नदी नहीं था मैं

मैं धूप था मैं बारिश
नदी नहीं था मैं
मुझे बुहत दुःख था

पहाड़ था मैं
पहाड़ का पेड़ था
पहाड़ के चरागाह
रेवड़
निर्भ्रांत आकाश
नदी नहीं था पर
दुःख था बहुत दुःख था

गड़रिया था
पत्ते चरती बकरी था
मधु ढूंढता भ्रमर था
तिनके से उलझा पंछी था
पहाड़ का ढहा कगार था
पहाड़ का प्यार था

बहुत कुछ था
अचानक खो गई पगडंडी
लटकी हुई शाख
घुप्प रात
तीखा मोड़
बेतरतीब घास
बहुत कुछ था
नहीं था तो बस नदी नहीं था
मुझे बहुत दुःख था

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