अक्सर यह देखा जाता है कि जब मॉनसून का मौसम आता है किसान एक ओर तो प्रसन्नता जाहिर करते हैं लेकिन उनके मन में मॉनसून फेल होने का डर भी बना रहता है। उनकी उम्मीद और आशाएं भगवान पर टिकी होती हैं। पर, धान की प्रमुखता से खेती करने वाले कई किसानों के मन से यह भय खत्म हो गया है। वे अब परंपरागत रूप से धान की खेती से दूर हट कर आधुनिक व वैज्ञानिक विधि से धान की खेती कर रहे हैं।
श्रीविधि व हाइब्रीड बीजों का इस्तेमाल भी वे बखूबी करते हैं। झारखंड बिहार के कई ऐसे किसान हैं जो धान का बेहतरीन उत्पादन कर रहे हैं साथ ही विश्व रिकार्ड भी बना रहे हैं। अपना पड़ोसी देश चीन अब भारत को इन कारणों से प्रतिद्वंदी मान रहा है। पंचायतनामा के इस अंक में उन किसानों की कहानी समाहित की गई है, जिन्होंने धान की खेती को फायदे का पेशा बना लिया है।
बिहार के नालंदा जिले का एक गांव है - दरवेशपुरा। इस गांव के किसान हैं सुमंत कुमार। वह पेशे से खेतिहर है। सुमंत धान की खेती प्रमुखता से करते हैं। धान उत्पादन के क्षेत्र में उन्होंने जो विश्व रिकार्ड बनाया इससे आम लोग ही नहीं बल्कि कृषि वैज्ञानिकों की टीम भी अचंभित है। जिस तरह से धान की पैदावार कर उन्होंने विश्व रिकार्ड बनाया है, उससे न सिर्फ बिहार का वरन भारत का भी नाम पूरी दुनिया में चावल उत्पादन को लेकर रोशन हुआ है। धान उत्पादन में विश्व रिकार्ड बनाने वाले सुमंत के दरवाजे पर आज देश के कृषि वैज्ञानिक उनके काम करने के तरीकों के बारे में जानकारी हासिल करने आते हैं। सुमंत के अनुसार उन्हें जमीन से मिलने वाले उत्पादन का पहले किसी तरह की जानकारी नहीं थी। लेकिन वैज्ञानिकों से लिए गए सुझावों पर उन्होंने भली-भांति अमल किया और धान उत्पादन करने वाले किसानों की श्रेणी में सबसे आगे खड़े हुए।
सुमंत ने कृषि वैज्ञानिकों की बताई तकनीक का पूरी तरह से पालन किया। वैज्ञानिकों की तकनीक को उन्होंने बारीकी से समझा। उन्हें लगा कि खेती की पूरी विशेषज्ञता हासिल किए इन पढ़े-लिखे लोगों की बात जरूर खास होगी। इस धारणा के साथ उन्होंने खेती करना प्रारंभ किया। जब वैज्ञानिकों ने गांव के किसानों को यह जानकारी दी कि वे श्रीविधि से धान का उत्पादन करायेंगे तो यह बड़ा अजब लगा। लेकिन जब वैज्ञानिकों से बीजों की तैयारी, बुआई और सिंचाई के पारंपरिक तरीके से अलग तरह की खेती की पद्धति की जानकारी इन्हें मिली तो किसानों में एक नई उम्मीद जगी थी। यह श्रीविधि तकनीक थी।
वैज्ञानिकों ने इस विधि में पौध के रोपण, बीज की तैयारी, पौधे की उम्र और सिंचाई का तरीकों के साथ कृषि करने के तरीकों की जानकारी दी गई। इस किसान ने श्रीविधि तकनीक का उपयोग किया और वैज्ञानिकों की निरंतर सलाह लेते रहे। अच्छी पैदावार हुई है या नहीं इसका पता लगाने के लिए जब फसल तौली गई तब सुमंत के आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहा। बिहार सरकार के एक कृषि वैज्ञानिक ने पैदावार को तौल कर इसकी पुष्टि की और फिर क्या था, नालंदा के सुमंत विश्व पर छा गए। सुमंत ने श्रीविधि का इस्तेमाल करते हुए खाद का इस्तेमाल भी सोच-समझ कर वैज्ञानिकों के सलाह पर ही किया। उन्होंने हरी खाद और जैविक खाद का प्रयोग किया।
किसान परिवार से जुड़े सुमंत के गांव में खेती को लेकर किसानों में हमेशा प्रतिस्पर्धा रही है। नया तकनीक का इस्तेमाल और नया रिकार्ड स्थापित करने के लिए हमेशा किसानों के बीच नए प्रयोग होते रहते हैं। और इस बहाने देश-विदेश से कृषि वैज्ञानिकों का इस गांव आना जाना लगा रहता है। सुमंत की धान उत्पादन में सफलता से अब पूरे इलाके के किसान उनसे जानकारी लेने आते हैं।
वर्ष 2010 में क्षेत्र के तीन किसानों ने श्रीविधि तकनीक से धान की खेती प्रारंभ की थी। यह संख्या 2011 में बढ़ कर 13 हो गई और अब पूरे इलाके में इस विधि का उपयोग कर बेहतर खेती करने की दिशा में काम किया जा रहा है। उपज तो दुगुनी होती ही है, इस तकनीक का इस्तेमाल दूसरी फसलों के लिए भी किया जा रहा है।
रांची जिले के ओरमांझी प्रखंड के कुच्चू गांव के किसान बालक महतो झारखंड में बेहतरीन कृषि करने और नई तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए जाना जाता है। राज्य की राजधानी रांची स्थित प्रसिद्ध कृषि संस्थान बिरसा कृषि विश्वविद्यालय तथा पलांडू स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के क्षेत्रीय केंद्र के अधिकतर वैज्ञानिकों के मध्य बालक महतो अपनी खेती के कारण मशहूर हैं।
संस्थान की ओर से किसान बालक महतो को कृषि के छात्रों को संबोधित करने और कृषि संबंधी अनुभवों को साझा करने के लिए निमंत्रण दिया जाता है। बालक खेती के आधुनिक तरीकों के इस्तेमाल कई वर्षों से करते आ रहे हैं। उनके नए प्रयोग दूसरे किसानों के लिए भी मददगार है। अपने खेतों में धान के उत्पादन को बढ़ाने के लिए इस किसान ने जिन तरीकों का प्रयोग कर सफलता प्राप्त किया है, वह सराहनीय है साथ ही अनुकरणीय भी है।
उत्पादन बढ़ाने के लिए उन्होंने पिछले वर्ष धान की खेती के आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल करते हुए बिना बिचड़ा तैयार किए और खेतों में बिना पूरा पानी भरे सिर्फ नमी युक्त भूमि में धान की खेती की थी। परंपरागत विधि से दूर नई तकनीक के कारण उनके खेतों में भरपूर मात्रा में फसल हुई।
इसके बाद उन्होंने खेत के चारों कोने व बीच के हिस्से से एक वर्ग मीटर क्षेत्रफल भाग के धान की कटाई कर उसका औसत वजन निकाला। इससे उन्हें परंपरागत तथा श्रीविधि तकनीक के बीच प्रति एकड़ भूमि में धान उत्पादन को लेकर जानकारी हासिल हो सकी। उन्होंने डीआरएस (डायरेक्ट राइस सोइंग) विधि से भी धान की खेती की है। बालक महतो ने जिस प्रकार से पिछले वर्षों में इस तकनीक का इस्तेमाल कर धान की खेती है, उसमें धान के पौधे का घनत्व सामान्य खेतों के अलावा श्रीविधि से लगाए गए धान की फसल से भी अधिक है। उनके अनुसार श्रीविधि में 10 से 12 दिन फसल को पानी नहीं मिलने पर बरबाद होने लगता है। लेकिन इस तकनीक में समय की तीन गुणा अधिक बचत होती है।
खेतों को खाद के संतुलित उपयोग के बारे में वह बताते हैं कि प्रति एकड़ 50 किलोग्राम डीएपी व पोटाश डालना ही सही होता है। वह अपने धान के खेत में प्रति एकड़ 35 किलोग्राम डीएपी व 15 किलोग्राम पोटाश मिलाकर डालते हैं। खरपतवार नियंत्रण के लिए वह टोपस्टार दवा का इस्तेमाल प्रति एकड़ 45 ग्राम की मात्रा में करते हैं। कृषि के आधुनिक उपकरणों से लैस बालक धान की खेती, सब्जी की भी खेती करते हैं। सिंचाई के लिए ड्रिप इरीगेशन और स्प्रिंकलन का इस्तेमाल करते हैं। धान की उन्नत खेती का श्रेय वह नई तकनीक को देते हैं।
रांची जिले के ओरमांझी प्रखंड के कुच्चू के मदन महतो मुख्य रूप से धान की खेती करते हैं। एक समय मदन पहले परंपरागत तरीकों से धान की खेती करते थे। लेकिन समय के साथ उन्होंने खेती की नई तकनीक को अपनाया। उन्होंने महसूस किया कि अगर खेती को फायदे का धंधा बनाना है तो नई तकनीक अपनाना ही होगा। श्रीविधि के माध्यम से धान की खेती कर उन्होंने पाया कि धान का उत्पादन बढ़ा है। इससे उनका उत्साह काफी बढ़ गया। वे करीब दो-ढाई एकड़ भूमि में ही खेती करते हैं, लेकिन इससे उन्हें अच्छी आय होती है। उनके अनुमान के अनुसार, एक एकड़ में 30-35 किवंटल धान का उत्पादन हो जाता है। अब मदन हाइब्रीड धान बीज का इस्तेमाल करते हैं।
पिछले वर्ष इस क्षेत्र में पानी की कमी के कारण धान की पैदावार कम हुई थी। इस कारण उन्होंने कम अवधि वाला धान लगाया था। श्रीविधि तकनीक का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने बीज की कई किस्म जैसे ललाट, आइआर 64, आइआर 37 आदि धान बीज का इस्तेमाल किया था। उनके अनुसार धान की खेती पूरी तरह से पानी पर निर्भर है। लेकिन वह पानी की कमी पर भी उसी के अनुसार बीज का चयन कर धान की ही खेती करने को प्रमुखता देते हैं। ताकि उत्पादन बढ़ सके।
खूंटी जिले के कर्रा प्रखंड के गोविंदपुर की शांति हेम्ब्रोम अपनी छह एकड़ भूमि में धान की खेती करती हैं। वह नई और पुरानी दोनों तकनीक का इस्तेमाल धान की खेती के लिए करती हैं। उन्होंने अपनी मेहनत से एक महिला किसान के रूप में राज्य के कृषि क्षेत्र में पहचान बनाई है। सीढ़ीनुमा खेत होने के कारण अब उन्हें श्रीविधि तकनीक फायदेमंद लगती है। उनकी कोशिश है कि अब श्रीविधि तकनीक का इस्तेमाल करते हुए देशी बीज से धान उत्पादन किया जाए।
उनके अनुसार एक एकड़ भूमि में लगभग 40 क्विंटल धान का उत्पादन हो जाता है। शांति हाइब्रीड बीजों का इस्तेमाल अधिक करती हैं और खाद का संतुलित प्रयोग कर अच्छा उत्पादन प्राप्त कर रही हैं। इस क्षेत्र के किसान खाद का इस्तेमाल अनुभव के आधार पर करते हैं, क्योंकि मिट्टी का परीक्षण नहीं किया जा सका है। किसान परंपरागत तरीकों को छोड़ कर खेती की नई विधि अपना रहे हैं।
श्रीविधि व हाइब्रीड बीजों का इस्तेमाल भी वे बखूबी करते हैं। झारखंड बिहार के कई ऐसे किसान हैं जो धान का बेहतरीन उत्पादन कर रहे हैं साथ ही विश्व रिकार्ड भी बना रहे हैं। अपना पड़ोसी देश चीन अब भारत को इन कारणों से प्रतिद्वंदी मान रहा है। पंचायतनामा के इस अंक में उन किसानों की कहानी समाहित की गई है, जिन्होंने धान की खेती को फायदे का पेशा बना लिया है।
श्रीविधि तकनीक का किया इस्तेमाल, धान की पैदावार में बनाया विश्व रिकार्ड
बिहार के नालंदा जिले का एक गांव है - दरवेशपुरा। इस गांव के किसान हैं सुमंत कुमार। वह पेशे से खेतिहर है। सुमंत धान की खेती प्रमुखता से करते हैं। धान उत्पादन के क्षेत्र में उन्होंने जो विश्व रिकार्ड बनाया इससे आम लोग ही नहीं बल्कि कृषि वैज्ञानिकों की टीम भी अचंभित है। जिस तरह से धान की पैदावार कर उन्होंने विश्व रिकार्ड बनाया है, उससे न सिर्फ बिहार का वरन भारत का भी नाम पूरी दुनिया में चावल उत्पादन को लेकर रोशन हुआ है। धान उत्पादन में विश्व रिकार्ड बनाने वाले सुमंत के दरवाजे पर आज देश के कृषि वैज्ञानिक उनके काम करने के तरीकों के बारे में जानकारी हासिल करने आते हैं। सुमंत के अनुसार उन्हें जमीन से मिलने वाले उत्पादन का पहले किसी तरह की जानकारी नहीं थी। लेकिन वैज्ञानिकों से लिए गए सुझावों पर उन्होंने भली-भांति अमल किया और धान उत्पादन करने वाले किसानों की श्रेणी में सबसे आगे खड़े हुए।
सुमंत ने कृषि वैज्ञानिकों की बताई तकनीक का पूरी तरह से पालन किया। वैज्ञानिकों की तकनीक को उन्होंने बारीकी से समझा। उन्हें लगा कि खेती की पूरी विशेषज्ञता हासिल किए इन पढ़े-लिखे लोगों की बात जरूर खास होगी। इस धारणा के साथ उन्होंने खेती करना प्रारंभ किया। जब वैज्ञानिकों ने गांव के किसानों को यह जानकारी दी कि वे श्रीविधि से धान का उत्पादन करायेंगे तो यह बड़ा अजब लगा। लेकिन जब वैज्ञानिकों से बीजों की तैयारी, बुआई और सिंचाई के पारंपरिक तरीके से अलग तरह की खेती की पद्धति की जानकारी इन्हें मिली तो किसानों में एक नई उम्मीद जगी थी। यह श्रीविधि तकनीक थी।
वैज्ञानिकों ने इस विधि में पौध के रोपण, बीज की तैयारी, पौधे की उम्र और सिंचाई का तरीकों के साथ कृषि करने के तरीकों की जानकारी दी गई। इस किसान ने श्रीविधि तकनीक का उपयोग किया और वैज्ञानिकों की निरंतर सलाह लेते रहे। अच्छी पैदावार हुई है या नहीं इसका पता लगाने के लिए जब फसल तौली गई तब सुमंत के आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहा। बिहार सरकार के एक कृषि वैज्ञानिक ने पैदावार को तौल कर इसकी पुष्टि की और फिर क्या था, नालंदा के सुमंत विश्व पर छा गए। सुमंत ने श्रीविधि का इस्तेमाल करते हुए खाद का इस्तेमाल भी सोच-समझ कर वैज्ञानिकों के सलाह पर ही किया। उन्होंने हरी खाद और जैविक खाद का प्रयोग किया।
किसान परिवार से जुड़े सुमंत के गांव में खेती को लेकर किसानों में हमेशा प्रतिस्पर्धा रही है। नया तकनीक का इस्तेमाल और नया रिकार्ड स्थापित करने के लिए हमेशा किसानों के बीच नए प्रयोग होते रहते हैं। और इस बहाने देश-विदेश से कृषि वैज्ञानिकों का इस गांव आना जाना लगा रहता है। सुमंत की धान उत्पादन में सफलता से अब पूरे इलाके के किसान उनसे जानकारी लेने आते हैं।
वर्ष 2010 में क्षेत्र के तीन किसानों ने श्रीविधि तकनीक से धान की खेती प्रारंभ की थी। यह संख्या 2011 में बढ़ कर 13 हो गई और अब पूरे इलाके में इस विधि का उपयोग कर बेहतर खेती करने की दिशा में काम किया जा रहा है। उपज तो दुगुनी होती ही है, इस तकनीक का इस्तेमाल दूसरी फसलों के लिए भी किया जा रहा है।
श्रीविधि और डायरेक्ट राइस सोइंग तकनीक के इस्तेमाल से फसल उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि
रांची जिले के ओरमांझी प्रखंड के कुच्चू गांव के किसान बालक महतो झारखंड में बेहतरीन कृषि करने और नई तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए जाना जाता है। राज्य की राजधानी रांची स्थित प्रसिद्ध कृषि संस्थान बिरसा कृषि विश्वविद्यालय तथा पलांडू स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के क्षेत्रीय केंद्र के अधिकतर वैज्ञानिकों के मध्य बालक महतो अपनी खेती के कारण मशहूर हैं।
संस्थान की ओर से किसान बालक महतो को कृषि के छात्रों को संबोधित करने और कृषि संबंधी अनुभवों को साझा करने के लिए निमंत्रण दिया जाता है। बालक खेती के आधुनिक तरीकों के इस्तेमाल कई वर्षों से करते आ रहे हैं। उनके नए प्रयोग दूसरे किसानों के लिए भी मददगार है। अपने खेतों में धान के उत्पादन को बढ़ाने के लिए इस किसान ने जिन तरीकों का प्रयोग कर सफलता प्राप्त किया है, वह सराहनीय है साथ ही अनुकरणीय भी है।
उत्पादन बढ़ाने के लिए उन्होंने पिछले वर्ष धान की खेती के आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल करते हुए बिना बिचड़ा तैयार किए और खेतों में बिना पूरा पानी भरे सिर्फ नमी युक्त भूमि में धान की खेती की थी। परंपरागत विधि से दूर नई तकनीक के कारण उनके खेतों में भरपूर मात्रा में फसल हुई।
इसके बाद उन्होंने खेत के चारों कोने व बीच के हिस्से से एक वर्ग मीटर क्षेत्रफल भाग के धान की कटाई कर उसका औसत वजन निकाला। इससे उन्हें परंपरागत तथा श्रीविधि तकनीक के बीच प्रति एकड़ भूमि में धान उत्पादन को लेकर जानकारी हासिल हो सकी। उन्होंने डीआरएस (डायरेक्ट राइस सोइंग) विधि से भी धान की खेती की है। बालक महतो ने जिस प्रकार से पिछले वर्षों में इस तकनीक का इस्तेमाल कर धान की खेती है, उसमें धान के पौधे का घनत्व सामान्य खेतों के अलावा श्रीविधि से लगाए गए धान की फसल से भी अधिक है। उनके अनुसार श्रीविधि में 10 से 12 दिन फसल को पानी नहीं मिलने पर बरबाद होने लगता है। लेकिन इस तकनीक में समय की तीन गुणा अधिक बचत होती है।
खेतों को खाद के संतुलित उपयोग के बारे में वह बताते हैं कि प्रति एकड़ 50 किलोग्राम डीएपी व पोटाश डालना ही सही होता है। वह अपने धान के खेत में प्रति एकड़ 35 किलोग्राम डीएपी व 15 किलोग्राम पोटाश मिलाकर डालते हैं। खरपतवार नियंत्रण के लिए वह टोपस्टार दवा का इस्तेमाल प्रति एकड़ 45 ग्राम की मात्रा में करते हैं। कृषि के आधुनिक उपकरणों से लैस बालक धान की खेती, सब्जी की भी खेती करते हैं। सिंचाई के लिए ड्रिप इरीगेशन और स्प्रिंकलन का इस्तेमाल करते हैं। धान की उन्नत खेती का श्रेय वह नई तकनीक को देते हैं।
श्रीविधि अपना कर बढ़ाई धान की उपज, कम रकबे से भी करते हैं अच्छी कमाई
रांची जिले के ओरमांझी प्रखंड के कुच्चू के मदन महतो मुख्य रूप से धान की खेती करते हैं। एक समय मदन पहले परंपरागत तरीकों से धान की खेती करते थे। लेकिन समय के साथ उन्होंने खेती की नई तकनीक को अपनाया। उन्होंने महसूस किया कि अगर खेती को फायदे का धंधा बनाना है तो नई तकनीक अपनाना ही होगा। श्रीविधि के माध्यम से धान की खेती कर उन्होंने पाया कि धान का उत्पादन बढ़ा है। इससे उनका उत्साह काफी बढ़ गया। वे करीब दो-ढाई एकड़ भूमि में ही खेती करते हैं, लेकिन इससे उन्हें अच्छी आय होती है। उनके अनुमान के अनुसार, एक एकड़ में 30-35 किवंटल धान का उत्पादन हो जाता है। अब मदन हाइब्रीड धान बीज का इस्तेमाल करते हैं।
पिछले वर्ष इस क्षेत्र में पानी की कमी के कारण धान की पैदावार कम हुई थी। इस कारण उन्होंने कम अवधि वाला धान लगाया था। श्रीविधि तकनीक का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने बीज की कई किस्म जैसे ललाट, आइआर 64, आइआर 37 आदि धान बीज का इस्तेमाल किया था। उनके अनुसार धान की खेती पूरी तरह से पानी पर निर्भर है। लेकिन वह पानी की कमी पर भी उसी के अनुसार बीज का चयन कर धान की ही खेती करने को प्रमुखता देते हैं। ताकि उत्पादन बढ़ सके।
महिला किसान शांति ने सीढ़ीनुमा खेत में बनाया धान को लाभदायक
खूंटी जिले के कर्रा प्रखंड के गोविंदपुर की शांति हेम्ब्रोम अपनी छह एकड़ भूमि में धान की खेती करती हैं। वह नई और पुरानी दोनों तकनीक का इस्तेमाल धान की खेती के लिए करती हैं। उन्होंने अपनी मेहनत से एक महिला किसान के रूप में राज्य के कृषि क्षेत्र में पहचान बनाई है। सीढ़ीनुमा खेत होने के कारण अब उन्हें श्रीविधि तकनीक फायदेमंद लगती है। उनकी कोशिश है कि अब श्रीविधि तकनीक का इस्तेमाल करते हुए देशी बीज से धान उत्पादन किया जाए।
उनके अनुसार एक एकड़ भूमि में लगभग 40 क्विंटल धान का उत्पादन हो जाता है। शांति हाइब्रीड बीजों का इस्तेमाल अधिक करती हैं और खाद का संतुलित प्रयोग कर अच्छा उत्पादन प्राप्त कर रही हैं। इस क्षेत्र के किसान खाद का इस्तेमाल अनुभव के आधार पर करते हैं, क्योंकि मिट्टी का परीक्षण नहीं किया जा सका है। किसान परंपरागत तरीकों को छोड़ कर खेती की नई विधि अपना रहे हैं।
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Post By: pankajbagwan