नोएडा का पानी

नोएडावासी दूषित पानी पीने का खामियाजा भी भुगत रहे हैं। यहां अनेक लोगों को गैस्ट्रोइंटाइटिस की शिकायत है। इसके तहत पानी में मौजूद बैक्टीरिया भोजन के साथ पेट में जाकर संक्रमण पैदा करते हैं। यह रोग आंतों के संक्रमण, उलटी व दस्त का कारण बनता है। इससे शरीर में पानी की कमी भी हो जाती है। डिहाइड्रेशन का असर तीन से पांच दिनों तक रहता है। दूषित पानी डायरिया का भी कारण बनता है।राजधानी दिल्ली से सटे हाईटेक सिटी नोएडा में पानी की कहानी अलग ही है। यहां पानी तो प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, लेकिन वह पीने के लायक नहीं है। महंगी जमीन और दिखावे वाली जिंदगी के साथ नोएडा को इंफ्रास्ट्रक्चर का लाभ बेशक मिला है, पर मूलभूत सुविधाओं के मामले में यह शहर शून्य है। जल ही जीवन है वाली कहावत नोएडा के लिए सच नहीं है। गंगाजल की आपूर्ति का दावा करने वाला नोएडा प्राधिकरण भी सिर्फ दावे कर रहा है। यहां हर सेक्टर में भू-जल का स्तर दिनोंदिन नीचे जा रहा है। आलम यह कि सौ फुट पर मिलने वाला पानी भी खारा है। ऐसे में यहां के लोग बोतलबंद पानी पीने के लिए मजबूर हैं। पेयजल की किल्लत दूर करने के लिए नोएडा विकास प्राधिकरण गाजियाबाद के प्रताप विहार से 48 क्यूसेक गंगाजल लाता तो जरूर है, लेकिन वह आम आदमी की पहुंच से दूर है। नोएडा में 195 एमएलडी (मिलियन लीटर डेली) पानी की मांग है और पानी 248 एमएलडी है। जल विभाग मांग पूरी करने के बाद 53 एमएलडी पानी जलाशयों में बचाकर रखता है। गर्मियों और बरसात में मांग 195 एमएलडी के आसपास होती है, जबकि जाड़ों में 100 एमएलडी की मांग घट जाती है।

नोएडा के खारे पानी को गंगाजल से मिश्रित किया जाता है। यहां 10 से 71 प्रतिशत गंगाजल का मिश्रण होता है, लेकिन वह भी पारंपरिक तरीके से। हालांकि यह पानी भी सिटी के कुछ वीआईपी सेक्टरों में ही पहुंचता है। आम आदमी की पहुंच से यह अब भी दूर है। नोएडा के लोगों को साफ पानी कब उपलब्ध होगा, इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है। यहां पानी के खारेपन को मापने का कोई पैमाना तक नहीं है। किस सेक्टर में पानी के खारेपन का स्तर क्या है, इसका ठीक-ठीक आंकड़ा प्राधिकरण के जल विभाग के पास भी नहीं है। वह जल दोहन करके उसमें क्लोरीन मिलाकर आपूर्ति कर देता है। क्लोरीन भी नियमित रूप से नहीं मिलाई जाती। विभाग के पास पास पानी शुद्ध करने की दूसरी कोई व्यवस्था नहीं है। क्या विडंबना है कि हाईटेक सिटी में एक भी वाटर ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है।

नोएडावासी दूषित पानी पीने का खामियाजा भी भुगत रहे हैं। यहां अनेक लोगों को गैस्ट्रोइंटाइटिस की शिकायत है। इसके तहत पानी में मौजूद बैक्टीरिया भोजन के साथ पेट में जाकर संक्रमण पैदा करते हैं। यह रोग आंतों के संक्रमण, उलटी व दस्त का कारण बनता है। इससे शरीर में पानी की कमी भी हो जाती है। डिहाइड्रेशन का असर तीन से पांच दिनों तक रहता है। दूषित पानी डायरिया का भी कारण बनता है। पानी कम पीने या इसके दूषित होने के कारण शरीर में इंट्रा सेल्यूलर फ्लूड कम हो जाता है, जिसका असर रक्तचाप व ग्लूकोज के स्तर पर पड़ता है।

पानी के बिना विकास का यह हाल उस सिटी का है, जहां आने वाले दिनों में तेजी से आबादी बढ़ेगी। अगले दो साल में नोएडा की जनसंख्या में करीब सवा लाख लोग और जुड़ जाएंगे, क्योंकि तब तक हाउसिंग कंपनियां नोएडा में चालीस हजार फ्लैट तैयार कर चुकी होंगी। इस समय नोएडा की आबादी पांच लाख से ऊपर है, जबकि मास्टर प्लॉन-2021 में यह बढ़कर १६ लाख के आसपास पहुंच जाएगी। 17 अप्रैल को नोएडा अपना 34वां जन्मदिन मनाने की तैयारी में जुटा हुआ है। इसमें शक नहीं कि इस दौरान हाईटेक सिटी ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं। लेकिन साफ और शुद्ध पानी के अभाव में ये उपलब्धियां बेमानी ही हैं।

(लेखक उमर उजाला से जुड़े हैं)

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