दून विवि में आयोजित अन्तरराष्ट्रीय सेमिनार के समापन पर बोले प्रो. गोपाल, विकास के लिये हो प्राकृतिक सम्पदा का दोहन
देहरादून। हिमालय से निकलने वाली नदियों को बचाने के लिये चीन समेत सार्क देशों को सामूहिक प्रयास करना होगा। हिमालयी क्षेत्रों में बड़े बाँध किसी भी सूरत में नहीं बनना चाहिए। ऐसा होने से हिमालय के पर्यावरण को नुकसान होगा। प्राकृतिक सम्पदा का दोहन विकास के लिये होना चाहिए। ये बातें नेपाल के प्रसिद्ध पर्यावरणविद और त्रिभुवन विश्वविद्यालय के प्रो. गोपाल शिवाकोटी चिन्तन ने कही। वह शुक्रवार को दून विश्वविद्यालय में आयोजित तीन दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय सेमिनार को सम्बोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि चीन नदियों के साझे इस्तेमाल पर समझौते से बचता रहा है। जबकि, हिमालय और इससे निकलने वाली सभी देशों की सामूहिक सम्पत्ति है। अन्तिम दिन सेमिनार दो सत्रों में सम्पन्न हुआ। पहले सत्र में कृषि वैज्ञानिक डॉ. ए अरुणाचलम ने हिमालयी क्षेत्रों में खेती को लाभकारी पेशे के तौर पर बदलने की बात कही। मीडिया एवं साहित्य के दूसरे सत्र में वरिष्ठ पत्रकार सुशील बहुगुणा ने कहा कि हिमालयी क्षेत्र में सड़क निर्माण के लिये विस्फोटकों का प्रयोग नहीं होना चाहिए। ऐसा होने से सड़कें टूटेंगी और भूस्खलन भी होगा। उन्होंने बड़े बाँधों का भी विरोध किया। पत्रकार एवं लेखक मनु पंवार ने कहा कि हिमालय को बचाने की बात देश बचाने की बात है। हमारे लोकगीतों में प्रकृति को बचाने के मंत्र हैं। हिमालयी समाज ने अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक परम्पराओं से ये संस्कार हासिल किए हैं। हिमालय को बाहर की लालची नजरों से खतरा है। पत्रकार डॉ. भूपेन सिंह ने विचार रखे।
सेमिनार संयोजक प्रो. हर्ष डोभाल ने सभी का आभार जताया। संचालन डॉ. एचसी पुरोहित ने किया। डॉ. एस. पी सती ने प्रतिभागियों का स्वागत किया। इस दौरान दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. कुसुम अरुणाचलम, श्रीदेव सुमन विवि के कुलपित डॉ. यू.एस. रावत, गढ़वाल विवि के पूर्व कुलपति डॉ. एस.पी. सिंह, डॉ. बीपी डोभाल, डॉ. आरबीएस रावत, डॉ. बीपी मैठाणी, डॉ. वरुण जोशी, डॉ. किरण शर्मा, डॉ. प्राची पाठक, डॉ. एम.एस. मंद्रवाल, दीपशिखा सजवाण, आलोक नैथानी आदि मौजूद थे।
सत्र के दौरान हंगामा
मीडिया एवं साहित्य सत्र के दौरान वरिष्ठ पत्रकार सुशील बहुगुणा ने बड़े बाँधों का विरोध किया। उन्होंने कहा कि पंचेश्वर बाँध के फायदों को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा रहा है, जबकि बड़े बाँधों से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम करके आंका जा रहा है। इस पर तमाम प्रतिभागियों ने हंगामा शुरू कर दिया। हालाँकि, कुछ प्रतिभागियों ने बीच में हस्तक्षेप कर मामला शान्त कराया।
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