नौले-धारों के सूखने के कारण लोगों को पहाड़ों, चट्टानों से जूझते हुए दूरदराज के क्षेत्रों में जाना पड़ता है पानी लाने के लिये। ‘पानीको मुहानहरू’ सूख जाने से खेती लगभग नामुमकिन हो जाती है जिससे अन्न का उत्पादन घटता है। इस तरह की मुसीबतों से बचने के लिये इन क्षेत्रों से पलायन भी होता है। कभी-कभी पलयान इतनी बड़ी संख्या में होता है कि गाँव के गाँव खाली हो जाते हैं। जब ये लोग दूसरे शहरों में काम करने जाते हैं तो वहाँ उनका शोषण किया जाता है। नौले-धारे (वाटर-स्प्रिंग) को नेपाल में धारा, ‘पानीको मुहानहरू’, छहरा, स्प्रिङ, झरना नाम से उच्चारण किया जाता है। हालांकि ‘झरना’ सामान्यतः अंग्रेजी के ‘वाटर-फाल्स’ शब्द के लिये इस्तेमाल किया जाता है। पर नौले-धारे के लिये भी नेपाल में ‘झरना’ शब्द इस्तेमाल होता है।
नौले-धारे (वाटर-स्प्रिंग) नेपाल के पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की जीवनरेखा है। मगर नौले-धारों को इतनी तवज्जो नहीं मिली जितनी मिलनी चाहिए लिहाजा इन नौले-धारों की हालत अत्यन्त खराब हो गई हैं। इनके प्रबन्धन की भी व्यवस्था नहीं की गई और इन्हें किस तरह संरक्षित रखना चाहिए इस पर ध्यान नहीं दिया गया।
इंटरनेशनल सेंटर फॉर माइग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (इसीमोड) एक क्षेत्रीय अन्तर-सरकारी संगठन है जो हिन्दुकुश हिमालय क्षेत्र में काम करता है। हिन्दुकुश हिमालय के अन्तर्गत अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भुटान, चीन, नेपाल, म्यांमार और पाकिस्तान आते हैं। संगठन का काम हिन्दुकुश हिमालय की जैवविविधता को सुरक्षित रखते हुए यहाँ रहने वाले लोगों की जीवनस्तर सुधारना है। यह संगठन ग्लोबलाइजेशन और जलवायु परिवर्तन के चलते पर्वतीय क्षेत्रों की जैवविविधता और आजीविका के साधन में आये बदलावों से स्थानीय लोगों को अवगत करवाना है।
नेपाल मुख्यतः चट्टानी इलाकों में ‘पानीको मुहानहरू’ (वाटर-स्प्रिंग) पाई जाती हैं। इनमें से कुछ ‘पानीको मुहानहरू’ साल भर पानी देती हैं जबकि कुछ ‘पानीको मुहानहरू’ मौसमी हो गई हैं। बरसात के समय ही पानी दे पाती हैं। अगर भूजल रिचार्ज की तुलना में पानी का दोहन अधिक होता है तो बरसात के बाद ‘पानीको मुहानहरू’ सूख जाया करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि मानसून के मौसम में अगर बारिश के पानी को संरक्षित कर भूजल-ग्राउंडवाटर रिचार्ज किया जाये तो ‘पानीको मुहानहरू’ साल भर पानी देते रहेंगे। इसके लिये चाल-खाल, रिचार्ज पिट या खाइयों के निर्माण के साथ ही और अधिक-से-अधिक वृक्षारोपण करना होगा।
‘पानीको मुहानहरू’ (वाटर-स्प्रिंग) सूखते हैं तो इन पर आश्रित लोगों के सिर पर मुसीबतों का पहाड़ टूटता है। पर्वतीय क्षेत्रों में जीवन वैसे ही मुश्किल होता है और इस पर अगर पानी के स्रोत सूख जाएँ तो इससे उभरने वाले संकट की भयावहता की कल्पना ही बेचैन कर देती है।
नौले-धारों के सूखने के कारण लोगों को पहाड़ों, चट्टानों से जूझते हुए दूरदराज के क्षेत्रों में जाना पड़ता है पानी लाने के लिये। ‘पानीको मुहानहरू’ सूख जाने से खेती लगभग नामुमकिन हो जाती है जिससे अन्न का उत्पादन घटता है। इस तरह की मुसीबतों से बचने के लिये इन क्षेत्रों से पलायन भी होता है। कभी-कभी पलयान इतनी बड़ी संख्या में होता है कि गाँव के गाँव खाली हो जाते हैं। जब ये लोग दूसरे शहरों में काम करने जाते हैं तो वहाँ उनका शोषण किया जाता है।
इंटरनेशनल सेंटर फॉर माइग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (इसीमोड) के अनुसार पिछले एक दशक में नेपाल के तिनपीपल क्षेत्र की 15 प्रतिशत ‘पानीको मुहानहरू’ और दापचा की 30 प्रतिशत ‘पानीको मुहानहरू’ सूख चुकी हैं। इसीमोड की मानें तो तीनपीपल में कुल 70 ‘पानीको मुहानहरू’ और दापचा में 174 ‘पानीको मुहानहरू’ चिन्हित की गई थीं।
दरअसल, नेपाल की नौले-धारों (वाटर-स्प्रिंग) को कभी भी उतना महत्त्व नहीं दिया गया जितना मिलना चाहिए था। अव्वल तो इसकी मैपिंग तक नहीं की गई थी जिस कारण आधिकारिक तौर पर पता नहीं था कि नेपाल में नौले-धारों की संख्या कितनी है। दूसरे, नौले-धारों को हमेशा पानी उपलब्ध करवाने में मदद करने वाले चाल-खाल रिचार्ज पिट या खाइयों की या तो अनदेखी कर दी गई या फिर इन्हें भर दिया गया। मवेशियों के चारागाह के लिये जंगल जरूरी थे तो चाल-खाल या रिचार्ज पिट या खाइयाँ बनाने की किसी को फ्रिक ही नहीं रही। इसका परिणाम यह हुआ कि ‘पानीको मुहानहरू’ सूखती चली गईं।
नौले-धारों (वाटर-स्प्रिंग) के सूखने की और भी कई वजहें रही। मिसाल के तौर पर तकनीक को लिया जा सकता है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में एक परिवार को कम-से-कम 100 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। पहले महिलाएँ गगरी और दूसरे बर्तनों में पानी भरकर ले जाती थीं लेकिन समय बदलने के साथ ही नौले-धारों में पीवीसी पाइप लगा दिये गए, इलेक्ट्रिक मोटर लगा दिये गए ताकि जल्दी-से-जल्दी जरूरत का पानी निकाल लिया जाये। वहीं, लोगों ने गहरे कुएँ भी खोदना शुरू कर दिया और-तो-और पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क निर्माण के लिये सुरंगें खोदी गईं जिससे नौले-धारों पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ा। खेती में वैसी फसलों पर जोर दिया गया जिसमें पानी की अधिक जरूरत पड़ती है इसने भी नौले-धारों पर असर डाला।
इन सारी गतिविधियों ने नौले-धारों को बहुत नुकसान पहुँचाया लेकिन कभी भी नौले-धारों के प्रबन्धन की जरूरत स्थानीय प्रशासन ने महसूस नहीं की जिसका खामियाजा स्थानीय लोगों को भुगतना पड़ रहा है। जब समस्या बहुत गम्भीर हुई तो प्रशासन को इसका खयाल आया।
इसीमोड ने नेपाल की मरती नौले-धारों को पुनर्जीवित करने के लिये कई तरह की परियोजनाएँ शुरू की हैं। इसीमोड ने ‘नेपाल वाटर कंजर्वेशन फाउंडेशन’ के साथ मिलकर नेपाल के कावरे जिले के दो गाँवों में काम किया। संगठन ने यह पता लगाने की कोशिश की कि नौले-धारों में पानी कहाँ से पहुँचता है और ग्राउंडवाटर रिचार्ज के साथ बारिश का क्या सम्बन्ध है। इसके लिये स्थानीय लोगों को सिखाया गया कि बारिश और नौले-धारों को कैसा मापा जाता है। साथ ही उन्हें बताया गया कि किसी स्थान के भूविज्ञान को कैसे समझा जा सकता है।
इसीमोड के अनुसार नौले-धारों को बचाने के लिये ग्रामीणों को जागरूक करना बेहद जरूरी है। जो गाँव नौले-धारों पर आश्रित हैं उन गाँवों के लोगों को जलविज्ञान के बारे में जागरूक करना चाहिए और यह भी बताना चाहिए कि सरकारी स्कीमों तक कैसे वे पहुँच सकते हैं। सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण किया जाना चाहिए और पारम्परिक शासन ढाँचे की समझ विकसित करनी चाहिए।
इसीमोड के अनुसार नीतियाँ बनाकर नौले-धारों को संरक्षित करने की संस्कृति विकसित करनी चाहिए और इसमें सभी साझेदारों को शामिल किया जाना चाहिए। नौले-धारों के जलविज्ञान को अब तक समझा नहीं जा सका है, इसे समझने की आवश्यकता है और इसके संरक्षण में वैज्ञानिक तरीकों को अमल में लाना जरूरी है। इसके अन्तर्गत बारिश के पानी को वाटर टावर में जमा किया जा सकता है।
इसीमोड ने यह भी महसूस किया कि नौले-धारों को पुनर्जीवन देने के लिये वैज्ञानिक तकनीकों के साथ ही पारम्परिक जानकारियों का भी इस्तेमाल होना चाहिए। वैज्ञानिक जानकारी का इस्तेमाल नौले-धारों के संरक्षण के विकल्पों और चाल-खाल, रिचार्ज खाइयों को रिचार्ज में प्रयोग किया जाना चाहिए। स्थानीय स्तर पर बारिश और तापमान मापक यंत्र स्थापित किया जाना चाहिए। इस तरह के यंत्र स्कूलों या स्थानीय निकायों के दफ्तरों में स्थापित किये जा सकते हैं। इसके साथ ही पुराने रिचार्ज खाइयों का जीर्णोंद्धार और नए चाल-खाल या रिचार्ज खाइयों का निर्माण किया जाना चाहिए ताकि इनसे नौले-धारों को पानी मिलता रहे।
इसीमोड की मानें तो पायलट एक्शन रिसर्च के तहत कुछ नए चाल-खाल या रिचार्ज पिट या खाइयों के निर्माण का काम हाथ नेपाल में लिया गया था। लेकिन नेपाल में छिटपुट बसी आबादी और स्थानीय निकायों की गैरमौजूदगी के चलते बड़ी दिक्कतें आईं। इसीमोड के अनुसार स्थानीय निकायों की गैर-मौजूदगी में इस तरह की परियोजनाएँ लम्बे समय तक नहीं चल सकती हैं।
असल में नौले-धारों (वाटर-स्प्रिंग) से नेपाल के सुदूर ग्रामीण इलाकों के रहने वाले लोगों को पेयजल और दूसरी जरूरतें पूरी करने के लिये पानी मिलता है। ‘पानीको मुहानहरू’ (वाटर-स्प्रिंग) अगर प्रभावित होती हैं तो इसका असर गाँव पर ही पड़ता है इसलिये इसका प्रबन्धन भी स्थानीय निकायों द्वारा ही किया जाना चाहिए। इसके पीछे वजह यह है कि स्थानीय निकाय ही है जिसके पास जाकर ग्रामीण अपनी समस्या कहते हैं। अतएव नेपाल में नौले-धारों को पुनर्जीवित करने, उन्हें रिचार्ज करने और रिचार्ज के लिये चाल-खाल या रिचार्ज खाइयाँ बनाने का काम स्थानीय निकाय स्तर पर करना चाहिए इसके बाद इसे ‘जिला विकास समिति’ और उसके ऊपर की बॉडी तक ले जाना चाहिए।
इस दिशा में नीति-निर्माताओं, शोधकर्ताओं और विकास संस्थानों का भी सहयोग लिया जाना चाहिए। इन्हें नौले-धारों के प्रति संवेदनशील बनाना चाहिए ताकि कई कोणों और आयामों से नेपाल के नौले-धारों (वाटर-स्प्रिंग) का प्रबन्धन किया जा सके।
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Post By: RuralWater