाओं जैसे साक्ष्य से असंभव है। दूसरी समस्या यह है कि नॉटिलस इस तरह का प्राणी है कि सैद्धांतिक रूप से ये अधिक मात्स्यिकी का शिकार बन जाता है। कई सालों में वे वृद्धि एवं व्यस्कता को प्राप्त होते हैं। मादा एक बार में कुछेक अंडे देती है। धीमे पुनरूत्पादन वाले जानवर, यथा ब्लू व्हेल, अफ्रिकन हाथी, शार्क एवं अन्य का मानव द्वारा इनके शोषण का इतिहास ठीक नहीं है।

इसका दूसरा पहलू यह है कि नॉटिलस श्रेणी विभाजन के अनुसार बहुत ही रोचक प्राणी है। इसकी बहुत सी स्थानीय जनसंख्या को कुछ लोग इसकी उप-प्रजातियाँ समझते हैं। इनमें से कुछ दुरस्थ स्थानों में रहते हैं और सुरक्षित रहते हैं जब कि अन्य नहीं। यदि ये स्थानीय जनसंख्या नष्ट हो जाती है तो यह विविधता की प्रमुख हानि होगी। इन सबसे भी ज्यादा यह है कि नॉटिलस एक जीवित जीवाश्म है जिसे अब डीएनए द्वारा सत्यापित किया जा चुका है। यह एक ऐसा प्राणी है जिसके आकार में करोड़ों वर्ष से कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। जब पृथ्वी पर डायनासोर घुम रहे थे उस समय समुद्र में आधुनिक नॉटिलस जैसे प्राणी तैर रहे थे लेकिन नॉटिलस उससे भी पहले, लगभग 50 करोड़ वर्ष पहले खूब फल फूल रहे थे।

स्पष्ट है कि इस प्राणी को सुरक्षित रखना आवश्यक है। कुछ सार्वजनिक जलाशयों में इन्हें रखने में सफलता तो मिली है परन्तु वहाँ ये अधिकतर अंडे नहीं देते। निर्देश चिन्ह के तौर पर बंदी हालत में जीव का तत्परता से पुनरूत्पादन करना इस बात की जाँच है कि हम उसे ठीक से रख रहे हैं या नहीं। इस मापदंड के अनुसार हमको अभी काफी कुछ सीखना है। घरेलू जलाशय में वैज्ञानिक अन्वेषण द्वारा नॉटिलस के जीव विज्ञान को जानने का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि बंदी नॉटिलस की अल्पायु के कारण सब प्रयास व्यर्थ हो जाते हैं।

यद्यपि नॉटिलस सीपी के व्यापार के लिये बड़ी मात्रा में निकाले जाते हैं फिर भी ये प्राणी फलता-फूलता प्रतीत होता है और प्रशांत महासागर के चारों तरफ इसका विस्तृत फैलाव है। वास्तव में यह प्राणी विविधतापूर्ण भी हो सकता है। पपुआ न्यू गिनि का एल्लो नॉटिलस अपने शरीर क्रिया विज्ञान में अन्य नॉटिलस से अलग है- मुख्यतया इसके कवच पर क्रीजें एवं पपड़ीयुक्त परतें, गिल्स का साइज एवं पुनरूत्पादन संरचना में बदलाव के आधार पर सन 1997 में वार्ड एवं सौंडर्स ने इसे अलग प्रजाति घोषित कर दिया। डीएनए अध्ययन की मानें तो एल्लोनॉटिलस स्क्रोबिकुलेटस नॉटिलस की हाल की ही उपशाखा है। यदि ऐसा है तो इससे सूचित होता है कि नौटिलिडा का दोबारा स्पेसियेशन हो रहा है। यदि ऐसा है तो नॉटिलस इस या उस रूप में बहुत समय से आस-पास ही है और अभी प्रकाश में नहीं आया है। जब तक नौलिस मात्स्यिकी एवं जनसंख्या के बारे में हमारी जानकारी अधिक नहीं है तब तक जीवित या मृत नॉटिलस खरीदने से पहले हमें सोचना होगा।

तालिका 1. विश्व स्तर पर नॉटिलस की कुछ प्रजातियों का विवरण

प्रजाति

रिपोर्ट का आकार

वितरण ज्ञात

उपयोग

साधारण टिप्पणी

नॉटिलस मॅकरोमफेलस

160 मि.मि.

प्रशांत महासागर, पूर्वोत्तर ऑस्ट्रेलिया न्यू कॅलेडोनिया लायल्टी स्थानीय झीप

प्रदर्शन के लिये तथा स्थानीय खपत के लिये

सार्वजनिक तथा निजी और अनुसंधान प्रयोग शालाओं में प्रयोग किया जाता है।

नॉटिलस पॉम्पीलीयस

170-220 मि. मि.

भारत और पश्चिम प्रशांत, अंडमान निकोबार द्वीप समूह, अम्बोन, फिलीपाईन्स पूर्वोत्तर और पश्चिमोत्तर आस्ट्रेलिया

स्थानीय खपत, शैल खोल व्यापार बाजार के लिये

सबसे बड़ी तथा नॉटिलस सम्राट कहलाती है।

एन. बेनाऊनासिस

226 मि.मि.

पलाऊ, पश्चिमी झीप कॅरोलीन

 

ॲक्वेरीयम में पलने वाली पहली प्रजाति

एन. रीपरेटस

228 मि.मि.

रॉटनेस्ट झीप और पेलसाट झिप, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया

 

संदिग्ध प्रजाति है एन. पॉम्पीलस की उपवर्ग की प्रजाति हो सकती है।

एन. स्टेनोफेलस

170 मि.मि.

ग्रेट बॅरीअर रीफ, पूर्वी ऑस्ट्रेलिया

   

ॲलोनॉटिलस

180 मि.मि.

पापुआ न्यू गिनी, मानस प्रांत और बीसमार्क द्वीपसमूह

 

दुर्लभ है और सबसे विशिष्ट प्रजाति है

फरफोरेटस

180 मि.मि.

बाली, इंडोनेशिया

 

केवल दुर्लभ और शैल के नाम से जाना जाता है

स्रोत : प्रजाति सूचीपत्र एफएओ के मत्स्य वॉल्युम 1 (4)


संदर्भ
1. डेविस, 1987 ए आर नॉटिलस अध्ययन के पहले बाईस शताब्दियों : सॉन्डर्स बंगाल और राष्ट्रीय राजमार्ग लॅन्डमॅन (ईडीएस) जीव विज्ञान और नॉटिलस में पुरा जीव विज्ञान जीवीत के जीवाश्म प्रेरणा प्रेस : न्यूयार्क और लंदन पेज 3-21
2. लॅन्डमॅन, एन एच 1982, ॲरीस्टॉटल, सिकंदर और एक प्रकार की समुद्री मछली डिस्कवरी, 16: 20-23
3. सॉन्डर्स, 1987, उस प्रजाति के नॉटिलस, पृष्ठ 35 - 64 में सॉन्डर्स और राष्ट्रीय राजमार्ग (लन्डमॅन (इडीएस)) नॉटिलस और जीवविज्ञान की एक पुरा जीव विज्ञान के रहने वाले जीवाशम प्रेरणा प्रेस, पृष्ठ - 632
4) ओवेन, 1832 आर, संस्मरण पर एक प्रकार की समुद्री मछली (नॉटिलस पॉम्पीलीयस लिन्न) के चित्र के साथ इसकी विदेश फार्म पर आंतरिक संरचना है रिचर्ड टेलर, लंदन पृष्ठ - 68

राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान, दोना पावला, गोवा 403004

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