निर्मल गंगा के लिये गाद का उपचार है जरूरी

कानपुर में सूखती गंगा नदी
कानपुर में सूखती गंगा नदी

कानपुर में सूखती गंगा नदी (फोटो साभार - स्क्रॉल)विशेषज्ञों की राय है कि जब तक गंगा या किसी अन्य नदी से गाद निकालने का काम सही तरीके से नहीं किया जाता तब तक नदियों का जल निर्मल नहीं होगा। उनका मानना है कि सतही सफाई से किसी भी नदी के जल की गुणवत्ता में सुधार की सम्भावना नगण्य रह जाती है।

गंगा नदी में गाद जमा होने के कारणों पर यदि विचार किया जाये तो प्राकृतिक रूप से बाढ़ के दौरान लाई गई मिट्टी के अलावा गंगा के किनारे बसे शहरों से निकले मलजल और कचरे का बहाव आदि प्रमुख हैं। शहरों से निकले मलजल को साफ कर नदी में डालने के लिये नमामि गंगे परियोजना के तहत एक वृहत योजना बनाई गई है। इस योजना को लेकर काम भी आरम्भ हो चुका है लेकिन इसका अपेक्षित परिणाम मिलना अभी बाकी है। सरकार द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार इस योजना को वर्ष 2020 तक पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

वैज्ञानिक इस बात को लेकर भी चिन्तित हैं कि गंगाजल की गुणवत्ता में तेजी से ह्रास हो रहा है। उनका मानना है कि पिछले 20 वर्षों में नदी जल की गुणवत्ता में 60 फीसदी तक की कमी हुई है। कई वैज्ञानिकों द्वारा किये गए परीक्षण से यह साबित हो चुका है कि अपने उद्गम स्थल से कानपुर पहुँचते-पहुँचते गंगाजल की गुणवत्ता लगभग समाप्त हो जाती है। वे कहते हैं कि गंगाजल की गुणवत्ता इतनी गिर गई है कि वह हरिद्वार में भी आचमन के लायक भी नहीं रह गई है।

गंगा की सफाई को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (national green tribunal) कई बार आदेश जारी कर चुका है। एनजीटी ने अपने एक फैसले में यह निर्देशित किया था कि गंगा तट से 100 मीटर तक के क्षेत्र को ‘‘नो डेवलपमेंट जोन’’ घोषित किया जाना चाहिए और 500 मीटर के दायरे में कचरा फेंकने पर 50 हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान लागू होना चाहिए। इन निर्देशों को भी अभी सख्ती से लागू किया जाना बाकी है। उदाहरणस्वरुप धर्म नगरी हरिद्वार में ही गंगा के किनारे बने कई विशालकाय धार्मिक मठ, आश्रम व धर्मशालाओं से निकला गन्दा पानी सीधे गंगा नदी में गिराया जा रहा है।

विशेषज्ञों की माने तो समय रहते यदि कदम नहीं उठाए गए तो सरस्वती नदी की ही तरह गंगा भी केवल इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगी। गंगा और उसकी सहायक नदियों पर उत्तराखण्ड में पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण के लिये बाँध बनाने की होड़ लगी हुई है। जिसका प्रतिफल यह है कि गंगा और उसकी सहायक नदियों के पानी का एक बड़ा हिस्सा उनके उद्गम स्थल पर ही बाँधों के जरिए रोक लिया जाता है। इतना ही नहीं हरिद्वार में गंगा के पानी के एक बड़े हिस्से को गंगा से निकलने वाली नहर में मोड़ दिया जाता है जिसके कारण आगे के मैदानी इलाकों में नदी में पानी की मात्रा में काफी कमी आ जाती है। गंगा की अविरलता में आ रही इसी गिरावट के मद्देनजर प्रसिद्ध पर्यावरणविद प्रोफेसर जी डी अग्रवाल उर्फ स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद 112 दिनों तक धर्मनगरी हरिद्वार में ही अनशनरत रहे और हृदयगति रुक जाने से उनका निधन हो गया। उनकी माँगें थीं, गंगा पर प्रस्तावित और निर्माणाधीन सभी पनबिजली परियोजनाओं पर रोक, गंगा एक्ट को सरकार द्वारा अविलम्ब रूप से संसद में पास कराया जाना आदि। परन्तु उनके निधन के एक महीने से भी ज्यादा वक्त गुजर जाने के बाद भी सरकार ने उनकी माँगों पर कोई ध्यान नहीं दिया है।

मालूम हो कि गंगा विश्व की दस सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है जबकि देश के राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग शोध संस्थान (नीरी) ने भी माना है कि गंगा नदी के जल में औषधीय गुण मौजूद हैं। इस संस्थान के अनुसार गंगाजल की इस विशेषता को वैज्ञानिक आधार पर भी सिद्ध किया जा चुका है। विशेषज्ञों का कहना है कि ब्रिटेन की टेम्स और यूरोप के कई देशों से होकर बहने वाली डेन्यूब नदी को जब साफ किया जा सकता है तो गंगा को क्यों नहीं? गंगा केवल एक नदी नहीं बल्कि भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर है। इतना ही नहीं देश के करोड़ों-अरबों लोगों की आस्था की प्रतीक यह नदी उत्तर भारतीयों लोगों को जीवनयापन करने का साधन भी उपलब्ध कराती है।

देश में दिनों-दिन पानी की बढ़ती समस्या और नदियों की गिरती स्थिति को ध्यान में रखते हुए यहाँ उपलब्ध सभी जल संसाधनों को राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित करते हुए एक व्यापक जल नीति बनाने की माँग लम्बे समय से उठती आ रही है। ऐसी खबरें आ रही हैं कि सरकार ने इस दिशा में कदम उठाना शुरू कर दिया है। भूजल संरक्षण के लिये भी एक व्यापक नीति बनाने पर विचार किया जा रहा है। इसके अलावा गंगा संरक्षण के उद्देश्य से भी केन्द्र सरकार एक विशेष कानून लाने पर विचार कर रही है। खबर है कि इस कानून का मसौदा भी तैयार हो चुका है जिसे कानूनी जामा पहनाने के लिये जल्द ही संसद में पेश किया जाएगा। इस कानून के तहत गंगा की रक्षा के लिये एक विशेष पुलिस बल के साथ ही गंगा प्राधिकरण के गठन किये जाने की भी योजना है।

पिछले दिनों पत्रकारों से बातचीत करते हुए केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री नितिन गडकरी ने बताया कि नमामि गंगे का मतलब मात्र गंगा नदी नहीं है। इसमें पूरे नदी तंत्र को शामिल किया गया है जिसमें यमुना सहित 40 छोटी-बड़ी नदियाँ और नाले शामिल हैं। उन्होंने कहा कि केवल यमुना नदी में ही 34 परियोजनाओं पर काम हो रहा है जिसमें से 12 दिल्ली में हैं। उनके द्वारा दिये गए विवरण के अनुसार गंगा नदी तंत्र में सुधार के लिये कुल 250 परियोजनाएँ चिन्हित की गई हैं जिनमें से 47 पूरी हो चुकी हैं। दिल्ली के अतिरिक्त मथुरा, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, साहेबगंज के साथ ही बंगाल में कई योजनाओं पर काम जारी हो चुका है। इन प्रोजेक्ट्स के तहत मुख्यतः ठोस के साथ ही तरल अपशिष्ठ का भी प्रबन्धन किया जा रहा है। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार गंगा में गन्दगी की मुख्य वजह कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी और दिल्ली आदि शहरों से निकलने वाला कचरा है। इनमें से सबसे ज्यादा कचरा कानपुर शहर से निकलता है।

गंगा में वाराणसी से हल्दिया तक 1680 किलोमीटर लम्बा जलमार्ग बनाया जा रहा है जिसमें चार मल्टी मॉडल हब होंगे। मल्टी मॉडल हब से मतलब है कि वे रोड, राष्ट्रीय राजमार्ग, जलमार्ग और रेलवे से जुड़े होंगे। इन मल्टी मॉडल हब का निर्माण वाराणसी, गाजीपुर, साहेबगंज और हल्दिया में किया जा रहा है जिनमें 50 से 60 रिवर पोर्ट होंगे। इसके अलावा एयर ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम की तर्ज पर पटना तक वाटर ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम भी बनाया जा रहा है।

 

 

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