गंगा सभा हरिद्वार के तीर्थ पुरोहितों की संस्था है। इसकी स्थापना 1916 में महामना मदन मोहन मालवीय ने की थी। गंग नहर के निर्माण के दौरान ब्रिटिश सरकार गंगा पर जो बाँध बना रही थी, उसके कारण हर की पौड़ी से गंगा की धारा की बजाय नहर प्रवाहित होने की बात सामने आई। हिन्दू यह नहीं चाहते थे। उनका कहना था कि उनकी धार्मिक आस्था का सम्मान हो और हर की पौड़ी से गंगा की मूल धारा प्रवाहित हो। इसके लिए मालवीय जी की अगुआई में वृहद आंदोलन हुआ और सरकार को उसके सामने झुकना पड़ा। तत्पश्चात मालवीय जी के सुझाव पर श्री गंगा सभा की स्थापना की गई। हरिद्वार के तीर्थ रूप की रक्षा तथा हर की पौड़ी के प्रबन्धन का दायित्व पुरोहितों की इस संस्था के जिम्मे है। वे तीर्थ की परम्पराओं का निर्वाह करते हैं, धार्मिक कार्यों में तीर्थ यात्रियों की सहायता करते हैं और अन्य प्रकार से उनकी सहायता तथा उनके हितों की रक्षा करते हैं। धार्मिक मेलों, विशेषकर कुम्भ-अर्धकुम्भ पर्वों के आयोजन में प्रशासन अन्य सामाजिक संस्थाओं के साथ गंगा सभा से भी परामर्श करता है। गंगा सभा के अध्यक्ष ‘गाँधीवादी पुरुषोत्तम शर्मा’ से ‘शिव शंकर जायसवाल’ ने गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के अभियान को लेकर यह बातचीत की है :-
गंगाजल तो पवित्र था, है और रहेगा। हम ही उसे अपवित्र कर रहे हैं। शुरुआत 1935 में, हरिद्वार में सीवरलाइन डालते समय अंग्रेजों ने की। उन्होंने शहर का मल-जल गंगा में डाल दिया। उसके बाद जो सरकारें आईं, उन्होंने भी यह क्रम जारी रखा। आज जो कल-कारखाने हैं, अपनी सारी गन्दगी गंगा में बहाकर उसे जहरीला बना रहे हैं।
राजीव गाँधी ने 1985 में बड़े काम की शुरुआत अच्छी मंशा से की थी। गंगा प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड बना। करोड़ों रुपए का अनुदान स्वीकृत हुआ। लेकिन वर्षों की कोशिश के बाद भी गंगा की दशा में ज्यादा परिवर्तन नहीं आया। योजनाएँ आधे-अधूरे रूप में लागू की गईं। जगजीतपुर में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता 100 एमएलडी है, जबकि होनी चाहिए 100 एमएलडी। इसके कारण गन्दा पानी गंगा में छोड़ना पड़ता है। दूसरी बात, योजना के क्रियान्वयन में जन सहभागिता अत्यन्त आवश्यक है। सरकार यह सुनिश्चित करने में असफल रही। बाकी काम सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार ने पूरा कर दिया।
नरेन्द्र मोदी की नीयत और उनकी प्रतिबद्धता की वजह से इस सरकार से बहुत उम्मीदें हैं। गंगा के प्रति उनका लगाव है। वाराणसी में उन्होंने जो कहा, वह लोगों के मन को छू गया: ‘माँ गंगा ने मुझे बुलाया है,’ उन्होंने कहा था। चुनाव के बाद वहाँ गए और गंगा आरती की। सरकार गंगा से सम्बन्धित योजनाएँ बनाते हुए सन्त, बुद्धिजीवी, वैज्ञानिक, पर्यावरणविद सहित समाजसेवी संस्थाओं आदि सबसे बात कर रही है। इसमें उसकी निष्ठा और ईमानदारी झलकती है और विश्वास जगता है कि सही काम होगा। इससे जनता की भागीदारी भी सुनिश्चित होगी। पूर्ववर्ती सरकार ने भी गंगा बेसिन अथॉरिटी बनाई, गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई। मोदी सरकार उन गलतियों से बचेगी जिनके कारण ऐसा हुआ, यह उम्मीद की जा सकती है। साध्वी उमा भारती को गंगा का जिम्मा सौंपा गया है। इससे भी बहुत उम्मीद बँधती है। वे गंगा प्रेमी हैं और ऊर्जावान हैं। दिल्ली के विज्ञान भवन में समाज के सभी वर्गों को बुलाकर गंगा पर जिस प्रकार चिन्तन हुआ, उससे उनकी सोच का संकेत मिलता है।
क्यों नहीं? मालवीय जी ने इसकी स्थापना के बाद सुबह-शाम गंगा की आरती करने का निर्देश दिया था। तब से शुरू हुआ क्रम निर्बाध चल रहा है। हम मानते हैं कि गंगा के प्रति पूज्य भाव जगाना उसकी पवित्रता को बनाये रखने के लिए अत्यन्त आवश्यक है। हरिद्वार की गंगा आरती में वर्ष में पूरे देश से करोड़ों लोग भाग लेते हैं। 2011 में हमने आरती के बाद उनसे गंगा को पवित्र रखने का संकल्प करवाने का क्रम आरम्भ किया। इसे बहुत पसन्द किया गाय। संसद की समिति, उमा भारती, हमारे राज्यपाल आदि सबने इसे देखा और इसकी प्रशंसा की। कहा गया कि करोड़ों रुपए खर्च करके सरकार जो जनजागरण नहीं कर पाती, गंगा सभा वह काम बड़े सहज और प्रभावी ढँग से कर रही है। गत नवम्बर माह में लगभग 30 विद्यालयों के 7 से अधिक विद्यार्थियों को निबन्ध-लेखन और चित्रांकन प्रतियोगिताएँ के माध्यम से गंगा से जोड़ने तथा उसके सम्बन्ध में जागरूक बनाने की कोशिश भी गंगा सभा के मंच से हुई। निर्मल गंगा, अविरल गंगा हमारा संकल्प है।
गंगा के जल को पवित्र मानकर हम उसका आचमन करते हैं। लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार वह पीने क्या, नहाने लायक भी नहीं रह गया है। आपका क्या कहना है?
गंगाजल तो पवित्र था, है और रहेगा। हम ही उसे अपवित्र कर रहे हैं। शुरुआत 1935 में, हरिद्वार में सीवरलाइन डालते समय अंग्रेजों ने की। उन्होंने शहर का मल-जल गंगा में डाल दिया। उसके बाद जो सरकारें आईं, उन्होंने भी यह क्रम जारी रखा। आज जो कल-कारखाने हैं, अपनी सारी गन्दगी गंगा में बहाकर उसे जहरीला बना रहे हैं।
कांग्रेस सरकार में राजीव गाँधी का ध्यान तो गंगा के प्रदूषण की ओर गया था?
राजीव गाँधी ने 1985 में बड़े काम की शुरुआत अच्छी मंशा से की थी। गंगा प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड बना। करोड़ों रुपए का अनुदान स्वीकृत हुआ। लेकिन वर्षों की कोशिश के बाद भी गंगा की दशा में ज्यादा परिवर्तन नहीं आया। योजनाएँ आधे-अधूरे रूप में लागू की गईं। जगजीतपुर में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता 100 एमएलडी है, जबकि होनी चाहिए 100 एमएलडी। इसके कारण गन्दा पानी गंगा में छोड़ना पड़ता है। दूसरी बात, योजना के क्रियान्वयन में जन सहभागिता अत्यन्त आवश्यक है। सरकार यह सुनिश्चित करने में असफल रही। बाकी काम सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार ने पूरा कर दिया।
नई सरकार से क्या उम्मीद है? इस सिलसिले में क्या वह कुछ कर पाएगी?
नरेन्द्र मोदी की नीयत और उनकी प्रतिबद्धता की वजह से इस सरकार से बहुत उम्मीदें हैं। गंगा के प्रति उनका लगाव है। वाराणसी में उन्होंने जो कहा, वह लोगों के मन को छू गया: ‘माँ गंगा ने मुझे बुलाया है,’ उन्होंने कहा था। चुनाव के बाद वहाँ गए और गंगा आरती की। सरकार गंगा से सम्बन्धित योजनाएँ बनाते हुए सन्त, बुद्धिजीवी, वैज्ञानिक, पर्यावरणविद सहित समाजसेवी संस्थाओं आदि सबसे बात कर रही है। इसमें उसकी निष्ठा और ईमानदारी झलकती है और विश्वास जगता है कि सही काम होगा। इससे जनता की भागीदारी भी सुनिश्चित होगी। पूर्ववर्ती सरकार ने भी गंगा बेसिन अथॉरिटी बनाई, गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई। मोदी सरकार उन गलतियों से बचेगी जिनके कारण ऐसा हुआ, यह उम्मीद की जा सकती है। साध्वी उमा भारती को गंगा का जिम्मा सौंपा गया है। इससे भी बहुत उम्मीद बँधती है। वे गंगा प्रेमी हैं और ऊर्जावान हैं। दिल्ली के विज्ञान भवन में समाज के सभी वर्गों को बुलाकर गंगा पर जिस प्रकार चिन्तन हुआ, उससे उनकी सोच का संकेत मिलता है।
श्री गंगा सभा की स्थापना गंगा तथा इस तीर्थ की मर्यादा की रक्षा के लिए हुई। क्या गंगा की निर्मलता के लिए संस्था कुछ करती है?
क्यों नहीं? मालवीय जी ने इसकी स्थापना के बाद सुबह-शाम गंगा की आरती करने का निर्देश दिया था। तब से शुरू हुआ क्रम निर्बाध चल रहा है। हम मानते हैं कि गंगा के प्रति पूज्य भाव जगाना उसकी पवित्रता को बनाये रखने के लिए अत्यन्त आवश्यक है। हरिद्वार की गंगा आरती में वर्ष में पूरे देश से करोड़ों लोग भाग लेते हैं। 2011 में हमने आरती के बाद उनसे गंगा को पवित्र रखने का संकल्प करवाने का क्रम आरम्भ किया। इसे बहुत पसन्द किया गाय। संसद की समिति, उमा भारती, हमारे राज्यपाल आदि सबने इसे देखा और इसकी प्रशंसा की। कहा गया कि करोड़ों रुपए खर्च करके सरकार जो जनजागरण नहीं कर पाती, गंगा सभा वह काम बड़े सहज और प्रभावी ढँग से कर रही है। गत नवम्बर माह में लगभग 30 विद्यालयों के 7 से अधिक विद्यार्थियों को निबन्ध-लेखन और चित्रांकन प्रतियोगिताएँ के माध्यम से गंगा से जोड़ने तथा उसके सम्बन्ध में जागरूक बनाने की कोशिश भी गंगा सभा के मंच से हुई। निर्मल गंगा, अविरल गंगा हमारा संकल्प है।
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