नेपाल के साथ जल बँटवारे पर समझौता जरूरी


बाढ़ की स्थायी समस्या समाधान के लिये गंगा की अविरलता जरूरी

बिहार में बाढ़ का फैलता दायराबिहार में बाढ़ का फैलता दायरासच पूछिए तो इस परेशानी के लिये पूरी तरह केन्द्र सरकार जिम्मेवार है। पहला तो केन्द्र सरकार ने गंगा को बाँध दिया और अविरल धार में बहने वाला बालू नदी घाटियों में बने बड़े-बड़े चौर, यानि तालाब को भर गया। उस बालू भरे तालाब में बालू होने के कारण कोई खेती नहीं होती है और पानी जो वहाँ भरता था, वह भी जमना बन्द हो गया।

वह पानी अब लोगों को परेशान करता है और खरीफ की फसल बर्बाद हो जाती है, दूसरा, नदी घाटियों में बालू भर जाने के कारण नदी की धारा अवरुद्ध हो जाती है। यह भी बाढ़ का एक बड़ा कारण है। तीसरा, भारत सरकार ने अभी तक नेपाल सरकार के साथ जल प्रबन्धन पर कोई मुकम्मल समझौता नहीं किया है। इसके कारण नेपाल पानी के मामले में मनमानी करता है।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने समाजवादियों की बेहद पुरानी माँग दुहराकर नए बहस को जन्म दे दिया है। उन्होंने केन्द्र सरकार से माँग की है कि फरक्का में गंगा नदी पर बनाए गए बैराज को तोड़ दिया जाय। इसके दुष्प्रभाव के बारे में भी उन्होंने बताया है और कहा है कि इसके कारण गंगा और उसकी सहायक नदियों की तलहटी में बालू जमा हो गया है, जो बिहार में बाढ़ के लिये जिम्मेदार है। गोया समाजवादी चिन्तक अनिल प्रकाश इस मुद्दे को बेहद गम्भीरता के साथ उठाते रहे हैं।

नीतीश जी गंगा की अविरलता पर भी अपनी टिप्पणी दे चुके हैं। नीतीश कुमार का मानना है कि गंगा की अविरलता गंगा बेसिन में निवास करने वाले करोड़ों लोगों के हित में है। उनका यह भी मानना है कि गंगा के पानी पर सबसे पहला अधिकार गंगा के किनारे बसने वालों का है।

यदि गंगा का पानी गंगापुत्रों को नहीं देकर दिल्ली के लोगों को दिया जाता है तो यह गंगा के नजदीक बसने वालों के अधिकार का हनन है। सतही तौर पर देखा जाये तो देश के अधिकतर क्षेत्र में पानी का अभाव रहता है लेकिन बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम और मेघालय आदि राज्यों में पानी की अधिकता ही समस्या बन गई है, जो बाढ़ के लिये उत्तरदायी है।

फौरी तौर पर यह समस्या केवल इन्हीं प्रान्तों के साथ नहीं है। समय-समय पर अन्य प्रान्त भी बाढ़ से प्रभावित होते रहे हैं। एक शोध के हवाले से छपे द हिन्दू के सम्पादकीय के अनुसार वर्ष 1978 से लेकर 2006 तक देश भर में, 2,443 बार बाढ़ आ चुकी है।

इन बाढ़ों में 45 हजार के करीब लोग मारे जा चुके हैं और लगभग 16 सौ करोड़ डालर की आर्थिक हानि हो चुकी है। यदि सरकार सकारात्मक तरीके से सोचती और अपनी बेहतर भूमिका में होती तो इस क्षति को कम किया जा सकता था लेकिन इस दिशा में कभी भी गम्भीरता के साथ नहीं सोचा गया।

मैं बाढ़ पीड़ित क्षेत्र का रहने वाला हूँ और बाढ़ के कारण लोगों को कितनी परेशानी झेलनी पड़ती है, मैंने खुद महसूस किया है। बाढ़ क्षेत्र में रहते-रहते मैंने अनुभव किया कि बाढ़ आने का मुख्य कारण आधुनिक विज्ञान की बेतरतीब योजना और नदी जल के प्रबन्धन का घोर अभाव है।

मैं समझता हूँ कि देश में सबसे ज्यादा बाढ़ का प्रकोप बिहार के लोगों को झेलना पड़ता है। उसमें भी बागमती और कोसी नदी घाटी के लोगों को सबसे ज्यादा बाढ़ की विभीषिका से दो-चार होना पड़ता है। प्रेक्षकों का कहना है कि कोसी और बागमती में बाढ़ तब से आना प्रारम्भ हुआ है जब से फरक्का में गंगा को बाँधकर डैम बना दिया गया।

हालांकि पहले नारायणी, सरयू और सोन में भी बाढ़ आती थी लेकिन जब से इन तीनों नदियों के जल का प्रबन्धन व्यवस्थित कर दिया गया तब से इस क्षेत्र के लोग व्यवस्थित हो गए हैं। लेकिन कोशी और बागमती घाटी के लोग आज भी बाढ़ के कारण परेशान हो रहे हैं।

सच पूछिए तो इस परेशानी के लिये पूरी तरह केन्द्र सरकार जिम्मेवार है। पहला तो केन्द्र सरकार ने गंगा को बाँध दिया और अविरल धार में बहने वाला बालू नदी घाटियों में बने बड़े-बड़े चौर, यानि तालाब को भर गया। उस बालू भरे तालाब में बालू होने के कारण कोई खेती नहीं होती है और पानी जो वहाँ भरता था, वह भी जमना बन्द हो गया।

एक शोध के हवाले से छपे द हिन्दू के सम्पादकीय के अनुसार वर्ष 1978 से लेकर 2006 तक देश भर में, 2,443 बार बाढ़ आ चुकी है। इन बाढ़ों में 45 हजार के करीब लोग मारे जा चुके हैं और लगभग 16 सौ करोड़ डालर की आर्थिक हानि हो चुकी है। यदि सरकार सकारात्मक तरीके से सोचती और अपनी बेहतर भूमिका में होती तो इस क्षति को कम किया जा सकता था लेकिन इस दिशा में कभी भी गम्भीरता के साथ नहीं सोचा गया।वह पानी अब लोगों को परेशान करता है और खरीफ की फसल बर्बाद हो जाती है। दूसरा, नदी घाटियों में बालू भर जाने के कारण नदी की धारा अवरुद्ध हो जाती है। यह भी बाढ़ का एक बड़ा कारण है। तीसरा, भारत सरकार ने अभी तक नेपाल सरकार के साथ जल प्रबन्धन पर कोई मुकम्मल समझौता नहीं किया है।

इसके कारण नेपाल पानी के मामले में मनमानी करता है। जब चाहे वह बिना किसी सूचना के पानी छोड़ देता है और नेपाल के तराई एवं भारत के बागमती, कोशी बेसिन में बाढ़ आ जाती है।

नीतीश कुमार को केवल फरक्का बैराज तोड़ने का ही मुद्दा नहीं उठाना चाहिए अपितु उन्हें गंगा की अविरलता के लिये गंगा पर बने सभी बैराज को तोड़ने की बात करनी चाहिए। साथ ही उन्हें यह भी माँग करनी चाहिए। कि गंगा के पानी पर सबसे पहले गंगापुत्रों का हक होना चाहिए। इसके बाद पानी बचे, तो उसे अन्य राज्यों को दिया जाय।

गंगा का जो पवित्र जल है उसमें से मात्र आठ प्रतिशत ही बिहार को मिल पाता है। ज्यादातर पानी पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली को चला जाता है। हालांकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश का भी गंगा पर अधिकार है लेकिन प्रतिशत के आधार पर देखा जाय तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश अपने हिस्से से अधिक गंगा के पानी का उपयोग कर लेता है।

वहीं दूसरी ओर दिल्ली के लोगों को तो गंगा के पानी पर कोई अधिकार ही नहीं है, फिर भी केन्द्र सरकार दिल्ली को गंगा का पानी उपलब्ध करा रही है। दूसरी ओर जब गंगा में पानी ज्यादा हो जाता है तो उसको सम्भालने के लिये केन्द्र सरकार के पास कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसी परिस्थिति में वह पानी बिहार में छोड़ दिया जाता है और बिहार के लोग उस पानी में डूब कर मरने के लिये अभिशप्त होते हैं।

इसलिये यदि नीतीश कुमार इस मामले को उठा रहे हैं तो यह जायज है और इसे गम्भीरता के साथ उठाना चाहिए। क्योंकि बाढ़ के कारण बिहार की अर्थव्यवस्था ही नहीं नस्ल तक प्रभावित हो रही है। और यह बाढ़ प्राकृतिक आपदा कम भारत संघ के द्वारा प्रायोजित आपदा अधिक दिख रहा है।

इसे समय रहते सुलझाने की जरूरत है अन्यथा आने वाले समय में यह और अधिक विसंगति पैदा करने वाला साबित होगा। प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से देश की 40 करोड़ जनसंख्या बाढ़ के कारण प्रभावित होती है। किसी भी कीमत पर इसे सुलझाना ही होगा अन्यथा आने वाले समय में पानी पर घमासान छिड़ने वाली है।

इधर नीतीश जी को भी चाहिए कि वे बिना किसी राजनीति और पूर्वाग्रह से इस मामले को उठाएँ और केन्द्र पर दबाव डालकर गंगा की अविरलता को सुनिश्चित करवाएँ साथ ही नेपाल के साथ जल समझौता को सिरे चढ़वाएँ। यह दोनों काम जिस दिन हो जाएगा। उसी दिन इस देश का कल्याण हो जाएगा साथ ही बिहार जैसे बाढ़ प्रभावित राज्यों को सही अर्थ में आजादी भी उसी दिन मिलेगी।

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