नदी पुनर्जीवन में भूजल विज्ञान का योगदान

dry river
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सारी दुनिया में, आदिकाल से नदियां स्वच्छ जल का अमूल्य स्रोत रही हैं। पिछले कुछ सालों से भारत की अधिकांश नदियों के गैर-मॉनसूनी प्रवाह में कमी आ रही है, छोटी-छोटी नदियां तेजी से सूख रही हैं और लगभग सभी नदियों के किसी-न-किसी भाग में प्रदूषण बढ़ रहा है। यह स्थिति हिमालयीन नदियों में कम तथा भारतीय प्रायद्वीप की नदियों में अधिक गंभीर है।

नदी, प्राकृतिक जल चक्र का अभिन्न अंग है। इस जलचक्र के अंतर्गत, प्रत्येक नदी अपने कैचमेंट (जलग्रहण क्षेत्र) पर बरसे पानी को समुद्र अथवा झील में जमा करती है। वह अपने कछार में भूआकृतियों का निर्माण एवं परिमार्जन करती है। वह पारिस्थितिक तथा जैविक विविधता से परिपूर्ण होती है। वह प्राकृतिक एवं प्रकृति नियंत्रित स्वचालित व्यवस्था है जो वर्षाजल, सतही जल तथा भूमिगत जल के घटकों के बीच संतुलन रख, कछार के जागृत इको-सिस्टम सहित आजीविका को आधार प्रदान करती है।

नदी के बारहमासी बने रहने का संबंध, बरसात बाद उसके कैचमेंट की जल प्रदाय क्षमता और जटिल ईको-सिस्टम के समुचित प्रबंध से है। प्रवाह को कम करने वाला पहला महत्वपूर्ण घटक, कैचमेंट में भूमि कटाव है। भूमि कटाव के कारण मिट्टी की परतों की मोटाई कम होती है तथा भूजल भंडारण क्षमता घटती है। भूजल भंडारण क्षमता घटने के कारण मिट्टी की परतों में कम भूजल संचित होता है। यह पानी बरसात बाद बहुत जल्दी नदी में उत्सर्जित हो जाता है।

परिणामस्वरूप, नदी का प्रवाह घटने लगता है। नदी तल से रेत के खनन के कारण, तल के नीचे के कणों की व्यवस्था गड़बड़ा जाती है। व्यवस्था के गड़बड़ाने के कारण नदी तल के नीचे के पानी का प्रवाह अवरुद्ध होता है। वह बाहर आ जाता है और नदी उसके योगदान से वंचित हो जाती है। तीसरे, नदी घाटी में होने वाले भूजल दोहन के कारण क्षेत्रीय वाटर टेबिल, नदी तल के नीचे उतर जाती है। परिणामस्वरूप, नदी सूख जाती है। कुछ स्थानों पर, स्थानीय घटकों के असर से भी प्रवाह कम होता है।

 

 

नदियों के प्रवाह की मौजूदा स्थिति तथा उसकी बहाली की संभावनाएं


.देश में प्रमुख नदियों में साल भर प्रवाहित जल की मात्रा के आंकड़े उपलब्ध हैं किंतु अनेक सहायक नदियों की छोटी-छोटी इकाईयों के गैर-मानसूनी जल प्रवाह और उसी अवधि के भूजल दोहन एवं समानुपातिक भूजल स्तर की औसत गिरावट के सह-संबंध को स्पष्ट करने वाले मासिक या पाक्षिक आंकड़ों का अभाव है। इसके अतिरिक्त, नदियों की छोटी-छोटी इकाईयों के कैचमेंट की मिट्टी की परतों की भूजल संचय क्षमता का ज्ञान नहीं है।

नदियों के प्रवाह की बहाली के लिए उपर्युक्त आंकड़ों का संकलन किया जाना चाहिए। उनकी सहायता से छोटी-छोटी इकाईयों के भूजल के योगदान, इकाईयों के सूखने का समय तथा उसकी अवधि को ज्ञात किया जा सकता है। इन घटकों को ज्ञात कर रीचार्ज आवश्यकताएं, समयावधि तथा उपयुक्त संरचना का निर्धारण किया जा सकता है। तद्नुसार कार्ययोजना बनाई जा सकती है किंतु कार्ययोजना का क्रियान्वयन नेशनल वाटरशेड एटलस में उल्लेखित इकाईयों को आधार बना कर संपन्न किया जाना चाहिए।

नदी-तंत्र की सभी प्रभावित इकाईयों में एक साथ रीचार्ज कार्यक्रम प्रारंभ कर उसे क्रमशः बड़ी इकाईयों में विस्तारित करना तथा बरसात में रीचार्ज के इष्टतम लक्ष्य को प्राप्त करना चाहिए। इसके लिए रीचार्ज कार्यक्रमों में आपस में संबद्ध सतही तथा भूजल संरचनाओं का निर्माण करना होगा तथा पानी की बचत करने वाली पद्धतियों को बढ़ावा देना होगा।

कई स्थानों पर परंपरागत प्रणालियों, जल संरक्षण तथा वर्षाजल संग्रह एवं जल के दुबारा उपयोग की तकनीकों को अपनाना पड़ सकता है। विपरीत स्थितियों से निपटने के लिए समाज तथा विशेषज्ञों को नदी के प्रवाह तथा गुणवत्ता की लगातार मानीटरिंग करना होगा। सुचारू तथा टिकाऊ जल प्रबंध के लिए प्रयास करना होगा।

नदी के जल प्रवाह की निरंतरता के लिए जल के उपयोग का मार्गदर्शी सिद्धांत तय होना चाहिए। इस सिद्धांत के अनुसार न्यूनतम पर्यावरणीय जल प्रवाह सुनिश्चित करने के पश्चात बचे पानी को किसानों तथा वंचित वर्ग की गतिविधियों तथा समृद्धि के लिए उपलब्ध कराना चाहिए। न्यूनतम पर्यावरणीय जल प्रवाह और हितग्राहियों को जल की पूर्ति के बाद, बचे जल की मात्रा का उपयोग अन्य क्षेत्रों में निर्धारित वरीयताक्रम में किया जाना चाहिए। यही नदियों में प्रवाह की निरंतरता के लिए भूजल विज्ञान आधारित रोडमैप है।

 

 

 

 

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Post By: Shivendra
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