सबसे महत्वपूर्ण यह कि हमने नदी के ‘बाढ़ पथ’ को ही चुरा लिया। नदी के दोनों किनारों का जितना भाग पिछले सौ वर्षों में एक फीट तक बाढ़ से डूब चुका हो, उसे बाढ़ पथ कहते हैं। हमारे लिए बेशक नदी के किनारे घर बनाना गर्व की बात हो, पर नदी के लिए उसका बाढ़ पथ उसका जीवन होता है। यही क्षेत्र होता है नदी का, जिसके द्वारा बरसात में भूजल का रीचार्ज होता है।
गोमती नदी गंगा की एक छोटी सहयोगी नदी है। पर महत्वपूर्ण इतनी है कि इसका वर्णन ऋग्वेद के अष्टम और दशम मंडल व शिव महापुराण तक में है। इसे ऋषि वशिष्ठ की बेटी माना जाता है और उत्तर प्रदेश में मैय्या की तरह पूजा जाता है, पर आज यह अंतिम सांसें ले रही है। गोमती का हाल जानने के लिए लखनऊ की लोक भारती नामक संस्था ने गोमती के उद्गम स्थल पीलीभीत जिले के माधो टांडा के निकट फुलहर झील से गाजीपुर जिले में कैथी के निकट गंगा से संगम तक यात्रा की। इस यात्रा में पर्यावरणविदों, वैज्ञानिकों, समाज सेवियों व अध्यापकों समेत तकरीबन 300 लोग शामिल थे। इन लोगों ने इस दौरान गोमती को देखा-परखा, वैज्ञानिक अध्ययन किया। सबसे पहले यह पता चला कि नदी में प्रवाह क्षीण हो चला है, जिससे जल बहुत प्रदूषित हो गया है। इस कारण जीवन भी दुष्प्रभावित है। नदी के स्वास्थ्य के लिए ये शुभ संदेश नहीं हैं।
नदी का प्रवाह घटने के अनेक कारण हैं। सबसे महत्वपूर्ण यह कि हमने नदी के ‘बाढ़ पथ’ को ही चुरा लिया। नदी के दोनों किनारों का जितना भाग पिछले सौ वर्षों में एक फीट तक बाढ़ से डूब चुका हो, उसे बाढ़ पथ कहते हैं। हमारे लिए बेशक नदी के किनारे घर बनाना गर्व की बात हो, पर नदी के लिए उसका बाढ़ पथ उसका जीवन होता है। यही क्षेत्र होता है नदी का, जिसके द्वारा बरसात में भूजल का रीचार्ज होता है। गोमती जैसी नदियां, जो भूजल पर ही आश्रित रहती हैं, उनके जीवित रहने के लिए भूजल का रीचार्ज ही एकमात्र जरिया है। गोमती की दुर्दशा का दूसरा कारण है, बोरवेल से भूजल का निर्बाध दोहन। नदियों की रेत पर बसे मैदानों में नदी और भूजल का चोली-दामन का साथ होता है। आज स्थिति यह है कि नदी का बिस्तर ऊपर है और भूजल का स्तर बहुत नीचे। कभी मैय्या कही जाने वाली गोमती को हम मात्र गंदा पानी ढोने का प्राकृतिक साधन मान बैठे हैं।
नगरीय अपशिष्ट, चीनी मिलों, फैक्टरियों का कचरा हम बेहिचक गोमती में बहा देते हैं। दक्षिण भारत की नदियां इतनी प्रदूषित नहीं, जितनी गंगा और गोमती हैं। इसका कारण है नदी में आने वाली गाद का बढ़ जाना। जलग्रहण क्षेत्र में वनों की कटाई के कारण नदी में आने वाली गाद की मात्रा बहुत बढ़ चुकी है। नदी के किनारे बसी आबादी को बचाने के लिए लखनऊ जैसे नगर में दोनों किनारों पर बांध बनाए जा चुके हैं। नदी को अपनी गाद फैलाने के लिए जगह नहीं मिलती, लिहाजा उसे तलहटी में छोड़ जलधारा आगे बढ़ जाती है। गाद नीचे जमा होने से कुछ वर्ष में जल की सतह बचाव के बांधों के ऊपर तक आ जाएगी। तब बांधों की ऊंचाई बढ़ाना एकमात्र विकल्प रह जाएगा। पर कब तक चल पाएगा यह सिलसिला? गोमती तो बस एक उदाहरण है, हमारी तमाम छोटी-बड़ी नदियां इसी दिशा में बढ़ रही हैं।
साथ में वेंकटेश दत्त (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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