नहीं रहे पानी वाले 'अय्यर साहब'

Ramaswami R iyer
Ramaswami R iyer

विश्व नदी दिवस, 27 सितम्बर 2015 पर विशेष

 

नहीं रहे जल विषयों के अय्यार


. पानी को पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को ठीक से समझने वाला एक नाम पिछले दिनों हमारे बीच नहीं रहा। यह सच है कि उसके जाने की चर्चा हिन्दी पट्टी में थोड़ी कम हुई। लेकिन पानी के लिये किया गया उनका काम हिन्दी हो या तेलगू, पंजाबी हो या तमिल सबके लिये एक तरह से उपयोगी रहेगा।

यहाँ हम बात कर रहे हैं, पानी से जुड़े मुद्दों के गहरे जानकार रामास्वामी आर अय्यर की। वे 1929 में तमिलनाडू में जन्मे और 86 साल की उम्र में 09 सितम्बर को वायरल का प्रकोप उनकी मौत का कारण बना। उनकी मृत्यु दिल्ली में हुई।

जिन लोगों ने अय्यर साहब का नाम नहीं सुना, उन्हें जानना चाहिए कि उन्होंने 1987 में भारत की पहली जल नीति तैयार की। वे केन्द्र सरकार के जल संसाधन मंत्रालय में सचिव रहे और अभी तक वे सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में मानद प्रोफेसर थे। पानी के प्रति उनके समर्पण ने उन्हें 2014 में पद्मश्री का हकदार बनाया।

‘वाटर परसपेक्टिव इशू कन्सर्न’, ‘टूवार्ड्स वाटर विज्डम’, ‘लिविंग रिवर, डाइंग रिवर’ जैसी कई किताबें उन्होंने लिखी हैं।

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से आई किताब ‘लिविंग रिवर, डाइंग रिवर’ का लोकार्पण उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के हाथों बीते 07 सितम्बर को ही हुआ था लेकिन खराब सेहत की वजह से लोकार्पण में अय्यर साहब शामिल नहीं हो पाये और लोकार्पण के दो दिन बाद ही उनकी मृत्यु हो गई।

अपनी किताब ‘लिविंग रिवर, डाइंग रिवर’ में उन्होंने विस्तार से बीमार और स्वस्थ्य दोनों तरह की नदियों का जिक्र किया है।

बीमार नदियों में वे जिक्र करते हैं एक शास्त्री नदी का। जिसका उद्गम जुड़ता है, रत्त्नागिरी (महाराष्ट्र) के संगमेश्वर नदी से। इस नदी का ऐतिहासिक महत्त्व इसलिये है क्योंकि यहीं पर औरंगजेब ने छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे संभाजीराव को हराया था। संगमेश्वर से ही सोनावी और शास्त्री नदियाँ एक साथ बहती हैं।

शास्त्री नदी और तमिलनाडु की ताम्रपरनी (श्रीलंका का पुराना नाम था) नदी को लेकर अय्यर अपनी किताब में गहरी चिन्ता व्यक्त करते हैं। उनका मानना था कि ये नदियाँ खतरे में हैं। दूसरी तरफ वे पूर्वोत्तर भारत की नदियों के सम्बन्ध में उनकी राय थी कि वे नदियाँ बिना किसी मानवीय रुकावट के बहती हैं और स्वच्छ हैं।

लेकिन विकास की आँधी से पूर्वोत्तर भारत भी खुद को कब तक बचा कर रख सकता है? ऐसा इसलिये क्योंकि आने वाले समय में बड़ी संख्या में हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजनाओं की बाढ़ पूर्वोत्तर भारत में आने वाली है। यदि समय रहते हम सचेत नहीं हुए तो पूर्वोत्तर भारत की नदी ब्रह्मपुत्र इन्हीं परियोजनाओं की भेंट चढ़ेगी। यह शुरूआत है, यह खतरा पूर्वोत्तर भारत की दूसरी नदियों की तरफ भी बढ़ेगा।

अय्यर कहा करते थे कि नदियाँ मानव निर्मित कोई कलाकृति नहीं है। नदियाँ प्राकृतिक घटना है। नदियाँ पारिस्थितिकीय प्रणाली का अभिन्न अंग है। भारत के सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक जीवन से नदियों को कभी अलग नहीं किया जा सकता है। नदियाँ कोई पाइप लाइन नहीं हैं, जिसे एक जगह से काटा और दूसरी जगह से जोड़ दिया और एक जगह से हटाया और दूसरी तरफ मोड़ दिया।

जब मैं रामास्वामी आर अय्यर का यह बयान आप सबके साथ साझा कर रहा हूँ तो यह बताने की जरूरत तो नहीं है कि नदी जोड़ परियोजना को लेकर वे क्या सोचते थे या इस मसले पर उनकी राय क्या थी?

अय्यर जी की अपने पास आने वाले सभी ईमेल का जवाब लिखते थे। उन्हें इस बात के लिये नर्मदा बचाओ आन्दोलन के साथ याद किया जा सकता है कि सरदार सरोवर बाँध के विस्थापितों के संघर्ष के वे साथी थे। आन्दोलन के 25 साल पूरे होने पर जो आयोजन हुआ उसमें वे पूरे तीन दिन नर्मदा घाटी में अपने परिवार के साथ रहे।

अय्यर की लेखनी से यह बात स्पष्ट होती है कि ‘विकास’ बेहद कीमती है लेकिन इसकी कीमत हर बार समाज का वंचित तबका ही अदा करता है। अय्यर इसलिये भी पानी का काम कर रहे लोगों के बीच हमेशा याद किये जाते रहेंगे क्योंकि उन्होंने पानी को देखने की एक दृष्टि समाज को दी है।

(लेखक जनसरोकार की पत्रकारिता के चंद युवा चेहरों में से एक। सोपान STEP नाम की एक पत्रिका के लिये पूरे देश में घूम-घूम कर रिपोर्टिंग करते हैं। मीडिया के छात्रों के साथ मिलकर मीडियास्कैन नाम का अखबार निकालते हैं। इंडिया फ़ाउंडेशन फॉर रूरल डेवलपमेन्ट स्टडिज से सम्बद्ध हैं)

 

 

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Post By: RuralWater
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