24 अप्रैल, 2014 को प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में नरेन्द्र मोदी लोकसभा प्रत्याशी के लिये पर्चा भरने बनारस गए थे। वहाँ माँ गंगा की पुकार का जिक्र कर गंगा को निर्मल बनाने का इरादा जाहिर किया था। ठीक महीने भर बाद उन्होंने पीएम पद सम्भाला और गंगा के नाम पर ‘मंत्रालय’ और अपने पहले ही बजट में ‘नमामि गंगे’ के लिये भारी भरकम बजट आवंटित कर इरादे की बुनियाद भी रख दी। इसके बाद इस महत्वाकांक्षी योजना का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय गंगा परिषद, राज्य गंगा समिति और जिला गंगा समिति के रूप में त्रिस्तरीय संस्थागत ढाँचा खड़ा किया।
आज जब बीते चार साल पर नजर डालते हैं तो सरकार के प्रयासों की दिशा तो सही दिखती है लेकिन गंगा की दशा नहीं बदली है। सरकार जहाँ 22 हजार करोड़ रुपए से अधिक लागत वाली 240 परियोजनाओं को मंजूरी देकर मार्च 2019 तक गंगा को 70 से 80 प्रतिशत तक साफ करने का दावा कर रही है वहीं जमीनी स्तर पर इसमें कोई सुधार नजर नहीं आ रहा है। हाल यह है कि पिछले हफ्ते नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने गंगा नदी की साफ-सफाई पर असन्तोष व्यक्त करते हुए टिप्पणी की है कि इस नदी की हालत असाधारण रूप से खराब है और गंगा की सफाई के लिये शायद ही कोई प्रभावी कदम उठाया गया है।
एनजीटी की तल्ख टिप्पणी इसलिये अहम है क्योंकि गंगा में गन्दगी जाने से रोकने के लिये जितने उपाय होने चाहिए वे अभी तक नही हुए हैं। मसलन गंगा नदी के किनारे 97 शहर और कस्बे हैं जिनसे 2953 एमएलडी (मिलियन लीटर पर डे) सीवेज निकलता है जबकि इसे ट्रीट करने की सुविधा मात्र 46 शहरों में है। खुद केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के आँकड़े बताते हैं कि गंगा किनारे 46 शहरों और कस्बों में सिर्फ 84 सीवेज ट्रीटमेंट (एसटीपी) हैं जो महज 1584 एमएलडी सीवेज ही ट्रीट कर सकते हैं। इनमें से सिर्फ 39 एसटीपी काम कर रहें हैं जबकि 31 एसटीपी बन्द पड़े और 14 एसटीपी का प्रदर्शन आशानुरूप नहीं है।
सरकार मानती है कि गंगा को प्रदूषित करने वाली 1109 औद्योगिक इकाइयों में से 538 औद्योगिक इकाइयाँ मानकों का पालन नहीं कर रही हैं। इसलिये इनमें से 180 कम्पनियों को पर्यावरण संरक्षण कानून की धारा पाँच के तहत कारण बताओ नोटिस तथा 358 को बन्द करने का नोटिस जारी किया गया है। हालांकि सरकार का दावा है कि हाल के वर्षों में गंगा को प्रदूषित करने वाले चीनी उद्योग में एक टन गन्ने की पेराई से निकलने वाले 400 लीटर अपशिष्ट जल को घटाकर 200 लीटर कर दिया गया है। इसी तरह पेपर एंड पल्प उद्योग से निकलने वाले अपशिष्ट में भी 45 से 50 प्रतिशत की कमी लायी गई है। वहीं कानपुर के निकट जाजमऊ में टेनरियों से गंगा में जाने वाली जहरीली गन्दगी को रोकने के लिये 554 करोड़ रुपए से प्रयास किये जा रहे हैं।
गंगा नदी का सबसे अधिक प्रवाह उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है और प्रदूषण भी इस क्षेत्र में ही ज्यादा होता है। जनवरी 2019 में इलाहाबाद में कुम्भ का आयोजन होना है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दावा है कि प्रदेश में 15 दिसम्बर तक गंगा पूरी तहर निर्मल और स्वच्छ हो जाएगी। कोई भी गन्दा नाला, सीवर व कचरा गंगा में न गिरे इसके लिये सख्त निर्देश दिये गये हैं। सरकारी दावा भले ही जो किया जाए परन्तु गंगा में एक तो पर्याप्त जल नहीं है दूसरे जो है भी वो आचमन योग्य नहीं है। गंगा किनारे बसे शहरों के सीवर अभी तक जस के तस हैं। कारखानों का गन्दा रासायनिक पानी गिरना भी नहीं थमा है। अलबत्ता गंगा किनारे बसे 27 जिलों के 1556 गाँवों को खुले में शौचमुक्त करने का दावा किया जा रहा है और अब ओडीएफ प्लस की योजना पर काम जारी है।
बहरहाल जमीनी स्तर पर इसका असर नजर नहीं आ रहा है। यही वजह है कि एनजीटी ने कहा है कि गंगा में प्रदूषण के बारे में जमीनी स्तर पर लोगों की राय जानने के लिये सर्वेक्षण कराया जाए और इसके बाद जो फीडबैक मिले, उसे अधिकारियों तक पहुँचाया जाए।
यूँ तो गंगा नदी की सफाई का काम पिछली सदी के आखिरी दशकों में ही शुरू हो गया था लेकिन इसके लिये जरूरी राजनीतिक इच्छाशक्ति, सुदृढ़ संस्थागत तंत्र, सुनियोजित कार्य योजना,प्रभावी निगरानी तंत्र और पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की व्यवस्था का सर्वदा अभाव रहा। इसलिये 1985 से लेकर 2015 तक गंगा की सफाई के नाम पर खर्च हुई भारी भरकम 4,000 करोड़ रुपए राशि पानी की तरह बह गई।
गंगा एक्शन प्लान कई खामियों के चलते विफल रहा। तत्कालीन यूपीए सरकार ने 20 फरवरी 2009 को नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी का गठन किया था। प्रधानमंत्री इसके पदेन अध्यक्ष और गंगा किनारे के राज्यों के मुख्यमंत्री इसके सदस्य बने लेकिन यह कोशिश बेअसर साबित हुई। एनजीआरबीए की न तो समय पर बैठक होती थी और न ही यह कारगर योजना और निगरानी तंत्र बना पाई।
यही वजह है कि मोदी सरकार ने इसे भंग कर अक्टूबर 2016 में राष्ट्रीय गंगा परिषद का गठन किया है। प्रदेश स्तर पर राज्य गंगा समिति और जमीनी स्तर पर जिला गंगा समिति का गठन किया गया। वास्तव में मोदी सरकार की सबसे बड़ी सफलता यह है कि उसने गंगा सफाई के लिये एक संस्थागत तंत्र बनाया है। सोसायटी के तौर पर काम कर रहे नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा को सरकार ने प्राधिकरण का दर्जा देकर ताकतवर बनाया। वहीं नमामि गंगे के क्रियान्वयन में जन भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये 532 पूर्व सर्विस मैन की एक बटालियन बनाई गई है जिसे गंगा टास्क फोर्स नाम दिया गया है साथ ही गंगा प्रहरी के रूप में स्वयंसेवक भी एकजुट किये।
बदहाल सहायक नदियाँ
गंगा को कर रहीं बेहाल
दरअसल गंगा की गन्दगी और प्रदूषण की सबसे बड़ी वजहों में इसकी सहायक नदियाँ भी हैं। ये अपना सारा कचरा और प्रदूषण लाकर मोक्षदायिनी नदी में उड़ेल देती हैं। इसलिये इस तर्क में भी दम दिखता है कि जब तक गंगा की सहायक नदियों को साफ नहीं किया जाएगा, सिर्फ गंगा को साफ करके उन्हें निर्मल नहीं किया जा सकेगा।
काली नदी के नहीं बदले हालात
पिछले काफी समय से इस नदी के जरिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अधिकांश चीनी मिलों, शराब बनाने वाली फैक्टियों और दूसरी औद्योगिक इकाइयों का कचरा गंगा में समा रहा है। काली नदी फर्रुखाबाद और कन्नौज के पास गंगा नदी में मिलती है। काली में प्रदूषण की स्थिति जाँचने के बाद केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कई बार चेतावनी दे चुका है परन्तु हालात में कोई परिवर्तन नहीं हो पा रहा है। काली नदी के काले पानी से अक्सर गंगा के पानी में अॉक्सीजन की कमी हो जाती है।
जहरीले रसायनों से कराह रही रामगंगा
गंगा की प्रमुख सहायक नदियों में से एक रामगंगा की हालत भी काफी खराब है। सीवरेज का दूषित पानी सीधे रामगंगा में जाता है। सैकड़ों फैक्ट्रियों का केमिकल युक्त पानी व अन्य दूषित अवयव भी नदी में ही डाले जाते हैं। लगातार दूषित और रासायनिक तरल पदार्थ गिरने से नदी में बायो केमिकल अॉक्सीजन डिमांड (बीओडी) तेजी से बढ़ रहा है। वहीं, अॉक्सीजन की मात्रा जरूरी छह डीओ (डिमांड अॉक्सीजन) से लगातार कम हो रही है। इसके अलावा पानी में टीडीएस का लेवल भी 300 के करीब पहुँच गया है।
पीएच वैल्यू सामान्य की तुलना में 7.6 है। सीवरेज का पानी गिरने से नदी में पानी पारदर्शी नहीं रहा है। नगर निगम सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं होने से जल-मल सीधे रामगंगा में बह रहा है। कई जगह तो रामगंगा इतनी काली हो गई है कि गन्दे नाले में जमी कीचड़ के समान दिखाई देती है। रामगंगा बहगुल, शंखा, भाखरा और किच्छा नदियाँ मिलती हैं। मुरादाबाद से रामपुर होकर आते समय रामगंगा और ज्यादा मैली होती है। बरेली में रामगंगा 125 किमी. क्षेत्र में बहती है, जो मंडल के शाहजहाँपुर जिले से आगे जाकर फर्रुखाबाद के पास गंगा में मिलती है।
गोमती में गिर रहे नाले
गंगा के प्रदूषण में गोमती की भागीदारी भी है। 13 जिलों से होते हुए गंगा में विलीन होने वाली गोमती के मूल जल-स्रोत सूखते जाने के कारण नदी का जल-स्तर कम होता जा रहा है। चीनी मिलों व अन्य औद्योगिक इकाइयों से निकलता प्रदूषित पानी हालात बद से बदतर किये हुए है। गोमती में पर्याप्त जल न होने का निदान बताते हुए सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह का कहना है कि शारदा नहर से पानी उपलब्ध कराकर जल प्रवाह बढ़ाया जाएगा।
यमुना के लिये 1600 करोड़ की परियोजना स्वीकृत
यमुना की सफाई पर करीब 3000 करोड़ बहाए जाने के बावजूद यह नदी मैली और बेजान पड़ी है। यही वजह है कि केन्द्र सरकार ने यमुना को निर्मल बनाने व नदी के किनारों को आकर्षक बनाने के लिये 1600 करोड़ की परियोजनाओं को स्वीकृति दी है पर दिल्ली सरकार उस पर तेजी से अमल नहीं कर पा रही है। फिलहाल स्थिति यह है कि दिल्ली सरकार के जल बोर्ड की नाकामी के कारण यमुना में 270 एमजीडी सीवेज बगैर शोधन के गिराया जा रहा है। इस वजह से वजीराबाद से ओखला तक यमुना मैली पड़ी है। इस हिस्से को ही स्वच्छ बनाकर नदी के किनारे को आकर्षक बनाया जाना है।
07 मई, 2016 को केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने दिल्ली सरकार के साथ मिलकर यमुना एक्शन प्लान के तीसरे चरण के तहत 800 करोड़ की छह परियोजनाएँ शुरू की। इसके तहत आईटीओ के पास ट्रैश स्कीमर मशीन से यमुना की सफाई कर ठोस कचरा निकाला गया। 10 दिनों बाद यह मशीन दोबारा यमुना में कभी नहीं दिखी। रिठाला में 80 एमजीडी क्षमता वाले सीवरेज शोधन संयंत्र का नवीनीकरण 2020 तक पूरा कर लेने का दिल्ली सरकार दावा कर रही है। इसके अलावा 800 करोड़ की लागत से छोटे नालों के गन्दे पानी को शोधित किया जाना है। ताकि नालों का गन्दा पानी न पहुँचने पाए।
छह योजनाएँ जो शुरू की गईं, वे इस प्रकार हैं ट्रैश स्कीमर से यमुना की सफाई, रिठाला सीवरेज शोधन संयंत्र का नवीनीकरण, अशोक विहार व जहाँगीरपुरी इलाके की सीवर लाइनों का जीर्णोद्धार, ट्रंक सीवर लाइन नम्बर-4, नरवाना रोड, आनंद विहार, हरगोविंद एनक्लेव और विकास मार्ग की सावर लाइन का जीर्णोद्धार, ट्रंक सीवर लाइन-5 व झिलमिल कॉलोनी की सीवर लाइन का जीर्णोद्धार व आईटीओ छठ घाट का विकास।
प्रदूषण के साथ सरयू हुई अतिक्रमण की भी शिकार
बढ़ती आबादी और शहरीकरण के दबाव में अयोध्या-फैजाबाद के 10 किलोमीटर लम्बे तट पर सरयू में दर्जन से अधिक नाले गिरते हैं। गोलाघाट, ऋणमोचनघाट एवं राजघाट जैसे स्नान घाट भी नालों के अतिक्रमण से बचे नहीं रह सके हैं। ऐसा नहीं है कि सरयू के प्रदूषण की अनदेखी हुई है। महंत नृत्यगोपालदास से लेकर अयोध्या तीर्थ विवेचनी सभा के अध्यक्ष राजकुमार दास जैसे कई संत सरयू को प्रदूषण से बचाने की आवाज बनकर सामने आये। संतों ने इस समस्या की ओर बार-बार सरकार का भी ध्यान आकृष्ट कराया है। उसी के फलस्वरूप प्रदेश की योगी सरकार ने 36 करोड़ की राशि स्वीकृत की है। इस राशि से सरयू से जुड़ते नाले-नालियों को मोड़कर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से जोड़े जाने की योजना है। महापौर ऋषिकेश उपाध्याय के अनुसार इस योजना पर अमल के लिये सर्वे चल रहा है और अगले कुछ माह में काम भी शुरू हो जाएगा।
गंगा से भी बदहाल है पुनपुन, सोन, गंडक जैसी सहायक नदियाँ
पुनपुन और सोन का भी पानी घटता जा रहा है। छोटे शहरों व कस्बों से बिना ट्रीटमेंट के ही गन्दा पानी इन सहायक नदियों में बहाया जा रहा है। पटना विश्वविद्यालय के पूर्व प्राचार्य व जल विशेषज्ञ प्रो. बीके मिश्रा बताते हैं कि कीटनाशकों का खूब उपयोग हो रहा है। वर्षा जल के माध्यम से यह सहायक नदियों से होता हुआ गंगा नदी तक पहुँच जाता है।
गंगा के लिये नमामि गंगे परियोजना चल रही है, जबकि, छोटी नदियों के लिये कोई परियोजना नहीं है। गंगा नदी की सफाई के लिये कुछ समय पूर्व ट्रैश स्कीमर मशीन लगाई गई है। पटना नगर निगम ने घोषणा की है कि गंगा में गिरने वाले गन्दे पानी को स्वच्छ करने के लिये पाँच जगहों पर सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाया जाएगा। 1050 करोड़ की लागत से नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत पटना को छह जोन में बाँटकर निर्मल गंगा के लिये योजनाएँ शुरू की गई हैं।
गंगा पर प्रदूषण का बोझ
शहरी सीवेज
97 शहरों से लगभग 2953 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रतिदिन) सीवेज गंगा में गिरता है जबकि ट्रीटमेंट करने की क्षमता सिर्फ 1584 एमएलडी की है। 155 नाले भी गंगा में गिर रहे हैं।
औद्योगिक प्रदूषण
गंगा नदी के किनारे 1109 प्रदूषणकारी उद्योग 669 एमएलडी औद्योगिक अपशिष्ट गंगा में गिरा रहे हैं। इनमें चीनी उद्योग, डिस्टलरी, पल्प एंड पेपर और टेनरियाँ प्रमुख हैं।
खुले में शौच
2011 की जनगणना के अनुसार गंगा किनारे के पाँच राज्यों में लगभग 33.64 लाख परिवारों में शौचालय नहीं था। हालाँकि स्वच्छ भारत योजना के तहत इस स्थिति में बदलाव आया है। साथ ही गंगा किनारे की ग्राम पंचायतों को खुले में शौच से मुक्त भी किया गया है।
खाद का प्रयोग
गंगा बेसिन के 11 राज्यों में हर साल लगभग एक करोड़ टन रासायनिक खाद का इस्तेमाल होता है जो देश में इस्तेमाल होने वाले रासायनिक खाद का 45 प्रतिशत है। इसके चलते नाइट्रोजन और फास्फोरस गंगा नदी में प्रवाहित हो रहे हैं।
ठोस कचरा
गंगा किनारे स्थित शहरों से हर दिन लगभग 14 हजार मीट्रिक टन ठोस कचरा निकलता है।
यह है औद्योगिक प्रदूषण का हाल (जून 2018)
1. 1109 प्रदूषणकारी उद्योग हैं गंगा किनारे।
2. 221 उद्योग हो चुके हैं बन्द।
3. 350 उद्योग कर रहे नियमों का पालन।
4. 538 उद्योग नहीं कर रहे नियमों का अनुपालन।
कैसे हो गंगा सफाई जब सरकार एसटीपी नहीं बना पाई
1. 97 शहर व कस्बे हैं गंगा किनारे।
2. 2953 एमएलडी सीवेज निकलता है इन शहरों से।
3. 1584 एमएलडी सीवेज ट्रीट करने की है सुविधा।
यह है एसटीपी का हाल
1. 84 एसटीपी गंगा किनारे 46 शहरों में।
2. 31 एसटीपी बन्द पड़े हैं।
3. 14 एसटीपी का परिचालन सतोषजनक नहीं।
4. 39 एसटीपी ही कर रहे हैं काम।
खराब 45 एसटीपी के लिये योजना
1. 12 एसटीपी को अपग्रेड किया जा रहा है।
2. 8 एसटीपी को वन सिटी वन अॉपरेटर के दायरे में लाया जा रहा है।
3. 23 एसटीपी को अपग्रेड करने के लिये टेंडर जारी किया जा रहा है।
3. 2 एसटीपी को खत्म कर उनकी जगह नये एसटीपी प्लान किये जा रहे हैं।
नमामि गंगे की प्रगति रिपोर्ट (जून 2018 तक) |
|||
क्रम |
परियोजना |
संख्या |
लागत (करोड़ रुपए में) |
1. |
सीवेज इंफ्रास्ट्रक्चर (गंगा पर 95 व सहायक नदियों पर 10) |
105 |
17485 |
2. |
बायोरेडिएशन |
8 |
27 |
3. |
मॉड्यूलर एसटीपी |
20 |
410 |
4. |
ग्रामीण स्वच्छता (गंगा किनारे 4465 गाँव) |
1 |
1426 |
5. |
औद्योगिक प्रदूषण की रोकथाम |
9 |
885 |
6. |
रिवर फ्रंट डेवलपमेंट |
2 |
270 |
7 . |
घाट और क्रीमेटोरिया (पुराने) |
24 |
204 |
8. |
घाट और क्रीमेटोरिया (नये) |
37 |
721 |
9. |
घाट सफाई |
3 |
43 |
10. |
रिवर सरफेस क्लीनिंग |
1 |
55 |
11. |
बॉयोडायवर्सिटी |
4 |
31 |
12. |
वृक्षारोपण |
15 |
200 |
13. |
संस्थागत विकास |
5 |
182 |
14. |
परियोजना क्रियान्वयन एवं शोध |
4 |
126 |
15. |
कम्पोजिट इकोलॉजिकल टास्क फोर्स |
2 |
167 |
कुल परियोजनाएँ |
240 |
22,238 |
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