पिछले तीन दिनों (22 जून से 24 जून) से बिहार में बीस-पच्चीस संवेदनशील लोग नदी चेतना यात्रा के लिए होमवर्क कर रहे हैं। यह समूह रोज सबेरे 8.30 बजे मोबाईल पर एक दूसरे से कनेक्ट होता है और डिजिटल सम्वाद के तरीके से प्रातः लगभग नौ बजे तक होमवर्क करता है। होमवर्क का लक्ष्य है, चेतना यात्रा को प्रभावी बनाना। चयनित नदियों की समस्याओं के कारणों को पहचाना और कछार में निवास करने वाले समाज की मदद से समाज सम्मत हल तलाशना और जन अपेक्षाओं को मूर्त स्वरुप प्रदान करने के लिए राज से सम्वाद करना। यह होमवर्क डिजिटल प्लेटफार्म पर होता है। जबाब-सवाल होते हैं। प्रश्न पूछे जाते हैं। जिज्ञासाओं और शंकाओं का समाधान प्राप्त किया जाता है। पटना के पत्रकार पंकज मालवीय इस डिजिटल सम्वाद के संयोजक है।
नदी चेतना यात्रा के यात्रियों ने पिछले तीन दिनों में डिजिटल सम्वाद के माध्यम से जो समझ बनाई है, उसका विवरण निम्नानुसार हैं-
सबसे पहले नदी को समझने का प्रयास किया गया। इस समझ के अनुसार नदी, प्रकृति द्वारा निर्धारित मार्ग पर लगातार बहता कुदरती पानी है। वहीं नदी का मूल स्वभाव निर्मलता और अविरलता है। उसके निर्मल जल में जलीय जीवों का जीवन फलता-फूलता है। इसके अलावा, नदी में सम्मिलित है कछार का वह इलाक़ा जो सतही जल तथा भूजल का स्रोत है और जो सहायक नदियों का अविभाज्य और एक दूसरे पर आश्रित परिवार जो उसकी अविरलता को पूरे समय सम्बल प्रदान करता है।
चर्चा में नदी के प्रवाह को समझने की कोशिश की गई। सदस्यों का सोचना था कि यह प्रवाह दो प्रकार का होता है। पहला है बरसाती प्रवाह जिसका स्रोत कछार पर बरसा पानी होता है। यह पानी ढाल के सहारे बहकर अंततः नदियों को मिलता है। उस पानी में अकसर मिट्टी, बालू के कण और कछार की जमीन पर यत्र-त़त्र बिखरा वानस्पतिक कचरा मिला होता है। उस पानी की यात्रा सहायक नदियों से चलकर अन्ततः बडी नदी पर खत्म होती है। दूसरा प्रवाह वह है जो कछार की उथली परतों से कुदरती व्यवस्था से बाहर आकर नदियों को मिलता है और भूजल कहलाता है।
उपर्युक्त समझ बनाने के बाद समूह ने तय किया कि बरसात के दिनों में ही मिथिलांचल की कमला नदी, शाहाबाद की काव नदी, सीमांचल की सौरा नदी, और चम्पारण की धनौति नदी के कछार में नदी चेतना यात्रा निकाली जाए। सूखे दिनों में इन्हीं नदियों की वस्तुस्थिति समझने के लिए यात्रा का पुनः आयोजन किया जाए। दोनों ही यात्राओं में नदी चेतना यात्रा का फोकस मानवीय हस्तक्षेपों का अवलोकन तथा स्थानीय लोगों से मिलकर समस्याओं को समझना, उनका समाज सम्मत हल तलाशना और अन्ततः राज से सम्वाद करना ताकि जन अपेक्षाओं के अनुसार, नदियों को कुदरती अविरलता और निर्मलता तथा जैवविविधता प्रदान की जा सके।
तीन दिवसीय डिजिटल सम्वाद के बाद तय किया कि नदी चेतना यात्रा के दौरान सबसे पहले, मुख्य नदी और उसकी सभी सहायक नदियों पर बने स्टाप-डेमों तथा अन्य संरचनाओं का अवलोकन किया जाए। इस अवलोकन का उद्देश्य उनकी अच्छाईयों तथा बुुराईयों पर लोगों की राय जानना होगा। इसमें उन लोगो की भी राय ली जावेगी जिन्हें उनसे कोई प्रत्यक्ष लाभ नहीं मिलता। संवाद के अन्य बिन्दु होंगे स्टाप-डेम की उपयोगी उम्र, उसकी टूट-फूट, स्टाप-डेम के ऊपरी नदी मार्ग में गाद जमाव, गाद जमाव के हानि-लाभ, गाद जमाव का जल संचय की मात्रा पर असर, स्टाप-डेम के किनारों की मिट्टी के कटाव से होने वाली हानि इत्यादि। इस होमवर्क का उद्देश्य स्टाप-डेम की समय की तुला पर उपयोगिता और और लागत की तुला पर मितव्ययता को जानना होगा। यदि वह समय और लागत की तुला पर उपयोगी और सही विकल्प है तो उसके लिए पैरवी करना अन्यथा राज के सामने बेहतर विकल्प पेश करना।
तीन दिवसीय डिजिटल सम्वाद के बाद यह भी तय किया कि नदी चेतना यात्रा के दौरान मुख्य नदी और उसकी सभी सहायक नदियों में गंदगी उडेलने वाले स्रोतों और उनके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों/संस्थाओं को चिन्हित किया जाए। नदी चेतना यात्रा के लोग इस बात से अच्छी तरह परिचित थे कि बरसात के दिनों में पानी की बहुलता के कारण गन्दगी का स्तर घट जाता है इसलिए इस समय संवाद को स्रोतों को चिन्हित करने तथा उसके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों/संस्थाओं इत्यादि की पहचान तय करने तक सीमित रखा जाए। समस्या के निराकरण के लिए सम्बन्धितों से संवाद किया जाए और यदि सक्षम अधिकारियों से निश्चित समय सीमा में निराकरण कराने के लिए निवेदन किया जाए।
नदी चेतना यात्रा के लोग इस बात से अच्छी तरह वाकिफ थे कि बरसात के दिनों में चूँकि लगातार पानी नहीं बरसता और उसकी तीव्रता तथा अवधि अलग-अलग होती है इसलिए इस दौरान प्रवाह में घट-बढ़ स्वाभाविक है। अतः यह तय किया कि नदी चेतना यात्रा के दौरान, स्थानीय लोगों से सम्वाद कर मुख्य नदी और उसकी सभी सहायक नदियों के बरसाती प्रवाह की दैनिक घट-बढ़ की मदद से बरसात के चरित्र के असर को समझने का प्रयास किया जाए। इस सम्वाद का लक्ष्य होगा, कछार के इलाके की सहायक नदियों के योगदान को मौटे तौर पर समझना है। इससे समाज को, चयनित नदी को पानी, कहाँ-कहाँ से मिल रहा है, समझ में आवेगा। चयनित नदी के प्रवाह की वृद्धि में सहायक नदियों का योगदान समझ में आवेगा। इसके अलावा, चयनित नदी को, कितने क्षेत्र (कछार या जलग्रहण क्षेत्र) पर बरसे पानी का लाभ मिलता है, समझ में आवेगा। यही समझ उसे कछार/जलग्रहण क्षेत्र का अर्थ और उसकी पानी देने की भूमिका को समझने में सहायक होगा। इसी समझ के बाद चयनित नदी को सीमित संदर्भ में समझने के स्थान पर कछार के व्यापक संदर्भ में समझने में मदद मिलेगी।
इसी अवधि में नदियों के प्रवाह में होने वाली कमी-वेषी को समझने का अवसर मिलेगा। वृक्षों की भूमिका समझ में आवेगी। चयनित नदी को मिलने वाले पानी के अवरोधकों के अच्छे और बुरे असर को समझने का अवसर मिलेगा। गाद के व्यवहार को समझने का अवसर मिलेगा। कछार में हो रहे मानवीय हस्तक्षेप समझ में आवेंगे। रेत के अवैध खनन का प्रवाह पर असर समझ में आवेगा। बरसात और सूखे मौसम में तथा सीवर तथा कल-कारखानों के पानी के नदी में डाले जाने के कारण षुद्धता और जलीय जीव-जन्तुओं (मछली इत्यादि) पर पड़ने वाला असर दिखाई देगा। यह विषुद्ध अध्ययन यात्रा है जो एक ओर लोगों का नजरिया ठीक करेगा तो दूसरी ओर राज से संवाद करने के लिए दृष्टिबोध प्रदान करेगा।
उल्लेखनीय है कि नदी चेतना यात्रा के दौरान, जब संवाद होंगे उस समय उन लोगों से भी सम्वाद होगा जो नदी को सीमित दायरे में रखकर सोचते हैं या कुछ ऐसे काम कर रहेे होते हैं जो असरकारी नहीं हैं। केवल दुनियादारी है। इन कामों में नदी तल को खोद कर या स्टाप-डेम बनाकर पानी के दर्शन कराना। नदी के किनारे वृक्षारोपण करना और कल्पना करना कि रोपित वृक्षों की जड़ों में करोड़ों लीटर पानी जमा किया जा सकता है लोगों को गुमराह करना कि बरसात के बाद, उन वृक्षों की जड़ें धीरे - धीरे पानी छोड कर सूखी नदियों को जिन्दा कर देंगी। उम्मीद है, स्थानीय समाज से होने वाली चर्चा अनेक भ्रान्तियों को दूर करेगी। यही चेतना यात्रा का मकसद है।
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