नैनीताल:नलों से घरों में पहुँचा पानी

नलों से घरों में पहुँचा पानी
नलों से घरों में पहुँचा पानी

1899 की शुरूआत में नैनीताल वाटर वर्क्स का काम शुरु हुआ। अप्रैल 1899 में पानी का पंप हाउस काम करने लग गया। इसके साथ ही नलों द्वारा घरों में पानी पहुँचने की शुरुआत हो गई। पंप हाउस में कई स्रोतों से पानी लिया जाता था। भाप से संचालित पंपों द्वारा नगर की ऊँची पहाड़ियों में बनी विशालकाय टंकियों तक पानी पहुँचाया जाता था। टंकियों से प्राकृतिक बहाव के जरिये नलों से घरों तक पानी पहुँचता था। भाप संचालित पंपों द्वारा पीने के पानी की इस योजना की लागत दो लाख 47 हजार रुपये थी। इस योजना को 'नैनीताल वाटर वर्क्स' कहा गया। इसका काम सरकारी एजेंसी ने किया। इसी वर्ष नैनीताल में 'काल्विन क्रिकेट क्लब' बना और यहाँ फुटबाल प्रतियोगिता भी शुरु हुई। 1899 में नैना पीक से गिरे बोल्डर ओकपार्क तक आ गए। अयारपाटा की पहाड़ी में 'डायमण्ड जुबली स्कूल' खुला। इसी साल मनोरा में संक्रामक रोगियों के लिए अस्पताल बना।

6 मार्च, 1900 को सरकार ने एक शासनादेश जारी कर नैनीताल में भविष्य में सरकार की स्वीकृति के बाद ही जमीनों की लीज देने का आदेश दिया गया। नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस एण्ड अवध सरकार ने 21 अप्रैल, 1900 को जारी शासनादेश संख्या 1557 W/2357 द्वारा नैनीताल के प्राइवेट नालों, सड़क किनारे की नालियों तथा गटर को छोड़कर नगर के सभी बाकी नालों की मरम्मत और देख-रेख के लिए पी.डब्ल्यू.डी. को सालाना पाँच हजार रुपये देने के आदेश जारी किए गए।

6 सितंबर, 1900 को सरकार के मुख्य सचिव की ओर से सचिव जे.ओ. मिलर ने कुमाऊँ के कमिश्नर को पत्र भेजा। पत्र में कहा गया कि नैनीताल ग्रीष्मकालीन राजधानी है। यहाँ सेना और सिविल के उच्चाधिकारी रहते हैं। मैदानी क्षेत्रों से सैलानी यहाँ आते हैं। यहाँ सरकार से जुड़े सरकारी अफसरों, लिपिक वर्ग तथा वॉलंटियर के क्लब हैं। नैनीताल का फ्लैट्स खेल गतिविधियों द्वारा मनोरंजन प्राप्त करने के साथ एक आकर्षण का केन्द्र भी है। लिहाजा लेफ्टिनेंट गवर्नर सर एंटोनी पेट्रिक मैकडॉनल चाहते हैं कि नगर पालिका फ्लैट्स के प्रबंधन एवं उपयोग के लिए नियम बनाए। इसके लिए सरकार ने फ्लैट्स के उपयोग एवं प्रबंधन के लिए नियमों एवं शर्तों का एक प्रारूप बनाकर भेजा था। इस मामले में 11 सितंबर, 1900 को नगर पालिका ने बैठक की। बैठक में लेफ्टिनेंट गवर्नर की इच्छा को ध्यान में रखते हुए फ्लैट्स प्रबंधन के लिए नियम बना दिए गए। जिन्हें 'रूल फॉर द मैनेजमेंट ऑफ द फ्लैट्स' कहा गया।

इन नियमों के तहत फ्लैट्स तथा टेनिस कोर्ट के प्रबंधन के लिए जिमखाना कमेटी बनाई गई। जिसमें कम से कम सात और अधिकतम 15 सदस्य बनाए गए। इनमें 10 सदस्य नैनीताल क्लब से चुने जाने थे। डिप्टी कमिश्नर, नैनीताल, लेफ्टिनेंट जनरल, बंगाल आर्मी तथा एडजुटेंट, वालंटियर क्लब द्वारा मनोनीत अधिकारी सदस्य बनाए गए। कमिश्नर, कुमाऊँ को जिमखाना कमेटी का मध्यस्थ बनाया गया। तय किया गया कि जिमखाना कमेटी नगर पालिका को प्रतिवर्ष एक हजार रुपये किराया देगी। यह धनराशि टेनिस कोर्ट तथा फ्लैट्स की मरम्मत तथा रख-रखाव में खर्च की जाएगी। जिमखाना कमेटी फ्लैट्स को उपयोग करने वाले क्लबों से फीस के रूप में एक हजार रुपये जमा करेगी। जिमखाना कमेटी को प्रतिवर्ष एक हजार रुपये से अधिक धनराशि वसूलने का अधिकार नहीं था।

नियम बना कि असेम्बली रुम्स तथा अयारपाटा पहाड़ी की ओर बने चार टेनिस कोर्ट को छोड़कर सप्ताह में तीन दिन अंधेरा होने तक फ्लैट्स पोलो खेलने के लिए आरक्षित रहेगा। सप्ताह में एक दिन अपरान्ह साढे पाँच बजे से पूर्व तक फ्लैट्स क्रिकेट के लिए आरक्षित रहेगा। सप्ताह में दो दिन अंधेरा होने तक टेनिस कोर्ट के अलावा पूरा फ्लैट्स हॉकी, फुटबाल और पोलो को छोड़कर अन्य खेलों के लिए आरक्षित रहेगा। महीने में दो दिन और 'रानीखेत वीक' तथा 'नैनीताल वीक' के दौरान अपरान्ह साढे पाँच बजे तक टेनिस कोर्ट छोड़कर संपूर्ण फ्लैट्स जिमखाना कमेटी के हवाले रहेगा।

फ्लैट्स के उपयोग के इन नए नियमों को लेकर लोगों में नाराजगी थी। व्यापार एसोसिएशन तथा स्कूल प्रबंधन नई जिमखाना कमेटी में प्रतिनिधित्व चाहते थे। इस नीति के विरोध में सी.डब्ल्यू, वर्डसवर्थ तथा 58 अन्य लोगों ने लेफ्टिनेंट गवर्नर को सामूहिक याचिका भी भेजी। नगर पालिका का खुद भी मानना था कि नव गठित 'जिमखाना कमेटी' और पहले से ही मौजूद जिमखाना क्लब' में भ्रम उत्पन्न हो रहा है। पर लेफ्टिनेंट गवर्नर ने किसी की नहीं सुनी। 21 सितंबर, 1900 को लेफ्टिनेंट गवर्नर ने फ्लैट्स के प्रबंधन के लिए बने नए नियमों को अंतिम तौर पर स्वीकृति दे दी थी।

यात्रियों की सुविधा के लिए गोरखा लाइन (वर्तमान जी.आई.सी.) के समीप एक यात्रीगृह बना था। इसका नाम 'रामपुर सराय था। आधी सराय हिन्दू और आधी मुसलमान यात्रियों के लिए आरक्षित रहती थी। यात्री गृह के बड़े कमरों में आठ और छोटे कमरों में चार लोगों के ठहरने की व्यवस्था थी। यात्री तीन दिन तक सराय में रूक सकते थे।

स्रोत-नैनीताल एक धरोहर

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