नदीजोड़ प्रस्ताव


केन नदी का जलग्रहण क्षेत्र 28060 वर्ग किमी. है जिसमें से 16020 वर्ग किमी कृषि योग्य है। एनडब्ल्यूडीए द्वारा किये गए जल सन्तुलन अध्ययन के अनुसार सतही जल संसाधन के तौर पर केन नदी की सम्पूर्ण क्षमता 109680 लाख घनमी. है। तकनीकी सलाहकार समिति के आधार पर (9870 वर्ग किमी) कृषि योग्य क्षेत्र का 60 प्रतिशत सन 2025 तक सिंचाई के अन्तर्गत लाया जाएगा। इस तरह, पूरे नदी घाटी में सतही जल की आवश्यकता 58830 लाख घन मी. होगी। इस तरह, केन नदी घाटी में 50850 लाख घनमी. पानी बहुलता का दावा किया गया है।

प्रस्तावित परियोजना की मुख्य विशेषताएँ


स्थिति मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में उत्तरी अक्षांश से 24 डिग्री 37 मिनट 30 सेकेंड एवं पूर्वी देशान्तर से 79 डिग्री 51 मिनट 40 सेकेंड

ग्रेटर गंगऊ बाँध


 

एफआरएल

284.2 मी

अधि. जलाशय स्तर

284.92 मी.

स्थिर जलाशय स्तर

246.89 मी.

नदी आधार का स्तर

215.28 मी.

एफआरएल पर जल प्रसार

9650 हे.

सजीव भण्डारण

25440 लाख घन मी.

सकल भण्डारण

29830 लाख घनमी.

 

कंक्रीट बाँध


 

नींव स्तर

209.94 मी.

बाँध की ऊँचाई

287.97 मी.

शीर्ष पर चौड़ाई

8.00 मी.

लम्बाई

1205.73 मी.

 

मिट्टी का बाँध


 

बाँध की ऊँचाई

287.97 मी.

शीर्ष चौड़ाई

8.00 मी.

लम्बाई (दोनों तरफ)

1480.80 मी.

जमीन से अधिकतम ऊँचाई

24.49 मी.

 

सम्पर्क नहर


 

आधार की चौड़ाई

14.00 मी.

शीर्ष पर चौड़ाई

3.50 मी.

किनारे का ढाल

1:1.5

आधार का ढाल

1:10000

लम्बाई

212.4 किमी.

डिजाइन निकास

7800 क्यूमेक्स

 

प्रभावित क्षेत्र एवं लोग


 

जलाशय से प्रभावित होने वाले गाँव

19

प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या

3325

वन क्षेत्र

7383 हेक्टेयर

 

रायसेन एवं विदिशा जिलों में बाँध (मध्य प्रदेश.) एनडब्ल्यूडीए द्वारा अनुमानित


 

 

 

प्रस्तावित परियोजनाएँ

बेतवा कम्प्लेक्स

केसारी बाँध

अपर बेतवा

(क + ख)

 

बुरारी

नीमखेड़ा

रिछन

मास्टर प्लान से सिंचाई

696

8

295

21

1020

सालाना सिंचाई वर्ग किमी

870

11

368

18

1267

जल आवश्यकता (लाख घन मी.)

4520

50

1920

100

6590

 

इसके अलावा बेतवा नदी की सहायक काइनू नदी पर 600 लाख घन मी. का एक और बाँध भी होगा। इस तरह केन-बेतवा नदीजोड़ परियोजना में 6 बड़े बाँध बनाए जाएँगे, लेकिन ग्रेटर गंगऊ बाँध के अलावा किसी भी बाँध के बारे में आधारभूत जानकारी भी नहीं दी गई है।

बेतवा नदी घाटी में उप नदीघाटी के आधार पर सतही जल संसाधन (वर्ग किमी)


 

 

क्षेत्र एवं जल संसाधन

     बेतवा नदी घाटी

        

जामिनी नदीघाटी

धसान नदीघाटी

बियरमा नदीघाटी

कुल

निचली

ऊपरी

क.

भौगोलिक क्षेत्र

8635

16876

4510

11102

2772

43895

ख.

कृषि योग्य क्षेत्र (क का प्रतिशत)

6266

(72.57)

10977

(65.05)

3251

(72.08)

6909

(62.23)

2391

(86.26)

29794

(67.88)

ग.

सन 2025 तक दावा

की गई सिंचन क्षेत्र

2424

(38.68)

6089

(55.47)

1607

(49.43)

2450

(35.46)

912

(38.14)

13482

(45.25)

घ.

सतही जल संसाधन की कुल उपलब्धता, लाख घन मी. (घ÷क)

24970

(2.892)

46760

(2.771)

11560

(2.563)

29121

(2.623)

7177

(2.589)

119588

(2.724)

ङ.

सतही जल संसाधन की

आवश्यकता, लाख घन मी (ङ÷ग)

28550

(11.778)

61720

(10.136)

11010

(6.851)

27628

(11.276)

8295

(9.095)

137204

(10.176)

च.

सतही जल की बहुलता/अभाव

-3580

-14960

+550

+1493

-1118

-17616

 

केन नदीघाटी में उप नदी घाटी के आधार पर सतही जल संसाधन (वर्ग किमी)


 

क्रम

विवरण

    केन नदी घाटी

बियरमा नदी घाटी

सोनार

नदी घाटी

कुल नदी घटी

निचला

ऊपरी

क.

भौगोलिक क्षेत्र

8722

6986

5890

6550

28058

ख.

कृषि योग्य क्षेत्र (क का प्रतिशत)

6735

(77.22)

3232

(46.26)

2753

(47.74)

3295

(50.31)

16015

(57.08)

ग.

2025 तक सकल सिंचित क्षेत्र

(ख का प्रतिशत)

5890

(87.45)

1387

(42.91)

1020

(37.05)

1576

(47.83)

9874

(61.65)

घ.

सतही जल की कुल उपलब्धता

लाख घनमी. (घ÷क)

44533

(05.106)

21650

(3.099)

24808

(4.212)

18688

(2.853)

109679

(3.91)

ड.

सतही जल की आवश्यकता,

लाख घन मी. (ङ÷ग)

34129

(5.79)

7823

(5.64)

7364

(7.22)

9521

(6.04)

58828

(5.96)

च.

सतही जल की बहुलता/अभाव

(+)10404

(+)13827

(+17444)

(+)9167

(+) 50851

 

केन-बेतवा सतही जल सन्तुलन (लाख घन मी.)


 

  

केन

बेतवा

कुल

1.

क- 75 प्रतिशत निर्भरता पर कुल सतही

जल उपलब्धता



76576



91962



168539

 

ख – आयात

24269

9552

33821

 

ग – पुनरुत्पादन

8834

18074

26908

 

कुल

109679

119588

229267

2.

सतही जल आवश्यकता

क- घरेलू इस्तेमाल


2204


11033


13237

 

ख - औद्योगिक इस्तेमाल

4028

9035

13063

 

ग – सिंचाई

52603

83010

135613

 

घ – निर्यात

--

38545

38545

 

कुल

58828

137204

196032

3.

बहुलता/अभाव

(+) 50851

(-)17616

(+)33235

 

गंगऊ बाँध तक सतही जल सन्तुलन (लाख घन मी.)


 

क.

75 प्रतिशत निर्भरता पर सकल वार्षिक उपलब्धता

62110

ख.

सतही जल आवश्यकता

सिंचाई के लिये

घरेलू

औद्योगिक

कुल

29690

1330

2360

33380

ग.

निर्यात-डाउनस्ट्रीम सिंचाई आवश्यकता हेतु

22250

 

घ.

पुनः उत्पत्ति

सिंचाई से

घरेलू

औद्योगिक

कुल

1760

1070

1880

4710

ङ.

शुद्ध उपलब्धता (क -ख-ग + घ)

 

11190

 

चार बड़े जलाशय जिनमें बरारी बैराज एवं नीमखेड़ा बाँध बेतवा नदी पर, रिछन बाँध रिछन नदी पर एवं केस्तान बाँध केस्तान नदी पर बनाने का प्रस्ताव किया गया है। मध्य प्रदेश के रायसेन एवं विदिशा जिले में इन जलाशयों की सालाना सिंचाई क्षमता 1.27 लाख हेक्टेयर होगी। एनडब्ल्यूडीए द्वारा जल सन्तुलन अध्ययन 1901 से 1983-84 के आँकड़ों के आधार पर किया गया है।

प्रस्तावित सम्पर्क नहर ग्रेटर गंगऊ बाँध के बिजलीघर संख्या 1 के पिछले हिस्से से 245.5 मीटर की ऊँचाई से केन नदी के बाईं ओर से निकलेगी। ग्रेटर गंगऊ बाँध स्थल पहाड़ियों एवं घने जंगल से घिरा हुआ है। प्रस्तावित सम्पर्क नहर 81 किमी तक लगभग उत्तर दिशा में मध्य प्रदेश में बहेगी एवं वह छतरपुर जिले में भुसोर एवं बन्दारी आरक्षित वनभूमि के इलाके के होकर गुजरेगी। इसके बाद यह पश्चिम दिशा में 131.4 किमी तक उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश. राज्यों की सीमा के पास से गुजरेगी। यह नहर जोबरा गाँव के पास कैनऊ नदी के उस पार अन्तिम जलाशय में गिरने तक अपने रास्ते में बेतवा की एक महत्त्वपूर्ण सहायक नदी धसान, कइ छोटी-छोटी नदियों, राजमार्गों, रेलवे लाइन एवं पबरा एवं मगरवारा आरक्षित वन को पार करेगी। इस जलाशय की भण्डारण क्षमता 600 लाख घन मी. होगी। इस जलाशय में लगा जलकपाट बरुआसागर नाला के लिये पानी का नियंत्रण करेगा, जो कि बेतवा नदी को मौजूदा पारीछा बैराज से 13 किमी अपस्ट्रीम में मिलेगी। उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के बीच हुए समझौते के अनुसार, दोनों राज्य ग्रेटर गंगऊ बाँध से क्रमशः 8500 एवं 13750 लाख घन मी. सतही जल प्राप्त करेंगे। (यह सम्भवतः मौजूदा गंगऊ बाँध के डाउनस्ट्रीम में केन नदी से मौजूदा सिंचाई से सम्बन्धित है, जैसा कि मौजूदा गंगऊ बाँध के सतही जल सन्तुलन में ऊपर दिखाया गया है।)

असन्तुलित जल सन्तुलन आकलन- जल सन्तुलन अध्ययन ही केन-बेतवा नदीजोड़ परियोजना का मुख्य आधार है लेकिन जैसा कि ऊपर दिखाया गया है, उनमें कई समस्याएँ हैं, जिसका वर्णन निम्नलिखित हैः

1. जल सन्तुलन अध्ययन में सबसे मूलभूत समस्या यह है कि इसमें सम्बन्धित नदी घाटियों में भूजल की क्षमता एवं उपयोग के बारे में आकलन नहीं किया गया है। इसके अलावा, वास्तव में पानी की बहुलता या अभाव के बारे में निर्णय करने से पहले इस अध्ययन में वर्षाजल को एक संसाधन एवं वर्षाजल संचयन की क्षमता को भी नहीं देखा गया है।

2. एक अन्य मूलभूत मुद्दा यह है कि प्रस्तावित छः बाँधों के डाउनस्ट्रीम में नदी का पर्यावरणीय प्रवाह बनाए रखने के लिये भी पानी का निर्धारण नजर नहीं आता।

3. जबकि केन नदी घाटी में पानी की बहुलता के बारे में आकलन करते समय यह अनुमान किया गया है कि प्रति हेक्टेयर सिंचाई के लिये 5960 घनमी. पानी की आवश्यकता होगी। यह बेतवा नदी घाटी के मामले में प्रति हेक्टेयर 10180 घनमी. के अनुमान के मुकाबले काफी कम है। इतने बड़े अन्तर के बारे में कोई कारण नहीं दिया गया है। जबकि, हम यदि केन नदी घाटी को जल बहुल एवं बेतवा नदी घाटी को जलाभाव वाली घोषित करने के प्रयास को देखते हैं तो इसके पीछे की मंशा स्पष्ट हो जाती है। केन नदीघाटी में पानी की कम आवश्यकता मानकर यह दिखाने का प्रयास है कि यहाँ पानी की मौजूदगी ज्यादा है एवं यह दिखाकर कि बेतवा नदी घाटी में पानी की ज्यादा आवश्यकता है, नदी जोड़ परियोजना को उचित ठहराने का प्रयास किया गया है जिसका और कोई तार्किक आधार नहीं है।

4. केन नदी घाटी में पानी की बहुलता एवं बेतवा नदी घाटी में जलाभाव घोषित करने का प्रयास एक अन्य उदाहरण से भी स्पष्ट होता है कि बेतवा नदी घाटी में 67.88 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र को कृषि योग्य दिखाया गया है जबकि केन नदी घाटी में इससे बहुत कम अर्थात 57.08 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र को ही कृषि योग्य दिखाया गया है।

5. बेतवा नदी घाटी में लगभग 85 प्रतिशत तथाकथित जलाभाव अपर बेतवा नदी घाटी में दिखता है, जहाँ पर केन-बेतवा नदीजोड़ से पानी नहीं ले जाया जा सकता है। यह जलाभाव इस अनुमान के आधार पर सम्भव बनाया गया है कि ऊपरी बेतवा नदी घाटी का 65.05 प्रतिशत क्षेत्र कृषि योग्य है एवं 55.47 प्रतिशत कृषि योग्य क्षेत्र को सन 2025 तक सिंचित किया जाना है। बेतवा नदी घाटी की समस्त उप नदी घाटियों में से ऊपरी बेतवा उप नदी घाटी की सिंचाई करने योग्य जमीन का प्रतिशत सर्वाधिक दिखाया गया है। इसके ठीक विपरीत अपर केन नदी घाटी में 46.26 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र को कृषि योग्य बताया गया है एवं उनमें से 42.91 प्रतिशत को सन 2025 तक सिंचित करने की आवश्यकता दर्शाई गई है।

6. यह माना गया है कि निचले केन नदी घाटी की 87.45 प्रतिशत जमीन को सन 2025 तक सिंचित किया जाएगा, जबकि वियरमा नदी घाटी में केवल 37.05 प्रतिशत जमीन सिंचित की जाएगी। यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि पहले से ही ज्यादा सिंचाई वाले क्षेत्र में और सिंचाई जबकि असिंचित क्षेत्र को असिंचित रखने का ही विचार है। यह अन्तर और भी चिन्ताजनक हो जाता है जब हम इस तथ्य पर विचार करते हैं कि निचले केन नदी घाटी में 77 प्रतिशत से ज्यादा भौगोलिक क्षेत्र को कृषि योग्य माना गया है, जबकि वियरमा नदी घाटी के मामले में यह मात्र 47 प्रतिशत ही है।

7. बेतवा नदी घाटी के जल सन्तुलन अध्ययन में दिखाया गया है कि 38540 लाख घनमी. पानी बेतवा नदी घाटी से बाहर भेजा जाएगा। इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है कि यह कहाँ भेजा जाएगा और किसलिये भेजा जाएगा। विवादास्पद मुद्दा यह है कि यदि बेतवा नदी घाटी इतनी मात्रा में पानी का निर्यात नहीं करती है तो वह जल बहुलता वाली घाटी हो जाएगी। इसी तरह केन नदी घाटी में 24269 लाख घनमी. पानी आयात (बाहर से लाने) करने एवं बेतवा नदी घाटी में 9552 लाख घनमी. पानी आयात करने के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है कि किस नदी घाटी से एवं क्यों आयात किया जाएगा। यह स्पष्ट है कि एनडब्ल्यूडीए एवं एनसीएईआर दिये गए आँकड़ों के तथ्यों पर ही टिकी हुई जिनकी प्रवृत्ति पक्षपाती जानकारी देने की है, इससे यह शंका उठती है कि परियोजना को तर्कसंगत दिखने योग्य बनाने के लिये आँकड़ों को तोड़ा मरोड़ा गया है।

8. एक और उदाहरण से भी पक्षपात जाहिर होता है जब अध्ययन में बेतवा नदी घाटी को प्रारम्भ से ही (उदाहरणतया-खण्ड 2 पृष्ठ ।।। खण्ड 2 पृष्ठ 6 पर) बार-बार ‘जलाभाव’ वाली बताया गया है, जबकि (एनडब्ल्यूडीए एवं) एनसीएईआर की भूमिका यह अध्ययन एवं परीक्षण करने की थी कि दोनों नदी घाटियों में जल संसाधनों की क्या स्थिति है।

9. एनसीएईआर की अज्ञानता एवं रिपोर्ट का हल्कापन इसी से स्पष्ट हो जाता है जब यह कार्यकारी सारांश (खण्ड 2 पृष्ठ ।।। एवं खण्ड 2 पृष्ठ 3) में बताती है कि केन-बेतवा नदीजोड़ परियोजना मध्य प्रदेश में उज्जैन एवं इन्दौर को लाभ पहुँचाएगी।

10. एनसीएईआर के अध्ययन के हल्केपन का एक और उदाहरण इससे स्पष्ट होता है कि जब पृष्ठ 3 (खण्ड 2) में यह बताती है कि केन-बेतवा नदीजोड़ परियोजना में ‘यमुना नदी पर बड़ा जलाशय बनाना’ शामिल है।

सम्पर्क नहर का प्रस्तावित लाभ क्षेत्र- केन-बेतवा नदीजोड़ परियोजना से सम्पर्क नहर के मार्ग में पड़ने वाले मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में छतरपुर एवं नौगंग तहसील के 89 गाँव एवं टीकमगढ़ जिले के निवारी व जलारा तहसील के 74 गाँव में सिंचाई का प्रस्ताव है। उन तहसीलों एवं इलाकों में सिंचाई प्रदान करने का प्रस्ताव है जिनमें सन 2025 तक कृषि योग्य जमीन का सालाना 30 प्रतिशत से भी कम सिंचाई होना है।

अपर बेतवा नदीघाटी में सिंचाई का प्रसार- उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के बीच बेतवा जल बँटवारे के बारे हुए समझौते के अनुसार मध्य प्रदेश सरकार ने बेतवा के ऊपरी सीमा में रायसेन एवं विदिशा जिले में सिंचाई सुविधा के लिये बरारी बैराज एवं नीमखेड़ा, रिछन एवं केसारी बाँध बनाकर 6590 लाख घनमी. पानी इस्तेमाल करने के लिये एक मास्टर प्लान बनाया है। बेतवा के ऊपरी सीमा में इस्तेमाल होने वाले पानी को भरने के लिये केन-बेतवा सम्पर्क नहर से उतनी ही मात्रा (6590 लाख घनमी.) में पानी उपलब्ध कराया जाएगा। यह प्रस्ताव है कि ऊपरी बेतवा कॅम्पलेक्स 125 प्रतिशत सिंचाई क्षमता के साथ सालाना 1.27 लाख हेक्टेयर जमीन को सिंचाई प्रदान करेगी। इसका मतलब हुआ कि प्रति हेक्टेयर जमीन सिंचाई के लिये 5189 घनमी. पानी दिया जाएगा।

पारीछा बैराज के 13 किमी अपस्ट्रीम में बेतवा में केन का पानी स्थानान्तरित करने के कारण अब तक 30 प्रतिशत से कम कृषि योग्य जमीन वाले तहसील सन 2025 तक सिंचाई का लाभ प्राप्त करेंगे (महोबा, मौरानीपुर, झाँसी, कोंच एवं हमीरपुर)। इन तहसीलों में सालाना 69194 हेक्टेयर जमीन के लिये 3650 लाख घनमी. पानी का इस्तेमाल होगा। इसका मतलब है कि प्रति हेक्टयेर सिंचाई के लिये 5275 घनमी. पानी इस्तेमाल होगा।

प्रस्तावित सिंचाई लाभों पर सवाल- प्रस्तावित केन-बेतवा नदीजोड़ परियोजना से दर्शाए गए सिंचाई लाभ काफी सन्देहपूर्ण प्रतीत होते हैं। कुछ कारण ऊपर दिखाए गए हैं जब जल सन्तुलन अध्ययन में कई मूलभूत गलतियाँ की गई हैं। वास्तव में केन एवं बेतवा नदीघाटियों में वर्षाजल एवं भूजल का इस्तेमाल इतना कम है, जिससे यह दिखता है कि यदि केन एवं बेतवा नदी घाटियों में सिंचाई की आवश्यकता ही पूरा करने का मूल्य लक्ष्य है तो इससे बेहतर विकल्प मौजूद हैं।

यदि केन-बेतवा नदीजोड़ परियोजना में जल निर्धारण एवं सिंचाई किये जाने वाले क्षेत्र को देखें तो, हम पाते हैं कि परियोजना से सिंचित होने वाले प्रत्येक हेक्टेयर जमीन के लिये 5189 घनमी. से लेकर 5275 घनमी. पानी निर्धारित किया गया है। यदि बेतवा नदी घाटी के जल सन्तुलन में 10180 घनमी. प्रति हेक्टेयर सिंचाई प्रदान करने का अनुमान किया गया है तो उसी बेतवा नदी घाटी में सम्पर्क नहर से सिंचित होने वाले इलाकों के लिये लगभग आधे पानी का निर्धारण किया गया है? या फिर यह प्रस्तावित सिंचन क्षेत्र को हासिल किये जा सकने वाले स्तर से ऊपर करने का प्रयास है?

लागत आकलन- पूरी केन-बेतवा नदीजोड़ परियोजना दो इकाईयों में बँटी हुई है। इकाई-1 केन-बेतवा नदीजोड़ परियोजना के कार्यों से एवं इकाई-2 सम्पर्क नहर एवं अन्य नहर नेटवर्कों से सम्बन्धित है, जिसमें बेतवा की ऊपरी सीमा एवं पारीछा बैराज के डाउनस्ट्रीम से यमुना के संगम तक निचली बेतवा नदी घाटी शामिल है।

 

 

लागत रु. में (1989-90 की कीमत पर)

इकाई 1

1.59 अरब

इकाई 2

0.3995 अरब

कुल

1.99 अरब

 

पर्यावरणीय प्रभाव केन-बेतवा नदीजोड़ परियोजना में बनने वाले 6 बाँधों में से केवल एक ‘ग्रेटर गंगऊ बाँध’ के बारे में एनएसीएइआर के अध्ययन में जिक्र किया गया है। अन्य बाँधों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है। इस तरह जब तक समस्त बाँधों एवं नहरों के बारे में पूरी जानकारी उपल्बध नहीं हो जाती तब तक प्रस्तावित बाँधों एवं नहरों के असर के बारे में जाना नहीं जा सकता।

ग्रेटर गंगऊ बाँध के लिये चुने गए स्थल का बायाँ किनारा धीरे-धीरे उठता हुआ पहाड़ी ढलान है एवं दायाँ किनारा खड़ी ढलान वाला है। पहाड़ी ढलानों से कई धाराएँ नीचे बहकर आती हैं एवं गली बनाती हैं। जलाशय से पूर्ण जलाशय स्तर तक डूब में आने वाला अनुमानित क्षेत्र 9605 हेक्टेयर (खण्ड 2 पृष्ठ 16) या लगभग 10000 हेक्टेयर (खण्ड 2 पृष्ट 17), जो मध्य प्रदेश के पन्ना, छतरपुर एवं दमोह जिले के अन्तर्गत आते हैं। जलाशय क्षेत्र के पास के धाराओं के फैल जाने से उनकी सुरक्षा एवं मिट्टी के तटबन्ध कमजोर हो सकते है। इससे गादजमाव में बढ़ोत्तरी हो सकती है।नदीजोड़ योजना के कार्यदल के स्रोत के अनुसार डौढ़न जलाशय से कुल 8650 हेक्टेयर जमीन डूब में आएगी, जिसमें से 6400 हेक्टेयर वनभूमि होगा। इस डूब से 10 गाँवों के 8550 लोग प्रभावित होंगे।

284.2 मीटर के पूर्ण जलाशय स्तर तक डूब में 3750 हेक्टेयर वन, 2510 हेक्टेयर कृषि योग्य जमीन एवं 3740 हेक्टेयर अन्य जमीन आएँगे। जलाशय से सटे हुए एवं केन नदी का दक्षिणी हिस्सा पन्ना जिले के अन्तर्गत आएगा एवं श्यामरी नदी के बगल का पश्चिमी हिस्सा मध्य प्रदेश के छतरपुर एवं दमोह जिले के अन्तर्गत आएगा। स्थलाकृति अध्ययन के अनुसार जो गाँव पूरी तरह डूब में आएँगे उनमें डौढ़न (बाँध स्थल), खरयानी (डौढ़न से 5 किमी दक्षिण), पलकोहा (डौढ़न से 4.5 किमी दक्षिण पश्चिम), सुकवाहा (पलकोहा से 6 किमी दक्षिण पश्चिम), भोरकुआ (सुकवाहा से 3 किमी दक्षिण पश्चिम) बसुधा (भोरकुआ से 5.5 किमी दक्षिण पश्चिम) एवं घुघारी शामिल हैं। करीब 30 किमी लम्बी सड़क (गंगऊ-पलकोहा-सुकवाहा-भोरकुआ-बसुधा-शाहपुरा) भी डूब में आ जाएगी। मनियारी एवं पड़रिया गाँव भी प्रभावित होंगे, लेकिन एनसीएइआर का दावा है कि ये ऊपर दर्शाए गए गाँव के हिस्से हैं। एनसीएइआर द्वारा स्वीकार किया गया है कि कई अन्य गाँव भी प्रभावित होंगे, लेकिन एनसीएईआर के पास इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। एक जगह पर (पृष्ठ 77 खण्ड 2) एनसीएईआर बताती है कि 19 गाँव प्रभावित होंगे लेकिन प्रभावित होने वाले लोगों के बारे में कोई विवरण नहीं दिया गया है।

डूब के लिये चिन्हित संरक्षित वन उत्तर में जलाशय क्षेत्र से दूर है लेकिन दक्षिण का एक हिस्सा संरक्षित वन के अन्तर्गत आता है जिसमें पन्ना राष्ट्रीय पार्क शामिल है। लगभग सभी पहाड़ी ढलान घने एवं पतझड़ी मिश्रित जंगल वाले हैं, जिनमें सदाबहार से अर्ध-सदाबहार व कुछ मरूभिद से अर्ध-मरूभिद प्रजातियों के जंगल शामिल हैं।

यह दावा किया गया है कि नहर का डिजाइन आर-पार के पर्याप्त बहाव के अनुरूप होगा। सतही भूजल का आवागमन नहर के रास्ते में प्रभावित हो सकता है। यह दावा किया गया है कि सम्पर्क नहर पूरी तरह सींमेंट प्लास्टर युक्त होगा।

जलाशय के आस-पास के गाँव गन्दे पानी के निकासी की समस्या का सामना करेंगे, क्योंकि बगल में जलाशय होने के कारण मौजूदा निकास अप्रभावी हो जाएँगे। डूब में आने वाले गाँवों से कुल 600 परिवारों के 3250 लोग डूब से प्रभावित होंगे। इनमें अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजातियों की संख्या क्रमश: लगभग 34.38 प्रतिशत एवं 15.54 प्रतिशत है। ये गाँव जंगल के अन्तर्गत आते हैं। भीतर के गाँवों में अनुसूचित जातियों की संख्या काफी ज्यादा है, उदाहरण के तौर पर घुघरी गाँव में 91.84 प्रतिशत लोग अनुसूचित जनजाति के हैं। आस-पास के गाँव के लोग भी प्रभावित होंगे, लेकिन इस बारे में कोई जानकारी मौजूद नहीं है।

वर्तमान में गाँववासियों द्वारा गाँव के अन्दर कुओं एवं आस-पास के झरनों का उपयोग किया जाता है। कुएँ ज्यादातर कम गहराई वाले (3-6 मी.) हैं एवं उनमें भूजल काफी मात्रा में उपलब्ध है।

उस क्षेत्र के आस-पास के डूब सम्भावित पूरे इलाके पहुँच में न होने के कारण एनसीएईआर सोसियो इकॉनोमिक एंड एनवायरनमेंटल इम्पैक्टस ऑफ द प्रोजेक्ट अध्ययन में परीक्षण नहीं कर सकी है। जबकि इलाके के थोड़े से हिस्से का अध्ययन किया गया एवं बाकी के लिये उन जीववैज्ञानिक एवं जलीय जीववैज्ञानिक आँकड़ों को भूजल के प्रभाव का आकलन करने में उपयोग किया गया। इन गाँवों के लिये बेहतर सतही निकासी करने वाली नदियों की भूमिका बुरी तरह प्रभावित होगी। भूजल स्तर में तो बढ़ोत्तरी होगी एवं पर्यावरण में आमतौर पर गिरावट आएगी।यदि ठीक तरीके से जल वितरण योजना तैयार एवं लागू नहीं किया जाता है तो लाभ क्षेत्र जल-जमाव से प्रभावित होंगे। सड़क के किनारे के कुछ इलाके, जहाँ से नहर गुजरेगी, वे परिवर्ती ग्रेनाइट एवं पटिताष्म चट्टानों पर स्थित कुओं एवं कम गहराई वाले नलकूपों के पानी पर आश्रित हैं। नहर निर्माण से इन चट्टानों के जलग्रहण क्षेत्रों के डूब में आने की सम्भावना है, जिससे पेयजल में कमी आएगी।

एनसीएईआर अध्ययन क्या नहीं कहती- पन्ना बाघ रिजर्व में डूब की वजह से होने वाला प्रभाव काफी ज्यादा एवं गम्भीर होगा। पन्ना बाघ रिजर्व के अधिकृत वेबसाइट के अनुसार, रिजर्व के बीच से दक्षिण से उत्तर की ओर बहने वाली केन नदी घड़ियालों एवं मगरमच्छों का निवास स्थान है एवं यह सबसे कम प्रदूषित नदियों में से एक है। यह मध्य प्रदेश के 16 बारहोमासी बहने वाली नदियों में से एक है एवं वास्तव में यह रिजर्व की जीवनरेखा है। केन नदी पर्यटकों के लिये बहुत शानदार दृश्य उपस्थित करती है एवं यह रिजर्व में करीब 55 किमी तक फैली हुई है। (http ://www.pannatigerreserve.org) जब ग्रेटर गंगऊ बाँध बनेगा तब जलाशय पन्ना बाघ रिजर्व के न सिर्फ महत्त्वपूर्ण हिस्सों को डुबो देगी बल्कि जलाशय के आसपास गाद-जमाव हो जाने के कारण यह रिजर्व के वन्यजीवों को नियमित बहने वाले पानी तक पहुँचने से वंचित कर देगी। इसके अलावा, प्रस्तावित केन-बेतवा नदीजोड़ परियोजना के डाउनस्ट्रीम में स्थित केन घड़ियाल अभयारण्य भी नदी में साफ पानी का प्रवाह रुकने के कारण प्रभावित होगा।

सिर्फ ग्रेटर गंगऊ बाँध से ही अकेले 3750 हेक्टेयर से ज्यादा जंगल डूब में आएँगे, उससे स्वयं में काफी असर होगा। इसका मतलब वन्यजीव एवं समस्त जैवविविधता की क्षति, इससे वर्षाजल सोखने की पारिस्थितिकी की क्षति होगी जिससे बरसाती मौसम में ज्यादा पानी का प्रवाह एवं गैर बरसाती मौसमों में पानी की कमी, आस-पास के संसाधनों में कमी एवं वन्यजीवों के निवास स्थान में कमी आएगी।

पन्ना बाघ रिजर्व के बारे में मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग का अधिकृत वेबसाइट (http ://www.mptourism.com/dest/khaj_exc.html) कहता है कि ज्यादा सम्भव है कि लुप्त प्राय प्रजाति वाला चीता स्याहगोष यहाँ अक्सर दिखे। ग्रेटर गंगऊ बाँध बनने से यह सम्भावना हमेशा के लिये डूब जाएगी।

पन्ना बाघ रिजर्व के अधिकृत वेबसाइट (http ://panna.nic.in/tiger.html) के अनुसार रिजर्व में निम्नलिखित लुप्तप्राय प्रजातियाँ हैं: बाघ, चीता, स्याहगोश, चौसिंगा हिरण, भारतीय भेड़िया, साल चित्तीदार बिल्ली, रीछ एवं घड़ियाल पार्क में पाये जाते हैं, जो वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसूची-1 में शामिल कर लिये गए हैं। प्रस्तावित ग्रेटर गंगऊ बाँध से उनके निवास बुरी तरह प्रभावित होंगे।

क्या एनसीएईआर को पर्यावरण असर आकलन (एआईए) का मतलब मालूम है?- खण्ड 2 अध्याय 2 के प्रारम्भ में एनसीएईआर ने ‘पर्यावरण असर का व्यापक आकलन’ के लिये आवश्यक ‘विस्तृत आँकड़े’ अधिसूचित किया है। वैसे तो यह अविश्वसनीय लगता है, लेकिन इस सूची में लाभ क्षेत्र में प्रभाव (जल-जमाव, क्षारीयकरण, जल-निकास), डाउन स्ट्रीम असर, जैवविविधताओं पर असर, वन की क्षति, पानी की वहन क्षमता, डाउनस्ट्रीम में एकाएक पानी छोड़ने पर प्रभाव, भूगर्भीय, भूकम्पीय मुद्दे, गादजमाव एवं जलग्रहण क्षेत्र विकास आदि को छोड़ दिया गया है एवं सिर्फ कुछ का ही नाम दिया गया है। इससे यह बात उठती हैं कि क्या एनसीएईआर इआईए का मतलब समझती है एवं क्या वह ऐसे अध्ययन करने योग्य है या नहीं। जैसा कि हम जानते हैं, नदीजोड़ के लिये बने कार्यदल ने एनसीएईआर को इआईए का कार्य सौंपा है। इससे तो विभीषिका बुलाने जैसा प्रतीत होता है।

नदीजोड़ परियोजनाओं के लिये पुनर्वास- एनसीएईआर के अध्ययन के अनुसार, एनडब्ल्यूडीए ने प्रभावित होने वाले लोगों के पुनर्वास के लिये कोई ठोस योजना नहीं तैयार की है। इस तरह सम्भावित प्रभावित लोग किसी पुनर्वास पैकेज के बारे में जागरूक नहीं हैं।

एनसीएईआर के अध्ययन के अनुसार, केन-बेतवा नदीजोड़ पर परियोजना से कुल 600 परिवारों के 3250 लोग विस्थापित होंगे। एनसीएईआर के अध्ययन के खण्ड 1 के अनुसार उस क्षेत्र में प्रति परिवार 6.5 व्यक्ति का औसत बताया गया है। इसका मतलब हुआ कि 600 परिवार के हिसाब से 3900 लोग विस्थापित होने चाहिए। जबकि, उस इलाके के जनसंख्या घनत्व को आधार माने तो करीब 10,000 परिवार (65000 लोग) तो सिर्फ ग्रेटर गंगऊ बाँध से ही विस्थापित होंगे। पाँच अन्य बाँधों, सम्पर्क नहर या डाउनस्ट्रीम इलाकों या सम्बन्धित ढाँचों की वजह से डूब के बारे कोई जानकारी मौजूद नहीं है।

जबकि खण्ड 2 के परिशिष्ट 7 में एनसीएइआर ने विभिन्न राज्यों एवं विभिन्न परियोजनाओं के मानकों को दर्शाने का प्रयास किया है। इस तरह, या तो वह प्रावधानों के बारे में नहीं जानती या तो फिर गुमराह करने का प्रयास करती है। इस तरह तो एनसीएईआर भविष्य में ऐसे किसी कार्य के लिये अयोग्य हो सकती है। एक छोटा सा उदाहरण ही लेते हैं, एनसीएइआर कहती हैं कि सरदार सरोवर परियोजना के मामले में 4 एकड़ तक जमीन वालों को जमीन के बदले जमीन, 4 से 12 एकड़ तक जमीन वालों को 4 एकड़ जमीन, 12 से 15 एकड़ जमीन वालों को एक तिहाई जमीन दिये जाने का मानक है। जबकि मानक यह है कि डूब में आने वाले गाँवों के भूमिहीन एवं अतिक्रमणकारियों सहित समस्त परिवारों को कम-से-कम 5 एकड़ सिंचित जमीन (सिंचाई व्यवस्था राज्य सरकार द्वारा) उपलब्ध कराई जाएगी एवं प्रत्येक वयस्क पुत्र को (कुछ राज्यों में पुत्रियाँ भी) अलग परिवार माना जाएगा। यहाँ तक कि भूमिहीन भी इस प्रावधान के अन्तर्गत जमीन के हकदार होंगे। इस तरह मौजूदा प्रावधानों के बारे में इमानदारी से न बताना एनसीएईआर का प्रभावित होने वाले लोगों के विरुद्ध पूर्वाग्रह को दर्शाता है।

इस तरह स्पष्ट है कि डूब का परिमाण, विस्थापन की संख्या का भी अभी तक पता नहीं है जिससे कि पुनर्वास योजना तैयार हो सके या प्रभावित लोगों को विश्वास में लेकर परियोजना के बारे उनकी स्वतंत्र, पूर्व एवं जानकारी सहित सहमति ली जा सके या फिर उस क्षेत्र के सिंचाई के विकल्पों के बारे में जाना जा सके। जैसा कि इस रिपोर्ट के पहले हिस्से में बताया गया है, केन एवं बेतवा नदी घाटियों में बाँधों से हुए विस्थापितों का भी पूरी तरह एवं सही तरीके से पुनर्वास अभी होना बाकी है। जैसा कि विश्व बाँध आयोग की रिपोर्ट में सिफारिश किया गया है, जब तक अनसुलझे मामले नहीं सुलझते हैं, नदी घाटी में और किसी अन्य विस्थापन के बारे में विचार नहीं किया जा सकता।

जन जागरूकता- प्रस्तावित नदीजोड़ परियोजना के लिये एनसीएईआर ने लाभ क्षेत्र के लाभ क्षेत्र के लोगों की जागरूकता के बारे में जानने का प्रयास किया है। केवल 8 प्रतिशत लोग ही परियोजना के बारे में जानते हैं, जबकि 92 प्रतिशत लोग नहीं जानते हैं। यह स्पष्ट रूप से बताता है कि परियोजना के लिये पूर्व सम्भाव्यता एवं सम्भाव्यता अध्ययन जब किया गया (जो कि करने का दावा किया गया है), तब स्थानीय लोगों को प्रस्ताव के बारे में बताया नहीं गया।

सिंचाई के बारे में विचार- क्षेत्रीय जाँच के दौरान एनसीएईआर ने प्रस्तावित सम्पर्क परियोजना के लाभ क्षेत्र में मौजूदा सिंचाई सुविधाओं सहित विभिन्न सामाजिक-आर्थिक एवं कृषि-आर्थिकी मानकों के बारे में जानने का प्रयास किया है। सिंचाई सुविधाओं की गुणवत्ता के बारे में लाभ क्षेत्र के 72.4 प्रतिशत लोगों का कहना है कि सिंचाई सुविधा पर्याप्त नहीं है, जबकि 27.6 प्रतिशत लोगों का मानना है कि मौजूदा सिंचाई सुविधाएँ पर्याप्त हैं। एनसीएईआर के अनुसार, यह अतिरिक्त सिंचाई क्षमता तैयार करने की आवश्यकता जताती है। यह पूरी तरह से गलत एवं पूर्वाग्रही निष्कर्ष एवं परिणामों को गलत तरीके से पेश करना है। प्रश्न गुणवत्ता का था, न कि सिंचाई की मात्रा का। फिर भी यदि सिंचाई की सुविधा मात्रात्मक तौर पर अपर्याप्त है तो इसके लिये कई अन्य विकल्प भी मौजूद है एवं सम्पर्क नहर ही सबसे अच्छा विकल्प नहीं है।

सम्पर्क नहर के लाभ क्षेत्र के निवासियों को उनके इलाके में सिंचाई सुविधाओं के विकास के बारे सुझाव माँगे गए। उनकी प्रतिक्रियाएँ इस प्रकार हैं:

 

क्रम

आवश्यक सिंचाई सुविधा

प्रतिशत

1.

नहर

11.8

2.

लिफ्ट सिंचाई

49.2

3.

कुआँ/नलकूप

26.8

4.

तालाब

5.3

5.

अन्य

6.5

6.

कोई प्रतिक्रिया नहीं

0.4

 

योग्य

100

 

ज्यादातर जवाब देने वालों ने लिफ्ट सिंचाई एवं कुआँ-नलकूपों को अपर्याप्त सिंचाई सुविधा के हल के तौर पर सुझाया है। यह स्पष्ट करता है कि बहुसंख्यक लोग केन-बेतवा नदीजोड़ जैसी परियोजना के पक्ष में नहीं है। वास्तव में केवल 11.8 प्रतिशत निवासियों ने ही अतिरिक्त सिंचाई के लिये नहर को प्राथमिकता दिया है। स्थानीय लोगों का मत स्पष्ट रूप से केन-बेतवा नदीजोड़ परियोजना के खिलाफ है।

केन नदी घाटी में सम्भावित असर- प्रस्तावित सम्पर्क नहर से छतरपुर, टीकमगढ़ एवं झाँसी की हजारों हेक्टेयर कृषि योग्य जमीन डूब जाएगी। गंगऊ एवं बरियारपुर प्रस्तावित बाँध के डाउनस्ट्रीम में मौजूद हैं। प्रस्तावित नदीजोड़ से दोनों मौजूदा परियोजनाओं के सिंचाई क्षेत्र गम्भीर रूप से प्रभावित होंगे। छतरपुर एवं टीकमगढ़ में हजारों हेक्टेयर कृषि योग्य जमीन नहरों हेतु लिये जाएँगे। प्रस्तावित बाँध से डौढ़न के पास के गाँवों के हजारो लोग विस्थापित होंगे। जलाशय के कारण पन्ना बाघ रिजर्व का प्रमुख हिस्सा भी डूब जाएगा। गंगऊ बाँध बरियारपुर बैराज का आपूर्ति बाँध है, जिससे बैराज को गैर-बरसात के मौसम में कम या नहीं के बराबर पानी मिलेगा। यहाँ तक कि बरसात के मौसम में ग्रेटर गंगऊ बाँध भर रहा होगा तो उस समय या तो गंगऊ बाँध के लिये या फिर बरियारपुर बैराज एवं उसके लाभ क्षेत्र के लिये पानी नहीं होगा। इस तरह यदि केन नदी का सब पानी ग्रेटर गंगऊ बाँध में रोक लिया जाता है या फिर बेतवा में स्थानान्तरित कर दिया जाता है तो गंगऊ एवं बरियारपुर जलाशय साल के ज्यादातर समय सूखे हो सकते हैं।

बेतवा नदी घाटी में असर-बेतवा नदी घाटी में अतिरिक्त पानी से हमीरपुर, महोबा, बाँदा एवं जालौन जिले में जल-जमाव की स्थिति आ सकती है। ज्यादा पानी हमीरपुर (महोबा सहित) बाँदा एवं जालौन जिले को बाढ़ सम्भावित बना सकते हैं। इन तीनों जिलों में भूजल का विकास काफी कम हुआ है, जो कि बाँदा में 12 प्रतिशत और हमीरपुर एवं जालौन जिले में 10 प्रतिशत है।

1. ये जिले बरुआसागर जलाशय के डाउनस्ट्रीम में स्थित हैं। संयुक्त हमीरपुर जिले का क्षेत्रफल 7165 वर्ग किमी है। दोनों जिलों में 364218 हेक्टेयर क्षेत्र भूमि कटाव से प्रभावित हैं जो कि कुल क्षेत्र का 50.56 प्रतिशत है।

2. बाँदा जिले का कुल क्षेत्रफल 7624 वर्ग किमी है। इस जिले में 7 प्रमुख जलछाजन व्यवस्थाएँ हैं एवं जिनके काफी बड़े कटाव क्षेत्र है। इस जिले में भूमि कटाव से प्रभावित कुल क्षेत्र 12 लाख हेक्टेयर है।

3. जालौन जिले का कुल क्षेत्रफल 4565 वर्ग किमी है एवं कुल कृषि योग्य क्षेत्र 341818 हेक्टेयर है। लघु सिंचाई व्यवस्थाओं द्वारा सिंचित होने वाले क्षेत्र 1140000 हेक्टेयर हैं।

उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश में असहमति


प्रस्तावित योजना में उत्तर प्रदेश की दो प्रमुख आपत्तियाँ हैं:

1) इस परियोजना में मध्य प्रदेश द्वारा जल उपलब्धता का आकलन सही नहीं है।

2) उत्तर प्रदेश द्वारा वर्तमान में इस्तेमाल किये जाने वाले पानी की मात्रा से अतिरिक्त का प्रावधान नहीं किया गया है, जबकि अतिरिक्त पानी का बँटवारा उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के बीच बराबर-बराबर होना चाहिए।

एनडब्ल्यूडीए के अनुसार, ग्रेटर गंगऊ बाँध में उपलब्ध 60660 लाख घनमी. में से 32480 लाख घनमी. पानी वर्तमान में इस्तेमाल में है। इसमें से 22210 लाख घनमी. मध्य प्रदेश के डाउनस्ट्रीम में इस्तेमाल के लिये एवं 10270 लाख घनमी. उत्तर प्रदेश में केन नहर के लिये है। शेष पानी (28180 लाख घनमी) के बारे में उत्तर प्रदेश का दावा है कि उसे दोनों राज्यों में बराबर-बराबर बाँटा जाना चाहिए। मध्य प्रदेश इस दावे से सहमत नहीं है। मध्य प्रदेश 37 टीएमसी से ज्यादा पानी आपूर्ति करने के लिये तैयार नहीं है, जो कि 1972 के समझौते के अनुरूप है।

मूलभूत अनसुलझे मुद्दे- इस नदीजोड़ परियोजना के बारे में उपलब्ध जानकारियों के आधार पर उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि यह कई अन्य कारणों सहित निम्न कारणों से मूलभूत तौर पर कमजोर है।

1. प्रस्ताव के बारे में समस्या- पूरा प्रस्ताव ही छल-कपटपूर्ण जल सन्तुलन आकलन के आधार पर जल बहुलता एवं जलाभाव के विरोधाभाष पर टिका हुआ है। ध्यान से देखा जाय तो केन नदी घाटी में जल बहुलता की स्थिति नहीं है एवं बेतवा नदी घाटी में कई स्थानीय विकल्प हैं जिन्हें उपयोग में नहीं लाया गया है।

2. आवश्यकता- यह स्पष्ट नहीं है कि मूल रूप से आवश्यकता क्या है, जिसके लिये परियोजना को आगे बढ़ाया जा रहा है। प्रस्ताव इस बात की व्याख्या नहीं करता कि किसलिये परियोजना की आवश्यकता है।

3. वांछनीयता- जब परियोजना से दोनों नदी घाटियों में होने वाले असरों को देखें तो यह लाभ के मुकाबले ज्यादा विनाशकारी है, यदि समस्त लागतों को इमानदारी से जोड़ा जाय तो यह शायद ही वांछनीय सिद्ध हो।

4. निर्णय प्रक्रिया- स्थानीय लोगों की परियोजना के निर्णय प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं है। वास्तव में जैसा कि एनसीएईआर के सर्वेक्षण से स्पष्ट है कि वे परियोजना के बारे में जानते तक नहीं हैं। और न ही उन्हें ऐसे किसी परियोजना की आवश्यकता है, जैसा कि एनसीएईआर के अगले सवाल से स्पष्ट है।

विकल्प- उपरोक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि दोनों नदी घाटियों में मौजूदा ढाँचाओं का अनुकूलतम स्तरों तक उपयोग नहीं किया गया है। मौजूदा ढाँचों से ही ज्यादा सिंचाई, जलापूर्ति, बिजली एवं बाढ़ नियंत्रण के लाभों को प्राप्त करने की अपार सम्भावना है। इसके अलावा, वर्षाजल संचयन, भूजल पुनर्भरण, भूजल उपयोग, जलछाजन प्रबन्धन आदि स्थानीय विकल्पों की भी अपार सम्भावनाएँ हैं। वास्तव में ऐसे विकल्प नदी घाटियों में विकास क्षमता एवं रोजगार बढ़ाने का सबसे अच्छा विकल्प है।

1. लागत- परियोजना की पूरी लागत अभी तक अनजानी है। यदि कम लागत के विकल्प मौजूद हों तो ऐसी ज्यादा लागत, सवालिया एवं गैरटिकाऊ लाभों वाली परियोजनाओं को क्यों आगे बढ़ाया जाय?

2. व्यवहार्यता- क्या परियोजना एवं दावा किये गए लाभ व्यवहार्य होंगे? उपरोक्त जल सन्तुलन अध्ययन से स्पष्ट है कि परियोजना पानी एवं अन्य सम्बन्धित संसाधनों की व्यवहार्यता के मामले में भी अनुपयुक्त है।

3. समाजिक एवं पर्यावरणीय असर आकलन- उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि परियोजना की मूलभूत सामाजिक एवं पर्यावरणीय असर अभी अनजानी है। यहाँ तक कि प्रस्तावित छः बाँधों में से पाँच बाँधों से डूब में आने वाली जमीनों एवं जंगलों के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। दोनों नदी घाटियों में पहले के बने हुए बाँधों के अनसुलझे सामाजिक एवं पर्यावरणीय मुद्दे यह दर्शाते हैं कि परियोजनाकारों की विश्वसनीयता एवं इच्छाशक्ति या ऐसे मुद्दों पर ध्यान देने क्षमता बहुत ही कम है। यदि वे दिखाना चाहते हैं कि पुनर्वास सम्भव है तो पहले से विस्थापित हुए लोगों का पुनर्वास करें। साथ ही यदि वे यह दिखाना चाहते हैं कि पर्यावरणीय मुद्दों पर ध्यान दिया जा सकता है तो दोनों नदी घाटियों में मौजूदा परियोजनाओं के पहले के बकाया पर्यावरणीय मुद्दों पर सबसे पहले ध्यान दें।

सूखा एवं बाढ़- नदीजोड़ परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के पीछे सबसे प्रमुख तर्क यह दिया जाता है कि बाढ़ प्रभावित नदी घाटियों से सूखा प्रभावित नदी घाटियों में जल स्थानान्तरण करके समस्या का हल किया जा सकता है। इस मामले में, दोनों नदी घाटियों में सूखा एवं बाढ़ साथ-साथ आते हैं। दोनों ही नदी घाटियों की एक जैसी भौगोलिक एवं भूगर्भीय विशेषताएँ हैं। इस दृष्टि से भी परियोजना को आगे बढ़ाने का काई आधार नहीं बनता।

क्षेत्र में अन्य परियोजनाएँ


 

क्र.

परियोजना

वर्ष

नदी

राज्य

किस्म

ऊँचाई (मी)

जलाशय की सकल क्षमता (लाख घन मीटर)

उद्देश्य

स्पिलवे की अधि. निकास क्षमता

जलग्रहण क्षेत्र (वर्ग किमी.)

1.

ब्यूचोर

1964

अरलकेर

मध्य प्रदेश

मिट्टी

20

76.4

सिं

47

-

2.

राजपुर

1926

अर्जुन नाला

उत्तर प्रदेश

मिट्टी

13

66.2

सिं

193

-

3.

बरुआ

1964

बरुआ

उत्तर प्रदेश

मिट्टी

20

394.9

सिं

535

-

4.

बरुआर

1923

बउरा

उत्तर प्रदेश

मिट्टी

21

337.8

सिं

238

-

5.

बिलानदी

1973

बिलानदी

मध्य प्रदेश

मि/ग्रे

32

636.9

सिं

448

-

6.

बुढ़नाला

1967

बुढ़ा

मध्य प्रदेश

मिट्टी

15

86.6

सिं

97

-

7.

चंदिया

1927

चंदिया नाला

मध्य प्रदेश

गेविटी

25

58.6

सिं

506

-

8.

कोटरा खम्भा

1915

हगनी नदी

उत्तर प्रदेश

मिट्टी

18

38.2

सिं

65

-

9.

हलाली जलाशय

1976

हलाली

मध्य प्रदेश

मिट्टी

30

2528

सिं

1189

-

10.

जयवंती

1929

जयवंती

उत्तर प्रदेश

मिट्टी

15

94.3

सिं

44

-

11.

सलारपुर

1960

करीपा

उत्तर प्रदेश

मिट्टी

11

40.2

सिं

--

-

12.

दरोली टैंक

1963

करकरा धारा

मध्य प्रदेश

मिट्टी

17

48.7

सिं

215

2.26

13.

खंडेहा

1929

खंडेहा

उत्तर प्रदेश

मिट्टी

14

26.9

सिं

128

 

14.

खपरार बाँध

 

खपरार

उत्तर प्रदेश

-

-

35

सिं, पे

 

27.70

15.

तेजगढ़ टैंक

1959

लमटी धारा

मध्य प्रदेश.

मिट्टी

26

67.9

सिं

285

-

16.

औंझार

1931

स्थानीय धारा

उत्तर प्रदेश

मिट्टी

22

43.5

सिं

172

-

17.

कबराई झील

1956

मैंगरिया

उत्तर प्रदेश

मिट्टी

15

132.2

सिं

340

-

18.

मगरपुर

1920

मिंद

उत्तर प्रदेश

मिट्टी

16

24.6

सिं

173

-

19.

मोतीनाला टैंक

1957

मोती धारा

उत्तर प्रदेश

मिट्टी

16

29.02

सिं

173

-

20.

बाल्मिीकी ओहेन सरो.

1962

ओहेन

उत्तर प्रदेश

मिट्टी

24

383.7

सिं

1415

-

21.

डोंगरी

1986

पाहुज

उत्तर प्रदेश

-

-

-

सिं,पे

-

141.5

22.

पाहुज जलाशय

8वीं यो.

पाहुज

उत्तर प्रदेश

-

-

150

सिं,पे

-

-

23.

देवेन्द्र नगर

1969

सेकरा धारा

मध्य प्रदेश

मिट्टी

18

56.8

सिं

77

4.65

24.

मोला

1929

सोन धारा

मध्य प्रदेश

मिट्टी

22

199.6

सिं

615

2.26

25.

रामपुर कल्यान

1925

स्था. धारा

उत्तर प्रदेश

मिट्टी

13

18.5

सिं

110

-

26.

कराही

1973

सुनेही

मध्य प्रदेश

मिट्टी

18

38.2

सिं

360

-

27.

खपटिया

1919

थोटा

उत्तर प्रदेश

मिट्टी

16

60.3

सिं

188           -

 

28.

बुरहा

1962

बेरीहड़ी

मध्य प्रदेश

मिट्टी

16

83.1

सिं

297

-

 

बुन्देलखण्ड एवं आस-पास के क्षेत्र में वर्षा एवं भूजल क्षमता (1990)


 

क्र.

जिला

क्षेत्र वर्ग किमी

वर्षा (मिमी.)

सालाना पुनर्भरणीय

भूजल, लाख घनमी

भूजल विकास का प्रतिशत

वनक्षेत्र

(प्रतिशत)

कृषि योग्य क्षेत्र हे.

1.

बांदा

छ.सा.न

7624

1024

14260

12

11

498047

2.

छतरपुर

8687

1083

10360

24.40

10

387000

3.

दमोह

7306

1115

8290

6.24

36.3

38.6%

4.

दतिया

2038

900

3130

22.18

9

--

5.

हमीरपुर, महोबा

7166

794

12290

12

5

508890

6.

जालौन

4565

776

12390

10

6

341818

7.

झाँसी

5024

822

8960

93

6

365512

8.

ललितपुर

5039

822

6690

36

13

218995

9.

पन्ना

7135

1248

8120

5.80

34

317410

10.

सागर

10252

1279

14340

10.66

28

--

11.

टीकमगढ़

5048

1045

8180

33.67

13

331586

 

 

 

  जिला

कुआँ

उथले नलकूप

गहरे नलकूप

सतह प्रवाही योजना

सतही उठान योजना

कुल

1.

छतरपुर

96760

455

286

5533

11524

114558

2.

दमोह

17878

8074

747

9057

22531

58287

3.

दतिया

50263

--

--

14

50

50327

4.

गुना

42166

11666

2635

4201

22962

83630

5.

पन्ना

11289

596

340

10518

15061

37804

6.

रायसेन

26749

28753

880

2687

23493

82562

7.

सागर

52117

4014

601

3293

29389

89414

8.

सतना

72031

13190

9939

4401

17426

116987

9.

टीकमगढ़

114763

2355

1910

3760

5400

128188

10.

विदिशा

24714

14370

650

1783

155762

197279

 

 योग

508730

83473

17988

45247

303598

959036

 

मध्य प्रदेश में शुद्ध बोआई एवं सिंचित क्षेत्र 1993-94 (हेक्टेयर)


 

 

जिला

शुद्ध बोआई क्षेत्र

लघु व मध्यम योजनाएँ

भूजल

अन्य

योग (ग + घ + ङ)

च के मुकाबले ख का प्रतिशत

 

1.

छतरपुर

355071

1655

52265

24096

78016

21.97

2.

दमोह

295214

1562

15220

34726

51508

17.45

3.

दतिया

131203

1775

18271

6684

26730

20.37

4.

गुना

569419

5042

27669

33234

65945

11.58

5.

पन्ना

233234

804

6619

24348

31771

13.62

6.

रायसेन

414234

4157027938

23723

93231

22.51

 

7.

सागर

531981

4122

24645

35492

64259

12.08

8.

सतना

352085

1414

30262

22665

54341

15.43

9.

टीकमगढ़

243365

2440

54736

15730

72906

29.96

10.

विदिशा

496078

26936

21468

36264

84668

1707

 

योग

3621884

87320

279093

256962

623375

17.21

 

स्रोत: लघु सिंचाई योजनाओं की गणना की रिपोर्ट 1993-94, जल संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार, 2001, खण्ड 6

उत्तर प्रदेश (हेक्टेयर)


 

 

जिला

कुआँ

उथले नलकूप

गहरे नलकूप

सतह प्रवाही योजना

सतही उठान योजना

कुल

1.

बांदा

27431

32238

22790

228

1947

84634

2.

हमीरपुर

5809

31559

5459

--

21

42848

3.

जालौन

8908

16681

22609

197

936

49331

4.

झाँसी

95278

8483

220

98

311

104390

5.

ललितपुर

48337

721

--

--

--

49058*

6.

महोबा

31438

518

--

--

--

31956

 

योग

217201

90200

51078

523

3215

362217

 

स्रोत : लघु सिंचाई योजनाओं की गणना की रिपोर्ट 1993-94, जल संसाधन मंत्रालय भारत सरकार, 2001 खण्ड 2-6

नोट : लघु सिंचाई कार्यक्रम की प्रगति रिपोर्ट (झाँसी मण्डल) अक्तूबर-1996 के अनुसार 1996 में ललितपुर जिले में लघु सिंचाई क्षेत्र 71077 हेक्टेयर हो गया था।

उत्तर प्रदेश में शुद्ध बोआई एवं सिंचित क्षेत्र 1993-94


 

 

जिला

शुद्ध बुआई क्षेत्र

लघु एवं मध्य परियोजनाएँ

भूजल

अन्य

योग (ग+घ+ङ)

च के मुकाबले ख का प्रतिशत

 

1.

बांदा

521964

6428

3253

114326

124007

23.76

2.

हमीरपुर

310885

29564

43909

20787

94260

30.32

3.

जालौन

336104

110468

37578

7359

155405

46.24

4.

झाँसी

292360

50482

52852

47173

150507

51.48

5.

ललितपुर

219004

37099

49067

0

86166

39.34

6.

महोबा

191746

1569

670

58811

61050

31.84

 

योग

1872063

235610

187329

248456

671395

35.86

 

स्रोत : लघु सिंचाई योजनाओं की गणना की रिपोर्ट 1993-94, जल संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार, 2001, खण्ड 6

नोट : ललितपुर के शुद्ध बोआई क्षेत्र के आँकड़े ‘‘सांख्यिकी पत्रिका, राज्य नियोजन संस्थान, उत्तर प्रदेश 1994’’ से लिये गए हैं। लघु सिंचाई योजनाओं की गणना रिपोर्ट में ललितपुर के लिये 1991-92 का आँकड़ा (39095, जो कि उपरोक्त सारिणी में कुल सिंचित क्षेत्र से कम है) गलत महसूस होता है।

सन्दर्भ:


Large Dams in India, CBIP, New Delhi, 1987
Storages in River Basins of India, CWC , New Delhi, 1987
Register of Water Resources Projects in India, CBIP, New Delhi 1987
Problems and Potentials of Bundelkhand with special reference to Water Resource Base – Bhartendu Praksh, Santosh Satya, S.N. Ghosh, L.P. Chourasia; CRDT, IIT, Delhi & VSK, Banda; 1998
Agro-Economic & Socio-economic and Environmental Survey of Six Link Project; Part I & II, NCAER, 1994

www.upirrigation.org
http://upgov.up.nic.in/irrigation/dp.htm
http://panna.nic.in/tiger.htm
http://www.mptourism.com/dest/khaj_exc.html
http://www.pannatigerreserve.org
http:riverlinks.nic.in/

केन-बेतवा नदीजोड़ योजना पर सम्बन्धित राज्य सरकारों की टिप्पणियाँ


10200 लाख घनमी. पानी केन नदी से बेतवा नदी में स्थानान्तरित करने के लिये केन नदी में जल उपलब्धता का मामला विवादास्पद है क्योंकि उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश सरकारों ने स्पष्ट तौर पर संकेत दिया है कि केन नदी में पानी की बहुलता नहीं है। इस तरह भारत सरकार द्वारा केन एवं बेतवा नदियों को आपस में जोड़ने का अमलीकरण अवास्तविक नजर आता है। यह अध्ययन भारत सरकार द्वारा किया गया है, जिसमें इस परियोजना के बारे में कई कमियाँ एवं सीमाएँ नजर आती हैं। संक्षेप में कुछ प्रस्तुतियाँ इस प्रकार हैं।

उत्तर प्रदेश के अभियंताओं की टिप्पणियाँ


(1) कार्यकारी अभियन्ता द्वारा (जाँच एवं नियोजन प्रभाग, बांदा)


अभियन्ताओं द्वारा की गई टिप्पणियाँ लगभग एक जैसी ही हैं हालांकि उनके आकलन भिन्न हैं। बेतवा के मुख्य अभियन्ता ने कुल सतही प्रवाह, कृषि योग्य लाभ क्षेत्र, जलग्रहण क्षेत्र एवं भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर आकलन किया है। कार्यकारी अभियन्ता (जाँच एवं नियोजन प्रभाग, बांदा) ने पानी की आवश्यकता एवं उपलब्धता का आकलन कृषि की माँग के आधार पर किया है।

‘‘एनडब्ल्यूडीए द्वारा केन नदी घाटी में कुल पानी का आकलन 220 टीएमसी किया गया है। इस तरह, केन नदी घाटी में स्वयं ही पानी की कमी है एवं ज्यादा पानी उपलब्ध नहीं है, एवं केन-बेतवा नदीजोड़ सम्भव नहीं है।’’

(2) मुख्य अभियन्ता सिंचाई विभाग (बेतवा), झाँसी, उत्तर प्रदेश की रिपोर्ट


1. केन नदीघाटी उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र में है। उत्तर प्रदेश के सात जिले बाँदा, चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा, जालौन, झाँसी, एवं ललितपुर बुन्देलखण्ड के अन्तर्गत आते हैं। केन नदीघाटी उत्तर प्रदेश में केवल महोबा, हमीरपुर एवं बाँदा जिले में फैली हुई है। बुन्देलखण्ड का कुल क्षेत्रफल 29957 वर्ग किमी है एवं कृषि योग्य कमान क्षेत्र 24833 लाख हेक्टेयर है। केन नदीघाटी का जलग्रहण क्षेत्र 3586 वर्ग किमी एवं कृषि योग्य कमान क्षेत्र 3227.40 वर्ग किमी है।

2. केन नदीघाटी की कुल सतही प्रवाह का आकलन 75 प्रतिशत एवं 50 प्रतिशत निर्भरता पर क्रमशः 53445.60 लाख घनमी. एवं 80162.1 लाख घनमी. किया गया है।

3. केन नदीघाटी उपलब्ध कुल जल 68598.20 लाख घनमी. (जिसमें सिंचाई एवं घरेलू इस्तेमाल के पुनरुत्पादन से उपलब्ध जल शामिल है) में से 56345.5 लाख घनमी. एवं 12252.7 लाख घनमी क्रमशः सिंचाई एवं घरेलू इस्तेमाल के लिये प्रस्तावित है।

4. केन नदीघाटी की कुल भूजल क्षमता लगभग 9178.20 लाख घनमी. है, जिसमें से 2043.30 लाख घनमी. एवं 1670 लाख घनमी. क्रमशः सिंचाई एवं घरेलू उपयोग में इस्तेमाल होता है।

(3) बेतवा नदीघाटी के अधीक्षण अभियन्ता (जाँच व नियोजन, झाँसी) की रिपोर्ट


बेतवा नदीघाटी जलाभाव वाली नदीघाटी नहीं है। इस तरह सरकार द्वारा केन से बेतवा में पानी स्थानान्तरण का प्रस्ताव अनुपयुक्त है।

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा टिप्पणी


केन बहुउद्देशीय परियोजना से अपस्ट्रीम एवं डाउनस्ट्रीम के लिये 61880 लाख घनमी. जल उपलब्धता के मुकाबले आवश्यकता 63030 लाख घनमी. होगी। इस तरह मध्य प्रदेश सरकार द्वारा यह सिफारिश की गई है कि परियोजना अस्वीकार की जाये।

इसके अलावा मध्य प्रदेश सरकार को एनडब्ल्यूडीए द्वारा तैयार सम्भाव्यता अध्ययन में कई कमियाँ नजर आती हैं।

मध्य प्रदेश में 2.41 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई के लिये पानी की आवश्यकता का एनडब्ल्यूडीए ने सही आकलन नहीं किया है।

एनडब्ल्यूडीए द्वारा केन बहुउद्देशीय परियोजना स्थल पर कुल पानी की उपलब्धता का आकलन बांदा तक प्रवाह के आधार पर 61880 लाख घनमी. किया गया है, जो कि ज्यादा है। मध्य प्रदेश ने इस जल उपलब्धता का आकलन 53440 लाख घनमी. के लगभग किया है।

एनडब्ल्यूडीए द्वारा बाँध के नींव का सही अध्ययन नहीं किया गया है क्योंकि परियोजना क्षेत्र में पाये जाने वाले आधार मौसमी/उपमौसमी या संघटित हो सकते हैं। एवं बाँध के नींव के लिये अनुपयुक्त हो सकता है एवं इसके लिये कुछ अन्य उपचार करने की आवश्यकता होगी।एनडब्ल्यूडीए द्वारा तैयार सम्भाव्यता रिपोर्ट पर न सिर्फ मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश सरकार ने ही आलोचनात्मक टिप्पणी की है बल्कि केन्द्रीय जल आयोग ने भी टिप्पणी की है कि एनडब्ल्यूडीए ने जल उपलब्धता के आकलन के सम्बन्ध में उपयुक्त तरीकों व आँकड़ों के आधार की व्याख्या नहीं की है।

एनडब्ल्यूडीए द्वारा केन-बेतवा नदीजोड़ योजना हेतु तैयार सम्भाव्यता रिपोर्ट पर मध्य प्रदेश की टिप्पणी (तकनीकी अध्ययन सं. एफ आर. -1 मार्च 1995)

प्रस्तावना


प्रस्ताव है कि मौजूदा गंगऊ बैराज के 2.5 किमी अपस्ट्रीम में 231.45 मी. लम्बी सम्पर्क नहर द्वारा बेतवा नदी पर झाँसी के पास स्थित पारीछा बैराज के अपस्ट्रीम में 10200 लाख घनमी. पानी स्थानान्तरित किया जा सकता है। इस प्रस्तावित जल स्थानान्तरण में 6590 लाख घनमी. बेतवा के ऊपरी क्षेत्र (अपर जोन) में 1.27 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई के लिये उपयोग होना है एवं शेष 3610 लाख घनमी. सिंचाई एवं दो चरणों में 72 मेगावाट बिजली उत्पादन के बाद घरेलू इस्तेमाल में प्रयोग लाई जाएगी। सम्पर्क नहर के राह में 47000 हेक्टेयर की सिंचाई होगी जिसमें से 39950 हेक्टेयर मध्य प्रदेश में पड़ता है।

एनडब्ल्यूडीए ने केन नदीघाटी में डौढ़न बाँध के अपस्ट्रीम में 335760 लाख घनमी. पानी इस्तेमाल ध्यान रखते हुए बाँध स्थल पर पानी की नेट उपलब्धता का आकलन 39210 लाख घनमी. किया है।

 

क्रम

विवरण

लाख घनमी.

1

75 प्रतिशत निर्भरता पर सकल उपलब्धता

61880

2

नदी घाटी के अपस्ट्रीम में पानी इस्तेमाल

सिंचाई

घरेलू

उद्योग



29880

1310

2380

3

पुनरुत्पादन

4600

4

डाउनस्ट्रीम लाभ क्षेत्र में इस्तेमाल

मध्य प्रदेश

उत्तर प्रदेश

22250

13730

8500

5

पानी की नेट उपलब्धता

12910

 

1977 के समझौते के अनुरूप केन नदी पर बरियारपुर बैराज तक उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 10480 लाख घनमी. है जबकि परियोजना में 8400 लाख घनमी. का प्रावधान है।

केन बहुउद्देशीय परियोजना स्थल पर जल उपलब्धता की सकल व शेष मात्रा


मध्य प्रदेश सरकार ने 1972 एवं 1977 में उत्तर प्रदेश के साथ हिस्सेदारी के लिये हुए समझौते के तहत 43301.51 हेक्टेयर सिंचाई के लिये बरियारपुर के बाएँ छोर पर नहर बनाने के लिये केन्द्रीय जल आयोग को सन 1982 में विस्तृत परियोजना रिपोर्ट सौंपी थी। इस बायीं बरियारपुर नहर का निर्माण 1977 में प्रारम्भ हुआ था एवं वह अभी जारी है। उत्तर प्रदेश ने केन नदी पर गंगऊ बाँध एवं बरियारपुर बैराज एवं बन्ने नदी पर रंगनवा बाँध का निर्माण किया था एवं वह केन नदीघाटी से 9910 लाख घनमी. पानी का इस्तेमाल कर रहा है।

केन बहुद्देशीय परियोजना से 134 प्रतिशत सिंचाई क्षमता पर मध्य प्रदेश में 2.41 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई का प्रस्ताव है। केन बहुद्देशीय परियोजना के डीपीआर में जिन फसलों एवं उनकी क्षमता के आधार पानी की मात्रा का निर्धारण किया गया है उसमें भविष्य में बदलाव आने की सम्भावना है।

केन नदीघटी से बेतवा नदीघाटी के लिये नेट उपलब्धता 3420 लाख घनमी. है, जिसका विवरण इस प्रकार हैः

 

क्रम

विवरण

लाख घनमी.

1

पानी की सकल उपलब्धता (एनडब्ल्यूडीए के अनुसार)

61880

2

आवश्यकता (-)

अपस्ट्रीम में पानी आवश्यकता एवं नदीघाटी की माँग


33570

3

केन डाउनस्ट्रीम में लाभ क्षेत्र में पानी आवश्यकता (-)

क. सिंचाई (केन बहुद्देशीय परियोजना के डीपीआर अनुसार)

  म.प्र.

  उ.प्र.

ख. औैद्योगिक एवं घरेलू (म.प्र.)

  उपयोग




28500

20000

8500

990

29490

4.

पुनरुत्पादन (+)

सिंचाई से

घरेलू

उद्योग से

उपयोग


1650

1050

1900

4600

5

जल की नेट उपलब्धता ( 1 + 4 -2)

32910

6

केन-बेतवा नदीजोड़ के लिये शेष पानी (5-3)

3420

 

सिफारिशें : इस तरह स्थानान्तरण के लिये पानी की वास्तविकता उपलब्धता (पुनरुत्पादित पानी की उपलब्धता के साथ) 3420 लाख घनमी. है। इस तरह यह सिफारिश की जाती है कि केन-बेतवा नदीजोड़ परियोजना को निरस्त किया जाये।

1. स्थानान्तरण के लिये प्रस्तावित 10200 लाख घनमी. पानी में से 6590 लाख घनमी. पानी पारीछा बैराज के माध्यम से उत्तर प्रदेश में सिंचाई के इस्तेमाल के लिये प्रस्तावित है। सिंचाई के पूर्व नहर के प्रारम्भ में 72 मेगावाट बिजली उत्पादन का भी प्रस्ताव है। इसमें सम्पर्क नहर के आस-पास 117.5 लाख घनमी. पानी पेयजल हेतु प्रदान करने का प्रावधान है।

2. मध्य प्रदेश सरकार ने केन नदी पर मौजूदा गंगऊ बैराज से 210 मीटर की दूरी पर 278.89 मीटर एफआरएल पर 20620 लाख घनमी. सजीव जल भण्डारण वाली केन बहुद्देशीय परियोजना का प्रस्ताव बनाया है। इस परियोजना से मध्य प्रदेश के छतरपुर एवं पन्ना जिले में 3.23 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई का प्रस्ताव किया गया है। इस परियोजना में दो जगहों पर 20 मेगावाट एवं 30 मेगावाट की दो बिजलीघर लगाने का भी प्रस्ताव है। एनडब्ल्यूडीए ने गंगऊ बैराज से 2.5 किमी अपस्ट्रीम में गंगऊ में उपलब्ध भण्डारण के इस्तेमाल के लिये डौढ़न गाँव के पास 287 मीटर एफआरएल पर 27750 लाख घनमी. सकल भण्डारण वाली बाँध का प्रस्ताव किया है।

3. डौढ़न में बाँध स्थल पर हेडवर्क की लागत केन बहुद्देशीय परियोजना स्थल के मुकाबले ज्यादा हो सकती है क्योंकि मिट्टी के बाँध की अधिकतम ऊँचाई 73.8 मीटर है। जो कि केन बहुद्देशीय परियोजना स्थल पर 19.159 मीटर ही है।

4. रंगनवा बाँध के बारे में समझौता 1972 में हुआ था, केन नहर एवं उत्तर प्रदेश के हेडवर्क एवं मध्य प्रदेश में बरियारपुर बाँध के बाईं नहर एवं उर्मिल परियोजना के बारे में समझौता 1977 में हुआ था। भारत सरकार की सिंचाई विभाग के सचिव के साथ नई दिल्ली में बैठक हुई थी एवं यह निर्णय किया गया था कि प्रस्तावित केन बहुद्देशीय परियोजना के अपस्ट्रीम इस्तेमाल के लिये 80 टीएमसी पानी रखा जाना चाहिए।

केन प्रणाली


 

केन प्रणाली

लाख घनमी.

टीएमसी

केन बाँध पर 75 प्रतिशत निर्भरता पर कुल उत्पत्ति

44899.40

158.56

केन के अपस्ट्रीम में म.प्र. द्वारा जल इस्तेमाल

22656.00

80

म.प्र. द्वारा मौजूदा जल इस्तेमाल

13752.20

48.56

उ.प्र. द्वारा मौजूदा जल इस्तेमाल

8496.00

30

रंगनवा बाँध पर 75 प्रतिशत निर्भरता पर कुल उत्पत्ति

1925.70

6.80

म.प्र. द्वारा खरीफ फसल के लिये इस्तेमाल

566.40

2.00

रंगनवा बाँध के अपस्ट्रीम के लिये

308.70

1.09

शेष पानी से म.प्र. द्वारा इस्तेमाल

87.80

0.31

शेष पानी से उ.प्र. द्वारा इस्तेमाल

962.90

3.40

केन, रंगनवा बाँध एवं बरियारपुर बैराज के बीच

1019.50

3.60

जलग्रहण से उ.प्र. के लिये उपलब्ध पानी

  

केन प्रणाली से उ.प्र. के कुल जल का प्रसार

10478.40

37.00

 

उर्मिल बाँध समझौता


 

विवरण

लाख घनमी.

टीएमसी

उमिर्ल बाँध पर कुल उत्पत्ति

948.70

3.35

20 प्रतिशत की दर से म.प्र. द्वारा अपस्ट्रीम में इस्तेमाल

189.70

0.67

60 प्रतिशत की दर से शेष पानी से म.प्र. द्वारा इस्तेमाल

456.00

1.61

60 प्रतिशत की दर से शेष पानी से उ.प्र. द्वारा इस्तेमाल

303.00

1.07

म. प्र. के लिये कुल उपलब्ध पानी

645.70

2.28

 

1. परियोजना की सम्भाव्यता निर्धारित करने के लिये बाएँ तरफ 45000 वर्गमी. क्षेत्र का भूगर्भीय मानचित्रण किया गया। बाँध के नींव की स्थिति का आकलन करने के लिये निरीक्षण नहीं किया गया है। इस तरह, परियोजना के विभिन्न हिस्सों का डिजाइन एवं अनुमान तैयार करना सम्भव नहीं होगा।

2. प्राथमिक नींव निरीक्षण (भूभौतिकी परीक्षण) नई दिल्ली की सेंटर फार सॉयल रिसर्च स्टेशन (सीएसएमआरएस) द्वारा किया गया है, जिसमें मिट्टी एवं कंक्रीट के बाँध का स्पिलवे शामिल है।

3. संकेत मिलता है कि आधार मौसमी/उपमौसमी या असंगठित है एवं बाँध के नींव के लिये उपयुक्त नहीं हो सकता है या फिर उपचार की आवश्यकता होगी, जो कि आकलन में शामिल नहीं किया गया है।

4. बाँध अक्ष के आस-पास चट्टान निर्माण के नींव स्तर निर्धारण करने के लिये ज्यादा परीक्षण आवश्यक है।

5. एनडब्ल्यूडीए ने अपने अध्ययन में 75 प्रतिशत निर्भरता पर 62110 लाख घनमी. वार्षिक उत्पत्ति का आकलन किया है जिसे केन्द्रीय जल आयोग के पास मंजूरी के लिये भेजा गया है।

6. 1982 में मध्य प्रदेश सरकार के जल संसाधन विभाग ने केन बहुद्देशीय परियोजना की 75 प्रतिशत निर्भरता पर उपलब्धता का आकलन 158.60 टीएमसी (44916 लाख घनमी.) किया था, जिसे दिसम्बर 1993 में पुनः 188.70 टीएमसी (53440 लाख घनमी.) किया गया, जो कि केन्द्रीय जल आयोग के पास मंजूरी के लिये विचारार्थ है।

7. एनडब्ल्यूडीए ने बांदा के तरफ ग्रेटर गंगऊ बाँध पर 75 प्रतिशत निर्भरता पर उपलब्धता का आकलन 62110 लाख घनमी./61880 लाख घनमी. किया है, जो कि ऊँचा है एवं वह मध्य प्रदेश को मान्य नहीं है क्योंकि एनडब्ल्यूडीए ने बाँदा में प्रवाह के आँकड़ों को इस्तेमाल करते हुए 75 प्रतिशत निर्भरता पर उपलब्धता का आकलन किया है, जो कि केन बहुद्देशीय परियोजना स्थल से 90 किमी डाउनस्ट्रीम में है।

8. एनडब्ल्यूडीए ने अपने रिपोर्ट में यह तर्क देते हुए मासिक प्रवाह का आकलन नहीं किया है कि मासिक प्रवाह में सम्भावित उतार-चढ़ाव का जल नियोजन में कोई महत्त्वपूर्ण असर नहीं होता है।

9. एनडब्ल्यूडीए ने मध्य प्रदेश में डानउस्ट्रीम इस्तेमाल के लिये 13750 लाख घनमी. पानी का विचार किया है, जो कि सही नहीं है। केन बहुद्देशीय परियोजना के लिये 1982 में तैयार डीपीआर में यह 20990 लाख घनमी. (सिंचाई के लिये 20000 लाख घनमी. एवं घरेलू एवं औद्योगिक इस्तेमाल के लिये 990 लाख घनमी.) है।

10. डौढ़न बाँध का इस्तेमाल केन-बेतवा नदीजोड़ परियोजना के लिये जल भण्डारण सहित केन के लाभ क्षेत्र व डाउनस्ट्रीम में तय उपयोग हेतु होगा।

(1) केन-बेतवा नदीजोड़ परियोजना से स्थानान्तरण हेतु पानी की मात्रा इस प्रकार है

(क) ऊपरी बेतवा नदीघाटी में चार परियोजनाओं के लिये 1.27 लाख हेक्टेयर जमीन सिंचाई के लिये 6590 लाख घनमी. पानी की आवश्यकता होगी।

(ख) नहर के राह में 47000 हेक्टेयर जमीन सिंचाई के लिये 3120 लाख घनमी. पानी की आवश्यकता होगी।

(ग) 231 किमी लम्बी नहर द्वारा प्रवाह मार्ग में रिसाव के कारण 372.50 लाख घनमी. पानी की क्षति होगी।

(घ) मार्ग में पेयजल आपूर्ति हेतु 117.50 लाख घनमी. पानी तय किया गया है।

अतः डौढ़न जलाशय से कुल सालाना माँग 32450 लाख घनमी. आकलित हुआ है।

एनडब्ल्यूडीए द्वारा आकलित किये गए 22250 लाख घनमी. पानी के मुकाबले केन बहुद्देशीय परियोजना के डीपीआर के अनुसार डाउनस्ट्रीम में इस्तेमाल के लिये 29490 लाख घनमी. पानी आवश्यकता है।

(स्रोतः Ken-Betwa Link : A People’s Assessment of The First Link in The River Linking Project : Research Foundation for Science, Technology & Ecology, New Delhi)

केन-बेतवा गठजोड़ योजना बुंदलेखण्ड के अलाभकारी


सिंचाई विभाग के चित्रकूट धाम मण्डल अधीक्षण अभियन्ता विनोद कुमार शर्मा ने बतायाकि मध्य प्रदेश में डौढ़न गाँव के पास प्रस्तावित बाँध की क्षमता 86 टीएमसी रहेगी। मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश के बीच पूर्व में हुए समझौते के मुताबिक इस बाँध से दोनों सूबों के बीच आधे-आधे पानी का बँटवारा है। इस हिसाब से उत्तर प्रदेश (बुन्देलखण्ड) को 43 टीएमसी पानी मिलना चाहिए। लेकिन प्रस्तावित परियोजना में कहा गया है कि डौढ़न बाँध में केन नहर के लिये 30 टीएमसी पानी रखा जाएगा और 1.5 टीएमसी पानी केन-बेतवा गठजोड़ से दिया जाएगा। यानि कुल 31.5 टीएमसी पानी ही उत्तर प्रदेश के हाथ लगेगा। जबकि समझौते के मुताबिक 43 टीएमसी पानी मिलना चाहिए था। उन्होंने बताया कि राजघाट बाँध (बेतवा) से उत्तर प्रदेश के हिस्से का 23 टीएमसी पानी काटकर पारीछा में दे रहे हैं। यह तो वही बात हुई कि ‘मियाँ की जूती मियाँ का सिर’। जबकि परियोजना से ‘सरप्लस पानी’ मिलने की बात कही गई है। उन्होंने योजना को अर्थहीन बताते हुए बांदा और बुन्देलखण्ड के लिये नुकसान देह बताया।

डौढ़न बाँध से बेतवा (पारीछा) तक बनाई जाने वाली 232 किमी लम्बी नहर का सिर्फ 25 किमी भाग उत्तर प्रदेश में रहेगा। शेष नहर मध्य प्रदेश के पहाड़ी असमतल और तमाम नालों के बीच से होकर गुजरने वाले क्षेत्र में रहेगी। जबकि पूरे नहर की देख-रेख उत्तर प्रदेश के जिम्मे रहेगी। श्री शर्मा ने कहा कि राजघाट बाँध की क्षमता इस परियोजना के बाद आधी रह जाएगी। यह बाँध 300 करोड़ रुपए की लागत से बना है। इसमें आधी राशि (डेढ़ सौ करोड़) उत्तर प्रदेश की है। बाँध की क्षमता घटने से झाँसी मण्डल का लगभग 72 हजार हेक्टेयर क्षेत्र असिंचित हो जाएगा। उधर पानी की कमी होने से राजघाट, माताटीला में चल रहे और ढुकवा में प्रस्तावित बिजलीघरों में 160 मेगावाट बिजली उत्पादन का नुकसान होगा। लगभग 25-30 करोड़ रुपए वार्षिक राजस्व की हानि होगी।

बरियारपुर से निकली केन नहर की क्षमता 2500 क्यूसेक है। अगर इसे बढ़ाकर 4000 क्यूसेक से ज्यादा कर दिया जाये तो बांदा जनपद का 90 प्रतिशत क्षेत्र सिंचित हो जाएगा। अभी 55 प्रतिशत क्षेत्र सिंचित है। इस योजना को मध्य प्रदेश सरकार स्वीकृत नहीं कर रही है। अगर यह योजना लागू हो जाये तो बरसात में बेकार बह जाने वाला पानी बरियारपुर के जरिए बाँदा को सिंचाई के लिये मिलने लगेगा। (अमर उजाला 160104)

 

केन-बेतवा नदीजोड़

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क्रम

अध्याय

1

केन-बेतवा नदीजोड़ क्यों असम्भव है

2

केन नदी घाटी

3

बेतवा नदी घाटी

4

नदीजोड़ प्रस्ताव

5

विनाशकारी होगा केन-बेतवा नदीजोड़

6

केन-बेतवा नदी जोड़ योजना का बुन्देलखण्ड जल संसद द्वारा विरोध

7

विरोध में उठते स्वर एवं प्रतिक्रियाएँ

 

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