नदी : राजनैतिक नहर निकालने के लिये संतों का सहारा


कभी बाढ़ तो कभी सूखा से हो रहे जलवायु परिवर्तन और भविष्य में इससे बढ़ने वाले मानव पर संकट को भाँपकर चतुर नेता इस समय पर्यावरण हितैषी बनने की कोशिश में खासकर पानी के भयावह होते संकट को देखते हुए नदी से राजनैतिक नहर निकालने की कोशिश की जा रही है। दरअसल, मध्य प्रदेश में पिछले लगभग 12 वर्षों से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जहाँ नर्मदा सेवा यात्रा निकालकर देश में सबसे बड़े नदी शुभचिन्तकों की इमेज बना चुके हैं। वहीं दस वर्षों तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह 30 सितम्बर से नर्मदा यात्रा शुरू कर रहे हैं। प्रदेश राजनीति से पिछले 14 वर्षों से लगभग दूरी बनाये दिग्विजय सिंह इस यात्रा के बहाने अपनी राजनैतिक जमीन की स्थिति तलाशेंगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी नर्मदा सेवा यात्रा ऐसे समय शुरू की थी जब प्रदेश में भाजपा का राजनैतिक माहौल बिगड़ने लगा था और सरकार द्वारा चलाये जा रहे सामाजिक सरोकारों के प्रकल्प फीके पड़ने लगे थे तब प्रदेश में नया कुछ आकर्षण पैदा करने और प्रदेश के बड़े भूभाग में उत्साह और आकर्षण बनाने में चौहान की नर्मदा सेवा यात्रा काफी चर्चित रही।

लगभग छह माह चली नर्मदा सेवा यात्रा में दर्जनों हस्तियाँ समय-समय पर शामिल होकर यात्रा का महत्त्व प्रतिपादित करती हैं। देश के तमाम ख्याति प्राप्त सन्त इस यात्रा में शामिल हुए मुरारी बापू से लेकर श्री श्री रविशंकर, सुधांशु महाराज, महामंडलेश्वर अवधेशानंद, वासू जग्गी जैसे संतों ने भी नर्मदा सेवा यात्रा की सराहना की और समापन अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी नर्मदा महत्त्व को बताया। बाद में एक दिन में लगभग सात करोड़ पौधे नर्मदा किनारे लगाने का सरकार ने दावा भी किया। इन तमाम प्रयासों की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने देश और दुनिया में ब्रांडिंग भी की। सो, भारी तामझाम वाली नर्मदा सेवा यात्रा की चर्चा छह महीने तक देश-दुनिया में रही है लेकिन 30 सितम्बर से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जो नर्मदा यात्रा शुरू करने जा रहे हैं वह बिल्कुल सादगीपूर्ण होगी। एक तो दिग्विजय सिंह सरकार जैसा तामझाम जुटा भी नहीं सकते। दूसरा सिंह सामान्य नर्मदा यात्री की भाँति यात्रा करके जगह-जगह सरकारी तामझाम वाली नर्मदा सेवा यात्रा पर प्रश्नचिन्ह भी खड़े करेंगे। दिग्विजय सिंह की पत्नी अमृता सिंह के साथ इस समय दिल्ली के लोधी गार्डन में प्रतिदिन 10-15 किमी पैदल चलकर नर्मदा यात्रा में पैदल चलने की रिहर्सल कर रहे हैं। सिंह दम्पति यात्रा के दौरान खुद भोजन भी बनाएँगे। सो, माना यही जा रहा है कि वर्षों से नर्मदा किनारे वासी आस्था की नर्मदा परिक्रमा देखते आये हैं। यात्रियों को आटा और सब्जियाँ भी भिक्षा में देते हैं लेकिन वर्तमान दौर में उन्हें आस्था के साथ-साथ राजनीति से सराबोर यात्रियों की यात्रा देखने को मिल रही है।

बहरहाल, नदियों के संरक्षण और संवर्धन के प्रति जन जागरण के लिये ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरू जग्गी वासुदेव द्वारा शुरू किये गये नदी अभियान जो कि 3 सितम्बर से 2 अक्टूबर तक कन्याकुमारी से हिमालय तक चलेगा। शनिवार 23 सितम्बर को इंदौर होते हुए राजधानी, भोपाल पहुँचे तो उनकी अगवानी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने की। भोपाल से 40 किमी सीहोर से भोपाल तक रैली फॉर रिवर निकाली और शाम 6 बजे मुख्यमंत्री निवास पर नदियों के संरक्षण और संवर्धन को समर्पित नदी अभियान पर कार्यक्रम भी रखा गया। सो, शिवराज सिंह चौहान सद्गुरू जग्गी वासुदेव के नदी अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेकर एक बार फिर दिखा रहे हैं। उन्हें न केवल नदियों की चिंता है। वरन प्रदेश और देश के कल्याण के लिये वे पर्यावरण के प्रति पूरी तरह समर्पित है।

नदी अभियान यात्रा की भोपाल के अलावा मुख्यमंत्री गृह क्षेत्र विदिशा में स्वागत की जमकर तैयारियाँ की गई जहाँ आज रैली फॉर रिवर रैली निकलेगी। सो, नदी से आस्था जताने और पर्यावरण बचाने के काम में स्वाभाविक रूप से राजनैतिक नहर तो निकल ही जाती है। शायद इसी कारण इस समय प्रदेश के वर्तमान और पूर्व मुख्यमंत्री अपने को नदी के इर्द-गिर्द ही सुरक्षित समझ रहे हैं। आस्था में कोई कमी न रहे। सो, साधु-सन्तों का सहारा लिया जा रहा है। शिवराज सिंह की नर्मदा सेवा यात्रा के दौरान जहाँ साधु-संत पूरे समय मौजूद रहे। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी अपनी यात्रा शुरू करने से पहले अपने गुरू स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती का आशीर्वाद लेने पत्नी सहित एक दिन पहले आश्रम पहुँचेंगे। जाहिर है समय के साथ-साथ चौतरफा बदलाव देखने को मिलते हैं। ऐसा ही बदलाव अब मध्य प्रदेश की राजनीति में देखने को मिल रहा है। जहाँ इसके पहले चुनावी वर्ष में धरना, प्रदर्शन, संघर्ष, चक्काजाम, मशाल जुलूस देखने और सुनने को मिलते थे। वहीं अब प्रदेश में जब दस साल मुख्यमंत्री रह चुके और 12 साल से मुख्यमंत्री ही नदी के इर्द-गिर्द रहेंगे तो राजनीति में दिशा व दशा में ये बदलाव परिलक्षित होंगे ही।

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