नदी ने बरसों
जिसे प्यार किया
मिलन के लिए
जिसका रोज
इंतजार किया
पाकर जिसे तृप्त काम किया
अब
आज
उसी की लाश लिए बहती है
विरह-विलाप का
शोक-संताप सहती है
किसी से कुछ नहीं कहती है
करुणाकुल छलछलाती रहती है
जिसे प्यार किया
मिलन के लिए
जिसका रोज
इंतजार किया
पाकर जिसे तृप्त काम किया
अब
आज
उसी की लाश लिए बहती है
विरह-विलाप का
शोक-संताप सहती है
किसी से कुछ नहीं कहती है
करुणाकुल छलछलाती रहती है
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