नई दिल्ली, 07 दिसंबर (इंडिया साइंस वायर): नैनो प्रौद्योगिकी अनुसंधान का एक उभरता हुआ क्षेत्र है। भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों और जैव-अणुओं के कारण खाद्य तथा कृषि सहित विभिन्न क्षेत्रों में नैनो प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग बढ़ रहा है। अब पता चला है कि नैनो प्रौद्योगिकी खाद्य उत्पादों की शेल्फ-लाइफ बढ़ाने, खाद्य पदार्थों का स्वाद, रंग और गुणवत्ता बनाए रखने में प्रभावी भूमिका निभा सकती है। यह बात राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी), आंध्र प्रदेश एवं मिजोरम यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए संयुक्त अध्ययन में उभरकर आयी है। शोधकर्ताओं का कहना है कि नैनो कण आधारित सामग्री, खाद्य पदार्थों के शेल्फ-लाइफ, स्वाद, बनावट और जैव-उपलब्धता जैसे कार्यात्मक गुणों को बढ़ाकर पारंपरिक और गैर-जैव- अपघटनीय पैकिंग सामग्री के मुकाबले अधिक लाभ प्रदान करती है।
इसके अतिरिक्त, तापमान बनाए रखने,पैक किए हुए खाद्य पदार्थों में रोगजनकों, कीटनाशकों, विषाक्त पदार्थों और अन्य रसायनों का पता लगाने के लिए सेंसर के रूप में नैनो सामग्री का उपयोग किया जा सकता है। डॉ. तिंगीरीकारी जगन मोहन राव, सहायक प्रोफेसर, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, एनआईटी आंध्र प्रदेश, ने कहा,“यह अध्ययन शोध पैकिंग सामग्री को यांत्रिक स्थिरता प्रदान करने के लिए नैनो कणों की भूमिका को रेखांकित करता है। यह बताता है कि रोगजनकों, संदूषण, कीटनाशको एवं एलर्जी पैदा करने वाले तत्वों का पता लगाने के साथ-साथ खाद्य उत्पादों को खराब तथा दूषित होने से बचाने के लिए रोगाणुरोधी गुणों से लैस पैकिंग सामग्री के लिए नैनो-सेंसर कैसे
विकसित किए जा सकते हैं।”
डॉ. राव ने बताया, खाद्य संरक्षण में अकार्बनिक नैनो कणों की भूमिका खाद्य उत्पादों की शेल्फ-लाइफ बढ़ाने और हानिकारक पराबैंगनी विकिरणों से भोजन की रक्षा करने वाले एंटीऑक्सीडेंट रिलीज करन से संबंधित है। इस अध्ययन में, नैनो सामग्री से संबंधित खाद्य सुरक्षा पहलुओं पर भी चर्चा की गई है और खाद्य पदार्थों पर उचित लेबलिंग एवं निपटान से जुड़े सुरक्षा विनियमों जैसी पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं के पालन पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिससे मनुष्यों एवं जानवरों पर साइटो-टॉक्सिक अध्ययन का मार्ग प्रशस्त होता है। डॉ. पुनुरी जयशेखर बाबू, पछुंगा यूनिवर्सिटी कॉलेज, मिजोरम यूनिवर्सिटी ने कहा,“प्राकृतिक परिस्थितियों में स्तनधारी कोशिकाओं पर नैनो कणों के विषाक्त प्रभावों का मूल्यांकन करने के लिए बहुत कम काम किया गया है। अकार्बनिक नैनो कण अघुलनशील होते हैं और मानव कोशिकाओं में जैव संचय की एक बड़ी चुनौती पेश करते हैं, जो जैव-विषाक्तता का कारण बन सकते हैं। इस प्रकार, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में इसके उपयोग में बाधा उत्पन्न हो सकती है। ” डॉ. बाबू ने आगे कहा, "पैकिंग सामग्री में उपयोग होने वाले नैनो कण पैक किए हुए खाद्य उत्पादों को संदूषित कर सकते हैं। इसीलिए, अकार्बनिक नैनो कणों के प्रभाव का अध्ययन किया जाना चाहिए। इसके अलावा, नैनो सामग्री; विशेष रूप से नैनो पैकेजिंग सामग्री खाद्य प्रणालियों में उपयोग करने से पहले कठोर परीक्षण के बाद ही अनुमति दी जानी चाहिए।
इस अध्ययन में, नैनो सामग्री के उपयोग एवं उसके अनुप्रयोग से जुड़े नीति-नियम एवं दिशा- निर्देशों से संबंधित सुरक्षा मुद्दों को संबोधित करने में विभिन्न सरकारी एजेंसियों की भूमिका को भी रेखांकित किया गया है। अध्ययन इस पर भी प्रकाश डालता है कि कैसे अधिक कुशल और
प्रभावी पैकिंग सामग्री बनाने के लिए जैव-आधारित पॉलिमर को नैनो कणों के साथ मिश्रित किया जा सकता है। यह अध्ययन जर्नल ऑफ यूरोपियन फूड रिसर्च ऐंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं में डॉ. तिंगीरीकारी जगन मोहन राव एवं डॉ. पुनुरी जयशेखर बाबू के अलावा मिजोरम यूनिवर्सिटी की शोधार्थी आकृति तिर्की शामिल हैं।
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