नदियों को जोड़ने वाली जिस बड़ी परियोजना को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश पर्यावरण के साथ खिलवाड़ कहकर नकार रहे थे, अब वे ही उन्हें धरातल पर उतार रहे हैं। इस योजना में राजनीति और पर्यावरण से जुड़े गतिरोध लगभग समाप्त हो गए हैं। केन्द्र सरकार केन और बेतवा नदियों को जोड़ने का मन बना चुकी है। कैबिनेट की मंजूरी के लिए प्रस्ताव तैयार है जिसका पारित होना कागजी खानापूर्ति भर है। इस सिलसिले में उत्तरप्रदेश एवं मध्यप्रदेश की सरकारों और जल संसाधन मंत्रालय के बीच त्रिकोणीय सहमति भी बन चुकी है। यह योजना 30 नदियों को परस्पर जोड़ने की योजनाओं में से एक है। यदि यह योजना कारगर होती है तो न केवल असिंचित क्षेत्रों के लिए सिंचाई का प्रबंध होगा बल्कि बाढ़ के संकट से भी निजात मिलेगी।
किसी देश की विकासशील अर्थव्यवस्था के तीन प्रमुख सिरे हैं, पानी, बिजली और आधुनिकतम तकनीक। तकनीक की उपलब्धता तो भारत में सर्व-सुलभ हो गई है, लेकिन पानी और बिजली की भयावह समस्या से पूरा देश जूझ रहा है। दुनिया का तीन चौथाई हिस्सा पानी से लबालब होने के बावजूद करोड़ों लोग शुद्ध पेयजल से वंचित हैं। इसलिए देश की सर्वोच्च न्यायालय को, केंद्र सरकार को निर्देश देना पड़ा था कि नदी जोड़ने की महत्वाकांक्षी परियोजना को समयबद्ध तरीके से जल्द लागू किया जाए। हालांकि इस परियोजना को जमीन पर उतारना बेहद जटिल और जोखिम भरा है और इसमें पर्यावरणीय और भौगोलिक संतुलन के बिगड़ने, राज्यों में परस्पर टकराव के साथ कई देशों जैसे बंग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल व चीन से मतभेद होने, बड़े पैमाने पर स्थानीय लोगों के विस्थापन और पुनर्वास का संकट है।
लेकिन नदियां जुड़ जाती हैं तो किसी हद तक बाढ़ की विनाश लीला से निजात मिलेगी, 2050 तक 16 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि में सिंचाई होने लगेगी। जबकि वर्तमान में सिंचाई के सभी संसाधनों व तकनीकों का उपयोग करने के बावजूद 14 करोड़ हेक्टेयर भूमि में ही बमुश्किल सिंचाई हो पा रही है। करीब 13500 किमी लंबी भारतीय नदियां देश के संपूर्ण मैदानी क्षेत्रों में अठखेलियां करती हुई मनुष्य और जीव-जगत के लिए वरदान हैं। 2528 लाख हेक्टेयर भू-खंडों और वन प्रांतरों में प्रवाहित इन नदियों में प्रति व्यक्ति 690 घनमीटर जल है। कृषि योग्य कुल 1411 लाख हेक्टेयर भूमि में से 546 लाख हेक्टेयर भूमि इन्हीं नदियों की बदौलत प्रति वर्ष सिंचित होती है। यदि नदियां जुड़ जाती हैं तो सिंचित रकबा बढ़ेगा। वैसे नदियों को जोड़ना तब आसान होगा जब देश की जिन प्रस्तावित नदियों को जोड़ा जाना है, उन्हें राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर केंद्र सरकार के हवाले कर दिया जाए और इस परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना की श्रेणी में लाकर इस पर अमल शुरू हो।
प्रसिद्ध समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर लोहिया ने सबसे पहले नदियों को आपस में जोड़ने की बात कही थी। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार के दौरान 2002 में देश को भंयकर सूखा का सामना करना पड़ा जिसके बाद नदियों को जोड़ने की परियोजना सामने आई। पर यह मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा दिया गया। एक दशक बाद इस परियोजना को अदालत ने हरी झंडी दी। साथ ही परियोजना पर अमल के लिए एक उच्च अधिकार प्राप्त समिति का गठन भी किया था। ताकि समय सीमा में काम पूरे हों और पर्यावरण व विस्थापन जैसी समस्याओं से कानूनी स्तर पर जल्दी निपटा जा सके।
2008 में राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) द्वारा आयोजित मुख्यमंत्रियों की बैठक में राज्यों के साथ जल बंटवारा विवाद में तमिलनाडु ने प्रस्ताव रखा था कि नदियों को परस्पर जोड़ने की प्रक्रिया को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा मिलना चाहिए। इसी क्रम में केंद्र सरकार ने सिंचाई और पनबिजली के बढ़ते संकट पर काबू पाने के लिए 14 नदियों को राष्ट्रीय परियोजना में शामिल कर इस दिशा में एक पहल की थी। ये सुझाव जल संकट के भयावह दौर से गुजर रहे राष्ट्र को जल समस्या से निजात दिलाने के ठोस उपाय बन सकते हैं।
भारत और नेपाल में गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र तथा इनकी सहायक नदियों पर विशाल जलाशय बनाने के प्रावधान हैं। ताकि वर्षाजल इक्ट्ठा हो और उत्तर-प्रदेश, बिहार एवं असम को भयंकर बाढ़ का सामना न करना पड़े। इन जलाशयों से बिजली भी उत्पादित की जाएगी। इसी क्षेत्र में कोसी, घाघरा, मेच, गंड़क, साबरमती, शारदा, फरक्का, सुन्दरवन, स्वर्णरेखा और दामोदर नदियों को गंगा, यमुना और महानदी से जोड़ा जाएगा।जीवनदायी नदियां हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं। नदियों के किनारे ही सिंधु घाटी और सारस्वत (सरस्वती) सभ्यताएं बसी हैं। दुनिया के महासागरों, हिमखंडों, नदियों और बड़े जलाशयों में अकूत जल भंडार है। लेकिन मानव के लिए उपयोगी जीवनदायी जल और बढ़ती आबादी के लिए इसकी उपलब्धता का बिगड़ता अनुपात चिंता का बड़ा कारण है। ऐसे में बढ़ते तापमान के कारण हिमखंडों के पिघलने और वर्षा में कमी के कारण जल स्रोतों के सूखने का सिलसिला जारी है। वर्तमान में जल की खपत कृषि, उद्योग, विद्युत और पेयजल के रूप में सर्वाधिक हो रही है। हालांकि पेयजल की खपत मात्र आठ फीसदी है जिसका मुख्य स्रोत नदियां और भू-जल हैं।
औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और बढ़ती आबादी के चलते एक ओर नदियां सिकुड़ रही हैं, वहीं इनमें औद्योगिक कचरा और मल-मूत्र बहाने का सिलसिला जारी है जिससे गंगा और यमुना नदियां इतनी प्रदूषित हो गई हैं कि यमुना को एक पर्यावरण संस्था ने मरी हुई नदी तक घोषित कर दिया है। मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित राजेंद्र सिंह ने तो यमुना नदी के किनारे राष्ट्रमंडल खेलों के लिए बनाए गए परिसरों और मेट्रो रेल बिछाने के कारण, इस जीवनदायी नदी को मौत की नदी तक कहा था। केंद्रीय भू-जल बोर्ड ने राष्ट्र के लगभग 800 ऐसे भू-खंडों को चिन्हित किया है जिनमें भू-जल का स्तर निरंतर घट रहा है। ये भू-खंड दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार, गुजरात और तमिलनाडु में हैं।
यदि भू-जल स्तर के गिरावट में निरंतरता बनी रही है तो भयावह जल संकट तो पैदा होगा ही भारत का पारिस्थितिकी तंत्र भी गड़बड़ा जाएगा। केंद्र सरकार ने दूरदर्शिता से काम लेते हुए 43 भू-खंडों से जल निकासी पर प्रतिबंध लगा दिया है। भू-संवर्धन की दृष्टि से यह एक कारगर पहल है। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि यदि नदियों को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर परस्पर जोड़ने की प्रक्रिया शुरू होती है तो जहां-जहां नदियां जुड़ जाएंगी, वहां-वहां नदियों के बीच की पट्टियां जल भरण की अंत:प्रक्रियाओं के कारण गंगा-यमुना के दोआब क्षेत्र की तरह भू-जल के भंडार हो जाएंगी। जो सदियों तक पेयजल और सिंचाई सुविधा के बड़े स्रोत बने रहेंगे।
इस प्रस्तावित 5 लाख 60 हजार करोड़ की अनुमानित लागत की नदी परियोजना को दो हिस्सों में बांटकर अमल में लाया जाएगा। एक प्रायद्वीप स्थित नदियों को जोड़ना। दूसरे, हिमालय से निकली नदियों को जोड़ना। प्रायद्वीप भाग में 16 नदियां हैं, जिन्हें दक्षिण जल क्षेत्र बनाकर जोड़ा जाना है। इसमें महानदी और गोदावरी को पेन्नार, कृष्णा, वैगई और कावेरी से जोड़ा जाएगा। पश्चिम के तटीय हिस्से में बहने वाली नदियों को पूर्व की ओर मोड़ा जाएगा। इस तट से जुड़ी तापी नदी के दक्षिण भाग को मुंबई के उत्तरी भाग की नदियों से जोड़ा जाना प्रस्तावित है। केरल और कर्नाटक की पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों की जलधारा पूर्व दिशा में मोड़ी जाएगी।
हिमालय क्षेत्र की नदियों के अतिरिक्त जल संग्रहण की दृष्टि से भारत और नेपाल में गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र तथा इनकी सहायक नदियों पर विशाल जलाशय बनाने के प्रावधान हैं। ताकि वर्षाजल इक्ट्ठा हो और उत्तर-प्रदेश, बिहार एवं असम को भयंकर बाढ़ का सामना न करना पड़े। इन जलाशयों से बिजली भी उत्पादित की जाएगी। इसी क्षेत्र में कोसी, घाघरा, मेच, गंड़क, साबरमती, शारदा, फरक्का, सुन्दरवन, स्वर्णरेखा और दामोदर नदियों को गंगा, यमुना और महानदी से जोड़ा जाएगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
किसी देश की विकासशील अर्थव्यवस्था के तीन प्रमुख सिरे हैं, पानी, बिजली और आधुनिकतम तकनीक। तकनीक की उपलब्धता तो भारत में सर्व-सुलभ हो गई है, लेकिन पानी और बिजली की भयावह समस्या से पूरा देश जूझ रहा है। दुनिया का तीन चौथाई हिस्सा पानी से लबालब होने के बावजूद करोड़ों लोग शुद्ध पेयजल से वंचित हैं। इसलिए देश की सर्वोच्च न्यायालय को, केंद्र सरकार को निर्देश देना पड़ा था कि नदी जोड़ने की महत्वाकांक्षी परियोजना को समयबद्ध तरीके से जल्द लागू किया जाए। हालांकि इस परियोजना को जमीन पर उतारना बेहद जटिल और जोखिम भरा है और इसमें पर्यावरणीय और भौगोलिक संतुलन के बिगड़ने, राज्यों में परस्पर टकराव के साथ कई देशों जैसे बंग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल व चीन से मतभेद होने, बड़े पैमाने पर स्थानीय लोगों के विस्थापन और पुनर्वास का संकट है।
लेकिन नदियां जुड़ जाती हैं तो किसी हद तक बाढ़ की विनाश लीला से निजात मिलेगी, 2050 तक 16 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि में सिंचाई होने लगेगी। जबकि वर्तमान में सिंचाई के सभी संसाधनों व तकनीकों का उपयोग करने के बावजूद 14 करोड़ हेक्टेयर भूमि में ही बमुश्किल सिंचाई हो पा रही है। करीब 13500 किमी लंबी भारतीय नदियां देश के संपूर्ण मैदानी क्षेत्रों में अठखेलियां करती हुई मनुष्य और जीव-जगत के लिए वरदान हैं। 2528 लाख हेक्टेयर भू-खंडों और वन प्रांतरों में प्रवाहित इन नदियों में प्रति व्यक्ति 690 घनमीटर जल है। कृषि योग्य कुल 1411 लाख हेक्टेयर भूमि में से 546 लाख हेक्टेयर भूमि इन्हीं नदियों की बदौलत प्रति वर्ष सिंचित होती है। यदि नदियां जुड़ जाती हैं तो सिंचित रकबा बढ़ेगा। वैसे नदियों को जोड़ना तब आसान होगा जब देश की जिन प्रस्तावित नदियों को जोड़ा जाना है, उन्हें राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर केंद्र सरकार के हवाले कर दिया जाए और इस परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना की श्रेणी में लाकर इस पर अमल शुरू हो।
प्रसिद्ध समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर लोहिया ने सबसे पहले नदियों को आपस में जोड़ने की बात कही थी। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार के दौरान 2002 में देश को भंयकर सूखा का सामना करना पड़ा जिसके बाद नदियों को जोड़ने की परियोजना सामने आई। पर यह मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा दिया गया। एक दशक बाद इस परियोजना को अदालत ने हरी झंडी दी। साथ ही परियोजना पर अमल के लिए एक उच्च अधिकार प्राप्त समिति का गठन भी किया था। ताकि समय सीमा में काम पूरे हों और पर्यावरण व विस्थापन जैसी समस्याओं से कानूनी स्तर पर जल्दी निपटा जा सके।
2008 में राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) द्वारा आयोजित मुख्यमंत्रियों की बैठक में राज्यों के साथ जल बंटवारा विवाद में तमिलनाडु ने प्रस्ताव रखा था कि नदियों को परस्पर जोड़ने की प्रक्रिया को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा मिलना चाहिए। इसी क्रम में केंद्र सरकार ने सिंचाई और पनबिजली के बढ़ते संकट पर काबू पाने के लिए 14 नदियों को राष्ट्रीय परियोजना में शामिल कर इस दिशा में एक पहल की थी। ये सुझाव जल संकट के भयावह दौर से गुजर रहे राष्ट्र को जल समस्या से निजात दिलाने के ठोस उपाय बन सकते हैं।
भारत और नेपाल में गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र तथा इनकी सहायक नदियों पर विशाल जलाशय बनाने के प्रावधान हैं। ताकि वर्षाजल इक्ट्ठा हो और उत्तर-प्रदेश, बिहार एवं असम को भयंकर बाढ़ का सामना न करना पड़े। इन जलाशयों से बिजली भी उत्पादित की जाएगी। इसी क्षेत्र में कोसी, घाघरा, मेच, गंड़क, साबरमती, शारदा, फरक्का, सुन्दरवन, स्वर्णरेखा और दामोदर नदियों को गंगा, यमुना और महानदी से जोड़ा जाएगा।जीवनदायी नदियां हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं। नदियों के किनारे ही सिंधु घाटी और सारस्वत (सरस्वती) सभ्यताएं बसी हैं। दुनिया के महासागरों, हिमखंडों, नदियों और बड़े जलाशयों में अकूत जल भंडार है। लेकिन मानव के लिए उपयोगी जीवनदायी जल और बढ़ती आबादी के लिए इसकी उपलब्धता का बिगड़ता अनुपात चिंता का बड़ा कारण है। ऐसे में बढ़ते तापमान के कारण हिमखंडों के पिघलने और वर्षा में कमी के कारण जल स्रोतों के सूखने का सिलसिला जारी है। वर्तमान में जल की खपत कृषि, उद्योग, विद्युत और पेयजल के रूप में सर्वाधिक हो रही है। हालांकि पेयजल की खपत मात्र आठ फीसदी है जिसका मुख्य स्रोत नदियां और भू-जल हैं।
औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और बढ़ती आबादी के चलते एक ओर नदियां सिकुड़ रही हैं, वहीं इनमें औद्योगिक कचरा और मल-मूत्र बहाने का सिलसिला जारी है जिससे गंगा और यमुना नदियां इतनी प्रदूषित हो गई हैं कि यमुना को एक पर्यावरण संस्था ने मरी हुई नदी तक घोषित कर दिया है। मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित राजेंद्र सिंह ने तो यमुना नदी के किनारे राष्ट्रमंडल खेलों के लिए बनाए गए परिसरों और मेट्रो रेल बिछाने के कारण, इस जीवनदायी नदी को मौत की नदी तक कहा था। केंद्रीय भू-जल बोर्ड ने राष्ट्र के लगभग 800 ऐसे भू-खंडों को चिन्हित किया है जिनमें भू-जल का स्तर निरंतर घट रहा है। ये भू-खंड दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार, गुजरात और तमिलनाडु में हैं।
यदि भू-जल स्तर के गिरावट में निरंतरता बनी रही है तो भयावह जल संकट तो पैदा होगा ही भारत का पारिस्थितिकी तंत्र भी गड़बड़ा जाएगा। केंद्र सरकार ने दूरदर्शिता से काम लेते हुए 43 भू-खंडों से जल निकासी पर प्रतिबंध लगा दिया है। भू-संवर्धन की दृष्टि से यह एक कारगर पहल है। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि यदि नदियों को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर परस्पर जोड़ने की प्रक्रिया शुरू होती है तो जहां-जहां नदियां जुड़ जाएंगी, वहां-वहां नदियों के बीच की पट्टियां जल भरण की अंत:प्रक्रियाओं के कारण गंगा-यमुना के दोआब क्षेत्र की तरह भू-जल के भंडार हो जाएंगी। जो सदियों तक पेयजल और सिंचाई सुविधा के बड़े स्रोत बने रहेंगे।
इस प्रस्तावित 5 लाख 60 हजार करोड़ की अनुमानित लागत की नदी परियोजना को दो हिस्सों में बांटकर अमल में लाया जाएगा। एक प्रायद्वीप स्थित नदियों को जोड़ना। दूसरे, हिमालय से निकली नदियों को जोड़ना। प्रायद्वीप भाग में 16 नदियां हैं, जिन्हें दक्षिण जल क्षेत्र बनाकर जोड़ा जाना है। इसमें महानदी और गोदावरी को पेन्नार, कृष्णा, वैगई और कावेरी से जोड़ा जाएगा। पश्चिम के तटीय हिस्से में बहने वाली नदियों को पूर्व की ओर मोड़ा जाएगा। इस तट से जुड़ी तापी नदी के दक्षिण भाग को मुंबई के उत्तरी भाग की नदियों से जोड़ा जाना प्रस्तावित है। केरल और कर्नाटक की पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों की जलधारा पूर्व दिशा में मोड़ी जाएगी।
हिमालय क्षेत्र की नदियों के अतिरिक्त जल संग्रहण की दृष्टि से भारत और नेपाल में गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र तथा इनकी सहायक नदियों पर विशाल जलाशय बनाने के प्रावधान हैं। ताकि वर्षाजल इक्ट्ठा हो और उत्तर-प्रदेश, बिहार एवं असम को भयंकर बाढ़ का सामना न करना पड़े। इन जलाशयों से बिजली भी उत्पादित की जाएगी। इसी क्षेत्र में कोसी, घाघरा, मेच, गंड़क, साबरमती, शारदा, फरक्का, सुन्दरवन, स्वर्णरेखा और दामोदर नदियों को गंगा, यमुना और महानदी से जोड़ा जाएगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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