नदियों को आपस में जोड़ने से संबंधित पर्यावरणीय पहलू

बढ़ती जनसंख्या तथा विभिन्न जलवायु घटकों के कारण जल स्रोतों पर पिछले कुछ दशकों से काफी दबाव बढ़ गया है। बढ़ती हुई जल की जरूरतों व प्रतियोगिता के दौर ने योजनाकारों को इसका निदान ढूढ़ने पर विवश कर दिया है। हमारे देश में कुछ स्थानों पर अत्यधिक वर्षा होती है तथा बाढ़ का प्रकोप रहता है। दूसरी तरफ कुछ इलाकों में सूखा पड़ने से लोग भूखे मर जाते हैं। फसलें पैदा नहीं होती व जीव-जंतु भी खतरे का सामना करते हैं। इन समस्याओं को सुलझाने का एक तरीका नदियों को आपस में नहर विकसित करके जोड़ने का प्रस्ताव हो सकता है। इस प्रस्ताव में उत्तरी भारत की नदियां जो कि निरंतर हिमालय से जल प्राप्त करती हैं, को दक्षिण भारत की नदियों से जोड़ना हो सकता है। इस प्रस्ताव से आर्थिक व सामाजिक लाभ के साथ-साथ पर्यावरणीय खतरे से इंकार नहीं किया जा सकता। प्रस्तुत लेख में नदियों को आपस में जोड़ने पर विभिन्न पर्यावरणीय पहलुओं की चर्चा की गई है।

सच्चे अर्थ में विकास का उद्देश्य वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करते हुए आने वाली पीढियों की आवश्यकताओं की पूर्ति में विघ्न नहीं डालना है।

हमारे देश में जल संसाधन नियोजक विकास के विभिन्न पर्यावरणीय पहलुओं से अवगत रहे हैं जिनका कि नियोजन के दौरान ध्यान रखा जाना चाहिये। प्रारंभिक परियोजनाओं में कुछ के प्रभावित लोगों का पुनर्वास सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ है। जल संसाधन परियोजनाओं के पर्यावरण प्रतिकूल प्रभाव से संबंधित आलोचना बढ़ती जा रही है, ऐसी आलोचना सर्वत्र पूरी तरह न्यायसंगत नहीं है।

पर्यावरण के अनुकूल जल संसाधन विकास को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने कई कानून बनाये। पर्यावरणीय मूल्यांकन समिति परियोजना पर विचार कर स्वीकृति देने पर निर्णय लेती है। पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षा के उपाय बताए जाते हैं।

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