इतनी ऊँचाई पर तालाब की मौजूदगी को लेकर वैज्ञानिकों के अलग-अलग मत हैं। भू-गर्भ विज्ञानी एचएफ बलैण्डफोर्ड ने 1877 और डब्ल्यू थिओबॉल्ड ने 1880 में कहा था कि यह झील ग्लेशियर की वजह से बनी। तर्क था कि ग्लेशियर का पानी भू-स्खलन के बाद यहाँ भर गया था। जबकि डॉ. बेल ने इस थ्योरी को नकारते हुए तालाब की उत्पत्ति की वजह भूस्खलन बताया। नैनीताल में हुए 1880 के भूस्खलन के बाद भू-गर्भ विज्ञानी आरडी ओल्डहम ने भूस्खलन की थ्योरी की हिमायत की। कहा कि ऐसा सम्भव हो सकता है कि भूस्खलन की वजह से यह झील अस्तित्व में आई हो। जबकि डब्ल्यू बाल्कर नेमिस्टर ने भू-वैज्ञानिक मिस्टर थिओबॉल्ड के हवाले से लिखा है कि नैनीताल जिले में मौजूद तालाबों के बनने का तरीका तकरीबन एक सा है। ये सभी झीलें ग्लेशियर की देन हैं। इन तालाबों के स्थायित्व की वजह ग्लेशियरों के कारण बने पत्थरों का ढांचा है।
ताजा शोधों से यह बात भी उभर कर सामने आई है कि टेक्टॉनिक प्लेटों के खिसकने से भू-स्खलन या भूकम्प की वजह से भी तालाब की उत्पत्ति सम्भव हो सकती है। एक मत यह भी है कि यहाँ से एक नदी गुजरती थी। टेक्टॉनिक प्लेटों के खिसकने से भू-स्खलन या भूकम्प की वजह से अयार पाटा और आलमा की पहाड़ियाँ ऊपर को उठीं। नदी का पानी ठहरने से तालाब का जन्म हो गया। प्रसिद्ध भू-गर्भ विज्ञानी पद्मभूषण प्रो.खड्ग सिंह वल्दिया, नैनी झील की उत्पत्ति की वजह नैनीताल भ्रंश को मानते हैं। प्रो.वल्दिया के अनुसार बलियानाले से नैनापीक पहाड़ी के बीच एक भ्रंश (दरार) गुजर रही है, जिसकी लम्बाई करीब 14-15 किलोमीटर है। यह भ्रंश बलियानाले से होता हुआ दक्षिण पूर्व में तल्लीताल बस अड्डे से जी.एस.बी. परिसर को छूता हुआ परदाधारा, ए.टी.आई. होते हुए उत्तर पश्चिम में देवपाटा तथा नैनी शिखर के बीच छिना पार तक जाता है। प्रो वल्दिया के अनुसार नैनीताल भ्रंश पर जो विवर्तनिक हलचलें हुई, उनके कारण शेर-का-डांडा और नैनी शिखर वाली श्रेणी कुछ ऊपर उठी और अयारपाटा-देवपाटा वाली श्रेणी कुछ धंस गई और साथ ही पश्चिमोत्तर की ओर कुछ झुक भी गई, टिल्ट हो गई। परिणामस्वरूप इन दो पर्वतों के बीच बहने वाली सरिता का प्रवाह अवरुद्ध हो गया, वह बंध गई और बना नैनी सरोवर या नैनीताल। वैज्ञानिकों के अनुसार नैनीताल में पाए जाने वाले पत्थर 2,300 से 2,800 लाख वर्ष पुराने हैं। इन पत्थरों को क्रोल कहा जाता है।
पेड़-पौधे एवं वनस्पति
यहाँ चैड़ी पत्ती वाले वृक्ष अधिक संख्या में है। पया, उदेश, उतीश, खर्सू, रियांज, तिलौंज, फणियोंट, पटगलिया, लौथ, बुरांश तथा बांस की अनेक प्रजातियाँ हैं। पहले अयारपाटा में अयार का घना जंगल था, सम्भवतः इसी कारण इस पहाड़ी का नाम अयारपाटा पड़ा। इसके अलावा सुरई, चीड़, अंगू, चमखिड़क, देवदार, पुतली, चिनार जैसी अनेक प्रजातियों के पेड़-पौधे एवं वनस्पतियां पाई जाती हैं। यहाँ उप हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाली औषधीय जड़ी-बूटियाँ भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। इनमें अनेक स्थानिय प्रजातियाँ भी हैं। एक दौर में टांकी के क्षेत्र में बुरांश के पेड़ों की भरमार थी, इसे बुरांश का डांडा भी कहा जाता था।
वन्यजीव एवं जन्तु
यहाँ काला गिद्ध, भूरा-पीला गिद्ध, स्लेटी-भूरा गिद्ध, सफेद पीठ वाला गिद्ध और दाढ़ी वाला गिद्ध समेत गिद्धों की छह प्रजातियाँ पाई जाती हैं। बाज की पाँच प्रजातियाँ हैं। जंगली बिल्ली, भालू, बाघ, गुलदार, सांभर, सराऊँ, साही, उड़न गिलहरी, घुरड़, काकड़, गीदड़ और लोमड़ी आदि वन्य जीव हैं। यहाँ विविध प्रजातियों के पक्षी हैं, जिनमें कोक्लास, चीड़ फीजंट, रेड जंगल फाउल, रफस बैलीड निल्तावा, वरडीटर, फ्लाई केचर, अल्ट्रा मरीन फ्लाई कैचर, पल्मबस रेड स्टार्ट, ब्लू विश्लिंग थ्रश ( कलचुनिया), बार टेल्ड ट्री कीपर, चेस्टनट बेल्लिड नथैच ओरिएण्टल वाइट आइ, वाइट थ्रोटेड लाफिंग थ्रश, रस्टी चीक्ड सिमिटार वैब्लर, हिमालयन बुलबुल, ब्लैक लोरेड टिट, ग्रीन बैक्ड टिट, ग्रेट बारबेट (न्योली) एवं किंग फिशर आदि प्रजातियाँ शामिल हैं। इधर कुछ समय से नैनीताल में अनेक नई प्रजातियों की रंग-बिरंगी चिड़ियों के झुण्ड भी दिखाई देने लगे हैं। अब नैनीताल के सभी वन क्षेत्रों में कांकड़ और घुरड़ आसानी से देखे जा सकते हैं। नैनीताल के झील में एक दौर में महासीर, हिल ट्राउड, चीन से लाई गई मिरर कार्प और स्थानिक प्रजाति की कार्प मछलियाँ पाई जाती थीं। जिनका वजन 28 से 35 पाउंड तक होता था।
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