नमामि गंगे परियोजना की प्रगति से उमा भारती चाहे जितनी आशावादी हों, जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मन्त्रालय ने नदियों को आपस में जोड़ने के काम को प्राथमिकता दी है। एक राष्ट्रीय परिदृश्य योजना तैयार की गई है। इसके अन्तर्गत जल-आधिक्य वाले इलाके से जल-न्यूनता वाले इलाके में जल स्थान्तरित करने पर जोर दिया जाएगा। मन्त्रालय ने चार जून को एक विज्ञप्ति जारी कर अपनी उपलब्धियों का विवरण दिया है।
विज्ञप्ति के अनुसार, केन-बेतवा परियोजना का तेजी से कार्यान्वयन होगा। दमन गंगा-पिंजल की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की गई है। पार-तापी-नर्मदा लिंक की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट को अन्तिम रूप दिया जा रहा है। महानदी-गोदावरी बाढ़ नियन्त्रण परियोजना शुरू की गई है। बिहार की दो परियोजनाएँ- बूढ़ी गण्डक नून बाया लिंक और कोसी मेची लिंक की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट पूरी की गई है। नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजनाओं को समयबद्ध ढंग से कार्यान्वित करने के लिये विशेष समितियाँ गठित की गई हैं। नदियों को आपस में जोड़ने के तकनीकी मुद्दों के समाधान के लिये उच्च स्तरीय कार्यबल का गठन किया गया है।
शारदा नदी पर पंचेश्वर बहुद्देशीय परियोजना को शीघ्र पूरा करने के लिये नेपाल के साथ समझौता किया गया है। परियोजना के शीघ्र कार्यान्वयन के लिये पंचेश्वर विकास प्राधिकरण का गठन किया गया है। यह विवादास्पद परियोजना है और नेपाल में इसका व्यापक विरोध हो रहा है। इसी तरह अरुणाचल प्रदेश और असम में बाढ़ नियन्त्रण के लिये 9600 मेगावाट क्षमता की सियांग परियोजना का काम शुरू किया गया है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि इससे बाढ़ नियन्त्रित होने के बजाय विकराल होगी। बाँधों की हालत यह है कि विश्व बैंक की सहायता से 2100 करोड़ रुपए अनुमानिक लागत पर बाँध सुरक्षा परियोजना शुरू की गई है और इसके लिये चार राज्यों के 233 बाँधों को चुना गया है। कुछ दूसरे संरचनागत कामों के अलावा जल संरक्षण के कार्यक्रम भी अपनाए गए हैं।
जल संरक्षण के बारे में जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से देश के 485 जिलों में ग्रामीण स्तर ‘हमारा जल-हमारा जीवन’ नामक कार्यक्रम आरम्भ किया गया है। भूजल के समुचित इस्तेमाल के लिये राष्ट्रीय एक्वीफर प्रबन्धन परियोजना शुरू की गई है। इसके लिये 5.89 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का मानचित्र तैयार किया गया है। भूजल निर्ष्कषण के लिये अनुमति लेने के लिये वेब आधारित आवेदन प्रणाली शुरू की गई है।
जल सम्भरण और जल संरक्षण पर आधारित मास्टर प्लान तैयार करके सभी राज्यों को भेजा गया है। जल मन्थन में आए विचारों के आधार पर त्वरित सिंचाई और बाढ़ प्रबन्धन कार्यक्रमों के लिये पहली छ माह में 800 करोड़ जारी किए गए थे, उसे बढ़ाकर अगले छ माह के लिये 4800 करोड़ रुपए कर दिए गए हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना शुरू की गई है जिस पर 3600 करोड़ रुपए लागत आएगी।
नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजना के आधार पर पूरा करने के लिये स्पेशल परपज वेहिकल की स्थापना की जाएगी। भागीदारी आधारित सिंचाई प्रबन्धन को सशक्त बनाना और भूजल प्रबन्धन तथा वर्षाजल के सम्भरण में लोगों की भागीदारी कायम करना। यमुना नदी का संरक्षण, पंचेश्वर बहुद्देशीय परियोजना और सियांग परियोजना का शीघ्र कार्यान्वयन। जल क्रान्ति अभियान की शुरुआत। राष्ट्रीय जल उपयोग दक्षता ब्यूरो का गठन ताकि जल का प्रभावकारी नियन्त्रण और नियमन हो सके। इस परियोजना से सभी नदी थाले में जल मौसम विज्ञान नेटवर्क स्थापित होगा जिससे जल प्रबन्धन के बारे में सम्पूर्ण जल मौसम विज्ञान के आधार पर केन्द्रीय डाटाबेस तैयार हो सकेगा।
नमामि गंगे नामक समन्वित गंगा संरक्षण कार्यक्रम को मंजूरी दी गई है जिस पर 20 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे और इसे 2020 तक पूरा कर लिया जाएगा। राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण की दो बैठकें हुई जिसमें एक बैठक प्रधानमन्त्री की अध्यक्षता में हुई। सीवेज नेटवर्क और शोधन संयन्त्रों के निर्माण के लिये करीब 5 हजार करोड़ रुपए लागत की 76 परियोजनाएँ मंजूर की गई हैं। वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून के सहयोग से जलजीवों और जैव विविधता के संरक्षण के लिये कार्यक्रम अपनाए जाएँगे।
नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजना के आधार पर पूरा करने के लिये स्पेशल परपज वेहिकल की स्थापना की जाएगी। भागीदारी आधारित सिंचाई प्रबन्धन को सशक्त बनाना और भूजल प्रबन्धन तथा वर्षाजल के सम्भरण में लोगों की भागीदारी कायम करना। यमुना नदी का संरक्षण, पंचेश्वर बहुद्देशीय परियोजना और सियांग परियोजना का शीघ्र कार्यान्वयन।
जल क्रान्ति अभियान की शुरुआत। राष्ट्रीय जल उपयोग दक्षता ब्यूरो का गठन ताकि जल का प्रभावकारी नियन्त्रण और नियमन हो सके। पोलवरम परियोजना को समय पर पूरा करने के सभी प्रयास करना। केन्द्रीय मृदा और सामग्री अनुसन्धान केन्द्र, केन्द्रीय जल और बिजली अनुसन्धान केन्द्र और राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान को विशिष्टता केन्द्रों के रूप में विकसित किया जा रहा है।
जल संसाधन सूचना प्रणाली को संस्थागत रूप देने के लिये राष्ट्रीय जल सूचना विज्ञान केन्द्र स्थापित किया जाएगा। केन्द्रीय जल आयोग के बाढ़ पूर्वानुमान नेटवर्क को आधुनिक बनाना और उसका विस्तार करना। जल मौसल विज्ञान सम्बन्धी आँकड़े को तत्काल प्रचारित करने की प्रणाली की स्थापना इत्यादि कामों को भी मन्त्रालय ने अपनी उपलब्धियों में रखा है।
देश के सतत् आर्थिक विकास के सन्दर्भ में समन्वित जल प्रबन्धन के महत्त्वपूर्ण स्थान को रेखांकित करते हुए मन्त्रालय ने कहा है कि वह जल संसाधनों के सतत् विकास, इसकी गुणवत्ता कायम रखने और इसके प्रभावकारी इस्तेमाल सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर रहा है।
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Post By: RuralWater