Non-electric water filter - Not guaranteed accuracy in all brands
किसी वाटर फिल्टर से मतलब है कि वह बैक्टीरिया, क्लोराइड, भारी तत्व (जैसे, पारा, ताँबा और सीसा), कीटनाशक पदार्थ और इससे जुड़े सुरक्षा सम्बन्धी सभी मुद्दों समेत पेयजल में पाये जाने वाले अधिकांश सामान्य अशुद्धियों को दूर कर दे। यहाँ पर किसी उपयुक्त वाटर फिल्टर के चयन के महत्त्व और उससे जुड़े सुरक्षा सम्बन्धी विभिन्न मामलों को बढ़ा-चढ़ाकर कहने का कोई कारण नहीं है। आरम्भ में कम लागत, तुलनात्मक रूप से अच्छा प्रदर्शन और रख-रखाव सम्बन्धी कुल सुविधाओं ने सुनिश्चित किया है कि स्टोरेज टाइप नॉन-इलेक्ट्रिक रसायन आधारित वाटर फिल्टर आउटपुट लागत, रिफिल/कार्टरिज की कीमत और वार्षिक रख-रखाव सहायता जैसे मामलों में एक लोकप्रिय विकल्प है। ‘कंस्यूमर वॉयस’ के लिये यह समय आज के घरों में इन अहम चीजों की लागत और उपयोगिता का मूल्यांकन करना था।
देश भर में बिक रहे नियमित ब्रांडों के आधार पर हमने गैर-इलेक्ट्रिक स्टोरेज वाटर फिल्टर के 10 ब्रांडों का तुलनात्मक परीक्षण किया। हमने इस मामले में प्रासांगिक भारतीय मानक ब्यूरो के दिशा-निर्देशों के आधार पर परीक्षण कार्यक्रम विकसित किया। ये परीक्षण मानक परीक्षण के तौर–तरीकों के साथ ही ब्रांडों द्वारा किए गये दावों के अनुसार संचालित किये गए। इस क्रम में उत्पाद परीक्षण से जुड़े अन्य आवश्यकताओं पर भी गौर किया गया। जरूरी और रासायनिक परीक्षणों के अलावा, वाटर फिल्टर के मामले में दो बेहद अहम परीक्षण किये गए-गंदलापन, (टर्बिडीटी) और ई-कोली ताकि भौतिक और सूक्ष्मजीव यानी बैक्टीरिया संबंधी सुरक्षा की जाँच की जा सके। सभी प्रकार के वाटर फिल्टर से उम्मीद की जाती है कि ये प्रभावी के तरीके से पानी से भौतिक और माइक्रोबियल यानी बैक्टीरिया संबंधी अशुद्धियाँ/मिलावट को निकाल दें, ताकि उपभोक्ता के लिये उसकी प्रभावी अवधि के दौरान पेयजल की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। निर्दिष्ट प्रयोगशाल परीक्षण में मास्क्ड और कोडेड नमूनों के परीक्षण किये गए।
कंस्यूमर वायस की सिफारिश। टॉप परफॉर्मर - प्योर ईटकीमत में किफायती - एक्वा श्योर
भारतीय मानक ब्यूरो आईएस 7402-1986 (समय-समय पर संशोधन किया गया) सेरामिक वाटर फिल्टर के लिये विशिष्ट निर्देश तय किये हैं। ये फिल्टर सस्पेंडेड मैटर्स (निलंबित पदार्थ) और बैक्टीरिया को हटा देते हैं लेकिन इनसे घुले हुए ठोस या रासायनिक पदार्थों को छानने की उम्मीद नहीं की जाती है। यहाँ याद रखें कि इन नतीजों का विश्लेषण पेयजल के लिये जरूरी आईएएस 10500 के विशिष्ट निर्देशों व मापदंडों के आधार पर प्रयोगशाला में किया गया।
इन दिनों वाटर फिल्टर/फिल्टर की कई अन्य श्रेणियाँ उपलब्ध हैं जिनमें नवीनतम तकनीक जैसे युवी (अल्ट्रा वायलेट) और आरवो (रिवर्स ओसमोसिस) लगे होते हैं, जिनसे बड़ी संख्या में अशुद्धियाँ और आवांछनीय मिनरल्स, ठोस तत्व और अन्य स्थायी अशुद्धियाँ को निकाला जा सकता है, खासकर आरओ के द्वारा। भारतीय मानक ब्यूरो ने कुछ साल पहले युवी तकनीक को वाटर फिल्टर में शामिल करने के लिये भारतीय मानक आईएस: 14724:1999 लागू किया था।
जाँच की मुख्य परिणाम
- परफॉर्मेंस में ब्रांड प्योर इट सबसे अव्वल रहा, इसके बाद एक्वास्योर और कैंट गोल्ड रहे।
- एक्वा स्योर कीमत में किफायती ब्रांड रहा।
- सिर्फ प्योर इट, एक्वा स्योर और यूनिटेक्स जैसे ब्रांड विभिन्न अंतराल में किए गये परीक्षणों में ई-कोली को 100% तक कम करने में सफल रहे।
- सिर्फ प्योर इट ही एमएस२ वायरस को 100% कम करने में सफल रहा। बाकी सभी ने इसे 90 से 99.99% तक कम किया।
- आर्सेनिक जैसे भारी धातु को पूरी तरह से हटाने में कोई भी ब्रांड पूरी तरह सफल नहीं है। इसमें 9.4 से 93.05% तक कमी आयी। हालाँकि, कुछ ब्रांडों ने ही इसका दावा किया है।
- एक्वा फ्रेश (28%), बजाज (8% और टाटा स्वच्छ ने 70%) तक कीटनाशक हटाये। बाकी सभी ब्रांड कीटनाशक लिन्डेन को 100% तक हटाने में सफल रहे।
- सभी ब्रांड टर्बिडिटी यानी गंदलापन को स्वीकृत स्तर (एक एनटीयू तक होना चाहिए) तक कम किया जबकि डालने वाले पानी में यह 25 एनटीयू था)
- फिल्ट्रेशन यानी छनन की दर सबसे अधिक युनिटेक्स और कैंट गोल्ड में पायी गई।
- रिफिल और कार्टरेज खुदरा दुकानों पर आसानी से उपलब्ध है।
परीक्षण के नतीजे
प्रमुख परीक्षण मानकों के लिये
एमएस वायरस परीक्षण/माइक्रोबियल टेस्ट (टीपीसी/कीटनाशक (लेंडेन) भारी धातु (आर्सेनिक
एमएस२ वायरस परीक्षण
वायरस एक छोटा संक्रामक एजेंट है जो अन्य जीवों की जीवित कोशिकाओं के अंदर होता है। वायरस जीव-जन्तुओं से लेकर पेड़-पौधों तक सभी तरह के जीवन रूपों को संक्रामक बना सकते हैं। हाल में पेयजल संबंधी जरूरी मानक (आईएस 10500) के आधार पर एमएस२ वायरस क परीक्षण किया गया। आउटपुट सैंपल का तब फिर परीक्षण किया गया, ताकि प्यूरीफायरों की वायरस हटाने संबंधी कार्य कुशलता की जाँच की जा सके।
- परीक्षण किये गए अधिकांश ब्रांड ने एमएस२ वायरस के % में 99% से अधिक की कमी की। प्योर इट ब्रांड ने इसे पूरी तरह से हटा दिया युनिटेस्क ने इसे सिर्फ 90% हटाया, जो किसी फिल्टर द्वारा पेयजल के शुद्धिकरण के मामले में वांछित नहीं है।
माइक्रोबियल यानी सूक्ष्मजीव परीक्षण (टीपीसी)
पयेजल की सुरक्षा पर विचार करते समय बैक्टीरिया और बिमारी पैदा करने वाले जीवाणुओं की उपस्थिति चिंता का विषय होता है। टोटल प्लेट काउंट (गैर रोगजनक) का परीक्षण किया गया, ताकि आउटपुर पानी में फिल्टर की कार्य कुशलता को तय किया जा सके। सूक्ष्मजीव संबंधी क्षमता तय करने वाले संबधी मुख्य परीक्षण निर्दिष्ट नियमित अंतराल पर एंडयोरेंस टेस्ट किया गया।
- प्योर इट और ऊषा ब्रिटा के अलावा किसी भी अन्य ब्रांड ने पूरी तरह से इनपुट पानी से सूक्ष्मजीवों को नहीं निकाला। हालाँकि, टीपीसी का स्तर 4-18 के बीच रहा जो उच्च नहीं है और गैर-रोगजनक भी है।
कीटनाशक (लिंडेन)
विभिन्न पेयजल स्रोतों जैसे, भूजल, वर्षाजल, धाराएँ आदि में आने वाले कीटनाशक पदार्थों को ध्यान में रखते हुए यह परीक्षण किया गया। क्योंकि कुछ ब्रांडों ने दावा किया था कि वे कीटनाशक पदार्थों को हटाने में असरदार हैं इसलिये यह परीक्षण शामिल किया गया। 0.5 पीपीएम सांद्रता के कीटनाशक लिंडेन को इनपुट पानी में मिलाया गया। आउटपूट पानी का बचे हुए अतिरिक्त कीटनाशक के लिये परीक्षण किया गया।
- अधिकांश ब्रांडों ने कीटनाशकों को हटा दिया। बजाज फिल्टर सिर्फ 8% कीटनाशकों को ही हटा सके।
भारी तत्व (आर्सेनिक)
राष्ट्रीय मानक के अनुसार पारा, कैडमियम, आर्सेनिक, सायनाइड सीसा, क्रोमियम और निकल को पयेजल में उपस्थित नहीं होना चाहिए। परीक्षण में शामिल कुछ ब्रांडों ने भारी धातुओं को हटाने का दावा किया था। भारी धातुओं को हटाने की कुशलता के परीक्षण के लिये हमनें इनपुट के तौर पर आर्सेनिक का उपयोग किया और आउटपुट वाटर में इसकी उपस्थिति के लिये ब्रांडों का परीक्षण किया।
- वाटर फिल्टर का कोई भी ब्रांड परीक्षण में भारी धातु यानी आर्सेनिक को पूरी तरह से हटाने में सफल नहीं रहा।
अवशिष्ट क्लोरीन
पेयजल में क्लोरीन अवशिष्ट की उपस्थिति बताता है कि क्लोरीन की पर्याप्त मात्रा उन बैक्टीरिया और वायरस को सक्रिय या निष्क्रिय करने के लिये आरंभ में पानी में डाली गई, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पानी पुनः प्रदूषित होने से बचा है। अवशिष्ट क्लोरीन वाटर फिल्टर से निकलने वाले पानी में निश्चित रुप से नहीं होनी चाहिए। २ पीपीएम क्लोरीन को वाटर फिल्टर के अंदर के पानी में डाला गया और फिल्टर से निकाले गए पाने का संग्रह किया गया।
- किसी भी ब्रांड में क्लोरीन नहीं पाया गया।
ई-कोली
पानी का जैविक या माइक्रोबायोलॉजिकल प्रदूषण लोगों के लिये चिंता का विषय रहा है पर्यावरण में पाए जाने वाले वाले कई सारे संक्रामक सूक्ष्मजीव जिनमें शिन्गेला, ई-कोली, सालमोनेला, एस आयरियस, यीस्ट और माल्ड शामिल है, से जी मिचलाने, उल्टी, डायरिया और पेट में मरोड़ जैसे लक्षण व बीमारियाँ पैदा होती है। इस परीक्षण के संचालन के दौरान ई-कोली को नियमित अंतराल पर विभिन्न अन्तराल 300, 600, 900 और 1200 लीटर के बाद मिलाया गया। मिलावट के स्तर को उच्च रखा गया ताकि उत्पादों की कुशलता को विपरीत परिस्थितयों में जाँचा जा सके। आउटपुट वाटर का परीक्षण फिल्टर की कार्यकुशलता के परीक्षण के लिये किया गया।
गंदलापन (टर्बिडिटी)
इसका मतलब पानी में घुले हुए ठोस पदार्थ से है और जिनसे हल्की प्रकाश की किरणें निकलती और पानी में फैलती हैं। इस तरह गंदलापन पानी को धुंधला कर देता है और यहाँ तक कि अधिक खराब मामलों में यह पानी को अपारदर्शी बना देता है। पेयजल में गंदलापन 3 एनटीयू से अधिक नहीं होना चाहिए, और आदर्श रूप में इसे 1 एनटीयू से नीचे ही होना चाहिए। वाटर फिल्टर/फिल्टर के लिये यह एक प्रमुख गुणवत्ता संकेतक है और इस मामले में आईएस:7402 की जरूरतों व मानकों को ध्यान में रखते हुए परीक्षण किया गया।
- वाटर फिल्टर के सभी ब्रांड उस स्तर तक गंदलेपन को हटाने में सक्षम थे पयेजल के लिहाज से उन्हें सुरक्षित और उपयुक्त बनाता है।
भौतिक या पदार्थ संबंधी मानक
क्षमता/छनने की दर/निलंबित कण/संवेदी परीक्षण
क्षमता
स्टोरेज या भंडारण वाले वाटर फिल्टर में अक्सर दो भंडारण पात्र होते हैं, एक ऊपर का जिसमें शुद्ध करने वला पानी जमा होता है और शुद्ध होकर नीचे की पात्र में जमा हो जाता है।
- ऊपर और नीचे के पात्रों की क्षमता दावे की करीब थी।
छनने की दर
यह एक खास समय के दौरान फिल्टर से निकलने वाले शुद्ध पानी की मात्रा होती छनने की दर जितनी अधिक होगी, फिल्टर से निकलने वाली पानी मात्रा उतनी ही अधिक होगी।
- सबसे अधिक छनन दर युनिटेक्स में पाई गई, उसके बाद कैंट और ऊषा ब्रिटा की रही। क्रिस्टल में यह सबसे कम रही।
संवेदी पैनल परीक्षण
इसका संचालन सभी ब्रांडों के लिये आउटपूट पानी के संवेदी गुणों की जाँच के लिये किया गया।
- जीरो बी को छोड़कर सभी ब्रांड पूरी तरह से स्वीकृत है।
सामान्य मानदंडों के लिये
पैकेजिंग/मार्किंग/यूजर मैनुअल/निर्माण व बनावट/सुविधा
पैकेजिंग
राष्ट्रीय मानक के अनुसार फिल्टर की पैकिंग मजबूत होनी चाहिए ताकि यातायात के दौरान क्षति से उसकी पर्याप्त रक्षा की जा सके।
मार्किंग
वाटर फिल्टर पर ब्रांड का नाम, उत्पादन का सीरियल नंबर, निर्माता का नाम और निर्माण की तारीख और एमआरपी लिखी होनी चाहिए।
- क्रिस्टल और यूनिटेक्स को ये जानकारियाँ देने के मामले से अक्षम पाया गया। निर्मित/विपणन संबंधी जानकारियाँ लिखी नहीं थी।
उपयोगकर्त्ता पुस्तिका (यूजर मैनुअल)
- इंस्टालेशन यानी लगाने, रखरखाव और सफाई संबंधी जानकारियाँ संचालन संबंधी निर्देश, वारंटी, तकनीकी जानकारियाँ दोनों भाषाओं में होनी चाहिए।
- प्योर इट, बजाज, टाटा स्वच्छ और एक्वा स्योर ने सभी जानकारियाँ दी है।
- क्रिस्टल, ऊषा और यूनिटेक्स ने आवश्यक जानकारियाँ नहीं दी है।
निर्माण एवं बनावट
परीक्षण किए गए सभी ब्रांडों के निर्माण और बनावट उत्तम है।
सुविधा
पैनल के सदस्यों ने देखा कि फिल्टर लगाने, फिल्टर सफाई और इसे बदलने के मामले में कितने सुविधायुक्त है।
सुविधा से जुड़े तत्वों में थोड़ा अंतर होता है, कुछ सुविधाजनक हैं तो कुछ अधिक सुविधाजनक है।
आफ्टर सेल्स सर्विस यानी विक्रय बाद सेवा
कंस्यूमर वायस की टीम में अधिकाशं ब्रांडों की विक्रय बाद सेवा का परीक्षण किया। इन ब्रांडों में क्रिस्टल, युनिटेक्स, ऊषा ब्रिटा, कैंट गोल्ड, एक्वा फ्रेश, एक्वा स्योर, और प्योर इट शामिल है। संबधित निर्माताओं के समक्ष औपचारिक शिकायत दर्ज की गई। कैंट, ऊषा, एक्वा स्योर, और प्योर इट ने मामलों का निपटान शिकायत दर्ज होने के दो दिनों के भीतर कर दिया। चूँकि क्रिस्टल, एक्वा फ्रेश और युनिटेक्स ने निर्माता/विपणनकर्ता का नाम और अन्य जानकारियाँ नहीं दी थी इसलिये शिकायत उनके वितरक/डीलर के समक्ष दर्ज कराई गई और समस्या के समाधान में एक सप्ताह से अधिक का समय लगा और वह भी कई दफा पहल करने के बाद।
वाटर फिल्टर खरीदने के दौरान उपभोक्ताओं को सलाह दी जाती है कि विक्रय बाद सेवाओं के लिये निर्माता और विपणनकर्ता के सम्पर्क नंबर और पते जरूर देखें।
विश्लेषण
उपरोक्त परीक्षण नतीजों के आधार पर निष्कर्ष यह है कि रसायन आधारित वाटर फिल्टर साफ और लगभग पूरी तरह से सुरक्षित पयेजल उपलब्ध कराते हैं जहाँ नलकूप/भूजल की गुणवत्ता पर हम निर्भर नहीं होते हैं। इस तरह के फिल्टर भारी धातुओं और कीटनाशक पदार्थों को हटाने का दावा नहीं करते हैं, हालाँकि परीक्षण करने पर भारी धातु में कमी 9.4 से 93% के बीच पाया गया। कीटनाशक हटाने में 30 से 100% पाया गया। बैक्टीरिया को हटाने के मामले में ईकोली 99% से 100% और वायरस में कमी 90% से 100% के बीच रही।
ये फिल्टर ग्रामीण और कस्बे दोनों क्षेत्रों के लिये अनुशंसित किये जा सकते हैं, जहाँ बिजली की समस्या है और कीमत का महत्त्व है। उत्पादों की कीमत 1300 से लेकर 2500 रुपये के बीच है और इसके संचालन की कम लागत अन्य फिल्टर (आरओ और युवी सिस्टम) की तुलना में काफी कम होती है। आरओ सिस्टम की अनुशंसा वहाँ के लिये की जाती है जहाँ टोटल डिज्ल्ड सॉलिड (टीडीएस) उच्च होता है और युवी सिस्टम का उपयोग कम टीडीएस वाटर के लिये किया जाता है।
गैर बिजली वाले भंडारण वाटर फिल्टर के लिये नियमित रखरखाव और साफ सफाई की आवश्यकता होती है। इनमें 15 से 30 दिनों में कार्टेज का बदलना आवश्यक होता है। इसलिये ऐसे फिल्टर के कुशल संचालन के लिये ध्यान रखने के आवश्यकता है और उपयोगकर्ता पुस्तिका (यूजर मैनुअल) को अवश्य पढ़ना चाहिए। अंत में, सिर्फ वे फिल्टर ही खरीदें जिन पर उनके निर्माता/विपणनकर्ता का विस्तार से उसकी पैकेजिंग पर जिक्र हो, ताकि आप अपने घर में और समय पर विक्रय के बाद सेवा ले सकें।
निर्माताओं की प्रतिक्रियाएँ
परीक्षण नतीजों पर आधारित इस लेख के प्रकाशन से पूर्व नीतिगत आधार पर इसे संबंधित निर्माता/विपणनकर्ता से शेयर या साझा किया गया और इस संबंध में उनके विचार/टिपण्णी आमंत्रित की गई उनकी प्रतिक्रियाएँ संक्षेप में यहाँ दी गई है।
सुरक्षित है फिल्टर्ड वाटर पीना
आज के दौर में फिल्टर का चलन आम हो रहा है। बाजार में कई किस्म के फिल्टर आ गये हैं। शुरू-शुरू में जो केंडल वाला वाटर फिल्टर होता था वह पानी सिर्फ छान सकता था, एकदम शुद्ध नहीं बना पाता था। लेकिन अब जो अत्याधुनिक फिल्टर है उसे फिल्टर कहते हैं, उससे होकर जो पानी निकलता है वह पूरी तरह से शुद्ध होता है यानी पानी तमाम बैक्टीरिया, वायरस और अन्य अशुद्धियों से मुक्त। आरओ वाले फिल्टर भी बेहद प्रभावी माने जा रहे हैं। जल जनित बीमारियों के सभी विशेषज्ञों ने भी कहा है कि स्टैंडर्ड फिल्टर हो तो उसका पानी एकदम सुरक्षित है। लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि बाजार में दोयम दर्जे के फिल्टर भी मिल रहे हैं, उसके पानी के सुरक्षित होने की गारंटी नहीं है। फिल्टर्ड पानी पीने से जल जनित बीमारियों से बेशक बचा जा सकता है, बशर्ते फिल्टर सही हों।
कैसे अशुद्ध होता है पेयजल
हमारी पयेजल आपूर्ति की पद्धति में इतने छिद्र हैं कि कहीं से भी बैक्टीरिया, वायरस या दूसरे प्रदूषण उसमें दाखिल हो सकते हैं। इसलिये जो पानी आप पीते हैं उसको लेकर खासे एहतियात की जरूरत है। पानी अमृत है तो यह विष भी है। पानी वह चीज है कि भरपेट पीकर निकलें तो प्रचंड गर्मी भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। लेकिन अगर प्रदूषित हो तो फिर रोगों को खान भी। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को बीमार बनाए रखने में पानी की सबसे बड़ी भूमिका है। इसलिये इसे सिक वाटर (बीमार पानी) की संज्ञा दें तो अतिशयोक्ति कतई नहीं होगी। ये न समझें कि सप्लाई में गंगा वाटर आ रहा है तो कोई फिक्र नहीं। अब गंगा का पानी कितना प्रदूषित है लोगों को बताने की जरूरत नहीं, इसलिये पानी को हमेशा फिल्टर या उबाल कर ही पियें ।
जब पानी अधिक जो जाता है तो वह पेयजल को प्रदूषित करने का कारण बनता है। जैसे बाढ़ आ गई, खूब बारिश हो गई, शहर के नाले भर गये, ऐसे में स्वच्छ पानी के पाइप में लिक के जरिये प्रदूषित पानी आ जाता है। सीवेज का पानी भी पेयजल में मिल जाता है। ये प्रदूषित पानी कुएँ में जाकर मिल जाता है। दिल्ली में 50% आबादी को ही ट्रीटमेंट प्लांट में शुद्ध किया हुआ पानी मिलता है। 25% लोग टब्यूबवेल से पानी पीते हैं बाकी लोग हैंडपंप से, दिल्ली जल बोर्ड के टैंकरों से और निजी सप्लायरों के पानी पीते हैं। पानी सप्लाई के पाइप लाईन भी पुराने हैं। दिल्ली की झुग्गियाँ पानी की वजह से फैलने वाली बीमारियों से हमेशा त्रस्त रहती हैं।
पानी को उबालना जरूरी
जिनके पास कीमती फिल्टर खरीदने के पैसे न हों, वे क्या करें? उन्हें भी निराश होने की जरूरत नहीं। आप पीने वाले पानी को अच्छी तरह उबाल लें। सिर्फ गर्म कर देने से काम नहीं चलेगा। उबालने का साधन उपलब्ध साधन न हो तो पानी नहीं पीना बेहतर है। पानी से भींगी सब्जी को कभी कच्ची नहीं खाएँ, उसे उबालकर पकाकर ही खाएँ, चाय-काफी भी गर्म ही पीनी चाहिए। बाजार में मिलने वाले गन्ने के रस या कटे फल में भी पानी है, उनसे भी परहेज करें।
पयेजल की सुरक्षा पर विचार करते समय बैक्टीरिया और बिमारी पैदा करने वाले जीवाणुओं की उपस्थिति चिंता का विषय होता है। टोटल प्लेट काउंट (गैर रोगजनक) का परीक्षण किया गया, ताकि आउटपुर पानी में फिल्टर की कार्य कुशलता को तय किया जा सके। सूक्ष्मजीव संबंधी क्षमता तय करने वाले संबधी मुख्य परीक्षण निर्दिष्ट नियमित अंतराल पर एंडयोरेंस टेस्ट किया गया।
- प्योर इट और ऊषा ब्रिटा के अलावा किसी भी अन्य ब्रांड ने पूरी तरह से इनपुट पानी से सूक्ष्मजीवों को नहीं निकाला। हालाँकि, टीपीसी का स्तर 4-18 के बीच रहा जो उच्च नहीं है और गैर-रोगजनक भी है।
कीटनाशक (लिंडेन)
विभिन्न पेयजल स्रोतों जैसे, भूजल, वर्षाजल, धाराएँ आदि में आने वाले कीटनाशक पदार्थों को ध्यान में रखते हुए यह परीक्षण किया गया। क्योंकि कुछ ब्रांडों ने दावा किया था कि वे कीटनाशक पदार्थों को हटाने में असरदार हैं इसलिये यह परीक्षण शामिल किया गया। 0.5 पीपीएम सांद्रता के कीटनाशक लिंडेन को इनपुट पानी में मिलाया गया। आउटपूट पानी का बचे हुए अतिरिक्त कीटनाशक के लिये परीक्षण किया गया।
- अधिकांश ब्रांडों ने कीटनाशकों को हटा दिया। बजाज फिल्टर सिर्फ 8% कीटनाशकों को ही हटा सके।
भारी तत्व (आर्सेनिक)
राष्ट्रीय मानक के अनुसार पारा, कैडमियम, आर्सेनिक, सायनाइड सीसा, क्रोमियम और निकल को पयेजल में उपस्थित नहीं होना चाहिए। परीक्षण में शामिल कुछ ब्रांडों ने भारी धातुओं को हटाने का दावा किया था। भारी धातुओं को हटाने की कुशलता के परीक्षण के लिये हमनें इनपुट के तौर पर आर्सेनिक का उपयोग किया और आउटपुट वाटर में इसकी उपस्थिति के लिये ब्रांडों का परीक्षण किया।
- वाटर फिल्टर का कोई भी ब्रांड परीक्षण में भारी धातु यानी आर्सेनिक को पूरी तरह से हटाने में सफल नहीं रहा।
अवशिष्ट क्लोरीन
पेयजल में क्लोरीन अवशिष्ट की उपस्थिति बताता है कि क्लोरीन की पर्याप्त मात्रा उन बैक्टीरिया और वायरस को सक्रिय या निष्क्रिय करने के लिये आरंभ में पानी में डाली गई, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पानी पुनः प्रदूषित होने से बचा है। अवशिष्ट क्लोरीन वाटर फिल्टर से निकलने वाले पानी में निश्चित रुप से नहीं होनी चाहिए। २ पीपीएम क्लोरीन को वाटर फिल्टर के अंदर के पानी में डाला गया और फिल्टर से निकाले गए पाने का संग्रह किया गया।
- किसी भी ब्रांड में क्लोरीन नहीं पाया गया।
ई-कोली
पानी का जैविक या माइक्रोबायोलॉजिकल प्रदूषण लोगों के लिये चिंता का विषय रहा है पर्यावरण में पाए जाने वाले वाले कई सारे संक्रामक सूक्ष्मजीव जिनमें शिन्गेला, ई-कोली, सालमोनेला, एस आयरियस, यीस्ट और माल्ड शामिल है, से जी मिचलाने, उल्टी, डायरिया और पेट में मरोड़ जैसे लक्षण व बीमारियाँ पैदा होती है। इस परीक्षण के संचालन के दौरान ई-कोली को नियमित अंतराल पर विभिन्न अन्तराल 300, 600, 900 और 1200 लीटर के बाद मिलाया गया। मिलावट के स्तर को उच्च रखा गया ताकि उत्पादों की कुशलता को विपरीत परिस्थितयों में जाँचा जा सके। आउटपुट वाटर का परीक्षण फिल्टर की कार्यकुशलता के परीक्षण के लिये किया गया।
गंदलापन (टर्बिडिटी)
इसका मतलब पानी में घुले हुए ठोस पदार्थ से है और जिनसे हल्की प्रकाश की किरणें निकलती और पानी में फैलती हैं। इस तरह गंदलापन पानी को धुंधला कर देता है और यहाँ तक कि अधिक खराब मामलों में यह पानी को अपारदर्शी बना देता है। पेयजल में गंदलापन 3 एनटीयू से अधिक नहीं होना चाहिए, और आदर्श रूप में इसे 1 एनटीयू से नीचे ही होना चाहिए। वाटर फिल्टर/फिल्टर के लिये यह एक प्रमुख गुणवत्ता संकेतक है और इस मामले में आईएस:7402 की जरूरतों व मानकों को ध्यान में रखते हुए परीक्षण किया गया।
- वाटर फिल्टर के सभी ब्रांड उस स्तर तक गंदलेपन को हटाने में सक्षम थे पयेजल के लिहाज से उन्हें सुरक्षित और उपयुक्त बनाता है।
भौतिक या पदार्थ संबंधी मानक
क्षमता/छनने की दर/निलंबित कण/संवेदी परीक्षण
क्षमता
स्टोरेज या भंडारण वाले वाटर फिल्टर में अक्सर दो भंडारण पात्र होते हैं, एक ऊपर का जिसमें शुद्ध करने वला पानी जमा होता है और शुद्ध होकर नीचे की पात्र में जमा हो जाता है।
- ऊपर और नीचे के पात्रों की क्षमता दावे की करीब थी।
छनने की दर
यह एक खास समय के दौरान फिल्टर से निकलने वाले शुद्ध पानी की मात्रा होती छनने की दर जितनी अधिक होगी, फिल्टर से निकलने वाली पानी मात्रा उतनी ही अधिक होगी।
- सबसे अधिक छनन दर युनिटेक्स में पाई गई, उसके बाद कैंट और ऊषा ब्रिटा की रही। क्रिस्टल में यह सबसे कम रही।
संवेदी पैनल परीक्षण
इसका संचालन सभी ब्रांडों के लिये आउटपूट पानी के संवेदी गुणों की जाँच के लिये किया गया।
- जीरो बी को छोड़कर सभी ब्रांड पूरी तरह से स्वीकृत है।
सामान्य मानदंडों के लिये
पैकेजिंग/मार्किंग/यूजर मैनुअल/निर्माण व बनावट/सुविधा
पैकेजिंग
राष्ट्रीय मानक के अनुसार फिल्टर की पैकिंग मजबूत होनी चाहिए ताकि यातायात के दौरान क्षति से उसकी पर्याप्त रक्षा की जा सके।
मार्किंग
वाटर फिल्टर पर ब्रांड का नाम, उत्पादन का सीरियल नंबर, निर्माता का नाम और निर्माण की तारीख और एमआरपी लिखी होनी चाहिए।
- क्रिस्टल और यूनिटेक्स को ये जानकारियाँ देने के मामले से अक्षम पाया गया। निर्मित/विपणन संबंधी जानकारियाँ लिखी नहीं थी।
उपयोगकर्त्ता पुस्तिका (यूजर मैनुअल)
- इंस्टालेशन यानी लगाने, रखरखाव और सफाई संबंधी जानकारियाँ संचालन संबंधी निर्देश, वारंटी, तकनीकी जानकारियाँ दोनों भाषाओं में होनी चाहिए।
- प्योर इट, बजाज, टाटा स्वच्छ और एक्वा स्योर ने सभी जानकारियाँ दी है।
- क्रिस्टल, ऊषा और यूनिटेक्स ने आवश्यक जानकारियाँ नहीं दी है।
निर्माण एवं बनावट
परीक्षण किए गए सभी ब्रांडों के निर्माण और बनावट उत्तम है।
सुविधा
पैनल के सदस्यों ने देखा कि फिल्टर लगाने, फिल्टर सफाई और इसे बदलने के मामले में कितने सुविधायुक्त है।
सुविधा से जुड़े तत्वों में थोड़ा अंतर होता है, कुछ सुविधाजनक हैं तो कुछ अधिक सुविधाजनक है।
आफ्टर सेल्स सर्विस यानी विक्रय बाद सेवा
कंस्यूमर वायस की टीम में अधिकाशं ब्रांडों की विक्रय बाद सेवा का परीक्षण किया। इन ब्रांडों में क्रिस्टल, युनिटेक्स, ऊषा ब्रिटा, कैंट गोल्ड, एक्वा फ्रेश, एक्वा स्योर, और प्योर इट शामिल है। संबधित निर्माताओं के समक्ष औपचारिक शिकायत दर्ज की गई। कैंट, ऊषा, एक्वा स्योर, और प्योर इट ने मामलों का निपटान शिकायत दर्ज होने के दो दिनों के भीतर कर दिया। चूँकि क्रिस्टल, एक्वा फ्रेश और युनिटेक्स ने निर्माता/विपणनकर्ता का नाम और अन्य जानकारियाँ नहीं दी थी इसलिये शिकायत उनके वितरक/डीलर के समक्ष दर्ज कराई गई और समस्या के समाधान में एक सप्ताह से अधिक का समय लगा और वह भी कई दफा पहल करने के बाद।
वाटर फिल्टर खरीदने के दौरान उपभोक्ताओं को सलाह दी जाती है कि विक्रय बाद सेवाओं के लिये निर्माता और विपणनकर्ता के सम्पर्क नंबर और पते जरूर देखें।
विश्लेषण
उपरोक्त परीक्षण नतीजों के आधार पर निष्कर्ष यह है कि रसायन आधारित वाटर फिल्टर साफ और लगभग पूरी तरह से सुरक्षित पयेजल उपलब्ध कराते हैं जहाँ नलकूप/भूजल की गुणवत्ता पर हम निर्भर नहीं होते हैं। इस तरह के फिल्टर भारी धातुओं और कीटनाशक पदार्थों को हटाने का दावा नहीं करते हैं, हालाँकि परीक्षण करने पर भारी धातु में कमी 9.4 से 93% के बीच पाया गया। कीटनाशक हटाने में 30 से 100% पाया गया। बैक्टीरिया को हटाने के मामले में ईकोली 99% से 100% और वायरस में कमी 90% से 100% के बीच रही।
ये फिल्टर ग्रामीण और कस्बे दोनों क्षेत्रों के लिये अनुशंसित किये जा सकते हैं, जहाँ बिजली की समस्या है और कीमत का महत्त्व है। उत्पादों की कीमत 1300 से लेकर 2500 रुपये के बीच है और इसके संचालन की कम लागत अन्य फिल्टर (आरओ और युवी सिस्टम) की तुलना में काफी कम होती है। आरओ सिस्टम की अनुशंसा वहाँ के लिये की जाती है जहाँ टोटल डिज्ल्ड सॉलिड (टीडीएस) उच्च होता है और युवी सिस्टम का उपयोग कम टीडीएस वाटर के लिये किया जाता है।
गैर बिजली वाले भंडारण वाटर फिल्टर के लिये नियमित रखरखाव और साफ सफाई की आवश्यकता होती है। इनमें 15 से 30 दिनों में कार्टेज का बदलना आवश्यक होता है। इसलिये ऐसे फिल्टर के कुशल संचालन के लिये ध्यान रखने के आवश्यकता है और उपयोगकर्ता पुस्तिका (यूजर मैनुअल) को अवश्य पढ़ना चाहिए। अंत में, सिर्फ वे फिल्टर ही खरीदें जिन पर उनके निर्माता/विपणनकर्ता का विस्तार से उसकी पैकेजिंग पर जिक्र हो, ताकि आप अपने घर में और समय पर विक्रय के बाद सेवा ले सकें।
निर्माताओं की प्रतिक्रियाएँ
परीक्षण नतीजों पर आधारित इस लेख के प्रकाशन से पूर्व नीतिगत आधार पर इसे संबंधित निर्माता/विपणनकर्ता से शेयर या साझा किया गया और इस संबंध में उनके विचार/टिपण्णी आमंत्रित की गई उनकी प्रतिक्रियाएँ संक्षेप में यहाँ दी गई है।
सुरक्षित है फिल्टर्ड वाटर पीना
आज के दौर में फिल्टर का चलन आम हो रहा है। बाजार में कई किस्म के फिल्टर आ गये हैं। शुरू-शुरू में जो केंडल वाला वाटर फिल्टर होता था वह पानी सिर्फ छान सकता था, एकदम शुद्ध नहीं बना पाता था। लेकिन अब जो अत्याधुनिक फिल्टर है उसे फिल्टर कहते हैं, उससे होकर जो पानी निकलता है वह पूरी तरह से शुद्ध होता है यानी पानी तमाम बैक्टीरिया, वायरस और अन्य अशुद्धियों से मुक्त। आरओ वाले फिल्टर भी बेहद प्रभावी माने जा रहे हैं। जल जनित बीमारियों के सभी विशेषज्ञों ने भी कहा है कि स्टैंडर्ड फिल्टर हो तो उसका पानी एकदम सुरक्षित है। लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि बाजार में दोयम दर्जे के फिल्टर भी मिल रहे हैं, उसके पानी के सुरक्षित होने की गारंटी नहीं है। फिल्टर्ड पानी पीने से जल जनित बीमारियों से बेशक बचा जा सकता है, बशर्ते फिल्टर सही हों।
कैसे अशुद्ध होता है पेयजल
हमारी पयेजल आपूर्ति की पद्धति में इतने छिद्र हैं कि कहीं से भी बैक्टीरिया, वायरस या दूसरे प्रदूषण उसमें दाखिल हो सकते हैं। इसलिये जो पानी आप पीते हैं उसको लेकर खासे एहतियात की जरूरत है। पानी अमृत है तो यह विष भी है। पानी वह चीज है कि भरपेट पीकर निकलें तो प्रचंड गर्मी भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। लेकिन अगर प्रदूषित हो तो फिर रोगों को खान भी। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को बीमार बनाए रखने में पानी की सबसे बड़ी भूमिका है। इसलिये इसे सिक वाटर (बीमार पानी) की संज्ञा दें तो अतिशयोक्ति कतई नहीं होगी। ये न समझें कि सप्लाई में गंगा वाटर आ रहा है तो कोई फिक्र नहीं। अब गंगा का पानी कितना प्रदूषित है लोगों को बताने की जरूरत नहीं, इसलिये पानी को हमेशा फिल्टर या उबाल कर ही पियें ।
जब पानी अधिक जो जाता है तो वह पेयजल को प्रदूषित करने का कारण बनता है। जैसे बाढ़ आ गई, खूब बारिश हो गई, शहर के नाले भर गये, ऐसे में स्वच्छ पानी के पाइप में लिक के जरिये प्रदूषित पानी आ जाता है। सीवेज का पानी भी पेयजल में मिल जाता है। ये प्रदूषित पानी कुएँ में जाकर मिल जाता है। दिल्ली में 50% आबादी को ही ट्रीटमेंट प्लांट में शुद्ध किया हुआ पानी मिलता है। 25% लोग टब्यूबवेल से पानी पीते हैं बाकी लोग हैंडपंप से, दिल्ली जल बोर्ड के टैंकरों से और निजी सप्लायरों के पानी पीते हैं। पानी सप्लाई के पाइप लाईन भी पुराने हैं। दिल्ली की झुग्गियाँ पानी की वजह से फैलने वाली बीमारियों से हमेशा त्रस्त रहती हैं।
पानी को उबालना जरूरी
जिनके पास कीमती फिल्टर खरीदने के पैसे न हों, वे क्या करें? उन्हें भी निराश होने की जरूरत नहीं। आप पीने वाले पानी को अच्छी तरह उबाल लें। सिर्फ गर्म कर देने से काम नहीं चलेगा। उबालने का साधन उपलब्ध साधन न हो तो पानी नहीं पीना बेहतर है। पानी से भींगी सब्जी को कभी कच्ची नहीं खाएँ, उसे उबालकर पकाकर ही खाएँ, चाय-काफी भी गर्म ही पीनी चाहिए। बाजार में मिलने वाले गन्ने के रस या कटे फल में भी पानी है, उनसे भी परहेज करें।
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