नदी-नालों की नीलामी!

उद्योग संस्थानों के लिए महानदी के जल का दोहन कर रहा है कई सवाल खड़े
उद्योग संस्थानों के लिए महानदी के जल का दोहन कर रहा है कई सवाल खड़े

छत्तीसगढ़ की एक बड़ी आबादी शुद्ध पेयजल और सिंचाई के पानी से महरूम है पर उद्योगों को पानी बेचने का खेल सरेआम चल रहा है। पेयजल और सिंचाई के नाम पर बनाए जा रहे तमाम एनीकट (सिंचाई बांध) और बैराज ऐसी स्थिति में शायद ही आम लोगों को लाभ दे पाएं। जांजगीर-चांपा जिले में स्थित रोगदा बांध बेचने के बाद उद्योगों को पानी देने के लिए नदी-नालों को बेचने की तैयारी है। सरकार प्रदेश की जीवनदायिनी महानदी के पानी को बेचने का फैसला कर चुकी है। जल संसाधन विभाग ने पानी बेचने से करीब साढ़े छह सौ करोड़ रुपए सालाना आय का भी भरोसा दिलाया है। प्रदेश में उद्योगों को पानी देने के लिए महानदी में सात बैराज बनाने का निर्णय लिया गया है। इन बैराजों से लोगों को खेती व निस्तारी के लिए कुल जल संग्रहण क्षमता का केवल बीस फीसदी पानी ही मिलेगा। बाकी पानी उद्योगों को दिया जाएगा।

महानदी में शिवरीनारायण, बसंतपुर, मिरौनी, साराडीह, कलमा, समोदा व चिचपोल बैराज प्रस्तावित हैं। रायपुर, रायगढ़ व जांजगीर-चांपा जिले में स्थापित होने वाले बिजली संयंत्रों को पानी बेचने के लिए ये बैराज बनाए जा रहे हैं। जल संसाधन विभाग ने इसके लिए सर्वे करा लिया है। बैराज बनाने का खर्च बिजली कंपनियां वहन कर रही हैं। बैराज वहीं बनाए जाएंगे, जहां से प्रस्तावित बिजली संयंत्रों को आसानी से पानी सुलभ हो सकेगा। इन बैराजों से कुल 45 उद्योगों को फायदा पहुंचेगा। सरकार ने बैराज निर्माण के फायदे भी गिनाने शुरू कर दिए हैं। बैराज बनने से आसपास का भूजल स्तर बढ़ेगा। ग्रामीणों को पेयजल व निस्तारी के लिए सालभर पानी मिलेगा। पर सवाल यह भी उठ रहा है कि महानदी सहित अन्य नदी-नालों पर बैराज बनने से पर्यावरण संतुलन पर क्या असर पड़ेगा? इतना तो तय है कि उद्योगपति पानी का अंधाधुंध दोहन करेंगे और प्रदूषित पानी नदी में प्रवाहित करेंगे, जिससे जल प्रदूषित हो जाएगा।

छत्तीसगढ़ के जाजंगीर-चांपा जिले में स्थित रोगदा बांध बेचने के बाद अब उद्योगों को पानी देने के लिए नदी-नाले बेचने की तैयारी है।

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने जांजगीर-चांपा जिले में स्थित पचास साल पुराना रोगदा बांध एक निजी कंपनी केएसके वर्धा पावर लिमिटेड को बेच दिया। रोगदा बांध की कुल जमीन लगभग तीन सौ एकड़ है। वर्तमान में चल रहे बाजार-भाव के हिसाब से इसकी कीमत करीब 30 करोड़ रुपए होती। इसके अलावा बांध निर्माण पर आई राशि अलग पर इस बांध को महज सात करोड़ रुपए में बेच दिया गया। इस बांध से करीब ढाई सौ एकड़ जमीन की सिंचाई होती थी। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक में यह बांध बेचने का निर्णय लिया गया। इसमें अफसरों की भूमिका पर भी सवाल उठाया जा रहा है। यह मामला राज्य विधानसभा में जोर-शोर उठा। विपक्ष ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की कोशिश की। बाद में विधायकों की कमेटी से जांच कराने की घोषणा की गई। जांच चल रही है।

छत्तीसगढ़ जल संसाधन के मामले में संपन्न है। यहां सतही जल प्रवाह के व्यवस्थित उपयोग से ही व्यापक क्षेत्र की सिंचाई हो सकती है पर अब तक इसका 22 फीसदी ही उपयोग में लाया जा सका है। राज्य गठन के समय सिंचाई क्षमता 13.28 लाख हेक्टेयर थी, जो कुल बोए गए क्षेत्र का लगभग 23 प्रतिशत है। यह बढ़कर केवल 31.12 प्रतिशत तक ही पहुंच पाई है। प्रदेश में जल संसाधन विभाग द्वारा विभिन्न नदियों पर 155 एनीकट का निर्माण किया गया है। इस पर साढ़े तीन सौ करोड़ रुपए से अधिक राशि खर्च की गई है। उद्योगों को जल प्रदान के लिए नदी-नालों में प्रस्तावित जल संग्रहण संरचनाओं के त्वरित निर्माण के संबंध में एक खास नीति बनाई गई है। किसी जल संरचना से उद्योग संस्थानों के लिए आरक्षित जल की मात्रा के अनुपात में उद्योग संस्थानों से निर्माण के लिए अग्रिम जलकर के रूप में राशि वसूल की जाएगी। जल संरचना पर उद्योग संस्थान का किसी भी प्रकार का स्वामित्व या अधिकार नहीं होगा। यदि किसी संस्थान द्वारा निर्धारित न्यूनतम एक माह व अधिकतम तीन माह में देय राशि का भुगतान नहीं किया जाता है तो उनका जल आवंटन निरस्त कर दिया जाएगा। विभाग द्वारा निरस्त जल आवंटन को किसी अन्य संस्थान को आवंटित किया जा सकेगा।

उद्योग संस्थान के हाथों सस्ते में बेच दिया गया रोगदा बांध जिससे सिंचित होती थी ढाई सौ एकड़ जमीनउद्योग संस्थान के हाथों सस्ते में बेच दिया गया रोगदा बांध जिससे सिंचित होती थी ढाई सौ एकड़ जमीनछत्तीसगढ़ की सभी प्रमुख नदियों के पानी का अधिक से अधिक उपयोग करने के लिए प्रस्तावित मास्टर प्लान अभी तक लटका हुआ है। सिंचाई क्षमता की बढ़ोतरी के साथ ही पेयजल, भूजल संवर्द्धन औद्योगिक उपयोग के लिए जल संसाधनों का मास्टर प्लान तैयार किया जा रहा है। केंद्रीय जल आयोग के मापदंडों के अनुसार मास्टर प्लान बनाने के लिए जल एवं शक्ति कंसलटेंसी सेवा (भारत सरकार का उपक्रम) को जिम्मा सौंपा गया था। पिछले साल जुलाई में मास्टर प्लान प्रस्तुत किया गया। इस पर पिछले साल जुलाई में तकनीकी सलाहकार समिति ने मुहर लगा दी लेकिन शासन से इसे अभी हरी झंडी नहीं मिली है। जल संसाधन विभाग के प्रमुख सचिव एनके असवाल का कहना है कि बैराज व एनीकट के निर्माण से आसपास के क्षेत्र में भू-जल स्तर बढ़ेगा, साथ ही ग्रामीणों को पेयजल और निस्तार के लिए भरपूर पानी मिल सकेगा। किसान पंप के जरिए खेतों की सिंचाई के लिए एनीकटों व बैराजों से पानी ले सकते हैं।

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