यहां प्रवासी पक्षी ही नहीं, पानी को साफ करने वाले दुर्लभ पौधे भी हैं बेशुमार
पिछले एक साल में पीस्टिया एस्ट्रोटिएट्स पौधे की संख्या बढ़ने की वजह से ही सेंचुरी का पानी काफी हद तक स्वच्छ हुआ है। इससे जल में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ने से पक्षियों के लिए आहार की उपलब्धता बढ़ी है। ओखला पक्षी विहार में ऐसे औषधीय पौधों की विभिन्न प्रजातियों पर शोध करने वालों की नजर पड़ी। शोधकर्ताओं ने इस बारे में वन विभाग के अधिकारियों को जानकारी दी। इसके बाद दिसंबर 2012 में तत्कालीन वन विभाग के अधिकारी बी प्रभाकर ने सभी पौधों का सर्वेक्षण कराया।
यमुना के तट पर स्थित ओखला पक्षी विहार में देशी और प्रवासी पक्षियों के साथ विभिन्न प्रजातियों के दो सौ से ज्यादा पौधे भी यहां हैं। इनमें ज्यादातर पौधे अनेक बीमारियों के इलाज में भी काम आते हैं। पर इससे लोग अनजान हैं। शोध से पता चला है कि इस पक्षी विहार में ‘पीस्टिया एस्ट्रोटिएट्स’ नाम का एक पौधा है जो दूषित पानी को स्वच्छ करता है। यही कारण है कि यहां पानी में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ने और पक्षियों के लिए आहार की उपलब्धता बढ़ने से प्रवासी पक्षियों की तादाद बढ़ी है। पानी को साफ करने वाला यह पौधा दूषित जल में विषैले तत्वों को खत्म कर देता है। इसके अलावा कैडमियम और शीशा जैसे धातुओं को भी हटाता है। केरल के तिरुवनंतपुरम यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने कुछ समय पूर्व अपने शोध में इस पौधे का भी उल्लेख किया था। वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि यह पौधा जल ही नहीं बल्कि मिट्टी से भी प्रदूषण को हटाने में कारगर है। ओखला पक्षी विहार में इस खास प्रजाति के पौधे की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है।पिछले एक साल में पीस्टिया एस्ट्रोटिएट्स पौधे की संख्या बढ़ने की वजह से ही सेंचुरी का पानी काफी हद तक स्वच्छ हुआ है। इससे जल में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ने से पक्षियों के लिए आहार की उपलब्धता बढ़ी है। ओखला पक्षी विहार में ऐसे औषधीय पौधों की विभिन्न प्रजातियों पर शोध करने वालों की नजर पड़ी। शोधकर्ताओं ने इस बारे में वन विभाग के अधिकारियों को जानकारी दी। इसके बाद दिसंबर 2012 में तत्कालीन वन विभाग के अधिकारी बी प्रभाकर ने सभी पौधों का सर्वेक्षण कराया। इस दौरान पता चला कि पक्षी विहार में करीब दो सौ से ज्यादा प्रजातियों के पौधे हैं। इनमें से70 से ज्यादा पौधे विभिन्न बीमारियों के इलाज में प्रयोग आने वाले हैं। इन पौधों को आम लोग जरूरत पड़ने पर वन विभाग से अनुमति लेकर प्रयोग में ला सकते हैं। ब्लैक नाइटशेड (इसे छोटी मकोई भी कहते हैं वैज्ञानिक नाम -सोलनम नाइग्रम, मूल स्थान यूरेशिया, इसके अलावा अमेरिका, न्यूजीलैंड व दक्षिण अफ्रीका। अब एशिया के भी देशों में इसकी कई प्रकार की प्रजातियाँ मिल रही हैं। बीमारियों में प्रयोग लीवर सिरोसिस, पीलिया, त्वचा संबंधी बीमारी, टीबी उपचार से लेकर एंटी ऑक्सीडेंट के तौर पर भी ये पौधे काम आते हैं। कॉमन फ्रिंजड फ्लोवर वाइन (इसे जंगली परवल भी कहते हैं) वैज्ञानिक नाम (ट्राइकोसैंथेस कुकुमेरिना, बीमारी में प्रयोग) डायबिटीज, त्वचा संबंधी, जलन होने पर, थकान दूर करने में इसका इस्तेमाल किया जाता है।
इसी प्रकार से चुकुंदा, कुसुंदा, हत्ता जुरी, चिरचिता, मैक्सिकन पॉपी समित कई प्रजातियों के पौधे हैं, जिनका विभिन्न किस्म की बीमारियों में प्रयोग किया जा सकता है। पक्षी विहार में खतरे की सूची में शामिल पक्षियों को देख सकते हैं। आईयूसीएन (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज) खतरे की सूची में शामिल जीव-जंतुओं के लिए रेड डाटा बुक निकालता है। इसी तर्ज पर पक्षियों पर फोकस करते हुए वैश्विक स्तर बर्ड लाइफ इंटरनेशनल संस्था है। यह संस्था सभी महाद्विपों के लिए अलग-अलग रिपोर्ट जारी करती है।
एशिया के भारत समेत इंडोनेशिया, कंबोडिया, नेपाल, श्रीलंका समेत 14 देशों का अध्ययन कर 2700 पक्षियों को खतरे की सूची में डाला गया है। इन्हीं में से नौ पक्षी ऐसी हैं जो नोएडा के ओखला पक्षी विहार में भी आते हैं। इसमें ब्रिस्टलेड ग्रासबर्ड, पेंटेड स्टोर्क, ब्लेकवेलीड टर्न, ओरियंटल डार्टर, ब्लेकटेल्ड गॉडविट, ब्लेक हेडेड आईवीस, इजिप्टियन वल्चर, रिवर लेपविंग और फेरुजिनस डक खतरे की सूची में शामिल हैं। इनमें इजिप्टियन वल्चर के निकट भविष्य में ही खत्म होने की आशंका है। ओखला पक्षी विहार में मानव गतिविधियाँ बड़े स्तर पर हो रही हैं जिससे पक्षियों पर विपरीत असर पड़ रहा है। इसलिए पक्षी विहार को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के इको सेंसटिव जोन घोषित करने के आदेश को अमल में लाना जरूरी है। टी के रॉय पर्यावरण विशेषज्ञ की एक नजर ओखला पक्षी विहार (1990) में राज्य सरकार द्वारा घोषित यमुना नदी के तट पर क्षेत्रफल-4 वर्ग किलोमीटर तीन सौ से ज्यादा पक्षी और दो सौ से ज्यादा पौधे हैं।
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