निखरेगा गाँव तो बढ़ेगा देश

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गाँवों की खुशहाली के रास्ते ही सरकार ने देश की तरक्की का सपना देखा है। इसी को हकीकत में बदलने के लिये केंद्र की राजग सरकार का पूरा जोर ग्रामीण विकास पर है। सरकार के प्राथमिकताओं के केंद्र में गाँव, गरीब और किसान हैं। ग्रामीण विकास के लिये गाँवों की बुनियादी सुविधाओं को मजबूत बनाने की जरूरत पर जोर दिया जा रहा है।

. सरकार की प्राथमिकताओं के केंद्र में गाँव, गरीब और किसान हैं। ग्रामीण विकास के लिये गाँवों की बुनियादी सुविधाओं को मजबूत बनाने की जरूरत पर जोर है। इसी के मद्देनजर आम बजट में ग्रामीण विकास की योजनाओं पर फोकस है। ग्रामीण विकास की चुनौतियों में ग्रामीण बुनियादी ढाँचा, कनेक्टिविटी, ग्रामीण बेरोजगारों को रोजगार, आवास और गरीबों को रियायती अनाज मुहैया कराना प्रमुख हैं। इनसे निपटने के लिये केंद्र सरकार ने ढेर सारी योजनाएँ शुरू की हैं, जिनके क्रियान्वयन का दायित्व और सफलता राज्यों पर निर्भर है। गरीबों के सिर पर उनकी अपनी छत, यानी पक्का मकान, रोजी-रोटी की न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने के साधन और सस्ता अनाज मुहैया कराने वाली योजनाओं का असर ग्रामीण क्षेत्रों में दिखाई देने लगा है। हर गाँव को पक्की सड़क से जोड़ने वाली योजना ने ग्रामीण विकास को रफ्तार दी है। आवागमन के साथ लोगों से हर समय जुड़े रहने के लिये मोबाइल फोन की सुविधा में शहर और गाँव के भेद को मिटा दिया है। हालाँकि स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार की अभी बहुत जरूरत महसूस की जा रही है। नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति इस दिशा में एक सार्थक प्रयास है।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ खेती व बागवानी जैसे उपक्रम में सुधार की योजनाएँ जरूर शुरू की गई हैं। लेकिन लागत के मुकाबले उपज का उचित मूल्य न मिलने की वजह से घाटे की खेती को उबारना अभी बाकी है। यद्यपि केंद्र सरकार ने इसे प्रभावी व लाभप्रद बनाने की दिशा में कई योजनाएँ शुरू की हैं, जिसका असर किसानों तक पहुँचाने में राज्य सरकारों की भूमिका बहुत मायने रखती है।

गाँव के लोगों को पूर्ण स्वच्छता के प्रति जागरुक बनाने का व्यापक अभियान शुरू किया गया है। गाँवों को पूर्ण रूप से खुले में शौचमुक्त बनाने की दिशा में प्रयास तेज कर दिए हैं। कचरा प्रबंधन के लिये योजनाएँ शुरू की गई हैं। हालाँकि पेयजल आपूर्ति की हालत अभी बहुत खराब है। केवल 53 फीसदी गाँवों में ही पाइप से जलापूर्ति हो रही है। बाकी क्षेत्रों में लोग हैंडपंप और खुली बावड़ी का पानी पीने को मजबूर हैं। लगभग 70 हजार गाँवों के लोग जहरीला भूजल पीने को मजबूर हैं। यहाँ आर्सेनिक व फ्लोराइड-युक्त पानी पी रहे हैं। इनमें सबसे ज्यादा खराब हालत पश्चिम बंगाल और राजस्थान के गाँवों की है। इसके लिये केंद्र सरकार ने 25 हजार करोड़ रुपये की लागत से एक राष्ट्रीय गुणवत्तायुक्त जलापूर्ति उपमिशन शुरू किया है। खुले में शौचमुक्त गाँव और शुद्ध पेयजल आपूर्ति हो जाने से गाँवों में कुपोषण, संक्रामक बीमारियाँ और गरीबी उन्मूलन में मदद मिलेगी। इससे गाँव दुरुस्त व तंदुरुस्त हो सकेंगे।

रोजगार की गारंटी देने वाली मनरेगा


ग्रामीण क्षेत्रों की सूरत बदलने में मनरेगा की भूमिका को कोई नकार नहीं सकता है। भारत में गरीबी हटाने की सबसे बड़ी योजना के रूप में इसे देखा जाता है। महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के मार्फत ग्रामीण बेरोजगारों को उनके ही गाँव में कम से कम एक सौ दिनों के रोजगार मिलने की गारंटी है। वर्ष 2005 में ग्रामीण बेरोजगारों की सामाजिक सुरक्षा, काम का कानूनी अधिकार वाला एक श्रम कानून बनकर तैयार हुआ, जिसका लाभ हर जरूरतमंद उठा सकता है। मनरेगा के तहत हर साल 30 लाख से अधिक निर्माण कार्य होता है, इसके चलते पिछले 10 सालों में 2.82 करोड़ स्थायी संपत्तियाँ बनायी जा सकी हैं। इनमें से एक करोड़ की जियो टैगिंग भी हो चुकी हैं। मनरेगा में कराए जाने वाले कच्चे काम को लेकर सवालिया निशान लगाए जाते रहे हैं।

मनरेगा चालू वित्तवर्ष 2017-18 के आम बजट में मनरेगा के मद में 48 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। जबकि पिछले आम बजट में 36,997 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था जिसे बाद में संशोधित अनुमान में बढ़ाया गया था। उल्लेखनीय है कि मनरेगा से तकरीबन पाँच करोड़ ग्रामीण बेरोजगारों को सालाना रोजगार मिलता है। गाँव के लोगों का पलायन रुका है। छोटी जोत के किसानों को इसके चलते अतिरिक्त आय के लिये अब शहरों की ओर नहीं भागना पड़ता है। मनरेगा के जरिये हुए काम से कृषि व जल संरक्षण के साथ ग्रामीण कनेक्टिविटी बढ़ी है। सरकार का पूरा ध्यान ग्रामीण विकास, लोगों की रोजी-रोटी और गाँव की अर्थव्यवस्था पर है। योजना के तहत लोगों को साल में एक सौ दिन का गारंटीशुदा रोजगार उनके ही गाँव में देने का प्रावधान है। लेकिन औसतन 34 दिन से अधिक काम नहींं मिल पाता है। आपदाकाल के दौरान मनरेगा काफी मददगार साबित होती रही है। भ्रष्टाचार व अनियमितताओं की घटनाओं पर अंकुश के लिये सरकार ने कई तरह की निगरानी प्रणाली शुरू की हैं। उपग्रह से हो रही कार्यों की सीधी निगरानी, कार्यों की जियो टैगिंग और सोशल आॅडिट जैसी व्यवस्था की गई है। मनरेगा में 95 फीसदी मजदूरी का भुगतान सीधे मजदूरों के बैंक खातों में किया जा रहा है। मात्र पाँच फीसदी कठिन क्षेत्रों में भुगतान नकदी होता है। आधार नंबर से खातों को जोड़ देने से अब तक 92 लाख फर्जी जॉब कार्ड पकड़े गए हैं। कुल 15 करोड़ लोगों के जॉब कार्ड बनाए जा चुके हैं। इनमें से पाँच करोड़ मजदूर ही नियमित रूप से काम माँगते हैं।

पीएमजीएसवाई


ग्रामीण विकास को रफ्तार देने में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की भूमिका अहम रही है। इसके बगैर ग्रामीण विकास की कल्पना संभव नहीं है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के समय में शुरू हुई वर्ष 2000 में यह योजना इस कदर लोकप्रिय हुई कि पीएमजीएसवाई की सड़कों का जाल पूरे देश में बिछ गया। वर्तमान सरकार की प्राथमिकताओं में भी पीएमजीएसवाई शामिल है। बेहद कठिन परिस्थितियों वाले नक्सल-प्रभावित क्षेत्रों तक में कंक्रीट सड़कें बनाई जा रही हैं। पीएमजीएसवाई का दूसरा चरण बेहद प्रभावी साबित हुआ है। गाँवों को वृहद नेटवर्क से जोड़ने वाली पीएमजीएसवाई के मद में पिछले 15 सालों में लगभग डेढ़ लाख करोड़ रुपये खर्च हुए। इस लागत से कोई 4.66 लाख किमी लंबी सड़कों का निर्माण और उन्नयन किया गया। गाँवों को पक्की सड़कों से जोड़ने वाली इस योजना में सबसे आगे रहकर बाजी मारने वाले राज्यों में मध्य प्रदेश ने लगभग 64 हजार किमी सड़कें बनाई हैं। जबकि राजस्थान दूसरे स्थान पर है।

पीएमजीएसवाई की सफलता की कहानी के बीच कई मर्तबा भ्रष्टाचार व अनियमितताओं की शिकायतें मिलती रही हैं। तभी तो प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को संसद में इस योजना की गंभीर समीक्षा और तुलनात्मक अध्ययन करने की अपील करनी पड़ी है। इन ग्रामीण सड़कों की क्वालिटी पर विशेष ध्यान दिया गया है, साथ ही इन सड़कों के रख-रखाव के लिये पाँच साल का जिम्मा सड़क बनाने वाली एजेंसी को ही दिया जाता है। सड़कों की क्वालिटी की निगरानी के लिये तीन-स्तरीय प्रणाली तैयार की गई है, जो जिला, राज्य और केंद्रीय स्तर पर गठित की गई है। इन सड़कों की क्वालिटी की निगरानी में स्थानीय सांसद को खासा महत्त्व दिया गया है।

पहले पाँच सौ की आबादी वाले गाँवों को पक्की सड़क से जोड़ने की योजना अब ढाई सौ की आबादी तक जोड़ चुकी है। रेगिस्तानी और पर्वतीय राज्यों के साथ नक्सल-प्रभावित जिलों को इसमें शुमार करते हुए हर छोटी बसावट को भी जोड़ा जा रहा है। पूरे बारह साल के बाद पीएमजीएसवाई का पहला चरण पूरा हो गया है। लेकिन इन सड़कों के साथ अन्य ग्रामीण सड़कों के खस्ताहाल को देखते हुए इसके दूसरे चरण की शुरुआत मई 2013 में की गई। लेकिन इसमें उन्हीं राज्यों को हिस्सा लेने का मौका दिया गया, जिन्होंने पहले चरण को पूरा कर लिया था। पीएमजीएसवाई के दूसरे चरण में कुल 50 हजार किमी की लंबाई की सड़कों को बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। योजना के दूसरे चरण में केंद्र व राज्यों के बीच 75 और 25 फीसदी का अनुपात रखा गया।

रुर्बन मिशन


स्मार्ट शहर बनाने की तर्ज पर स्मार्ट गाँव बनाने के लिये सरकार का रुर्बन मिशन चल रहा है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन को सरकार ने काफी, जोर-शोर सो शुरू किया है। इसमें गाँवों को शहरों जैसी सुविधाएँ मुहैया कराने पर जोर होगा। इसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों का बुनियादी ढ़ाँचा मजबूत बनाने के साथ वहाँ के लोगों के रोजगार के लिये आर्थिक गतिविधियाँ शुरू की जाएँगी। आगामी तीन सालों के भीतर देश के 300 समूह (क्लस्टर) बनाए जाएँगे, जिनके ऊपर 5200 करोड़ रुपये सरकार खर्च करेगी। यह मिशन पूर्व में चल रही गाँवों को शहरों जैसी सुविधा (पुरा) वाली योजना का स्थान लेगा।

रुर्बन (रूरल-अर्बन) मिशन के तहत 2019-20 तक देश के 300 क्लस्टरों का विकास किया जाएगा। इसके पहले चरण में एक सौ क्लस्टरों को बनाए जाने की योजना है। प्रत्येक क्लस्टर में 25 से 50 गाँवों को रखा जाएगा। यह मिशन मैदानी क्षेत्रों के साथ पर्वतीय क्षेत्रों में समान रूप में लागू होगा, लेकिन दोनों के लिये मानक अलग बनाए गए हैं। इसमें निजी क्षेत्रों की भी मदद ली जाएगी, जो वहाँ की बुनियादी सुविधाएँ मुहैया कराने में आगे आएँगे।

कौशल विकास, डिजिटल साक्षरता, स्वास्थ्य के लिये मोबाइल वाहन, गाँवों को सड़कों से जोड़ने जैसी योजनाओं की भूमिका अहम होगी। सरकारी योजनाओं को जरूरत के हिसाब से बदलकर विकास की गति को तेज किया जा सकता है। बाकी किसी तरह की योजना के लिये धन की कमी को मिशन के फंड से पूरा किया जाएगा। ब्लाॅक व तहसील के ही गाँवों को एक समूह में रखा जाएगा। योजनाओं के संचालन का दायित्व पूरी तरह राज्य सरकारों पर होगा। लेकिन रुर्बन मिशन राज्य सरकारों के उदासीन रवैये से त्रिशंकु की स्थिति में है। देश के तमाम ऐसे गाँव हैं, जो न कस्बे की श्रेणी में आते हैं और न ही ग्रामसभा की सीमा में समाते हैं, वे अपने विकास के लिये त्रिशंकु बने हुए हैं। उनके विकास के लिये यह मिशन सहायक साबित हो सकता है लेकिन राज्य सरकारों की मंशा के बगैर इसकी सफलता संदिग्ध है।

ग्रामीण भारत: बदलाव की ओर


 

एक करोड़ मनरेगा परिसंपत्तियां भू-चिन्हित

 

महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम ने एक करोड़ परिसंपत्तियों को भू-चिन्हिंत करते हुए एक नई उपलब्धि हासिल की है। वित्तीय वर्ष 2006-07 में प्रारंभ हुए इस कार्यक्रम के अंतर्गत अब तक करीब 2.82 करोड़ रुपये मूल्य की परिसंपत्तियां सृजित की जा चुकी हैं। इसके अंतर्गत हर वर्ष अौसतन करीब 30 लाख परिसंपत्तियों का निर्माण किया जाता है, जिनमें अनेक कार्य शामिल होते हैं, जैसे, जल-संरक्षण ढाँचों का निर्माण, वृक्षारोपण, ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं का सृजन, बाढ़ नियंत्रण के उपाय, स्थायी आजीविका के लिये व्यक्तिगत परिसंपत्तियों का निर्माण, सामुदायिक ढाँचा और ऐसी ही अन्य, परिसंपत्तियां शामिल होती हैं। मनरेगा परिसंपत्तियों को भू-चिन्हित यानी जियोटैग करने की प्रक्रिया जारी है और इस कार्यक्रम के अंतर्गत सृजित सभी परिसंपत्तियां जियोटैग की जाएंगी। राष्ट्रीय प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन कार्यों, विशेष रूप से जल संबंधी कार्यों को भू-चिन्हित यानी जियोटैग करने पर विशेष ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। जिओ-मनरेगा ग्रामीण विकास मंत्रालय का एक बेजोड़ प्रयास है, जिसे राष्ट्रीय दूरसंवेदी केंद्र (एनआरएससी), इसरो और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र के सहयोग से अंजाम दिया जा रहा है। इसके लिये ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 24 जून, 2016 को एनआरएससी के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये थे। इसके अंतर्गत प्रत्येक ग्राम पंचायत के अंतर्गत सृजित परिसंपत्तियों को जिओ-टैग किया जाना है। इस समझौते के फलस्वरूप राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान और पंचायती राज संस्थान की सहायता से देशभर में 2.76 लाख क्रर्मिकों को प्रशिक्षण प्रदान किया गया। उम्मीद की जा रही है कि भू-चिन्हित करने की प्रक्रिया से फील्ड पर जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सकेगी।

 

 

 

प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) मकान से घर तक

 

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 20 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमए-जी) का शुभारंभ किया था। नई ग्रामीण आवास योजना को परिवारों की जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये तैयार किया गया है। यह योजना स्थायी सामग्री और स्थानीय घरों के डिजाइनों को उपयोग करके घरों का निर्माण करने की अनुमति देती है। इन घरों में खाना पकाने के क्षेत्र, शौचालय, एलपीजी कनेक्शन और जल की आपूर्ति समन्वय के माध्यम से होगी। इसके अलावा लाभार्थी अपनी जरूरत के मुताबिक अपने घरों की योजना बना सकते हैं। लाभार्थियों का चयन बेघर या कच्ची छत वाले एक या दो कच्चे कमरों में रहने वाले लोगों की सामाजिक, आर्थिक जनगणना (एसईसीसी) के डाटा का उपयोग करके एक कठोर प्रक्रिया के माध्यम से किया गया है। इसमें किसी प्रकार के त्रुटियों का समावेश न हो, यह सुनिश्चित करने के लिये अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी मान्यता के आधार पर ग्रामसभा द्वारा एसईसीसी डाटा को विधिमान्य किया गया है। वर्ष 2016-17 के लिये कुल मिलाकर 44 लाख घरों को मंजूरी दी गई थी और ग्रामीण विकास मंत्रालय दिसंबर 2017 तक इन घरों का निर्माण करने के लिये कड़ी मेहनत कर रहा है। पीएमए-जी में 6 से 12 महीनों की कार्य समापन अवधि का पालन किया जा रहा है। पीएमएवाई के तहत वर्ष 2022 तक लाभार्थियों का चयन प्राथमिकता के आधार पर पारदर्शी तरीके से किया गया है। त्रि-स्तरीय चयन में यह सुनिश्चित किया है कि केवल वास्तविक रूप से गरीब, बेघर और टूटे-फूटे घरों में रहने वाले लोगों का ही चयन किया जाय। ग्रामीण विकास विभाग वर्ष 2017-18 में 51 लाख मकानों को पूरा करने की योजना बना रहा है। वर्ष 2017-18 में 33 लाख अतिरिक्त मकान मंजूर किये जायेंगे। वर्ष 2018-19 में इतनी ही संख्या मकान पूरा करने का प्रस्ताव है। इस प्रकार वर्ष 2016-19 की अवधि के दौरान 1.35 करोड़ मकानों का निर्माण पूरा हो जाएगा। इससे वर्ष 2022 तक ‘सभी को घर’ उपलब्ध कराने का मार्ग प्रशस्त होगा।

 

 

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत रिकॉर्ड सड़क निर्माण


वित्तीय वर्ष 2016-17 में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत रिकॉर्ड 47,350 किमी सड़क का निर्माण किया गया। पिछले सात वर्षों में किसी एक वर्ष में पीएमजीएसवाई के तहत सड़क निर्माण में यह सबसे अधिक है। पीएमजीएसवाई के तहत वित्तीय वर्ष 2013-14 में 25,316 किमी. 2014-15 में 36,337 किमी. तथा 2015-16 में 36,449 किमी सड़क का निर्माण किया गया। 2011 से 2014 के दौरान पीएमजीएसवाई के तहत औसत 73 किमी. सड़क प्रतिदिन बन रही थी जो 2014-15 और 2015-16 में बढ़कर 100 किमी. प्रतिदिन हो गई। 2016-17 में यह दर बढ़कर 130 किमी. प्रतिदिन हो गई जो अब पिछले सात वर्षों में औसत वार्षिक निर्माण दर में सबसे ज्यादा है। 2016-17 में पीएमजीएसवाई के तहत निर्मित 47,350 किमी सड़क से 11,614 बस्तियों (प्रतिदिन औसतन 32 बस्तियों से संपर्क प्रदान किया गया) का सड़क मार्ग से संपर्क स्थापित हो गया है। पीएमजीएसवाई को तहत पिछले सात वर्षों में सबसे ज्यादा बस्तियों को सड़क मार्ग से जोड़ा गया है। ग्रामीण सड़कों के निर्माण में ‘कार्बन निशान’ को कम करने के लिये, पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिये, काम में वृद्धि और लागत प्रभावशीलता लाने के लिये पीएमजीएसवाई के तहत सड़कों के निर्माण में हरित प्रौद्योगिकी और गैर-परपंरागत सामग्री जैसे बेकार प्लास्टिक, कोल्ड मिक्स, जियो-टेक्सटाइल्स, फ्लाई ऐश, लौह और ताम्र स्लैग आदि के इस्तेमाल पर ध्यान केंद्रित किया गया क्योंकि यह स्थानीय रूप से उपलब्ध थी। हरित प्रौद्योगिकी के तहत 2016-17 में 4113.13 किमी. पीएमजीएसवाई सड़क का निर्माण किया गया। जबकि 2014-16 में 2634.02 किमी. और 2000-2014 तक में 806.93 किमी का लक्ष्य हासिल किया गया।

(लेखक ग्रामीण विकास, कृषि व खाद्य व उपभोक्ता मामलों के विशेषज्ञ हैं और वर्तमान में दैनिक जागरण में डिप्टी चीफ अॉफ नेशनल ब्यूरो हैं।)
ई-मेल : surendra64@gmail.com


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