नदी घाटी प्रबन्ध अधिनियम (ड्राफ्ट) 2018 और कुछ सुझाव

नदी घाटी प्रबन्ध अधिनियम (ड्राफ्ट) 2018
नदी घाटी प्रबन्ध अधिनियम (ड्राफ्ट) 2018

नदी घाटी प्रबन्ध अधिनियम (ड्राफ्ट) 2018 (फोटो साभार - विकिपीडिया)द्वितीय एडमिनिस्ट्रेटिव रीफार्म कमीशन (second administrative reform commission) की फरवरी 2008 की सातवीं रिपोर्ट जिसका शीर्षक विवाद निपटारे के लिये क्षमता विकास (Capacity Building for Conflict Resolution-Fiction to Fusion) है, ने नदी बोर्ड अधिनियम 1956 को प्रतिस्थापित कर उसके स्थान पर प्रत्येक अन्तरराज्यीय नदी घाटी के लिये अलग-अलग नदी घाटी संगठन (River Basin Organisations - RBOs) बनाने की सिफारिश की थी।

इस सिफारिश का आधार नेशनल कमीशन फॉर इंटीग्रेटेड वाटर रिसोर्स डेवलपमेंट 1999 (National Commission for Integrated Water Resource Development 1999) की सिफारिश है। उस सिफारिश को अमल में लाने के लिये हाल ही में भारत सरकार ने देश की 13 अन्तरराज्यीय नदी घाटियों के लिये नदी घाटी प्रबन्ध अधिनियम (river basin management act) 2018 प्रस्तावित किया है।

सरकार का मानना है कि इस अधिनियम के लागू होने के बाद अन्तरराज्यीय नदियों के पानी का इष्टतम तथा समन्वित विकास और प्रबन्ध (Optimum integrated development and management of inter-State River waters ) सम्भव हो सकेगा। ऐसा विकास जो बेसिन अवधारणा (basin approach) पर आधारित है। सरकार का मानना है कि प्रस्तावित नदी घाटी प्रबन्ध अधिनियम 2018 के लागू होने से राज्यों के बीच विवाद का माहौल बदलेगा। सहयोग स्थापित होने से विवाद समाप्त (change of environment from the one of conflicts to that of cooperation) होंगे। सरकार ने इस अधिनियम पर सुझाव माँगे हैं जिन्हें sjcbm-mowr@nic.in / dcbm-mowr@nic.in पर दिनांक 5 नवम्बर, 2018 तक भेजा जा सकता है। यह लेख उसी कड़ी में है।

भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित अधिनियम का सम्बन्ध भारत की 13 अन्तरराज्यीय नदियों से है। प्रस्तावित अधिनियम के शेड्यूल- एक में नदियों की सूची दी गई है। सूची के अनुसार 13 अन्तरराज्यीय नदियाँ जिनके लिये नदी घाटी संगठन बनाना प्रस्तावित है, निम्नानुसार हैं-

1. उत्तर-पूर्व की ब्रह्मपुत्र, बरक तथा अन्य अन्तरराज्यीय नदियाँ
2. ब्रह्मणी-बैतरणी नदी घाटी
3. कावेरी नदी घाटी
4. गंगा नदी घाटी
5. गोदावरी नदी घाटी
6. सिन्धु नदी घाटी
7. कृष्णा नदी घाटी
8. महानदी नदी घाटी
9. माही नदी घाटी
10. नर्मदा नदी घाटी
11. पेन्नार नदी घाटी
12. सुवर्णरेखा
13. ताप्ती नदी घाटी

प्रस्तावित संगठन, ऊपर उल्लेखित नदी घाटियों के पानी को लेकर विभिन्न राज्यों के बीच जो विवाद हैं उनका आपसी सहयोग से निपटारा करेगा। इसके लिये बाकायदा अथॉरिटी की नियुक्ति की जाएगी। नदी घाटी के विकास, प्रबन्ध तथा नियमन (Regulation) के मार्गदर्शी सिद्धान्त में भागीदारी, सहयोग, समानता आधारित वितरण और टिकाऊ उपयोग, कछार के अन्दर सतही जल और भूजल का मिलाजुला प्रबन्ध, समन्वित प्रबन्ध जिसमें पानी की रिकवरी और पुनः उपयोग सम्मिलित है, होगा। इसके अलावा अधिनियम में रेखांकित किया है कि पानी के प्रबन्ध में राज्य की भूमिका ट्रस्टी की होगी और वह पानी को समाज का साझा संसाधन मानेगा। माँग का बेहतर प्रबन्ध किया जाएगा। अधिनियम में प्रत्येक उल्लेखित बिन्दु की प्रमुख बातों को अच्छी तरह रेखांकित किया गया है।

प्रस्तावित अधिनियम के अध्याय सात में उल्लेख है कि अन्तरराज्यीय नदी घाटी की अथॉरिटी द्वारा सम्बन्धित नदी घाटी के लिये मास्टर प्लान तैयार कराया जाएगा। नदी घाटी अथॉरिटी द्वारा यह सुनिश्चित किया जाएगा कि मास्टर प्लान में अन्तरराज्यीय नदी घाटी का विकास, प्रबन्ध और नियमन की सही व्यवस्था हो। उसमें नदी घाटी के चरित्र की एनालिसिस, मानवीय गतिविधियों के प्रभाव की समीक्षा, संरक्षित इलाके का सीमांकन किया जाएगा।

मास्टर प्लान में समाज और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिये प्रवाह की मात्रा की आवश्यकता तथा अवधि को ज्ञात किया जाएगा। उसमें पर्यावरणी प्रवाह, भूजल तथा संरक्षित एक्वीफर, पानी की कीमत निर्धारित करने वाली नीतियाँ, आर्थिक समीक्षा तथा लागू कानूनों के प्रभाव इत्यादि का समावेश करना होगा। इसके बारे में अधिनियम के शेड्यूल दो में मास्टर प्लान में दर्ज की जाने वाली बातों को विस्तार से दिया गया है।

नदी घाटी प्रबन्ध अधिनियम 2018 का ड्राफ्ट लगभग उस समय सामने आया है जब देश में गंगा महासभा के प्रस्ताव, जिसका केन्द्र बिन्दु गंगा की अविरलता और निर्मलता है, पर भी चर्चा हो रही है। यह भी विदित है कि गंगा महासभा के प्रस्ताव को लेकर प्रो. जी. डी. अग्रवाल (स्वामी सानन्द) अनशन पर थे और उसे मंजूर कराने की कोशिश में उनका निधन हो गया।

यह भी सर्व विदित है कि गंगा भक्तों, पर्यावरण से जुड़े वैज्ञानिकों तथा सिविल सोसाइटी के अनेक लोग गंगा महासभा के प्रस्ताव की मंजूरी की बाट जोह रहे थे और आज भी वे उसे मूर्त स्वरूप दिलाने के लिये प्रयासरत हैं। इस कारण कुछ लोगों को लग रहा है कि नदी घाटी प्रबन्ध अधिनियम 2018 का सम्बन्ध गंगा महासभा के प्रस्ताव से है।

हकीकत यह है कि नदी घाटी प्रबन्ध अधिनियम 2018 के प्रस्तावित ड्राफ्ट का प्रो. जी. डी. अग्रवाल के द्वारा प्रस्तावित ड्राफ्ट से कोई सम्बन्ध नहीं है। विदित हो कि प्रो. जी. डी. अग्रवाल के प्रस्ताव का सम्बन्ध गंगा की अविरलता और निर्मलता से है वहीं भारत सरकार के प्रस्ताव का सम्बन्ध अन्तरराज्यीय नदियों के पानी के बँटवारे, प्रबन्ध तथा नियमन से है।

उन दोनों प्रस्तावों के उद्देश्य पूरी तरह अलग हैं। लेकिन यदि नदी घाटी प्रबन्ध अधिनियम 2018 में गंगा महासभा के प्रस्ताव के केन्द्र बिन्दुओं (अविरलता और निर्मलता) को समाहित कर लिया जाता है तो गंगा सहित देश की 13 अन्तरराज्यीय नदियों की अविरलता तथा निर्मलता, किसी हद तक बहाल हो सकेगी। प्रवाह बहाली ऐसी समस्या है जो बरसों से हाशिए पर है।

प्रवाह की अविरलता, निर्मलता तथा प्रवाह की अवधि हकीकत में नदीतंत्र की ऐसी आवश्यकता है जिसका सम्बन्ध नदी घाटियों के निरापद तथा टिकाऊ विकास से भी है। गौरतलब है कि वैज्ञानिक तरक्की के मामले में अब हम पिछली सदी में नहीं हैं। उससे काफी आगे निकल आये हैं। हमें अनेक नए निरापद विकल्प मिले हैं और उपलब्धियों की फेहरिस्त में हर दिन बहुत कुछ नया जुड़ा है।

उल्लेखनीय है कि पिछली सदी में तापीय ऊर्जा उत्पादन के लिये कोयले और पनबिजली उत्पादन के लिये बाँध की आवश्यकता अपरिहार्य थी। अब सदी बदल गई है। हमारे पास सौर ऊर्जा और विंड एनर्जी के रूप में पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित तथा टिकाऊ विकल्प मौजूद है।

गौरतलब है कि सौर ऊर्जा का उत्पादन से देश के लगभग सभी क्षेत्रों में किया जा सकता है। उसके लिये साइट या पानी की नहीं केवल सूरज की रोशनी की ही आवश्यकता है। वह ग्रीन हाउस गैसों के कुप्रभाव से मुक्त है। उसके फायदों के कारण बाँध अव्यावहारिक हो चले हैं। इसलिये बाँधों पर होने वाले खर्च को सौर ऊर्जा के उत्पादन और विस्तार पर खर्च किया जा सकता है। प्रवाह बहाली के प्रयासों को अपनाया जा सकता है।

पानी के सदुपयोग की जो पहल नदी घाटी प्रबन्ध अधिनियम 2018 में उल्लेखित है को आगे बढ़ाया जा सकता है। कहना समयोचित होगा कि सुझाए प्रावधानों को नदी घाटी प्रबन्ध अधिनियम 2018 में सम्मिलित करने से उन नदी घाटियों में प्रवाह की अविरलता को किसी हद तक सुनिश्चित किया जा सकता है। नए अवरोधों की समस्या से निजात पाई जा सकती है।

नदी को कुदरती भूमिका का पालन करने का अवसर मिल सकता है। बायोडायवर्सिटी की बहाली का शुभारम्भ हो सकता है। इन कदमों से प्रवाह की मात्रा तथा अवधि में वृद्धि होगी। नदियों में गन्दगी का स्तर कम होगा। नदी घाटी प्रबन्ध अधिनियम 2018 में उल्लेखित उद्देश्यों अर्थात इष्टतम तथा समन्वित विकास और प्रबन्ध को सम्बल मिलेगा। अन्त में, सबसे बड़ी बात, अस्थायी निर्माणों पर होने वाला खर्च जो समाज से टैक्स के रूप में जुटाया जाता है, को टिकाऊ कामों पर खर्च किया जा सकेगा।

नदी घाटी प्रबन्ध अधिनियम (ड्राफ्ट)2018 को अंग्रेजी में पढ़ने के लिये अटैचमेंट देखें।

 

 

 

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