नोएडा में कारखानों का जहरीला पानी पी रहे हैं लोग

नोएडा। कारखानों के जहरीले पानी से नोएडा-ग्रेटर नोएडा के खेत-खलिहान बंजर और जहरीले हुए जा रहे हैं। कारखानों से निकलने वाले सड़े और जहरीले पानी की वजह से गौतमबुद्ध नगर की जमीन तो बंजर हो ही गई है, साथ ही इस पानी से यहां के निवासी और जानवर भी बीमार हो रहे हैं। यहां की धरती में यह पानी गहरे तक घुस चुका है और इस पानी के पीने से लोग डायरिया और बुखार जैसी बीमारी के शिकार हो रहे हैं। सालों से यहां की जमीन ज़हर उगल रही है। यहां के लोगों को भी मिनरल वाटर का सहारा लेना पड़ रहा है। दोनों प्राधिकरणों ने कारखाने से निकलने वाले इस पानी को और आगे फैलने से रोकने का अभी तक कोई इंतजाम नहीं किया है।

नोएडा और ग्रेटर नोएडा समेत दादरी में लगे ज्यादातर कारखाने खुलेआम में दूषित पानी को छोड़ते आ रहे हैं। इस तरह छोड़ा गया पानी जांच में कठोर पाया गया है, जोकि पीने लायक नहीं है। जमीनी पानी में रासायनिक तत्व ज्यादा पाए गए हैं। दादरी, नोएडा और ग्रेटर नोएडा में करीब साढ़े सोलह सौ से ज्यादा कारखाने हैं, जो नोएडा के फेस टू, कासना, सूरजपुर और दादरी के छपरौला, बादलपुर में है। इस जिले में सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र नोएडा के फेस टू का है। अकेले फेस टू में 567 कारखाने चल रहे हैं। इनमें से कुछ कारखाने तो दूषित पानी को सीधे जमीन में छोड़ रहे हैं। भू-जल को प्रदूषित करने में ग्रेटर नोएडा और दादरी क्षेत्र के कारखाने भी पीछे नहीं हैं। यहां चमड़ा बनाने वाली फैक्ट्री, राइस मिल और रंगरोगन की फैक्ट्रियां तो ज्यादा ही खुले में पानी छोड़कर क्षेत्र को प्रदूषित करने में लगी हैं। इन कारखानों की जांच कौन करे क्योंकि न तो प्रशासन के पास समय है और ना ही प्रदूषण विभाग को कोई चिंता। मिली-भगत का यहां बोल-बाला है।

पानी का पीने में भी स्वाद नहीं रहा है। लोग इस पानी से चाय बनाते हैं तो वह भी फट जाती है। खाद्य-पदार्थो में इस पानी का इस्तेमाल भी नुकसान दायक साबित हो रहा है। खाने-पीने की वस्तुओं में यह पानी अलग से दिखाई देता है। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में रोजाना पानी की खपत 181 एमएलडी है, जिसमें घरेलू मांग 118 एममलडी और गैर घरेलू मांग 63 एमएलडी है। इस क्षेत्र में जल दोहन भी इतनी तेजी के साथ हो रहा है कि हर साल जल स्तर डेढ़ से दो फुट गिर रहा है। पिछले तीन साल में जमीनी पानी में तीस फीसद खनिजों की मात्रा बढ़ चुकी है, जिसमें कैल्शियम, फास्फैक्ट, चूना, मैगिनशियम, फासफोरस और सोडियम आदि शामिल है। इस मामले में जिला प्रशासन का जवाब बहुत आश्चर्यजनक और निराशा से भरा है। जिलाधिकारी दीपक अग्रवाल कह रहे हैं कि कारखानों से गंदे पानी के छोड़े जाने की कोई शिकायत नहीं मिली है, अगर उनको कोई शिकायत मिलती है तो उस पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। सवाल ये है कि वे अपने स्तर से इसकी जांच क्यूं नही कराते हैं और उनकी निर्भरता जन-शिकायतों पर ही क्यूं है? क्या जब लोग जानवरों की तरह से दम तोड़ेंगे तभी इस प्रदूषित पानी को रोकने की कार्रवाई की जाएगी? स्थानीय डाक्टरों का कहना है कि प्रदूषित पानी से बुखार समेत दूसरी कई बीमारियां पैदा हो रही हैं। कभी-कभी तो ये बीमारी जानलेवा भी साबित होती हैं। स्वास्थ्य विभाग जिला प्रशासन के अधीन है उसके अधिकारी जिला प्रशासन को ऐसी रिपोर्ट देने से कतराते हैं जिनमें कारखानों के ऊपर इसका दोष जाता हो। यह मामला कारखानों से धन-उगाही के लिए भी जाना जाता है और गौतमबुद्ध नगर के जिलाधिकारी कदाचित ऐसे ही कारणों से इस प्रदूषित और जहरीले पानी से अनजान हैं।
 

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