जितना ही जल
अंजलि में तुममें से उठा पाता हूँ
मेरे लिए तुम उतनी ही हो।
उससे ही अपनी तृषा शांत करता हूँ
उससे ही अपने भीतर उगते सूर्य को
अर्घ्य चढ़ाता हूँ।
और हर बार रीती अंजलि
आँखों और मस्तक से लगा
अनुभव करता हूँ
मैं तुम्हें
अपने भीतर
बहते देख रहा हूँ।
अंजलि में तुममें से उठा पाता हूँ
मेरे लिए तुम उतनी ही हो।
उससे ही अपनी तृषा शांत करता हूँ
उससे ही अपने भीतर उगते सूर्य को
अर्घ्य चढ़ाता हूँ।
और हर बार रीती अंजलि
आँखों और मस्तक से लगा
अनुभव करता हूँ
मैं तुम्हें
अपने भीतर
बहते देख रहा हूँ।
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