मेहनत कभी भी बेकार नहीं जाती है। जो लोग कड़ी मेहनत करते हैं और कुछ अलग करने की सोच रखते हैं, एक न एक दिन उन्हें कामयाबी जरूर मिलती है। नई सोच रखने वाले लोग जब प्रयोग की ओर कदम बढ़ाते हैं तो भले अकेले रहें, लेकिन जब उनका प्रयोग आगे बढ़ता है तो मदद करने वालों की लंबी कतार लगी होती है। कुछ ऐसी ही कामयाबी हासिल की है गुजरात के मनसुखभाई जगानी ने। इन्होंने अपने प्रयोगों के जरिए पूरे देश में नाम कमाया है। खेती के लिए बुलेट ट्रैक्टर, स्प्रेयर, साइकिल स्प्रेयर बनाकर दुनिया को दिखा दिया कि एक साधारण किसान भी बहुत कुछ कर सकता है। इसके लिए उन्होंने भारत और अमेरिका में पेटेंट भी हासिल कर लिया है। वह अपने उपकरणों का दक्षिण अफ्रीका में भी प्रदर्शन कर चुके हैं।जो लोग कुछ नया और अलग करने की सोच रखते हैं, कामयाबी उनके कदम चूमती है। नए प्रयोग करने के लिए सिर्फ शिक्षा ही नहीं बल्कि कल्पनाशीलता का होना भी जरूरी है। जब तक कल्पनाशक्ति तीव्र नहीं होगी तब तक नया और अलग प्रयोग कर लोगों को चकित करना मुश्किल होता है। अपनी नई सोच के जरिए ही गुजरात के किसान मनसुखभाई जगानी ने एक के बाद एक कई ऐसे प्रयोग कर दिखाए, जिसकी वजह से वह आज किसान वैज्ञानिक बन गए हैं। उन्हें फोब्स ने प्रमुख प्रगतिशील ग्रामीण में चुना है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि नई तकनीक सिर्फ शिक्षा के जरिए ही नहीं बल्कि नया करने की सोच से भी विकसित की जा सकती है। उन्होंने पुरानी मोटरसाइकिल में लोहे की पाइप और एंगल की मदद से ऐसा उपकरण लगाया है, जिसके जरिए खाद एवं बीज को आसानी से खेत में गिराया जा सकता है। इसी तरह साइकिल में कुछ पुर्जें की मदद से स्प्रेयर बनाकर लोगों को चकित कर दिया है। इस प्रयोग के लिए उन्हें कई सम्मान भी मिल चुके हैं।
गुजरात के अमरेली जिले के मोटा देवलिया गांव निवासी मनसुखभाई जगानी का जन्म एक साधारण किसान परिवार में हुआ। परिवार के लोग खेती से जुड़े थे, इसलिए मनसुख भी खेतीबाड़ी में लगे रहते। किसी तरह प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की, लेकिन पारिवारिक कारणों से उन्हें आगे की पढ़ाई छोड़नी पड़ी। वह पढ़ाई छोड़ने के बाद घर के कामधंधे में जुट गए। परिजनों के साथ खेती और परंपरागत कामधंधे में हाथ बंटाने लगे। मनसुख बताते हैं कि वह उच्च शिक्षा ग्रहण कर वैज्ञानिक बनना चाहते थे, जो नया-नया प्रयोग करके दुनिया को चकित कर दे, लेकिन पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए। परिवार की स्थिति को देखते हुए खेती से जुड़ गए। परिवार के कुछ सदस्य जीविका चलाने के लिए हीरा घिसाई का काम करते थे। मनसुख ने भी इस काम को किया।
गुजरात की एक कंपनी में कुछ समय तक हीरा घिसाई का काम किया तो कुछ समय खेतों में जुटे रहे। वे परिवार चलाने के लिए खेतों में काम कर रहे थे, लेकिन सपना था वैज्ञानिक बनना। हीरा घिसाई में लगने और खेतीबाड़ी करने के बाद भी मनसुख का सपना टूटा नहीं बल्कि और तेजी से आगे बढ़ने लगा। वह जब भी खाली रहते बस यही सोचते कि ऐसा कौन-सा काम करें, जो किसानों के लिए उपयोगी हो, किसानों को कम लागत में अधिक मुनाफा मिले और नवप्रयोग करने के लिए पूरा देश उनकी तरफ देखे।
मनसुखभाई कहते हैं कि दृढ़ विश्वास और आत्मबल के दम पर किया गया कार्य कभी भी असफल नहीं होता है। हर व्यक्ति को कुछ अलग और नया प्रयोग करते रहना चाहिए। कभी भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।खेत मजदूर के रूप में काम करने के दौरान वह खेती के कामों को वैज्ञानिक तरीके से करने की कोशिश करते। हल को देखते और बैलों द्वारा हल खींचने के तरीके पर ध्यान देते। निराई-गुड़ाई के लिए ऐसा क्या किया जाए, जो किसानों के लिए लाभकारी बन जाए, इस पर घंटों सोचते रहते। खेत में काम करते समय हमेशा उनका ध्यान खेती को सस्ता और सुलभ बनाने पर लगा रहता। वह खेती करने से कहीं ज्यादा खेती करने की तरकीब और उसमें प्रयोग होने वाले कृषि उपकरणों पर ध्यान देते।
कुछ दिन बाद वह अपने गांव लौट आए। गांव में ही एक कार्यशाला में वेल्डिंग का काम सीखा। उस समय वेल्डिंग के काम से लोग घबराते थे क्योंकि तेज लाइट लगने से कई बार आंखें सूज जाती थी। आंखों में काफी दर्द होता था। चूंकि बचाव के साधन काफी सीमित थे और जो साधन थे भी, गांव की कार्यशाला में उनका चलन न के बराबर था। इसके बाद भी मनसुख ने मन लगाकर काम किया। कार्यशाला में देखा कि किसानों के लिए बनने वाले उपकरणों को किस तरह से बनाया जाता है। हलों को जोड़ने, विभिन्न तरह के हल बनाने और कल्टीवेटर को दुरुस्त करने का काम भी किया। कड़ी मेहनत करके कुछ पैसा इकट्ठा किया और खुद की कार्यशाला खोली। यह वक्त मनसुख के लिए काफी बेहतर था। बदलाव शुरू हो गया था। मनसुख को भी अपनी मंजिल नजदीक लग रही थी। मनसुख ने अपनी कार्यशाला में पूरी तरह से सक्रियता दिखाई। उनका ध्यान पैसे से कहीं ज्यादा नाम कमाने की ओर था। हमेशा नए-नए प्रयोग करने की सोचते रहते।
एक-एक रुपये जोड़कर शुरू किया प्रयोग
मनसुखभाई को अपनी कार्यशाला खोलने के बाद काफी संतुष्टि मिली। मन को लगा कि अब उनका वैज्ञानिक बनने का सपना पूरा हो जाएगा। वह एक न एक दिन कुछ ऐसा कर दिखाएंगे, जिसे हर किसान अपनाएंगे। इसी धारणा को मन में संजोकर हैरो, हल, सीडड्रिल के साथ ही पक्के घरों के लिए दरवाजा-खिड़की, ग्रिल, गेट आदि का काम शुरू किया। इन कामों में मेहनत तो खूब थी, लेकिन मेहनत के हिसाब से पैसा भी मिलने लगा। इससे गृहस्थी की गाड़ी चल पड़ी। मनसुख बताते हैं कि जब मेहनत के एवज में पैसे मिलते तो लगता कि अब अपना सपना पूरा कर लूंगा। साथ ही यह भी विश्वास होने लगा कि अब पढ़ने के लिए उनके बच्चे नहीं तरसेंगे क्योंकि पढ़ाई न कर पाना मैं अपनी सबसे बड़ी कमी मानता था। मुझे ऐसा लगता कि पढ़ाई न करने की वजह से मेरा सपना धरा रह जाएगा, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। शायद यही वजह थी कि मैं खेतिहर मजदूर से एक ऐसा मैकेनिक बन गया था, जो किसानों के लिए कुछ अलग और नया करना चाहता था।
मनसुख बताते हैं कि उस समय इलाके के तमाम किसान डीजल इंजन के जरिए खेतों की सिंचाई करते थे। उन्होंने डीजल इंजन की मरम्मत का काम भी सीखा। डीजल इंजन की मरम्मत के लिए वह जाते तो कुछ नया करने की सोचते। कई बार छोटे डीजल इंजनों को अलग-अलग तरीके से प्रयोग करके पानी निकालने की कोशिश की। हर प्रयोग में मेरा लक्ष्य यही रहता कि किसानों की लागत कम से कम हो जाए। क्योंकि खेती में खर्चा जितना कम होगा, किसान को उतना ही अधिक मुनाफा होगा। इस काम की वजह से उन्हें किसानों के बीच रहने और किसानों की बातें सुनने, किसानों के नए विचारों से अवगत होने का भी अवसर मिला।
सूखे से शुरू हुआ प्रयोग
मनसुखभाई बताते हैं कि वर्ष 1990 की बात है जब हमारे इलाके में सूखा पड़ा। लोग कामधंधे की तलाश में शहर की ओर पलायन करने लगे। किसानों ने बैल बेच दिए और दूसरे कामधंधे की तलाश करने लगे। इस दौरान उनकी कार्यशाला का काम भी काफी मंदा पड़ गया। चारों तरफ निराशा का दौर था। सबसे ज्यादा परेशान किसान थे। इसी दौरान उनके पड़ोस के गांव के मोहन पटेल आए और कहा कि मनसुख आपने कई तरह के कृषि उपकरण बनाए हैं। कुछ ऐसा बनाओ, जिसमें बैल की जरूरत न पड़े। हां, इस बात का भी ध्यान रखना कि किसानों के लिए वह काफी सस्ता हो, क्योंकि ट्रैक्टर खरीदना हर किसान के बस की बात नहीं है। जब किसानों के लिए कोई सस्ती चीज सामने होगी तो हर किसान उसे खरीदना चाहेगा और किसान को उसका फायदा भी मिलेगा। मैंने मोहन पटेल को भरोसा दिलाया कि कुछ न कुछ ऐसा यंत्र जरूर बनाऊंगा, जो किसानों के लिए काफी लाभकारी साबित होगा।
मनसुख बताते हैं कि मैंने मोहन को भरोसा तो दे दिया, लेकिन रात-दिन यह सोचता रहा कि आखिर ऐसा क्या बनाऊं, जो सभी के काम आए। फिर एक दिन मैं पैदल ही घर से निकला। रास्ते में टैम्पो में बैठ गया। यह टैंपो तीन पहिए वाला था। टैम्पों में बैठने के बाद ही मन में विचार आया कि क्यों न टैम्पों जैसी कोई चीज बनाई जाए। दुकान पर आया और बगल में मोटरसाइकिल बनाने वाले परिचित से पुरानी बुलेट दिलाने को कहा। कुछ समय बाद ही बुलेट मिल गई और फिर बुलेट सैंट्री नामक एक यंत्र तैयार किया। कुछ दिन बाद ही बारिश हो गई और किसान खेती में जुट गए।
बुलेट सैंट्री से मिली पहचान
मनसुखभाई जगानी को पहली बार 1994 में समूचे गुजरात में बुलेट सैंट्री से पहचान मिली। बुलेट सैंट्री को बुलेट मोटरसाइकिल में पांच हॉर्स पावर के डीजल इंजन में फिट किया। पिछले पहिए की जगह एक्सल से दो पहिए जोड़ दिए। फिर पीछे दो पाइप के सहारे टूलबार लगाया। इसके जरिए किसान बीज और खाद का प्रयोग एक साथ कर सकते थे। यह प्रयोग काफी सफल रहा। इस मशीन को छोटे किसानों ने खूब पसंद किया। इसकी मदद से दिनभर में करीब 10 हेक्टेयर खेत की जुताई आसानी से की जा सकती है। जुताई के अलावा यह निराई के काम में भी प्रयोग की जा सकती है। बड़े किसानों के साथ ही छोटे किसान भी इसे पसंद करके और कम बजट में होने के कारण खरीदने लगे। इस वजह से भी इसकी मांग बढ़ी। गुजरात में करीब 40 से अधिक बुलेट सैंट्री की बिक्री हुई। इसके अलावा दूसरे प्रदेशों के किसान भी खरीद कर ले गए। इसकी लागत करीब 14 से 18 हजार रुपये थी। ऐसे में किसानों को इसे खरीदने में कोई खास दिक्कत नहीं होती थी। इसी दौरान मनसुख का संपर्क नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन से भी हुआ। फाउंडेशन की मदद से मनसुख ने इस मशीन का पेटेंट भी हासिल किया।
एक के बाद एक प्रयोग
मनसुख बताते हैं कि बुलेट सैंट्री की सफलता के बाद वह कुछ और बनाना चाह रहे थे। उस समय तक छोटे किसान विभिन्न फसलों की खेती के लिए हाथ से बीज बोते थे। ऐसे में काफी समय लगता था। कुछ किसानों से बातचीत की। किसानों ने इच्छा जताई कि कोई ऐसी मशीन बनाई जाए जो बुवाई के दौरान खाद और बीज को एक साथ खेत में गिराए और न तो खाद की बर्बादी हो और न ही बीज की। खेती के दौरान मैं भी इस बात से वाकिफ था कि बुवाई के दौरान काफी खाद ऊपर ही रह जाती है, जो पौधों को नहीं मिलती। इसके बाद मैंने बीज सह-उर्वरक ड्रिबलर तैयार किया। इस उपकरण से बीज बोने की प्रक्रिया काफी सरल हो गई। यह उपकरण बीज डालने के साथ ही नारियल और केले की फसल में खाद डालने के भी काम आता है। इससे बीज व उर्वरक कतार में ही पड़ते हैं। यानी खाद और बीज की बर्बादी बची। मनसुख बताते हैं कि इस उपकरण को बनाने के बाद तो उनका नाम पूरे गुजरात में हो गया। विभिन्न स्थानों से किसान आते और उनसे बातचीत कर उनके उपकरण के बारे में जानकारी हासिल करते। दोनों उपकरणों के लिए खूब ऑर्डर मिलने लगे। इससे उनकी माली हालत भी काफी सुधर गई।
सफलता की सीढ़ी चढ़ते गए
मनसुख बताते हैं कि दोनों उपकरणों की डिमांड बढ़ने के बाद भी नए प्रयोग से उनका मन नहीं भरा। वह कुछ और करने की कोशिश करने लगे। वह सोचते कि अब दो प्रयोगों के सफल होने के बाद तीसरा ऐसा क्या बनाएं, जो किसानों के लिए सस्ता और मुफीद हों, इसी मंशा को लेकर उन्होंने बाइसाइकिल स्प्रेयर भी बनाना शुरू किया। चूंकि अलग-अलग फसलों में अलग-अलग रसायन के छिड़काव की जरूरत होती है। इसलिए यह भी सोचा कि बाजार में जो मशीनें हैं, उनकी अपेक्षा ऐसी मशीन बनाए, जो सस्ती तो हो ही, साथ ही उसमें रसायन का कम से कम प्रयोग हों, पर्यावरण के लिए वह हानिकारक भी न हों, इसी धारणा को लेकर साइकिल के फ्रेम पर टंकी, चेन और अन्य पुर्जों की मदद से एक उपकरण तैयार किया। इसमें जब साइकिल आगे बढ़ती है तो चक्के से जुड़े पंप चलने लगते हैं और प्रेशर बनने पर टंकी का द्रव फव्वारे के रूप में आगे बढ़ता है और नोजल अपने आप चलने लगता है। यह स्प्रेयर काफी सस्ता होने के साथ ही श्रम की बचत भी करता है। इस यंत्र को जब चाहे साइकिल से जोड़ सकते हैं और जब चाहे हटा सकते हैं। ऐसे में किसान जब चाहे साइकिल का प्रयोग करे और साइकिल पर मशीन को रख कर खेत में ले जाने के बाद स्प्रेयर के रूप में भी इसे प्रयोग कर सकता है। इस स्प्रेयर का प्रदर्शन भारतीय विज्ञान कांग्रेस में भी किया गया। इसके अलावा आईआईटी, दिल्ली में आयोजित विज्ञान मेले में भी इस प्रयोग को खूब वाहवाही मिली। इसकी कीमत करीब 2200 रुपये है। इसके जरिए करीब 45 मिनट में एक एकड़ खेत में दवा का छिड़काव किया जा सकता है।
दक्षिण अफ्रीका में भी दिखाया जलवा
मनसुखभाई जगानी बताते हैं कि दक्षिण अफ्रीका में लघु, मझोले एवं सूक्ष्म उद्यमों की प्रदर्शनी में भी उन्हें अपने उपकरण दिखाने का मौका मिला। यहां आए लोगों ने उनके उपकरणों को खूब सराहा। यहां आने वाले हर किसान ने उपकरणों के बारे में विस्तार से जानना चाहा। कई लोगों के इस उपकरण के डाइग्राम तक तैयार किए तो कुछ ने उनका हौंसला बढ़ाया।
जिसने भी सुना, सहयोगी बन गया
मनसुखभाई के नव प्रयोग के बारे में जिसे भी जानकारी मिली वह किसी न किसी रूप में उनका सहयोगी बन गया। सभी के सहयोग की वजह से ही उनके हौंसले बुलंद रहे और वह एक के बाद एक प्रयोग करते रहे। वह बताते हैं कि नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के साथ ही नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन, अहमदाबाद का काफी सहयोग रहा। इसी तरह पेटेंट लेने में अमरीका के स्लोन स्कूल ऑफ मैनेजमेंट और मैसाचूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से भी इस उपकरण को पेटेंट मिला।
पुरस्कारों ने बढ़ाया मान
नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन की ओर से आयोजित कार्यक्रम में उन्हें बुलेट सैंट्री बनाने के लिए पुरस्कार प्रदान किया गया। इस पुरस्कार को प्राप्त करने के बाद काफी शांति मिली। लगा कि वर्षों की मेहनत ने आज रंग दिखाया है। कहां एक तरफ कृषि में उच्च शिक्षा ग्रहण कर लोग नई तकनीक विकसित करते हैं कहां मैं प्राइमरी की पढ़ाई करके नए प्रयोग करने के लिए राष्ट्रीय तृणमूल नवाचार एवं परंपरागत ज्ञान पुरस्कार हासिल कर रहा हूं। इस पुरस्कार को प्राप्त करके उन्हे अपार खुशी हुई। इसके बाद वर्ष 2005 में एक बार फिर बाइसाइकिल स्प्रेयर के लिए भी सम्मानित किया गया।
मेहनत रंग लाई, आई खुशहाली
मनसुखभाई का बचपन काफी अभाव में बीता। एक किसान को कितनी तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है, इसे उन्होंने बहुत ही नजदीक से देखा है। इसलिए उनके मन में हमेशा किसानों के लिए आदर है और वह किसानों के लिए सस्ते से सस्ता उपकरण उपलब्ध कराना चाहते हैं। उन्होंने जीवन में कई तरह के उतार-चढ़ाव देखे हैं, लेकिन उनकी मेहनत रंग लाई और आज उनका परिवार खुशहाल जीवन जी रहा है। वह चाहते हैं कि बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाएं। हालांकि उन्हें भरोसा है कि जिस तरह से उन्होंने अपनी मेहनत के दम पर नाम कमाया है, उसी तरह बच्चों की पढ़ाई में कभी भी पैसा आड़े नहीं आएगा। उनके बच्चे उच्च शिक्षा ग्रहण करेंगे और देश के कुशल नागरिक बनेंगे। मनसुखभाई कहते हैं कि दृढ़ विश्वास और आत्मबल के दम पर किया गया कार्य कभी भी असफल नहीं होता है। हर व्यक्ति को कुछ अलग और नया प्रयोग करते रहना चाहिए। कभी भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
ई-मेलः sunil.saket@gmail.com
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