नैसर्गिक सौन्दर्य में गिरावट का दौर

संस्कृत में मेघालय का अर्थ ‘बादलों का घर’ है। इस राज्य की प्राकृतिक सुन्दरता से प्रभावित होकर नोबल पुरस्कार से सम्मानित गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ही इस नाम की परिकल्पना की थी। भारत के पूर्वोत्तर हिस्से में स्थित इस राज्य की राजधानी शिलाँग को पूरब का स्कॉटलैण्ड कहा जाता है। क्योंकि स्कॉटलैण्ड की जलवायु और परिदृश्य शिलाँग से काफी मिलते-जुलते हैं।

मेघालय में अवैज्ञानिक खनन के कारण राज्य के पर्यावरणके साथ खिलवाड़ एक बढ़ती चिन्ता का विषय है।मेघालय भारत के सबसे छोटे राज्यों में से एक है। इसका भौगोलिक क्षेत्रफल 22,429 वर्ग किलोमीटर है। इस राज्य के प्रति प्रकृति काफी उदार रही है और उसने पहाड़ियों, झरनों, गुफाओं और वनों से इसकी झोली भरी है। इसके वनों में उप-कटिबन्धीय देवदार के पेड़, सदाबहार और अन्य अस्थायी पेड़ पाए जाते हैं।

मेघालय भारत के संविधान की छठी अनुसूची में शामिल राज्य है। देश का संविधान यहाँ के स्थानीय लोगों को प्रत्यक्ष तौर पर इसकी असाधारण पारिस्थितिकी के संरक्षण की गारण्टी प्रदान करता है। इस प्रकार संविधान की छठी अनुसूची के अधीन राज्य के वन और उपलब्ध संसाधनों के प्रबन्धन के लिए राज्य के खासी, जयन्तिया और गारो हिल्स में तीन स्वायत्त जिला परिषद हैं। प्रत्येक परिषद में खासी, जयन्तिया और गारो के स्थानीय समुदायों से 30 सदस्य शामिल किए गए हैं।

बावजूद इसके राज्य में वनाच्छादित क्षेत्र कई कारणों से घटते जा रहे हैं। इन कारणों में राज्य के प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन प्रमुख है। राज्य में चारकोल का निर्माण होना तथा स्थानीय लोगों द्वारा खेती के स्थान को बदलना, वनों की कटाई करना तथा उसे जलाने की विधि का प्रयोग वनाच्छादित क्षेत्रों के ह्रास के अन्य कारण हैं। सरकार ने चारकोल के उत्पादन पर रोक लगा दी है और अब स्थानीय समुदायों से यह अपेक्षा कर रही है कि खेती के स्थान को बदलने के कारण वनों का कम-से-कम नुकसान हो।

दूसरी ओर यहाँ स्थानीय लोगों द्वारा वन संरक्षण की वर्षों पुरानी परम्पराओं के कई उदाहरण भी मिलते हैं। शिलाँग से लगभग 25 कि.मी. दूर मावफ्लांग में सेक्रेड ग्रूव्स नामक परम्परा इसका एक श्रेष्ठ उदाहरण है। स्थानीय खासी समुदाय इस पवित्र वन का संरक्षण करता है जो लगभग 750 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले औषधीय और सुगन्धित पेड़-पौधों का अकूत खजाना है। दक्षिण गारो हिल्स में स्थित बालपक्रम राष्ट्रीय उद्यान इस प्रकार का दूसरा उदाहरण है और गारो समुदाय के लोग इस विश्वास के साथ इस उद्यान की रक्षा करते हैं कि उनके पूर्वजों की आत्माएँ इसमें निवास करती हैं।

राज्य के कोयला खदानों में कुल 64 करोड़ टन कोयले का भण्डार है। इस कोयले में गन्धक की अधिक मात्रा पाई जाती है। इन कोयला भण्डारों के अधिकांश हिस्से का खनन व्यक्तियों अथवा स्थानीय समुदायों द्वारा अवैज्ञानिक तरीके से किया जाता है। अवैज्ञानिक तरीके से कोयले के खनन के कारण कई नदियों के जल-स्रोत, विशेषकर जयन्तिया हिल्स जिले में अम्लीय हो गए हैं।मेघालय राज्य खनिजों के मामले में भी समृद्ध है। कोयला, चूना-पत्थर, यूरेनियम, सिलिमिनेट और अन्य खनिज पूरे राज्य में प्रचुरता से पाए जाते हैं। वर्षों से मेघालय अपने खनिज पदार्थों और खनन गतिविधियों के लिए सुर्खियों में रहा है। राज्य के कोयला खदानों में कुल 64 करोड़ टन कोयले का भण्डार है। इस कोयले में गन्धक की अधिक मात्रा पाई जाती है। इन कोयला भण्डारों के अधिकांश हिस्से का खनन व्यक्तियों अथवा स्थानीय समुदायों द्वारा अवैज्ञानिक तरीके से किया जाता है। अवैज्ञानिक तरीके से कोयले के खनन के कारण कई नदियों के जल-स्रोत, विशेषकर जयन्तिया हिल्स जिले में अम्लीय हो गए हैं।

राज्य में कोयले का खनन उसी प्रकार किया जाता है, जैसे कि चूहे द्वारा बिल खोदे जाते हैं। कोयला खदान के मजदूर और बच्चे इन बिलों में काफी गहराई तक जाकर पारम्परिक औजारों की सहायता से कोयला निकालते हैं। कुछ गैर-सरकारी संगठनों के अनुमान के अनुसार, नेपाल, असम और यहाँ तक कि बांग्लादेश के कई हजार बच्चे इन खदानों में काम करके प्रतिदिन लगभग 300-400 रुपये कमा लेते हैं और इन अस्वास्थ्यकर तथा खतरनाक खदानों में कई घण्टों तक रहते हैं। एक बार कोयला निकाल लेने के बाद यहाँ खदानों को खुला छोड़ दिया जाता है।

कभी अत्यधिक वर्षा के लिए प्रसिद्ध चेरापूंजी नामक स्थान आज पर्यावरण सम्बन्धी अनियमितताओं के कारण लगभग बंजर के रूप में बदल गया है। इस क्षेत्र को अब उपेक्षित कोयला खदानों और वीरान पहाड़ियों के रूप में जाना जाता है। जयन्तिया हिल्स जिले में भी ऐसा ही नजारा है।

खनन सम्बन्धी गतिविधियों के परिणामस्वरूप भारी धातु जब अवशेष के रूप में रह जाते हैं तो बाद में ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया करके अनेक रसायन बनाते हैं। वर्षा और भू-गर्भीय जल इन रसायनों के साथ मिलकर दूषित होने के बाद शुद्ध जल स्रोतों तक पहुँचकर उसे भी प्रदूषित करते हैं।

कोपिली पनबिजली परियोजना मेघालय और असम राज्य के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण पनबिजली परियोजनाओं में से एक है। जयन्तिया पहाड़ियों में कोयले के अवैज्ञानिक खनन के कारण 275 मेगावाट क्षमता वाली इस पनबिजली परियोजना के अस्तित्व पर खतरा मण्डराने लगा है। जयन्तिया पहाड़ियों में खुले खदानों से बहते प्रदूषित जल के कारण कोपिली नदी का जल अम्लीय हो गया है। भारत में यह पहला मामला है जब किसी पनबिजली परियोजना का जल अम्लीय हो गया हो। कोपिली नदी के जल का पीएच स्तर सात से घटकर चार तक पहुँच गया है, जबकि 25 डिग्री सेण्टीग्रेड तापमान पर प्रदूषण मुक्त जल का पीएच स्तर सात होता है। जल में मौजूद अम्लीय घटकों के कारण महत्वपूर्ण मशीनों के साथ ही तटबन्ध का ढाँचा भी खराब होने लगा है।

यह कहने की जरूरत नहीं कि इस नदी से जीव-जन्तु गायब हो गए हैं। इस संयन्त्र को प्रति वर्ष 100 करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान है। इस परियोजना का निर्माणकर्ता उत्तर-पूर्वी बिजली निगम (एनईपीसी) इस संकट पर नियन्त्रण पाने के उद्देश्य से जापान से विशेषज्ञों को बुला रहा है। इनके सुधार के लिए कोपिली नदी को एक वर्ष के लिए भी अगर बन्द किया जाए तो बिजली की कमी से जूझ रहे असम, मेघालय तथा इसके आसपास के इलाके के लिए कठिनाइयाँ उपस्थित हो सकती हैं।

कोयला खदानों के साथ ही चूना-पत्थर का खनन और सीमेण्ट उद्योग ने विशेषकर जयन्तिया पहाड़ियों में पर्यावरण सम्बन्धी गिरावट में अपनी भूमिका निभाई है। राज्य के पास चूना-पत्थर का कुल 500 करोड़ टन का भण्डार है। राज्य के विभिन्न हिस्सों में जहाँ-तहाँ चूना पत्थर पाया जाता है, जो विशेषकर बांग्लादेश की सीमा से लगे दक्षिणी क्षेत्र और जयन्तिया हिल्स जिले में उपलब्ध हैं। सीमेण्ट उद्योग की एक बड़ी फ्रांसीसी कम्पनी लाफार्ज का संयन्त्र पूर्वी खासी पहाड़ी जिले के शेल्ला में स्थित है, जो राज्य की सबसे बड़ी सीमेण्ट परियोजनाओं में से एक है। यह परियोजना विश्व में अपने तरह की परियोजनाओं में से एक है और यह नोंगतराई के आसपास के गाँवों और पूर्वी खासी हिल्स में शेल्ला से चूना-पत्थर का खनन करके एक 17 कि.मी. लम्बे कॉनवेयर बेल्ट के माध्यम से बांग्लादेश में 15 लाख टन क्षमता वाले अपने चातक सीमेण्ट संयन्त्र को कच्चा माल भेजती है।

खनन सम्बन्धी गतिविधियों के परिणामस्वरूप भारी धातु जब अवशेष के रूप में रह जाते हैं तो बाद में ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया करके अनेक रसायन बनाते हैं। वर्षा और भू-गर्भीय जल इन रसायनों के साथ मिलकर दूषित होने के बाद शुद्ध जल स्रोतों तक पहुँचकर उसे भी प्रदूषित करते हैं।इस क्षेत्र के ग्रामीणों ने इस मुद्दे को उठाया कि इस परियोजना से जुड़े लोगों ने वन क्षेत्र को गैर-वन क्षेत्र के रूप में दर्शाकर केन्द्रीय पर्यावरण और वन मन्त्रालय से पर्यावरण सम्बन्धी स्वीकृति प्राप्त की है। इसके बाद से यह परियोजना कानूनी विवादों में उलझ गई है। पहले ग्राम परिषद और जिला परिषद ने कम्पनी को अनापत्ति प्रमाण-पत्र दिया था। इस वर्ष की शुरुआत में सर्वोच्च न्यायालय ने लाफार्ज कम्पनी द्वारा पर्यावरण सम्बन्धी स्वीकृति पाने के तरीके पर आपत्ति जताते हुए खनन कार्य को स्थगित कर दिया था। बाद में भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय समझौता होने तथा दोनों देशों के विदेश मन्त्रालयों के हस्तक्षेप के कारण इस आदेश को वापस ले लिया गया। लाफार्ज पर्यावरण की क्षति के बदले ग्रामीणों को मुआवजे के तौर पर विकास परियोजनाओं के माध्यम से 60 करोड़ रुपये देने पर सहमती हुई है।

जयन्तिया हिल्स में नोंगखलीह की एक अन्य परियोजना भी विवादों में है। लाफार्ज ग्रीनफील्ड इण्टिग्रेटेड सीमेण्ट संयन्त्र में 1,000 करोड़ रुपये के प्रारम्भिक निवेश के साथ इसकी क्षमता 11 लाख टन की होगी। कम्पनी को स्थानीय ग्राम परिषद और जयन्तिया हिल्स जिला परिषद से स्वीकृति मिल गई है किन्तु स्थानीय ग्रामीण यह कहते हुए इसका विरोध कर रहे हैं कि यह परियोजना इस क्षेत्र में पर्यावरण के ह्रास का कारण बनेगी।

सैकड़ों ग्रामीणों ने इस माह जिला परिषद और लाफार्ज कम्पनी के अधिकारियों को उस स्थान का सर्वेक्षण करने से रोक दिया, जहाँ इस संयन्त्र को स्थापित किया जाना है। जयन्तिया हिल्स जिला मुख्यालय के एक चर्च नेता और सामाजिक कार्यकर्ता हामखेन हेल्पमे मोहरमेन ने 10 नवम्बर को केन्द्रीय पर्यावरण और वनमन्त्री के पास आवेदन कर यह माँग की है कि इस परियोजना को पर्यावरण-सम्बन्धी स्वीकृति न दी जाए, क्योंकि नारपुह और सैपुंग संरक्षित वनों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

चूना-पत्थर से समृद्ध जयन्तिया हिल्स और मेघालय के दक्षिणी भाग में कई गुफाएँ मौजूद हैं। जयन्तिया हिल्स में स्थित क्रेम उम लावान दक्षिण-पूर्व एशिया की सबसे लम्बी और गहरी गुफा है। इसकी लम्बाई 6,381 मीटर है और विशेषज्ञों का कहना है कि इसका सम्बन्ध आदिनूतन युग से है। क्रेम कोटसाती गुफा (3,650 मीटर लम्बी), क्रेमलाशिंग (2, 650 मीटर लम्बी) गुफा के साथ ही कई अन्य गुफाएँ इस जिले में मौजूद हैं जो सीमेण्ट संयन्त्रों के निकट स्थित हैं। ये गुफाएँ प्रागैतिहासिक होने के साथ-साथ पर्यटकों के लिए प्रमुख आकर्षण का केन्द्र भी है। गुफाओं से सम्बन्धित भारतीय और अन्तरराष्ट्रीय विशेषज्ञों से बने मेघालय एडवेंचर एसोशिएशन ने सर्वोच्च न्यायालय में आवेदन दाखिल करके इस समृद्ध पारिस्थितिकी में चूना-पत्थर के खनन पर रोक लगाने की माँग की है। हालाँकि शीर्ष न्यायालय ने आवेदन खारिज कर दिया है।

यूरेनियम का खनन एक अन्य विवादास्पद मुद्दा है। आणविक खनिज निदेशालय ने पश्चिमी खासी हिल्स और गारो हिल्स के विभिन्न हिस्सों में कई दशक पहले इस खनिज का पता लगाया किन्तु यहाँ के सामाजिक संगठनों के विरोध के कारण अब तक इसका खनन नहीं किया गया है। मेघालय के पश्चिमी खासी हिल्स जिले में 1,100 करोड़ रुपये की लागत वाली किलेग पिण्डेंग सोहिओंग मौथावाह यूरेनियम खनन परियोजना इस प्रकार की परियोजनाओं में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। विभिन्न हितधारकों के विरोध के कारण यह भी अब तक शुरू नहीं हुई है।

यूसीआईएल ने मेघालय में एक ओपन कास्ट यूरेनियम खनन और प्रसंस्करण संयन्त्र स्थापित करने का प्रस्ताव किया है। राज्य में 92.20 लाख टन कच्चा यूरेनियम भण्डार होने का अनुमान है। राज्य के पास प्रति वर्ष 3,75,000 टन यूरेनियम के उत्पादन और प्रतिदिन 1,500 टन यूरेनियम के प्रसंस्करण की भी योजना है। यूसीआईएल ने मेघालय में एक ओपन कास्ट यूरेनियम खनन और प्रसंस्करण संयन्त्र स्थापित करने का प्रस्ताव किया है। राज्य में 92.20 लाख टन कच्चा यूरेनियम भण्डार होने का अनुमान है। राज्य के पास प्रति वर्ष 3,75,000 टन यूरेनियम के उत्पादन और प्रतिदिन 1,500 टन यूरेनियम के प्रसंस्करण की भी योजना है। पिछले वर्ष भारतीय यूरेनियम निगम लिमिटेड (यूसीआईएल) ने दक्षिणी मेघालय के पश्चिमी खासी हिल्स के यूरेनियम से समृद्ध 442 हेक्टेयर क्षेत्र में अपनी खनन-पूर्व विकास परियोजनाएँ शुरू करने के लिए 209 करोड़ रुपये निवेश करने का निर्णय लिया है। यूसीआईएल ओपन-कास्ट खनन के माध्यम से वैज्ञानिक तरीके से कच्चा यूरेनियम निकालना चाहता है, किन्तु झारखण्ड के जादूगुड़ा में अपने घटिया प्रदर्शन के कारण वह इसके खनन में समर्थ नहीं हो पाया है। कई गैर-सरकारी संगठन जादूगुड़ा में प्राप्त अनुभव की चर्चा करते हुए कहते हैं कि रेडियो-सक्रिय खनिज स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति गम्भीर खतरा बन सकता है।

पश्चिमी खासी हिल्स के अलावा गारो हिल्स में बालपक्रम राष्ट्रीय उद्यान के निकट भी यूरेनियम भण्डार होने का पता चला है। किन्तु इसकी खोज के बाद गैर-सरकारी संगठनों के विरोध के कारण पर्यावरण और वन मन्त्रालय ने इसके लिए अगला कदम उठाने की अनुमति नहीं दी है। इस उद्यान में कुछ दुर्लभ प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं।

मेघालय में इस बात की चिन्ता बढ़ रही है कि अवैज्ञानिक खनन के कारण राज्य के पर्यावरण के साथ खिलवाड़ हो रहा है। राज्य के पर्यावरणविद इस प्रकार के खनन को रोकने की माँग करते आ रहे हैं। दूसरी ओर राज्य सरकार ने एक खनन नीति तैयार की है। इस मसौदे को सभी हितधारकों के पास भेजा गया है किन्तु अब तक इसे क्रियान्वित नहीं किया गया है। सरकार इस क्षेत्र में सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करना चाहती है और यह पर्यावरण को बचाने के लिए वैज्ञानिक विधियों को अपनाने के प्रति वचनबद्ध भी है। राज्य सरकार का कहना है कि उसे यह आशा है कि इस वर्ष के अन्त तक खनन नीति लागू हो जाएगी और इससे मेघालय के नैसर्गिक सौन्दर्य को स्थापित करने में काफी मदद मिलेगी।

(लेखक शिलाँग में असम ट्रिब्यून के संवाददाता हैं)
ई-मेल : rajudas99@gmail.com

Path Alias

/articles/naaisaragaika-saaunadaraya-maen-gairaavata-kaa-daaura

Topic
×