नदी जोड़ परियोजना पर कोर्ट के फैसले से हैरान

अगर नदियों को जोड़ना ही है तो उन्हें ऊपर जनजीवन को प्रभावित किए बिना भूमिगत पाइपों से जोड़ना चाहिए, जो अपने-आप में काफी खर्चीला विकल्प है। हालांकि मूल परियोजना की अनुमानित लागत ही पिछले नौ सालों में बढ़कर कम से कम दस लाख करोड़ रुपए हो चुकी होगी।

एक साथ कहीं सूखा तो कहीं बाढ़। इस स्थिति से निपटने के लिए एनडीए सरकार ने अक्टूबर 2002 में देश की नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजना पेश की थी। लेकिन विस्थापन व पर्यावरण की चिंता के साथ ही किसानों के संभावित विरोध और सरकार की ढिलाई के कारण 5.60 लाख करोड़ रुपए की अनुमानित लागत वाली इस परियोजना पर शायद अब काम शुरू हो जाए। देश की सर्वोच्च अदालत, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे नदी जोड़ परियोजना को समयबद्ध रवैये से लागू करें। यही नहीं, उसने एक कदम आगे बढ़कर इसके लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति भी बना दी है। इससे सरकार से लेकर सामाजिक व पर्यावरण कार्यकर्ताओं को हैरान कर दिया है।

न्यायपालिका के इस तरह कार्यपालिका में हस्तक्षेप पर सवालों का उठना स्वाभाविक है। लेकिन अभी तक सरकार की तरफ से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। सोमवार के देश के चीफ जस्टिस एसएच कापड़िया और जस्टिस एके पटनायक व स्वतंत्र कुमार की तीन सदस्यीय पीठ ने नदी जोड़ो परियोजना पर अपना फैसला सुनाया। उसका कहना था कि यह परियोजना राष्ट्र हित में है। इससे सूखा प्रभावित लोगों को पानी मिलेगा यह आम जनता के हित में है। परियोजना लंबे समय से लटकी पड़ी है। केंद्र और संबंधित राज्य सरकारों को इसे लागू करने के कदम उठाने चाहिए।

पीठ ने कहा कि अदालत के लिए यह संभव नहीं है कि वो परियोजना की संभावनाओं व अन्य तकनीकी पहलुओं पर निर्णय कर पाए। यह काम विशेषज्ञों का है। इसलिए वह एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन कर रही है। इस समिति में जल संसाधन मंत्री, जल संसाधन सचिव, वन व पर्यावरण मंत्रालय के सचिव के अलावा चार विशेषज्ञ होंगे। चार विशेषज्ञों में जल संसाधन मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, वन व पर्यावरण मंत्रालय और योजना आयोग एक-एक विशेषज्ञ नामित करेगा। समिति में संबंधित राज्य सरकारों के जल व सिंचाई विभाग के भी प्रतिनिधि होंगे। इसमें दो सामाजिक कार्यकर्ता और वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार शामिल रहेंगे।

यह समिति नदी जोड़ परियोजना पर अमल की संभावनाओं पर विचार करेगी और उसे लागू करेगी। समिति दो महीने में कम से कम एक बार बैठक जरूर करेगी। किसी सदस्य के अनुपस्थित रहने पर बैठक निरस्त नहीं होगी। बैठक की पूरी बातचीत दर्ज की जाएंगी। समिति साल में दो बार केंद्रीय मंत्रिमंडल को रिपोर्ट सौंपेगी और मंत्रिमंडल उस रिपोर्ट पर अधिकतम तीस दिन में निर्णय ले लेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कुछ राज्यों ने इस दिशा में काफी काम कर लिया है जिसमें केन-बेतवा परियोजना शामिल है। पीठ ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व केंद्र सरकार को इसे लागू करने का निर्देश दिया है। मालूम हो कि नदी जोड़ परियोजना के अंतर्गत कुल 30 नदी जोड़ प्रस्तावित हैं, जिनमें से 14 हिमालयी भाग के और 16 मैदानी भाग के हैं। इस परियोजना पर तमाम विशेषज्ञ पहले से ही अपनी आपत्ति जाहिर करते रहे हैं। उनका कहना है कि प्रकृति में इतने बड़े पैमाने पर दखल भयंकर हालात पैदा कर सकता है। अगर नदियों को जोड़ना ही है तो उन्हें ऊपर जनजीवन को प्रभावित किए बिना भूमिगत पाइपों से जोड़ना चाहिए, जो अपने-आप में काफी खर्चीला विकल्प है। हालांकि मूल परियोजना की अनुमानित लागत ही पिछले नौ सालों में बढ़कर कम से कम दस लाख करोड़ रुपए हो चुकी होगी।

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