नई सोच और तकनीक से रोका गिरता भूजल स्तर

हर व्यक्ति को हर रोज 145 लीटर पानी चाहिए। खेती के लिए और भी ज्यादा पानी चाहिए। अभी मिल भी रहा है। लेकिन कब तक? क्योंकि जमीन का पानी धीरे-धीरे सूख रहा है। बरसात के दिन घट रहे हैं। संकेत साफ है। अगर आज से ही पानी बचाना शुरु करेंगे तो निश्चित ही कल सूखा नहीं रहेगा। दैनिक भास्कर अपने पाठकों के जरिए जल सत्याग्रह अभियान में जुटा है ऐसे जल सैनिकों के जज्बे और जुनून को आगे बढ़ाने में। विश्व जल दिवस के मौके पर आइए मिलते हैं इनसे। खेती के तौर तरीके हों या रोजमर्रा के काम। कैसे छोटी-छोटी आदतों में बदलाव लाकर अपने क्षेत्रों को जल संकट से उबार सकते हैं, पढ़िए कुछ ग्राउंड रिपोर्ट..

कम पानी की खपत वाली फसलें उगाने के बारे में बता रहे किसानों को, धान का रकबा घटाकर बचाया जा रहा है हजारों लीटर पानी। जालंधर और आसपास के किसानों ने नई तकनीक से गिरते भूजल की रफ्तार को कम कर दिया है। हर साल यहां लगभग 30 सेंटीमीटर की रफ्तार से पानी का स्तर नीचे जा रहा था। अब यह 22 सेंटीमीटर ही रह गया है। भूजल स्तर गिरने के पीछे मुख्य वजह धान की फसल है। खेती विशेषज्ञ डॉ. नरेश गुलाटी बताते हैं कि एक किलो चावल उगाने में हजार लीटर पानी लगता है। इसीलिए किसानों को कम पानी खपत करने वाली बासमती, मक्का तथा बागवानी की जानकारी दी गई। इससे तीन साल में भूजल स्तर गिरने की दर आठ सेंटीमीटर सालाना घट गई। चावल की अगेती किस्म की बिजाई रोकने से भी पानी की खासी बचत हुई। जालंधर के मुख्य खेतीबाड़ी अधिकारी परमजीत सिंह संधू बताते हैं कि 2009 में सब सॉयल वॉटर प्रिवेंशन एक्ट लागू किया गया। इससे अगेती धान की बिजाई रोक दी गई। जिससे दो माह तक भूजल दोहन रोकने में कामयाब रहे। बागवानी विशेषज्ञ डॉ. दलजीत सिंह बताते हैं कि किसानों को ड्रिप इरिगेशन के लिए प्रेरित किया गया। इसके लिए किसानों को 75% तक सब्सिडी दी गई।

किसानों को पारंपरिक तरीके से सिंचाई की बजाय लेजर लेवलर से खेत को समतल करना सिखाया गया। इससे पानी की फालतू खपत नहीं होती। दूसरी इसके साथ ही किसानों को पारंपरिक तरीके से खेत तैयार करने की बजाय ड्रिलिंग तकनीक से सीधे गेहूं व बासमती की बुआई के लिए प्रेरित किया गया।

खेतों में लेजर लेवलर (भूमि समतल करने की मशीन) का उपयोग हो रहा है। जिससे पानी की बेवजह खपत रुक गई है।

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