नमामि गंगे परियोजना के लिये फंड जारी करने पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा रोक लगाने से इस मामले में सरकारी लापरवाही और लब्फाजी बूरी तरह उजागर हुई है। सरकार ने गंगा को प्रदूषित कर रही औद्योगिक इकाइयों के बारे में आवश्यक आँकड़े अदालत को उपलब्ध नहीं कराए थे।
ट्रिब्यूनल जानना चाहता है कि गोमुख से हरिद्वार तक और फिर कानपूर तक कौन कौन सी औद्योगिक इकाइयाँ कहाँ और कितना कचरा गंगा में डाल रही हैं?
अब अदालत ने निर्देश दिया है कि केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड, उत्तर प्रदेश राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड, उत्तराखण्ड राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड और वन व पर्यावरण मन्त्रालय के प्रतिनिधियों को लेकर बनी समिति उन सभी स्थलों का मुआयना करके अपनी रिपोर्ट अदालत में प्रस्तुत करें जहाँ गंगा में उसकी सहायक नदियाँ मिलती हैं।
नमामि गंगे परियोजना की फंडिंग इस जाँच रिपोर्ट के आने तक बन्द रहेगी। केन्द्रीय जल संसाधन मन्त्रालय और राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (एनजीआरबीए) को सुप्रीम कोर्ट की इस पीठ का आदेश है कि गोमुख से कानपुर के बीच गंगा को साफ करने के मद में कोई फंड उसकी अनुमति के बगैर जारी नहीं किया जाये।
नेेशनल ग्रीन ट्रिब्यनल में एमसी मेहता की ओर से जारी याचिका पर पिछले सप्ताह भर से सुनवाई चल रही थी। इस दौरान गंगा में बढ़ रहे प्रदूषण से जुड़े अदालत के प्रश्नों का स्पष्ट जवाब देने में अधिकारी नाकाम रहे।
अदालत ने अधिकारियों से कई सवाल किये। उल्लेखनीय है कि अधिकतर औद्योगिक इकाइयाँ सहायक नदियों के माध्यम से अपना कचरा गंगा में डालती हैं। उनकी कोशिश सबसे पहले यह बताने की होती है कि उनका कचरा सीधे गंगा में नहीं जाता।
गंगा के पुनरोद्धार के लिये जल संसाधन मन्त्रालय ने राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (एनजीआरबीए) का गठन किया है। मौजूदा समय में प्राधिकरण गंगा सफाई की निगरानी करने वाली संर्वोच्च संस्था है और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) नमामि गंगे से जुड़ी परियोजनाओं को लागू करने वाली एजेंसी है।
इस बीच, नमामि गंगे कार्यक्रम को तेजी से पूरा करने के लिये केन्द्र सरकार ने मिश्रित वार्षिक वेतन आधारित सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) शुरू करने का फैसला किया है।
केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने 6 जनवरी को फैसला किया कि इसक तहत पूँजीगत निवेश का 40 प्रतिशत हिस्से का भुगतान सरकार करेगी। बाकी साठ फीसदी का भुगतान सालाना रूप से बीस वर्षों तक किया जाएगा। इससे काम बीच में अटकने और ठेकेदार के काम छोड़ देने की सम्भावनाएँ कम हो जाएगी।
इस मॉडल को अपनाने का उद्देश्य देश में अपशिष्ट जल क्षेत्र में सुधार करना और शोधित जल के लिये बाजार विकसित करना है। साथ ही इससे कार्य प्रदर्शन, सक्षमता, व्यावहारिकता और निरन्तरता भी सुनिश्चित हो सकेगी।
इस मॉडल के विशेष स्वरूप को ध्यान में रखते हुए और भविष्य में इसे बेहतर बनाने के लिये सरकार पीपीपी परियोजनाओं की योजना, संरचना तथा कार्यान्वयन निगरानी के लिये विशेष कम्पनी (एसपीवी) भी स्थापित करेगी।
कैबिनेट के फैसले में कहा गया है कि राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के समग्र दिशा-निर्देश के तहत समुचित नीति के माध्यम से शोधित अपशिष्ट जल के लिये बाजार विकसित किया जाएगा।
एसपीवी की स्थापना भारतीय कम्पनी अधिनियम 2013 के अन्तर्गत की जाएगी। इसके जरिए आवश्यक शासकीय और संरचनागत और कामकाजी स्वायत्तता प्रदान की जाएगी। एसपीवी परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिये इसमें भाग लेने वाली राज्य सरकारों तथा शहरी निकायों के साथ त्रिपक्षीय समझौता किया जाएगा।
मिशन और अभियान तो कई हैं, पर गंगा वाहिनी की पहली कम्पनी की तैनाती से गंगा ग्राम योजना की शुरुआत नमामि गंगे कार्यक्रम के अन्तर्गत महत्त्वपूर्ण पहल है। थल सेना की मदद से बनाई गई गंगा वाहिनी बटालियन की पहली कम्पनी की 4 जनवरी को गढ़मुक्तेश्वर में तैनाती की गई।
इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने कहा कि ऐसी तीन और कम्पनियाँ कानपुर, वाराणसी और इलाहाबाद में शीघ्र ही तैनात की जाएँगी।
गंगा वाहिनी के जवान गंगा के तट पर तैनात रहेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि औद्योगिक इकाइयाँ और नागरिक गंगा को प्रदूषित ना करें। लेकिन गंगा को स्वच्छ रखना सिर्फ इन सैनिकों की ही जिम्मेदारी नहीं है बल्कि इसके तट पर रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति इसे स्वच्छ बनाए रखने में योगदान करें।
उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के ग्राम पुठ में गंगा ग्राम योजना की शुरुआत हुई। इस योजना के तहत गंगा के किनारे स्थित 1600 गाँवों का विकास किया जाएगा। पहले चरण में इस योजना के तहत 200 गाँवों का चयन किया गया है। इन गाँवों की खुली नालियों एवं नालों को गंगा में गिरने से रोककर कचरा निकासी और उसके शोधन की वैकल्पिक व्यवस्था की जाएगी। गाँवों में पक्के शौचालयों का निर्माण किया जाएगा।
गंगा ग्राम योजना के तहत प्रत्येक गाँव पर एक करोड़ रुपए खर्च किए जाएँगे। इन गाँवों का सिचेवाल मॉडल के तहत विकास किया जाएगा। सिचेवाल पंजाब के वह सन्त हैं जिन्होंने पंजाब के गाँवों में ग्रामवासियों के सहयोग से जल प्रबन्धन और कचरा निकासी की उत्तम व्यवस्था कराई।
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