नदी बनी जहर, खामोश शहर

लुधियाना-नदियां ही सभ्यताओं को विकसित या नष्ट करती हैं। तमाम सभ्यताएं नदियों के कारण विकसित हुई हैं। जब भी किसी कारण से नदियों पर असर पड़ा तो सिंधु घाटी व मिस्त्र की महान सभ्यताएं ही मिट गईं। पंजाब की मिट्टी से सोना उगाने वाली नदियों का अस्तित्व ही खतरे में है। इसमें सतलुज नदी भी शामिल है जिसमें प्रदूषण खतरनाक स्तर तक जा चुका है। महानगर की औद्योगिक इकाइयों व घरों से रोजाना 80 करोड़ लीटर प्रदूषित पानी (800 एमएलडी) सतलुज के पानी को जहरीला बना रहा है। इसके बाद भी शहर वासियों की खामोशी समझ से परे है। सरकारी उपेक्षा के चलते 400 रुपये का प्रोजेक्ट 10 साल से लटका हुआ है।

महानगर में सतलुज के प्रदूषण से पर्यावरण के असंतुलन का खतरा लगातार बढ़ रहा है। इसमें क्रोम, निकल, साइनाइड व अन्य खतरनाक केमिकल शामिल हैं। जिससे मछलियों व पानी में रहने वाले अन्य जीव खत्म होने के कगार पर हैं। योजना को सही ढंग से काम व समय पर पूरा न करने से सतलुज और प्रदूषित हो रही है। अब जो योजनाएं तैयार की गई हैं इनमें भी देरी होने पर पहले वाली योजना जैसी ही स्थिति होगी।
 

बुड्ढा दरिया के उद्धार से ही बनेगी बात


बुड्ढा दरिया (बुड्ढा नाला) सतलुज नदी का हिस्सा है। यह सतलुज से निकली एक धारा है जो लुधियाना से होती हुई आगे सतलुज में मिल जाती है। इसी के किनारे महानगर की नींव रखी गई थी, लेकिन महानगर के सीवेज व औद्योगिक इकाइयों का प्रदूषित पानी इसमें डालने के कारण यह धारा गंदे नाले में तब्दील हो गई है। पिछले साल नाले की सफाई के लिए सरकार ने 50 करोड़ रुपये का बजट में प्रावधान भी रखा था, लेकिन इसका इस्तेमाल ही नहीं किया गया। बिना इसकी सफाई के सतलुज को प्रदूषण मुक्त नहीं किया जा सकता।

 

 

देरी के कारण फेल हुआ सतलुज एक्शन प्लान


सतलुज को प्रदूषण से बचाने के लिए नेशनल रीवर कंजर्वेशन डायरेक्टोरेट ने गंगा एक्शन प्लान की तरह ही सतलुज एक्शन प्लान के जरिए सतलुज को स्वच्छ करने की योजना तैयार की है। इस योजना को शुरू हुए दस साल हो चुके हैं, लेकिन सतलुज के प्रदूषण के स्तर में कोई बदलाव नहीं आया। 1996 में सतलुज एक्शन प्लान बना था। तब से आज की स्थिति में काफी बदलाव आ गया है। सतलुज एक्शन प्लान पर 1999 में काम शुरू हो पाया, तब इसका बजट 229.37 करोड़ रुपये था। प्लान को तीन साल में पूरा होना था, लेकिन प्रोजेक्ट समय पर तैयार नहीं हो सके। जब ये तैयार हुए तो ये नाकाफी साबित हुए। अब इन्हें अपग्रेड करने के लिए 261 करोड़ रुपये की योजना पर काम हो रहा है। इसके तहत भट्टियां, जमालपुर व बल्लोके में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित किए गए हैं।

 

 

 

 

योजना पर नहीं हुआ काम


महानगर में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांटों को लगाने का मकसद था कि सीवेज लाइनों को ट्रीटमेंट प्लांटों तक ले जाया जाएगा और यहां पानी को साफ करके इसे फिर खेती या फिर अन्य कामों के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। ट्रीटमेंट के बाद पानी को नदी में नहीं डाला जाएगा। लेकिन योजना को बाद में बदलाव किया गया और ट्रीटमेंट के बाद पानी को सीवेज में डालने का फैसला हुआ।

 

 

 

 

सतलुज एक्शन प्लान की मौजूदा स्थिति


सतलुज एक्शन प्लान के तहत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों पर अरबों रुपये खर्च करने के बाद यह पूरी तरह फेल साबित हुए हैं। महानगर का सीवेज का पानी सतलुज में बुढ्डा नाला के जरिए जाता है। सारी सीवर लाइनें बुढ्डे नाले में खुलती हैं। यहां तक कि ट्रीटमेंट प्लांटों से कनेक्टेड लाइनों का पानी ट्रीटमेंट के बाद बुढ्डे नाले में डाल दिया जाता है और ट्रीट किया गया पानी फिर प्रदूषित हो जाता है। इससे प्लांटों का मौजूदा स्थिति में कोई फायदा नहीं है।

 

 

 

 

औद्योगिक प्रदूषण ट्रीट करने की क्षमता नहीं


सतलुज एक्शन प्लान के तहत बनाए गए तीनों ट्रीटमेंट प्लान केवल घरेलू सीवेज के पानी को ट्रीट कर सकते हैं। इनमें यह क्षमता ही नहीं है कि वे औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले केमिकल युक्त पानी को साफ करें। लेकिन सीवेज के जरिए औद्योगिक इकाइयों का पानी ट्रीटमेंट प्लांटों में पहुंच रहा है।

 

 

 

 

प्रदूषण मुक्त करने की नई योजना


पंजाब सरकार ने सतलुज नदी की सफाई के लिए बड़ी योजना तैयार की है, जिसके तहत 1076 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इसमें से 416 करोड़ रुपये लुधियाना, 19.80 करोड़ रुपये माछीवाड़ा व 18.84 करोड़ रुपये कुराली के लिए खर्च किए जाएंगे। शेष रुपये अन्य जिलों में खर्च होंगे जहां से सतलुज नदी गुजरती है। इस योजना के तहत दो सालों में सतलुज को प्रदूषण मुक्त करने के लिए ये रुपये खर्च किए जाने हैं।

 

 

 

 

शहर को बचाने के लिए सतलुज को बचाना जरूरी


चंडीगढ़ में पढ़ाई करने वाली हरनीत का मानना है कि लुधियाना को बचाने के लिए सतलुज दरिया को बचाना जरूरी है। यदि नदी का पानी विषैला हो जाएगा तो उसमें रहने वाले जीव जन्तु के साथ-साथ उसका पानी अन्य लोगों को भी नुकसान पहुंचाएगा।

 

 

 

 

शहरवासी भी फर्ज निभाएं


फ्रेंकफिन इंस्टीट्यूट की सेंटर हेड सविता चढ्डा कहती हैं कि नदी के पानी व शहर को प्रदूषण से बचाना सरकार की जिम्मेवारी है। इसके साथ-साथ हर शहरी का यह फर्ज बनता है कि इस काम में वो जितना सहयोग कर सके करें। कारण जब तक हम लोग जागरूक नहीं होंगे, तब तक लुधियाना की पहचान व शान सतलुज दरिया को बचा पाना मुमकिन नहीं है।

 

 

 

 

प्रदूषण को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा


फिजिकल एजूकेशन के लेक्चरार केवल कृष्ण कहते हैं कि लुधियाना को सतलुज के बगल में इसीलिए बसाया गया होगा कि शहर में प्रदूषण व पानी की समस्या न हो। आज बुढ्डा नाला का सारा गंदा पनी सतलुज दरिया में जा रहा है जिससे दरिया का पानी विषैला हो रहा है। पानी में मछलियों के मरने की खबरें भी आती रहती हैं, लेकिन कोई भी इसे गंभीरता से नहीं ले रहा है।

 

 

 

 

सभी लोग मिलकर काम करें


पर्यावरण प्रेमी अमरिंदर सिंह कहते हैं कि सतलुज को बचाना है तो सभी को एक साथ होकर काम करना होगा। सभी लोगों को जागरूक होने की जरूरत है। सरकार का काम है कि वह सतलुज दरिया के पानी को साफ करने के लिए बनाए गए प्रोजेक्ट पर काम करे, वहीं नागरिकों को भी गंदा पानी बुढ्डा नाला में नहीं डालना चाहिए

सतलुज लुधियाना की पहचान है। हमारी संस्कृति है। इसके साथ खिलवाड़ हो रहा है। वे कहते हैं कि इतिहास गवाह है कि जब भी किसी संस्कृति के साथ खिलवाड़ किया गया तो सूरत बदल गई है। इसलिए हम सभी को मिलकर सतलुज दरिया को प्रदूषण से मुक्त करना होगा।

 

 

 

 

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