नासिक में हरि मंदिर एक प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर के चारों ओर एक बड़ा बगीचा है और प्रसाद बनाने के लिए पाकशाला भी। मंदिर में 25 से 30 किलों जैव अपशिष्ट का सृजन होता है, जिसमें अर्पित पुष्प, बगीचे के अपशिष्ट एवं रसोई-अपशिष्ट सम्मिलित होते है। चूंकि मंदिर घनी आबादी के बीच स्थित है, अपशिष्ट का निपटान एक बड़ी समस्या के साथ खर्चीला भी था।
मंदिर में एक कृमि हौज का निर्माण किया गया है जिसके लिए तकनीकी मार्गदर्शन निर्मल ग्राम निर्माण केंद्र ने दिया है। यह संतोषजनक ढंग से कार्य कर रहा है। इस व्यवस्था से न केवल कूड़े की समस्या का समाधान हुआ है, बल्कि इससे मंदिर के सौंदर्य एवं आय में भी बढ़ोत्तरी हुई है।
कृमि हौज की मुख्य विषेशतांए
• कृमि हौज, ईंटों से बनी एक ऐसी खास ईकाई है, जिससे जैव ठोस अपशिष्ट को बहुत ही कम समय में गुणवत्ता युक्त जैविक खाद के रुप में बदला जा सकता है। इसका संचालन एवं प्रबंधन बहुत आसान है। इसकी मुख्य विशेषतांए हैः-
• तेज प्रक्रियाः पारंपरिक पद्धति से कूड़ा को खाद के रुप में परिवर्त्तित करने में 4 से 6 महीने लगते हैं, जबकि इस प्रक्रिया में मात्र 40-45 दिन ही लगते हैं।
• शून्य प्रदूषणः आवृत कृमि हौजों में बनाया गया कृमि कंपोस्ट वायु, जल एवं मृदा प्रदूषण से सर्वथा मुक्त रहता है।
• दुर्गंध से सर्वथा मुक्तः इस प्रक्रिया में किसी प्रकार की दुर्गंध नहीं होती है, घरों के आस-पास भी कृमि हौज बनाए जा सकते हैं।
• प्राकृतिक शत्रुओं से सुरक्षाः कृमि हौज इस प्रकार बनाया जाता है, जिससे प्राकृतिक शत्रुओं-यथा रोडेंट (चुहे), बड़ी चींटी आदि से केंचुओं की सुरक्षा बनी रहे।
• जैविक खादः इस प्रक्रिया में कूड़ा अच्छी जैविक खाद के रुप में परिवर्त्तित हो जाता है, जिसका बगीचे आदि के लिए उपयोग किया जा सकता है अथवा आकर्षक मूल्य पर इसे बेच दिया जा सकता है।
• आर्थिक रुप से संभाव्यः 1 किलो जैव कूड़ा से करीब 0.40 किलो कृमि कंपोस्ट तैयार की जा सकती है। इस तरह कृमि हौज का अर्थशास्त्र समझा जा सकता है।
• कृमि हौज का संचालन
एक कृमि हौज में चार गड्ढे होते है। ये परस्पर जुड़े होते है। इनके विभाजक दीवारों की जोड़ाई जालीदार होती है। एक के बाद एक चारों गड्ढों का चक्रीय पद्धति से इस्तेमाल किया जाता है। एक गड्ढे की क्षमता 15 दिनों तक के कूड़े को समायोजित करने की होती है। इस प्रकार चारों गड्ढों के काम करने का एक चक्र 60 दिनों में पूरा हो जाता है। जब चौथा गड्ढा भर जाता है, तब पहले गड्ढे का कृमि कंपोस्ट निकाल कर उपयोग में लाने के योग्य बन जाता है।
पोषण पदार्थः
• परिणामः 25 से 30 किलोग्राम प्रतिदिन
• कूड़ा की प्रकृतिः कृषि जन्य अपशिष्ट उद्यानापशिष्ट, मंदिरों से पुष्पापशिष्ट, रसोई अपशिष्ट इत्यादि।
• अतिरिक्त आवश्यक पोषण पदार्थः गोबर-कम से कम 15 से 20 किलोग्राम प्रति सप्ताह।
• केंचुओं की आवश्यकताः 1 किलोग्राम (1000 से 1200 जीवित केंचुए) मात्र कार्य आरंभ के समय।
प्रयोग करने योग्य केंचुओं की प्रजातियां
• आइसेनिया फोएटीडा, यूड्रिलस युजीनीया
संचालन एवं अनुरक्षणः
प्रतिदिनः कूड़ा भरना।
साप्ताहिकः सप्ताह में एक या दो बार गोबर डालना।
मासिकःकृमि कंपोस्ट को उपयोग हेतु निकालना।
घ्यातव्यः आर्द्रता के स्तर को बनाए रखना।
मूल्यांकन एवं आर्थिक व्यवहारिकताः
निर्माण पर कुल व्यय रु0 14000/-
प्रतिवर्ष आवर्तक व्यय (श्रम, जल इत्यादि) रु0 5000/-
कृमि कंपोस्ट से औसत वार्षिक आय – रु0 13000/-
अधिकतम दो वर्ष में लागत व्यय वसूल हो जाता है।
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