कतरीडीह गाँव समाज परिवर्तन का एक अनूठा उदाहरण है। उल्लेखनीय है कि मंदिर का भव्य मंडप ग्रामीणों द्वारा प्रतिदिन प्रात: और सायं एक मुट्ठी चावल (मुठिया) के सहयोग से संग्रहीत राशि से बना है। मुठिया की यह व्यवस्था आज भी यहाँ चल रही है। कतरीडीह सही मायनों में भारतीय परंपरा का एक आदर्श गाँव है।
परम्परा बदलाव की सोपान कैसे बन सकती है? इसे जानना है तो कतरीडीह से बढ़िया कोई उदाहरण नहीं हो सकता है। सदियों पुरानी मुठिया परम्परा के दम पर गाँव में जहाँ लंगर चलता है, वहीं कुछ उत्साही युवकों ने प्रयोग करने के लिये ऐसा कदम उठाया कि वह कदम शिक्षा के लिये एक नजीर बन गया। कतरीडीह ने कुछ युवकों ने बिहार के नालंदा जिलान्तर्गत कतरी सराय प्रखण्ड में एक छोटा सा गाँव है, कतरीडीह। इस गाँव के नवयुवकों ने पारस्परिक सहयोग एवं सहकार के माध्यम से अपने गाँव को विकास के मामले में स्वावलम्बन के पथ पर अग्रसर करने का एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। इन उत्साही नवयुवकों के प्रयास से यह गाँव शिक्षा, सुसंस्कार तथा सामाजिक समरसता का पथ प्रदर्शक बन गया है।रोगग्रस्त से सेहतमंद बनी शिक्षा व्यवस्था
पहले इस गाँव का सरकारी प्राथमिक विद्यालय जर्जर अवस्था में था। घपले, घोटाले से ग्रस्त इस व्यवस्था में इस विद्यालय का जीर्णोद्धार एक स्वप्न ही था। विद्यालय जाने वाले छोटे, छोटे बच्चे काफी कष्ट उठाते थे. ऐसी स्थिति में कुछ उत्साही नवयुवकों ने मार्ग ढूँढ लिया। विद्यालय को उसके पुराने स्वरूप में वापस लाने के लिये इन युवकों ने तालाब का सहारा लिया। दरअसल विद्यालय के सामने ही एक छोटा सा तालाब था जिसमें इन युवकों ने मछलीपालन शुरू करने का विचार किया। इनकी मेहनत रंग लाई और मछली पालन से आय होने लगी। प्राप्त हुए आय को इन्होंने इस विद्यालय और शिक्षा के प्रति समिर्पत कर दिया। हर साल मछली-पालन से होने वाली आय के दम पर विद्यालय की तसवीर बदलनी शुरू हो गई। मछली विक्रय से वर्ष दर वर्ष प्राप्त आय से निर्मित विद्यालय का भवन आज देखने योग्य है। विद्यालय में खेल के मैदान को लेकर भी इन्होंने पर्याप्त पहल की। विद्यालय के सामने के मैदान को चहारदीवारी से घेरकर खेल के मैदान की आवश्यकता पूरी कर ली गई है। मैदान में एक चबूतरे का भी निर्माण किया गया है, जिस पर प्रतिवर्ष सनातन धर्म दुर्गा पूजा समिति के तत्वावधान में शारदीय नवरात्र उत्सव का भव्य आयोजन होता है। इसमें ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक नाट्यों का मंचन होता है।
युवकों ने उठाया विकास का जिम्मा
गाँव के तीन, चार युवक पिछडे वर्ग के बच्चों को प्रतिदिन रात्रि 7 बजे से 9 बजे तक निःशुल्क पढाते हैं। इन युवकों के द्वारा शिक्षा के प्रति लिये गए इस निर्णय की सभी प्रशंसा करते हैं। आर्थिक दृष्टि से विपन्न माता, पिता अपने बच्चों के शैक्षिक विकास को देखकर प्रसन्न हैं। ये युवक पूरी तन्मयता से शिक्षण कराते हैं। पढाई के साथ बच्चों को शिष्टाचार में भी दक्ष बनाने की पूरी पहल की जाती है। गाँव में सन 1938 से अखंड संकीर्तन समाज का संचालन किया जा रहा है। हर मंगलवार की रात्रि को गाँव के सभी लोग गाँव के मध्य निर्मित माँ जगदंबा मंदिर प्रांगण में बने विशाल मंडप में एकित्रत होते हैं और फिर दो, ढाई घंटे तक भजन, कीर्तन व कथावाचन करते हैं। छोटे-बड़े, ऊँच-नीच, छूत-अछूत का कृत्रिम भेद इसमें विलीन होकर सामाजिक समरसता का अद्भुत भाव उत्पन्न करता है। कतरीडीह गाँव समाज परिवर्तन का एक अनूठा उदाहरण है। उल्लेखनीय है कि मंदिर का भव्य मंडप ग्रामीणों द्वारा प्रतिदिन प्रात: और सायं एक मुट्ठी चावल (मुठिया) के सहयोग से संग्रहीत राशि से बना है। मुठिया की यह व्यवस्था आज भी यहाँ चल रही है। कतरीडीह सही मायनों में भारतीय परंपरा का एक आदर्श गाँव है।
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